उइगुर मुसलमानों के साथ ज्यादती पर अमेरिका में कानून पास
१८ जून २०२०
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उइगुर मुसलमान मानवाधिकार कानून पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यह कानून अमेरिकी कांग्रेस में सर्वसम्मति से पास हो गया है. चीन में उइगुर मुसलमानों के साथ बर्ताव को लेकर दुनियाभर में नाराजगी है.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार 17 जून को एक कानून पर हस्ताक्षर किए हैं. इस कानून के मुताबिक चीन में उइगुर मुसलमानों के साथ सामूहिक उत्पीड़न करने वाले अधिकारियों पर प्रतिबंध लग जाएगा. नए कानून के तहत अमेरिकी प्रशासन को उन चीनी अधिकारियों पर कार्रवाई का प्रावधान दिया गया है जो चीन में उइगरों के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार हैं. 2016 से ही चीन की सरकार उइगुर मुसलमानों को गिरफ्तार कर कैंपों में रख रही है. आधिकारिक तौर पर इन कैंपों को वोकेशनल एजुकेशन ट्रेनिंग सेंटर कहा जाता है. हालांकि आलोचक इसे हिरासत कैंप ही कहते हैं. उनका कहना है कि इन कैंपों में उइगुर मुसलमानों की पहचान खत्म करने की कोशिश होती है.
पहले से ही उम्मदी जताई जा रही थी कि ट्रंप उइगुर मानवाधिकर कानून पर हस्ताक्षर करेंगे, अमेरिकी कांग्रेस की ओर से लगभग सर्वसम्मति से पारित इस कानून में अमेरिकी प्रशासन को उन चीनी अधिकारियों पर "कार्रवाई" का प्रावधान करता है जो उइगरों और अन्य अल्पसंख्यकों की "मनमानी हिरासत, यातना और उत्पीड़न" के लिए जिम्मेदार हैं. डॉनल्ड ट्रंप ने एक बयान में कहा, "यह कानून मानवाधिकारों के उल्लंघन और अपमानजनक शिविरों के व्यवस्थित इस्तेमाल के उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को जवाबदेह ठहराएगा. उइगुर और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ जबरन श्रम कराने, उन पर निगरानी करने, जातीय पहचान और धार्मिक मान्यताएं खत्म कराने के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई का प्रावधान इस कानून में है."
कानून में अमेरिकी प्रशासन को यह निर्धारित करने की जरूरत होगी कि उइगर और अन्य अल्पसंख्यकों की "मनमानी हिरासत, यातना और उत्पीड़न" के लिए कौन चीनी अधिकारी जिम्मेदार हैं. कानून के मुताबिक उत्पीड़न करने वाले चीनी अधिकारियों की संपत्ति जब्त कर ली जाएगी और उनकी अमेरिका में एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि चीन ने करीब 10 लाख उइगुर और अन्य मुसलमानों को जबरन कैंपों में कैद कर रखा है और उन्हें इस्लाम धर्म से दूर करने की कोशिश की जाती है. हालांकि बीजिंग आधिकारिक तौर पर इन कैंपों को वोकेशनल एजुकेशन ट्रेनिंग सेंटर कहता आया है.
कई उइगुर मुसलमान चीन से भाग कर विदेशों में जा बसे हैं. कैंप में रखे जाने वाले लोगों का कहना है कि वहां विचारों को बदलने के लिए कठिन प्रशिक्षण दिया जाता है, साथ ही मंदारिन भाषा के कोर्स कराए जाते हैं.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
इस्लाम के रास्ते से मुसलमानों को हटाता चीन
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
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बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
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यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
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आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
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क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
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इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
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कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
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धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
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नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
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लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
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गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
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खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.