टोंगा की सुनामी ने पूरी दुनिया के लिए बजाई खतरे की घंटी
२० जनवरी २०२२प्रशांत महासागर के दक्षिणी हिस्से में बसा द्वीपीय देश टोंगा. कुछ ही दिन पहले यहां समंदर के नीचे ज्वालामुखी फटने से सुनामी आ गई. इस सुनामी से ढेर सारा नुकसान तो हुआ ही साथ ही इसने और भी बड़े नुकसान के रास्ते खोल दिए. जलवायु परिवर्तन की वजह से इसके अस्तित्व पर पहले से ही खतरा मंडरा रहा है.
विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जैसे-जैसे तापमान और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे सुनामी, तूफान और लू जैसी आपदाएं बढ़ती जाएंगी. टोंगा को इसका अहसास पहले से है, क्योंकि जिन देशों पर जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार पड़ेगी, टोंगा उन्हीं में से एक है.
जलवायु परिवर्तन पर मुखर टोंगा
इसी वजह से टोंगा संयुक्त राष्ट्र में भी जलवायु परिवर्तन पर खूब बात करता है. देश पहले ही कह चुका है कि धरती का तापमान डेढ़ डिग्री से ज्यादा बढ़ेगा, तो टोंगा और इसके जैसे कई द्वीपीय देश समुद्र में समा जाएंगे. ऐसे कई देश दुनियाभर से कह रहे हैं कि जलवायु को लेकर जल्द कदम उठाए जाएं. अपने पक्ष में ये देश वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट का हवाला भी देते हैं, जो कहती है कि कार्बन उत्सर्जन में इन देशों का योगदान महज 0.03 फीसदी है.
टोंगा के पड़ोस में ही एक और द्वीपीय देश है फिजी. यहां अंतरराष्ट्रीय संस्था 'सेव द चिल्ड्रन' की सीईओ शायराना अली कहती हैं, "हम खुद को हालात के मुताबिक ढालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सबको समझना होगा कि पानी कुछ ही मीटर बढ़ता है. इतने में कोई बच्चा मारा जाता है, कोई परिवार मारा जाता है या कोई घर तबाह हो जाता है."
'आपदाओं की भी नहीं होगी जरूरत'
ज्वालामुखी में धमाके के बाद 15-15 मीटर ऊंची लहरें टोंगा के तटों से टकराईं. इससे कई घर तो तबाह हुए ही, तीन लोगों की मौत भी हो गई. इससे जो सुनामी आई, उसका खतरा अब पूरे प्रशांत महासागर पर मंडराने लगा है. जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, वैसे-वैसे ये सुनामी और तूफान द्वीपों के और भीतर तक नुकसान पहुंचाएंगे.
सिंगापुर में 'अर्थ ऑब्जरवेटरी' के प्रमुख बेंजमिन होरटोन दुनियाभर में समुद्र के जलस्तर का अध्य्यन करते हैं. वह कहते हैं, "यूं समझिए कि सुनामी और तूफान तो सागर की नाक पर बैठे रहते हैं. तो भारी तबाही के लिए तो बड़ी प्राकृतिक आपदाओं की भी जरूरत नहीं होगी."
कैसे दिखेंगे जलवायु परिवर्तन के नतीजे?
टोंगा का तापमान भी बढ़ रहा है. यहां रोज का औसत तापमान 1979 के मुकाबले अब 0.6 डिग्री ज्यादा है. ज्यादा गर्म दिनों और रातों की संख्या अब पूरे महासागर में ही बढ़ गई हैं. संयुक्त राष्ट्र का अंतर-सरकारी पैनल कहता है कि इस लगातार बढ़ते तापमान की वजह से वाष्पीकरण ज्यादा होगा. इससे मिट्टी सूखती जाएगी और बारिश भी प्रभावित होगी.
रिपोर्ट बताती हैं कि जब तापमान अक्सर 35 डिग्री के पार पहुंचने लगेगा, तो टोंगा को और ज्यादा लू का सामना करना होगा. बहुत गर्मी होने पर जब आर्द्रता भी होने लगे, तो इसके नतीजे गंभीर होते हैं. विश्व मौसम विज्ञान संगठन की मानें, तो यहा समुद्र का पानी भी बाकी दुनिया के मुकाबले तीन गुना ज्यादा तेजी से गर्म होने लगा है. प्रशांत महासागर में समुद्री लू भी बढ़ने लगी है और यह पहले के मुकाबले ज्यादा लंबे समय तक रहने लगी है. इसका नुकसान यह है कि यह मछलियों और अन्य समुद्री जीवों को मार सकती है.
घर छोड़कर नहीं जाना चाहते लोग
माना जाता है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के नतीजे ज्यादा विनाशकारी साबित होने लगेंगे, तब प्रशांत महासागर के द्वीपों में रहनेवाले लोग ही दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजह से सबसे पहले पलायन करेंगे. अंग्रेजी में इन्हें क्लाइमेट रिफ्यूजी शब्द दिया गया है, जिसका मतलब होता है जलवायु शरणार्थी.
टोंका के जोसेफीन लातु लंदन में रहकर जलवायु से जुड़े मुद्दों की वकालत करते हैं. वह कहते हैं, "हो सकता है कि भविष्य में हालत ऐसी हो जाए, लेकिन मैं दुआ करता हूं कि ऐसा न हो. लोग अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं." 2018 में साइक्लोन गीता और 2020 में साइक्लोन हारोल्ड झेलने वाले टोंगा के लोगों को बीते कुछ ही बरसों में दो बार खुद को नए सिरे से स्थापित करना पड़ा है.
जोसेफीन कहते हैं, "टोंगा के लोग लचीले हैं और खतरे के बावजूद अपना घर, अपना द्वीप छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं. हम सदियों से यहां रह रहे हैं. हमारी जड़ें और पहचान इसी द्वीप और समुद्र से जुड़ी हुई हैं."
वीएस/आरपी (रॉयटर्स, एपी)