एक समाचार चैनल को लाइसेंस देने के मामले पर पोलैंड और अमेरिका के बीच ठन गई है. अमेरिका ने पोलैंड को चेतावनी भी दे डाली है.
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डिस्कवरी कंपनी के समाचार चैनल का लाइसेंस रीन्यू करने को लेकर अमेरिका और पोलैंड आमने-सामने हैं. अमेरिका ने पोलैंड को चेतावनी दी है कि यदि चैनल का लाइसेंस रीन्यू नहीं किया गया तो भविष्य में देश में अमेरिकी निवेश रोका जा सकता है.
डिस्कवरी का न्यूज चैनल TVN24 दिनभर चलने वाला समाचार चैनल है. उसके लाइसेंस को रीन्यू करने की प्रक्रिया जारी है. यह लाइसेंस 26 सितंबर को खत्म हो रहा है. लेकिन पोलैंड का एक प्रस्तावित कानून इस चैनल के लाइसेंस के लिए खतरा बन गया है जिसकी वजह से अमेरिका ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है.
अमेरिका के विदेश मंत्रालय के काउंसलर डेरेक शोलेट ने गुरुवार को कहा कि लाइसेंस रीन्यू नहीं किया गया तो अमेरिकी निवेश पर भी आंच आ सकती है. शोलेट ने कहा, "पोलैंड में यह एक बड़ा अमेरिकी निवेश है. और अगर लाइसेंस रीन्यू नहीं किया गया तो उसके भविष्य के निवेश पर बड़े असर होंगे.” उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को पोलिश अधिकारियों के साथ बातचीत में भी उठा चुके हैं.
बाहरी कंपनियों को हटाने की कोशिश
पोलैंड की सत्ताधारी लॉ एंड जस्टिस पार्टी मौजूदा कानून में बदलाव की योजना बना रही है जिसके चलते डिस्कवरी को चैनल में अपनी हिस्सेदारी का अधिकतर भाग बेचना पड़ सकता है. गुरुवार को नेशनल ब्रॉडकास्टिंग काउंसिल (KRRiT) ने चैनल के लाइसेंस को लेकर वोटिंग भी की लेकिन निर्णायक नतीजे नहीं आए.
टीवीएन की अनुमानित कीमत एक अरब अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 75 अरब रुपये है, जो पोलैंड में अमेरिका का सबसे बड़ा एकमुश्त निवेश है.
जुलाई में सत्ताधारी पार्टी के सांसदों ने ब्रॉडकास्टिंग एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव संसद में पेश किया था. नए प्रस्तावों में यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र से बाहर की कंपनियों को पोलैंड में रेडियो और टेलीविजन चैनलों के स्वामित्व का अधिकार न देने की बात है.
मीडिया की आजादी पर हमला
इस कानून को अमेरिका ने मीडिया की आजादी पर हमला बताया है. सत्ताधारी पोलिश पार्टी के विरोधियों ने भी इसे मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश बताया है. शालोट ने कहा, "मीडिया की आजादी बेहद महत्वपूर्ण है.
जबकि लॉ एंड जस्टिस पार्टी का तर्क है कि विदेशी कंपनियों का देश के मीडिया उद्योग में बहुत ज्यादा दखल है जिस कारण जनता के बीच चल रही बहस बिगड़ रही है.
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट ने भी पोलैंड के इस कदम को गलत बताते हुए मीडिया अधिकारों पर चिंता जताई है. आईपीई ने पिछले हफ्ते जारी एक बयान में कहा कि प्रस्तावित मीडिया बिल सत्ताधारी पार्टी द्वारा आलोचनात्मक पत्रकारिता पर रोकने का व्यवस्थागत प्रयास है.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)
देखिएः मीडिया के हमलावरों में मोदी भी शामिल
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.