अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हांगकांग के विशेष दर्जे को समाप्त कर बैंकों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित कर दिया है. बदले में चीन ने भी जवाबी कार्रवाई करने की चेतावनी दी है.
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चीन द्वारा हांगकांग में नया कानून लागू किए जाने के बाद अमेरिका ने हांगकांग का विशेष दर्जा खत्म कर दिया है. अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉनल्ड ट्रंप ने खुद को चीन के प्रति सबसे सख्त अमेरिकी राष्ट्रपति बताया. उन्होंने कहा, "अब हांगकांग के साथ चीन की ही तरह पेश आया जाएगा. उसे कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाएंगे, आर्थिक रूप से उसके साथ कोई खास बर्ताव नहीं किया जाएगा." चीन पर वार करते हुए उन्होंने कहा, "बीजिंग ने हाल ही में हांगकांग पर सख्त नया सुरक्षा कानून लगाया है. उनकी आजादी छीन ली गई है, उनके अधिकार छीन लिए गए हैं. और इसके साथ ही, मेरी राय में, हांगकांग बाजार में प्रतिस्पर्धा करने लायक नहीं बचेगा. बहुत से लोग अब हांगकांग छोड़ देंगे."
ट्रंप ने "हांगकांग ऑटोनॉमी एक्ट" पर हस्ताक्षर करने की बात भी कही जिसके तहत हांगकांग पुलिस और चीनी अधिकारियों पर और उनके साथ जुड़े बैंकों पर शहर की स्वायत्ता की अवहेलना के आरोप में प्रतिबंध लग सकेंगे. माना जा रहा है कि इस कानून के बाद दुनिया भर के बैंक चीन और अमेरिका में से किसी एक को चुनने पर मजबूर हो जाएंगे. ट्रंप ने कहा, "इस कानून के तहत मेरी सरकार को ऐसे शक्तिशाली साधन मिलेंगे जिनसे वे ऐसे लोगों और संस्थाओं को जिम्मेदार ठहरा सकेंगे, जो हांगकांग की स्वतंत्रता खत्म करने की दिशा में काम कर रहे हैं."
हांगकांग में क्या गुल खिला रहा है चीन का नया कानून
हांगकांग में चीन का नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू होने के पहले ही दिन वहां पुलिस ने कम से कम 70 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. गिरफ्तार हुए सभी लोगों को जेल में लंबा समय बिताना पड़ सकता है.
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पहला दिन
विवादित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून हांगकांग में लागू हो चुका है. शहर की मुख्य कार्यकारी कैरी लैम ने प्रेस वार्ता में नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की प्रतियां जारी कीं. आलोचकों का कहना है कि इस तरह का कड़ा कानून चीन की मुख्य भूमि पर भी नहीं है.
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वर्षगांठ
एक जुलाई को हांगकांग को ब्रिटेन द्वारा चीन को सौंपे जाने की वर्षगांठ भी होती है. कैरी लैम ने अधिकारियों और अतिथियों के साथ हांगकांग स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन की स्थापना की 23वी वर्षगांठ भी मनाई.
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विरोध
हांगकांग की सड़कों पर लोकतांत्रिक प्रदर्शनकारियों ने नए कानून के विरोध में रैली निकाली. हजारों लोग रैली में शामिल हुए और "अंत तक प्रतिरोध" और "हांगकांग आजादी" जैसे नारे लगाए.
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"न्याय के लिए"
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि उन्हें जेल जाने का डर है लेकिन न्याय की की खातिर विरोध करना जरूरी है.
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चेतावनी
प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस के दंगा रोकने वाले दल ने सड़कों पर गश्त लगाई, लेकिन विरोध रैली फिर भी निकाली गई.
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पहली गिरफ्तारियां
रैली में लोगों ने विरोध के कई बैनर भी लहराए. एक व्यक्ति, जिसके पास हांगकांग की आजादी का एक झंडा था, नए सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार होने वाला पहला व्यक्ति बन गया.
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"राजद्रोह"
पुलिस ने जगह जगह लोगों को रोकने के लिए घेराबंदी की थी. नारे लगाते और बैनर लहराते प्रदर्शनकारियों को पहली बार नए कानून के तहत पुलिस कार्रवाई की चेतावनी दी गई. उन्हें कहा गया कि उन पर 'राजद्रोह' के साजिश के लिए कार्रवाई हो सकती है.
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दमन
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की. जमा लोगों को तीतर-बितर करने के लिए पानी की बौछारों का भी इस्तेमाल किया गया.
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पुलिस बनाम प्रदर्शनकारी
प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए हांगकांग पुलिस को काफी आलोचना झेलनी पड़ी है. इस तरह के दृश्य हांगकांग में पिछले साल हुए प्रदर्शनों के दौरान भी देखने को मिले थे.
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पत्रकारों पर हमला
रैली के दौरान पुलिस ने पत्रकारों को भी नहीं बख्शा और उनके खिलाफ पेप्पर स्प्रे का इस्तेमाल किया.
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इसके बाद चीन ने भी जवाबी कार्रवाई करने की बात कही है. चीन ने अमेरिका के हांगकांग ऑटोनॉमी एक्ट को "जानबूझ कर चीन को बदनाम करने वाला" बताया है. चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है, "चीन अपने हितों की रक्षा के लिए जरूरी प्रतिक्रिया देगा और अमेरिकी अधिकारियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाएगा." नए कानून के तहत अमेरिका राष्ट्रपति अगर चाहें भी, तो एक बार लगे प्रतिबंधों को आसानी से हटा नहीं सकेंगे. संसद अगर चाहे तो प्रतिबंध हटाने के उनके फैसले को उलट सकती है.
अमेरिकी सांसदों में इसे ले कर उत्साह नजर आ रहा है. डेमोक्रैट सांसद क्रिस वान हॉलन का कहना है, "आज अमेरिका ने चीन को साफ कर दिया है कि वह बिना गंभीर नतीजों के हांगकांग में स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर हमला करना जारी नहीं रख सकता." लेकिन अटलांटिक काउंसिल थिंक टैंक की जूलिया फ्रीडलैंडर का कहना है कि कुल मिला कर इस कानून से चीन को फायदा होगा और हांगकांग का कष्ट और बढ़ जाएगा.
अमेरिका में नवंबर में चुनाव होने हैं. उससे पहले डॉनल्ड ट्रंप लगातार चीन को मुद्दा बना रहे हैं. पहले कोरोना महामारी को ले कर और अब हांगकांग के मुद्दे पर ट्रंप लगातार चीन से उलझते हुए नजर आ रहे हैं. जानकारों का कहना है कि चुनावों के मद्देनजर ट्रंप जानबूझ कर अमेरिकी जनता को चीन के मुद्दों में उलझाए रखना चाहते हैं और एक सख्त राष्ट्रपति की छवि बनाना चाहते हैं ताकि उनकी विफलताओं की चर्चा ना हो सके. एक दिन पहले ही अमेरिका ने दक्षिण चीन महासागर में चीन की दावेदारी को गैरकानूनी घोषित किया था. इससे पहले उइगुर मुसलामानों के मुद्दे पर भी अमेरिका ने पिछले हफ्ते ही कई उच्च चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए थे.
कैसे अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति बन गया चीन
सोवियत संघ के विघटन के बाद से अमेरिका अब तक दुनिया की अकेली महाशक्ति बना रहा. लेकिन अब चीन इस दबदबे को चुनौती दे रहा है. एक नजर बीते 20 साल में चीन के इस सफर पर.
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मील का पत्थर, 2008
2008 में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी से खस्ताहाल हो रही थी, तभी चीन अपने यहां भव्य तरीके ओलंपिक खेलों का आयोजन कर रहा था. ओलंपिक के जरिए बीजिंग ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपने बलबूते क्या क्या कर सकता है.
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मंदी के बाद की दुनिया
आर्थिक मंदी के बाद चीन और भारत जैसे देशों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद की जाने लगी. चीन ने इस मौके को बखूबी भुनाया. उसके आर्थिक विकास और सरकारी बैंकों ने मंदी को संभाल लिया.
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ग्लोबल ब्रांड “मेड इन चाइना”
लोकतांत्रिक अधिकारों से चिढ़ने वाले चीन ने कई दशकों तक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में खूब संसाधन झोंके. इन योजनाओं की बदौलत बीजिंग ने खुद को दुनिया का प्रोडक्शन हाउस साबित कर दिया. प्रोडक्शन स्टैंडर्ड के नाम पर वह पश्चिमी उत्पादों को टक्कर देने लगा.
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मध्य वर्ग की ताकत
बीते दशकों में जहां, दुनिया के समृद्ध देशों में अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ती गई, वहीं चीन अपने मध्य वर्ग को लगातार बढ़ाता गया. अमीर होते नागरिकों ने चीन को ऐसा बाजार बना दिया जिसकी जरूरत दुनिया के हर देश को पड़ने लगी.
चीन के आर्थिक विकास का फायदा उठाने के लिए सारे देशों में होड़ सी छिड़ गई. अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन समेत तमाम अमीर देशों को चीन में अपने लिए संभावनाएं दिखने लगीं. वहीं चीन के लिए यह अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को विश्वव्यापी बनाने का अच्छा मौका था.
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पश्चिम के दोहरे मापदंड
एक अरसे तक पश्चिमी देश मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चीन की आलोचना करते रहे. लेकिन चीनी बाजार में उनकी कंपनियों के निवेश, चीन से आने वाली मांग और बीजिंग के दबाव ने इन आलोचनाओं को दबा दिया.
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शी का चाइनीज ड्रीम
आर्थिक रूप से बेहद ताकतवर हो चुके चीन से बाकी दुनिया को कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन 2013 में शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद नजारा बिल्कुल बदल गया. शी जिनपिंग ने पहली बार चीनी स्वप्न को साकार करने का आह्वान किया.
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शुरू हुई चीन से चुभन
आर्थिक विकास के कारण बेहद मजबूत हुई चीनी सेना अब तक अपनी सीमा के बाहर विवादों में उलझने से बचती थी. लेकिन शी के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ने सेना के जरिए अपने पड़ोसी देशों को आँखें दिखाना शुरू कर दिया. इसकी शुरुआत दक्षिण चीन सागर विवाद से हुई.
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लुक्का छिप्पी की रणनीति
एक तरफ शी और दूसरी तरफ अमेरिका में बराक ओबामा. इस दौरान प्रभुत्व को लेकर दोनों के विवाद खुलकर सामने नहीं आए. दक्षिण चीन सागर में सैन्य अड्डे को लेकर अमेरिकी नौसेना और चीन एक दूसरे चेतावनी देते रहे. लेकिन व्यापारिक सहयोग के कारण विवाद ज्यादा नहीं भड़के.
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कमजोर पड़ता अमेरिका
इराक और अफगानिस्तान युद्ध और फिर आर्थिक मंदी, अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर पड़ चुका था. चीन पर आर्थिक निर्भरता ने ओबामा प्रशासन के पैरों में बेड़ियों का काम किया. चीन के बढ़ते आक्रामक रुख के बावजूद वॉशिंगटन कई बार पैर पीछे खींचता दिखा.
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संघर्ष में पश्चिम और एकाग्र चीन
एक तरफ जहां चीन दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा था, वहीं यूरोप में रूस और यूरोपीय संघ बार बार टकरा रहे थे. 2014 में रूस ने क्रीमिया को अलग कर दिया. इसके बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय साझेदार रूस के साथ उलझ गए. चीन इस दौरान अफ्रीका में अपना विस्तार करता गया.
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इस्लामिक स्टेट का उदय
2011-12 के अरब वसंत के कुछ साल बाद अरब देशों में इस्लामिक स्टेट नाम के नए आतंकवादी गुट का उदय हुआ. अरब जगत के राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष ने पश्चिम को सैन्य और मानवीय मोर्चे पर उलझा दिया. पश्चिम को आईएस और रिफ्यूजी संकट से दो चार होना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/
वन बेल्ट, वन रोड
2016 चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना शुरू की. जिन गरीब देशों को अपने आर्थिक विकास के लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कड़ी शर्तों के साथ कर्ज लेना पड़ता था, चीन ने उन्हें रिझाया. चीन ने लीज के बदले उन्हें अरबों डॉलर दिए और अपने विशेषज्ञ भी.
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हर जगह चीन ही चीन
चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट सहारे अफ्रीका, दक्षिण अमेरका, पूर्वी एशिया और खाड़ी के देशों तक पहुचना चाहता है. इससे उसकी सीधी पहुंच पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक भी होगी और अफ्रीका में हिंद और अटलांटिक महासागर के तटों पर भी.
तस्वीर: Reuters/T. Mukoya
सीन में ट्रंप की एंट्री
जनवरी 2017 में अरबपति कारोबारी डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति का पद संभाला. दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया. ट्रंप ने लुक्का छिप्पी की रणनीति छोड़ते हुए सीधे चीन टकराने की नीति अपनाई. ट्रंप ने आते ही चीन के साथ कारोबारी युद्ध छेड़ दिया.
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पड़ोसी मुश्किल में
जिन जिन पड़ोसी देशों या स्वायत्त इलाकों से चीन का विवाद है, चीन ने वहाँ तक तेजी से सेना पहुंचाने के लिए पूरा ढांचा बैठा दिया. विएतनाम, ताइवान और जापान देशों के लिए वह दक्षिण चीन सागर में है. और भारत के लिए नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सहयोगियों में खट पट
चीन की बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए ट्रंप को अपने यूरोपीय सहयोगियों से मदद की उम्मीद थी, लेकिन रक्षा के नाम पर अमेरिका पर निर्भर यूरोप से ट्रंप को निराशा हाथ लगी. नाटो के फंड और कारोबारियों नीतियों को लेकर मतभेद बढ़ने लगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Nicholls
दूर बसे साझेदार
अब वॉशिंगटन के पास चीन के खिलाफ भारत, ब्रेक्जिट के बाद का ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे साझेदार हैं. अब अमेरिका और चीन इन देशों को लेकर एक दूसरे से टकराव की राह पर हैं.
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कोरोना का असर
चीन के वुहान शहर ने निकले कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया. कोरोना ने अर्थव्यवस्थाओं को भी चौपट कर दिया है. अब इसकी जिम्मेदारी को लेकर विवाद हो रहा है. यह विवाद जल्द थमने वाला नहीं है.
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चीन पर निर्भरता कम करने की शुरुआत
अमेरिका समेत कई देश यह जान चुके हैं कि चीन को शक्ति अपनी अर्थव्यवस्था से मिल रही है. इसके साथ ही कोरोना वायरस ने दिखा दिया है कि चीन ऐसी निर्भरता के क्या परिणाम हो सकते हैं. अब कई देश प्रोडक्शन के मामले में दूसरे पर निर्भरता कम करने की राह पर हैं.