दुनिया भर में अखबार और पत्रिकाएं इंटरनेट युग में जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. राष्ट्रपति एर्दोवान के तुर्की के पत्रकारों पर बाजार के अलावा राजनीतिक दबाव भी है. लेकिन कुछ बहादुर पत्रकार झुकने को तैयार नहीं.
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एर्दोवान का तुर्की
तुर्की में हुए जनमत संग्रह को बारीक अंतर से मिली जनता की मंजूरी को राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोवान ने "ऐतिहासिक फैसला" बताया है. इससे देश की व्यवस्था में क्या बदलाव आएगा, जानिए.
रेफरेंडम के बाद तुर्की में क्या बदलेगा?
तुर्की में हुए जनमत संग्रह को बारीक अंतर से मिली जनता की मंजूरी को राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोवान ने "ऐतिहासिक फैसला" बताया है. इससे देश की व्यवस्था में क्या बदलाव आएगा, जानिए.
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नई व्यवस्था
तुर्की में प्रधानमंत्री का पद खत्म कर दिया जाएगा और फ्रांस, अमेरिका और कई अन्य देशों जैसी राष्ट्रपति शासन व्यवस्था लागू होगी.
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कब से
नए संवैधानिक सुधार नवंबर 2019 से लागू होंगे जब राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव एक साथ कराए जाएंगे.
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2029 तक सत्ता
जनमत संग्रह के अनुरूप होने वाले संविधान संशोधनों के बाद एर्दोवान 2029 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं. उन्होंने 2014 में राष्ट्रपति पद संभाला था.
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ताकतवर एर्दोवान
एर्दोवान मंत्रियों समेत किसी भी अधिकारी की नियुक्ति सीधे सीधे कर सकते हैं. इसके लिए वह संसद पर निर्भर नहीं रहेंगे.
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न्यायपालिका पर नियंत्रण
राष्ट्रपति को न्यायपालिका में हस्तक्षेप करने का अधिकार भी होगा, जिस पर वह अपने विरोधी और अमेरिका में रहने वाले धर्मगुरु फतहुल्लाह गुलेन का प्रभाव बताते हैं.
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इमरजेंसी
नए संवैधानिक सुधारों के बाद राष्ट्रपति यह फैसला करने की स्थिति में भी होंगे कि देश में आपातकाल लगाना है या नहीं.
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ईयू से दूरी
एर्दोवान यूरोपीय संघ से दूर जा सकते हैं और रूस के साथ दोस्ती मजबूत कर सकते हैं. तुर्की अन्य वैकल्पिक गठबंधनों का हिस्सा बन सकता है.
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स्थिरता की उम्मीद
बाजार को उम्मीद है कि जनमत संग्रह को मिली मंजूरी के बाद कुछ समय से उथल पुथल के शिकार तुर्की में स्थिरता आई है.