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विवादयूरोप

समंदर में गैस और विवाद खोदने के लिए तुर्क जहाज रवाना

ओंकार सिंह जनौटी
१० अगस्त २०२२

गैस भंडार खोजने के लिए तुर्की ने अपना आधुनिक खोजी जहाज पूर्वी भूमध्यसागर में भेज दिया है. "हमें किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है," यह कहते हुए तुर्की ने ग्रीस और साइप्रस की नाराजगी को एक बार फिर नजरअंदाज किया है.

तुर्की के मेर्सिन पोर्ट पर अब्दुलहामिद हान
तस्वीर: ADEM ALTAN/AFP

तुर्की ने पड़ोसी देश ग्रीस और साइप्रस की परवाह ना करते हुए, अब्दुलहामिद हान नाम का जहाज पूर्वी भूमध्यसागर के लिए रवाना कर दिया है. तुर्की और ग्रीस दोनों नाटो के सदस्य हैं. पूर्वी भूमध्यसागर में खोज अभियान पर दोनों देश झगड़ रहे हैं.

ग्रीस का कहना है कि तुर्की गैरकानूनी तरीके से गैस भंडार खोजने का काम कर रहा है. ग्रीस विवादित इलाके को अपना बाहरी आर्थिक जोन कहता है. साइप्रस भी तुर्की से नाराज है. तुर्की की सरकार ने दोनों देशों के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि गैस खोजने का अभियान पूरी तरह कानूनी है.

2020 में तुर्की ने अपना रिसर्च जहाज ओरुच रेइस एक महीने के लिए पूर्वी भूमध्यसागर में भेजा था. उस वक्त ग्रीस और तुर्की के बीच इतना विवाद हुआ कि नौसेना के इस्तेमाल की नौबत आ गई. यूरोपीय संघ भी तुर्की के गैस अभियान से नाराज है.

अब्दुलहामिद हान के सामने तुर्क राष्ट्रपति एर्दोवानतस्वीर: Turkish Presidency/AP/picture alliance

अब्दुलहामिद हान तुर्की का सबसे नया और बड़ा हाइड्रोकॉर्बन ड्रिल शिप है. इस जहाज का उद्घाटन खुद तुर्क राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने किया. तुर्क राष्ट्रपति ने कहा कि ड्रिल करने वाला जहाज, योरुकलर-1 एरिया में खुदाई करेगा. अंकारा के मुताबिक, अब्दुलहामिद हान 238 मीटर लंबा जहाज है, जिसमें खुदाई और सर्वे के लिए अत्याधुनिक उपकरण लगे हैं. तुर्की का कहना है कि यह जहाज 12,000 मीटर तक खुदाई कर सकता है.

गैस भंडार के लिए तुर्की जिस जगह पर खुदाई करने जा रहा है वह साइप्रस, ग्रीस और तुर्की के बीच में पड़ता है. तुर्क राष्ट्रपति एर्दोवान का कहना है कि साइप्रस के पश्चिमोत्तर में मौजूद इस इलाके पर किसी देश ने दावा नहीं किया है. पड़ोसी देशों और यूरोपीय संघ की चिंताओं को खारिज करते हुए एर्दोवान ने कहा, "हमें किसी से अनुमति या स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं है."

गैस भंडार के लिए तुर्की से भिड़ते ग्रीस और मिस्र

साइप्रस के पास समंदर में गैस का बड़ा भंडार होने का अनुमान हैतस्वीर: Petros Karadjias/AP Photo/picture alliance

तुर्की और यूरोप के रिश्तों में खटास

करीब 10 साल से तुर्की और यूरोपीय संघ के रिश्ते तल्खी से गुजर रहे हैं. लंबे वक्त तक तुर्की को उम्मीद थी कि वह यूरोपीय संघ का सदस्य बन सकता है. यूरोपीय संघ ने भी उसे बीच बीच में ऐसे सपने दिखाए. लेकिन 2015 के शरणार्थी संकट में तुर्की की भूमिका को लेकर यूरोपीय नेताओं को शक होने लगा.

साल भर बाद, 2016 में सैन्य तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद तत्कालीन तुर्क प्रधानमंत्री एर्दोवान ने अपने विरोधियों को कुचलना शुरू किया. इसके  बाद यूरोपीय संघ ने मानवाधिकारों, लोकतांत्रिक मूल्यों और कानून के राज के मुद्दे पर तुर्की की आलोचना की.

2017 में एर्दोवान ने तुर्की के संविधान में बड़े संशोधनों के लिए जनमत संग्रह कराया. फिर तुर्की के संविधान में 18 बदलाव किये गये. प्रधानमंत्री चुनने वाले संसदीय सिस्टम की जगह राष्ट्रपति सिस्टम लागू कर दिया गया. इस तरह एर्दोवान ने सारी ताकत अपने हाथ में ले ली. संविधान संशोधन के बाद यूरोपीय संघ ने साफ कर दिया कि तुर्की ने ईयू का सदस्य बनने के लिए जरूरी कोपेनहेगन नियमावली का उल्लंघन किया है. इस तरह तुर्की के लिए ईयू का सदस्य देश बनने के दरवाजे बंद हो गए.

यूरोपीय संघ के साथ रिश्ते बिगड़ने के बाद तुर्की ने अरब जगत में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की. इस दौरान अंकारा ने अपने आस पास तेल और गैस भंडार खोजने के लिए बड़े अभियान भी शुरू किए. इन अभियानों में तुर्की को सफलता भी मिली. काले सागर में उसे 540 अरब घनमीटर का गैस भंडार मिला. अपनी जमीन पर तुर्की को चीन के बाद दुनिया में दुलर्भ धातुओं को दूसरा बड़ा भंडार मिला. तमाम आर्थिक गड़बड़ियों और बुरी तरह लुढ़की मुद्रा लीरा के बावजूद इन खोजों ने तुर्की की अर्थव्यवस्था को धराशायी नहीं होने दिया.

अगस्त 2020 में तुर्की के रिसर्च जहाज के आस पास तुर्की की नौसेनातस्वीर: Turkish Defense Ministry/AP Photo/picture-alliance

गैस भंडार पर विवाद भड़कना तय

अभी यह पता नहीं है कि भूमध्यसागर में गैस का भंडार कितना बड़ा है और वहां से गैस निकलना कितना किफायती है. गैस बहुत ज्यादा हुई तो विवाद का गंभीर होना तय है. यूक्रेन युद्ध की वजह से यूरोपीय संघ के देश रूसी तेल और गैस पर अपनी निर्भरता पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं. लेकिन फिलहाल चाहत और हकीकत में फर्क है. यूरोप के पास किफायती गैस का कोई और विकल्प नहीं है. ऐसे में रूसी गैस खरीदना मजबूरी है.

इन परिस्थितियों के बीच अगर भविष्य में भूमध्यसागर से किफायती ढंग से गैस मिलने लगे तो यूरोपीय संघ को बड़ी राहत मिलेगी. जो देश यह गैस बेचेगा, उसकी तिजोरी भी भरेगी. गैस अगर ग्रीस या साइप्रस के अधिकार में होगी तो ईयू के सदस्य देश होने के कारण सब कुछ बहुत आसानी से होगा. लेकिन गैस का रेगुलेटर तुर्की के हाथ लगा तो... आने वाले दिनों में यही सवाल यूरोपीय संघ और तुर्की विवाद की आंच कम या ज्यादा करेगा.

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