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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

हर साल कम होते जा रहे हैं दिखाई देने वाले सितारे

२० जनवरी २०२३

हर साल रात को धरती पर रोशनी बढ़ती जाती है और आसमानी सितारों की चमक घटती जाती है. एक शोध में यह बात सामने आई है कि धरती पर रात हर साल दस प्रतिशत ज्यादा चमकदार होती जा रही है.

बढ़ती जा रही है कृत्रिम गोधूली
बढ़ती जा रही है कृत्रिम गोधूलीतस्वीर: Alan Dyer/VWPics/IMAGO

वैज्ञानिकोंने सितारों का अध्ययन करने वाले 50 हजार से ज्यादा गैरपेशेवरों से मिले आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद कहा है कि धरती पर रात हर साल ज्यादा चमकदार होती जा रही है. इस विशाल डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि कृत्रिम रोशनी के कारण रात में चमक बढ़ती जा रही है.

पहले ऐसा ही अध्ययन उपग्रहों से मिले डेटा के आधार पर किया गया था. लेकिन ताजा अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि रात के ज्यादा चमकदार होने की दर पहले के अनुमान से कहीं ज्यादा तेज है. ताजा शोध के नतीजों में 2011 से 2022 के आंकड़ों का विश्लेषण शामिल है. यह शोध प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुआ है.

आकाशगंगा मिल्की-वे के किनारे छिपे सितारे मिले

सैनटियागो डे कंपोस्टेला यूनिवर्सिटी के भौतिकविज्ञानी फाबियो फालची ने कहा, "सितारों को देखने की क्षमता हम साल दर साल खोते जा रहे हैं. अगर आप अब भी सबसे कम चमकदार तारों को देख पा रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप बेहद अंधेरे स्थान पर हैं. लेकिन, आप यदि सिर्फ चमकदार सितारों को देख पा रहे हैं तो आप किसी बहुत अधिक प्रकाश-प्रदूषित स्थान पर हैं.”

घटते जा रहे हैं तारे

शोध कहता है कि जैसे-जैसे शहरों का विस्तार हो रहा है, ‘चमकदार आकाश' या कृत्रिम धुंधलका और ज्यादा सघन होता जा रहा है. शोध के लेखकों में शामिल जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज के भौतिकविज्ञानी क्रिस्टोफर कायबा कहते हैं कि दस फीसदी सालाना की वृद्धि के अनुमान से कहीं ज्यादा है. वह कहते हैं, "मेरे अनुमान से तो यही कहीं ज्यादा है, इतनी कि आप अपनी जिंदगी में ही फर्क साफ तौर पर महसूस कर पाएंगे.”

कायबा और उनके सहयोगियों ने एक उदाहरण देकर इसे समझाया है. मान लीजिए कि एक बच्चा ऐसी जगह पैदा होता है जहां साफ आसमान में 250 सितारे नजर आते हैं. जब वह बच्चा 18 साल का होगा तो सितारों की संख्या 100 रह जाएगी.

कायबा उम्मीद कर रहे हैं कि नीति-निर्माता प्रकाश प्रदूषण को रोकने की ओर ध्यान देंगे. वह कहते हैं, "यह वास्तविक प्रदूषण है जो लोगों और वन्य जीवन को प्रभावित कर रहा है.” कुछ शहरों ने इस संबंध में कदम उठाते हुए प्रकाश की सीमाएं भी तय की हैं.

यह अध्ययन उन हजारों लोगों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर किया गया है, जो शौकिया तौर पर आसमान में सितारों को तकते हैं और उनका अध्ययन करते हैं. इसके लिए गैर-सरकारी प्रोजेक्ट ग्लोब एट नाइट के तहत डेटा जमा किया गया है.

क्या हैं नुकसान?

कृत्रिम प्रकाश पर पहले भी अध्ययन हुआ है जिसने उपग्रहों द्वारा रात को ली गईं धरती की तस्वीरों का विश्लेषण किया था. उस अध्ययन का अनुमान था कि प्रकाश-प्रदूषण दो फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है. लेकिन शोधकर्ता कहते हैं कि उस अध्ययन की दिक्कत यह है कि उपग्रह स्पेक्ट्रम के नीले हिस्से की तरफ की रोशनी को दर्ज नहीं कर पाते हैं. साथ ही वे एलईडी बल्ब की रोशनी को भी नहीं पकड़ पाते हैं.

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शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अमेरिका में पिछले एक दशक में जो नई बत्तियां लगी हैं उनमें से आधी से ज्यादा एलईडी लाइटें हैं. कायबा बताते हैं कि उपग्रहों के साथ एक दिक्कत यह भी है कि वे ऊपर की ओर फेंकी जा रही रोशनी को बेहतर पकड़ पाते हैं जबकि समानांतर रोशनी को पकड़ने में उनकी क्षमता उतनी अच्छी नहीं है.

जॉर्जटाउन में काम करने वालीं जीवविज्ञानी एमिली विलियम्स कहती हैं कि कृत्रिम गोधूली यानी प्रकाश प्रदूषण का असर मनुष्यों और अन्य जीवों के शरीर की आंतरिक घड़ी पर पड़ता है. विलियम्स इस अध्ययन में शामिल नहीं थीं. उन्होंने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "प्रवासी पक्षी अक्सर अपनी स्थिति जानने के लिए रात में सितारों की रोशनी का इस्तेमाल करते हैं. और जब समुद्री कछुए अंडे सेकते हैं तो वे समुद्र की ओर जाने के लिए सितारों की रोशनी का इस्तेमाल करते हैं. इन जीवों के लिए प्रकाश-प्रदूषण बड़ी बात है.”

वीके/एए (एपी)

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