लद्दाख में चीन और भारत के बीच सीमा विवाद एक बार फिर छिड़ जाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता का प्रस्ताव पेश किया है. हालांकि भारत और चीन ने इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
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भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले दिनों हुए विवाद के बाद मामला शांत होता दिख रहा है. चीन ने भी कहा है कि हालात स्ठिर और नियंत्रण में है. भारत-चीन के बीच विवाद को लेकर बुधवार 27 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता का प्रस्ताव भी पेश किया था. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "हमने भारत और चीन को सूचित कर दिया है कि अमेरिका दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने और उसमें मध्यस्थता करने के लिए तैयार और सक्षम है."
ट्रंप के मध्यस्थता की पेशकश पर अब तक ना भारत और ना ही चीन की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई है. जानकारों का कहना है कि दोनों देश अपने विवादों पर किसी बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करते आए हैं और इस बार ट्रंप के प्रस्ताव को भी मंजूर नहीं करेंगे. ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रहे विवाद पर अमेरिका या किसी दूसरे देश ने टिप्पणी की है. ट्रंप इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता का भी प्रस्ताव दे चुके हैं.
पिछले साल जुलाई में ट्रंप ने पहली बार कश्मीर मुद्दे पर "मदद" की पेशकश की थी. हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि कश्मीर मुद्दे पर द्विपक्षीय स्तर पर ही विचार हो सकता है. इसके बाद भी ट्रंप कई बार कश्मीर मुद्दे पर "मदद" करने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं. हर बार ट्रंप को जवाब ना के ही रूप में मिला है. दूसरी तरफ बुधवार को ही भारत में चीन के राजदूत सन वेइडोंग ने कहा है कि भारत और चीन को अपने मतभेदों का असर कभी भी उनके दूसरे द्विपक्षीय संबंधों पर नहीं पड़ने देना चाहिए. साथ ही उन्होंने आपसी विश्वास को बढ़ाने पर जोर दिया.
कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में चीन के अनुभवों पर एक वेबीनार में बोलते हुए चीनी राजदूत ने कहा, "हमें मूल निर्णय का पालन करना चाहिए कि चीन और भारत के पास एक दूसरे के लिए अवसर है और हम एक दूसरे के लिए कोई खतरा नहीं है. हमें एक दूसरे के विकास को सही तरीके से देखने की जरूरत है और साथ ही रणनीतिक पारस्परिक विश्वास को बढ़ाने की जरूरत है." चीनी राजदूत के बयान से पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि सीमा के हालात पूरी तरह स्थिर और नियंत्रण में हैं.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था दोनों देशों के पास बातचीत और विचार-विमर्श कर मुद्दे को सुलझाने के लिए सही तंत्र मौजूद है. गौरतलब है कि मंगलवार को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सेना को पूरी तरह से तैयार होने के निर्देश दिए थे. हालांकि उन्होंने जंग जैसे हालात से निपटने को लेकर दिए अपने बयान में किसी भी देश का नाम नहीं लिया था. इसी महीने की शुरुआत में लद्दाख में चीनी और भारतीय सेना के जवान आमने-सामने आ गए थे. कुछ मीडिया रिपोर्ट में यहां तक कहा गया कि चीन ने लद्दाख सीमा के पास एयरबेस का विस्तार किया है और साथ ही लड़ाकू विमानों की तैनाती का भी दावा किया गया.
साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी.
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सालाना खर्च
स्वीडन की संस्था सिपरी की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में दुनिया भर का सैन्य खर्च 1,900 अरब डॉलर रहा. पिछले साल के मुकाबले यह खर्च 3.6 प्रतिशत तक बढ़ा है. कुल मिला कर पूरी दुनिया के देशों ने अपनी अपनी सैन्य जरूरतों पर खर्च करने में 2019 में जितनी वृद्धि की, वो पिछले एक दशक में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. सीपरी के रिसर्चर नान तिआन ने बताया, "शीत युद्ध के खत्म होने के बाद सैन्य खर्च का यह चरम है."
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अमेरिका
सभी देशों में पहला स्थान अमेरिका का है, जिसने अनुमानित 732 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.3 प्रतिशत ज्यादा है और पूरी दुनिया में हुए खर्च के 38 प्रतिशत के बराबर है. 2019 अमेरिका के सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार दूसरा साल रहा. इसके पहले, सात साल तक अमेरिका के सैन्य खर्च में गिरावट देखी गई थी.
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चीन
दूसरे स्थान पर है चीन जिसने अनुमानित 261 अरब डॉलर खर्च किए. यह 2018 में किए गए खर्च से 5.1 प्रतिशत ज्यादा था. पिछले 25 सालों में चीन का खर्च उसकी अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ ही बढ़ा है. उसका निवेश उसकी एक "विश्व स्तर की सेना" की महत्वाकांक्षा दर्शाता है. तिआन का कहना है, "चीन ने खुल कर कहा है कि वो दरअसल एक सैन्य महाशक्ति के रूप में अमेरिका के साथ प्रतियोगिता करना चाहता है."
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भारत
तीसरे स्थान पर भारत है. अनुमान है कि 2019 में भारत का सैन्य खर्च लगभग 71 अरब डॉलर रहा, जो 2018 में किए गए खर्च से 6.8 प्रतिशत ज्यादा था. विश्व के इतिहास में पहली बार भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले चोटी के तीन देशों की सूची में शामिल हो गए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब रिपोर्ट में सबसे ज्यादा सैन्य खर्च वाले तीन देशों में दो देश एशिया के ही हैं.
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रूस
2019 में रूस ने अपना सैन्य खर्च 4.5 प्रतिशत बढ़ा कर 65 अरब डॉलर तक पहुंचा दिया. ये रूस की जीडीपी का 3.9 प्रतिशत है और सिपरी के रिसर्चर अलेक्सांद्रा कुईमोवा के अनुसार ये यूरोप के सबसे ऊंचे स्तरों में से है.
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सऊदी अरब
सऊदी अरब ने 61.9 अरब डॉलर खर्च किया. इन पांचों देशों का सैन्य खर्च पूरे विश्व में होने वाले खर्च के 60 प्रतिशत के बराबर है.
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जर्मनी
सिपरी के अनुसार, ध्यान देने लायक अन्य देशों में जर्मनी भी शामिल है, जिसने 2019 में अपना सैन्य खर्च 10 प्रतिशत बढ़ा कर 49.3 अरब डॉलर कर लिया. सबसे ज्यादा खर्च करने वाले 15 देशों में प्रतिशत के हिसाब से यह सबसे बड़ी वृद्धि है. रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, जर्मनी के सैन्य खर्च में वृद्धि की आंशिक वजह रूस से खतरे की अनुभूति हो सकती है.
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अब हो सकती है कटौती
सिपरी के रिसर्चर नान तिआन के अनुसार, "कोरोना वायरस महामारी और उसके आर्थिक असर की वजह से यह तस्वीर पलट भी सकती है. दुनिया एक वैश्विक मंदी की तरफ बढ़ रही है और तिआन का कहना है कि सरकारों को सैन्य खर्च को स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च की जरूरतों के सामने रख कर देखना होगा. तिआन कहते हैं, "हो सकता है एक साल से ले कर तीन साल तक खर्चों में कटौती हो, लेकिन उसके बाद के सालों में फिर से वृद्धि होगी."