माइक्रो ब्लॉगिंक साइट ट्विटर ने बताया है कि उसने बिना यूजर्स की सहमति के उनका डाटा विज्ञापन बनाने वाली कंपनियों से साझा किया है. यूजर्स के डिवाइस के इंटरफेस का डाटा भी ट्विटर ने बिना अनुमति साझा किया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Skolimowska
विज्ञापन
6 अगस्त को ट्विटर ने एक ब्लॉग पोस्ट लिखकर बताया कि उसने बिना यूजर्स की इजाजत लिए कुछ डाटा विज्ञापन देने वाली कंपनियों के साथ साझा किया है. ट्विटर ने कहा कि यूजर्स ने अपने डाटा को सुरक्षित रखने के लिए अपेक्षित सेटिंग कर रखी होंगी लेकिन उन सेटिंग के बावजूद यूजर का डाटा साझा किया गया है. उन्होंने कहा कि ऐसा तकनीकी कारणों के चलते हुआ है और अब उन तकनीकी कारणों को सही कर दिया गया है. साथ ही इस मामले की जांच के लिए जांच समिति गठित की गई है.
ट्विटर हेल्प सेंटर पर 6 अगस्त को 'ऐड को लेकर आपकी सेटिंग में परेशानी' हेडिंग के साथ एक ब्लॉग ट्विटर की ओर से लिखा गया. इस ब्लॉग में लिखा है,"ट्विटर अपने यूजर्स को अपना डाटा निंयत्रित करने का अवसर देना चाहता है. ये निंयत्रण तब भी काम करता है जब हम आपके डाटा को ऐड देने वाली कंपनियों के साथ साझा करते हैं. लेकिन पिछले कुछ समय में यह आपकी सेटिंग्स के मुताबिक नहीं हुआ है. इसके दो परिणाम हो सकते हैं."
ट्विटर के मुताबिक अगर मई, 2018 के बाद आपने ट्विटर की ऐप में कोई ऐड देखा और उस पर क्लिक किया तो ट्विटर ने आपका कुछ डाटा जैसे कंट्री कोड, आपने कब वो ऐड देखा और कब उस ऐड पर क्लिक किया, अपने कुछ ऐड देने वाले सहयोगियों के साथ साझा किया हो सकता है. चाहे आपने सेटिंग में ट्विटर को ऐसा करने की अनुमति ना दी हो. सितंबर 2018 से ट्विटर एक प्रक्रिया पर काम कर रहा है जिसमें वो अपने यूजर को उसकी दिलचस्पी के मुताबिक ऐड दे सके. इसलिए ट्विटर ने आपके द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे डिवाइस के इंटरफेस को देखकर आपकी दिलचस्पी के मुताबिक ऐड दिखाए हैं. भले ही आपने अपने इंटरफेस का इस्तेमाल करने की अनुमति ट्विटर को नहीं दी हो.
ट्विटर के अलावा फेसबुक और गूगल पर भी लग चुके हैं आरोप.तस्वीर: picture-alliance/xim.gs
हालांकि ट्विटर का कहना है कि इस डाटा में आपके ईमेल या पासवर्ड जैसी चीजें शामिल नहीं हैं. ये सारा डाटा ट्विटर के पास सुरक्षित है. ट्विटर का कहना है कि इस समस्या को 5 अगस्त को दूर कर दिया गया है. ट्विटर ये जांच करवा रहा है कि इसके चलते कितने लोग प्रभावित हुए हैं. ट्विटर ने कहा है कि अगर कोई और जरूरी जानकारी सामने आती है तो वह भी अपने यूजर के साथ साझा करेगा. ट्विटर ने लोगों से इस समस्या के लिए माफी मांगी है और कहा है कि वो पूरी कोशिश करेगा कि भविष्य में किसी भी यूजर का डाटा बिना उसकी अनुमति के इस्तेमाल ना किया जाए.
गौरतलब है कि दुनिया की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक पर भी लगातार डाटा चोरी के आरोप लगते रहते हैं. हाल में निजता के उल्लंघन के मामले में अमेरिका में फेसबुक पर 5 अरब डॉलर का जुर्माना लगा था. कैंब्रिज एनालिटिका का मामला सामने आने के बाद से लगातार सोशल मीडिया वेबसाइटों पर निजता से जुड़े मामलों के सवाल उठते रहे हैं. हर देश की सरकार भी इसको लेकर अपने नियम कानूनों को सख्त कर रही है. हाल में गूगल असिस्टेंट वाले उपकरणों द्वारा भी गूगल पर लोगों की बातें सुनने का आरोप लगा था.
क्या आपने भी कई बार सोचा है कि हर वक्त मोबाइल या कंप्यूटर पर फेसबुक, ट्विटर वगैरह नहीं देखा करेंगे, लेकिन ऐसा कर नहीं सके हैं? सोशल मीडिया एक क्रांति है लेकिन ये भी तो जानें कि वो आपके दिमाग के साथ क्या कर रहा है. देखिए.
तस्वीर: picture-alliance/N. Ansell
खुद पर काबू नहीं?
विश्व की लगभग आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट पहुंच चुका है और इनमें से कम से कम दो-तिहाई लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. 5 से 10 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ने माना है कि वे चाहकर भी सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला अपना समय कम नहीं कर पाते. इनके दिमाग के स्कैन से मस्तिष्क के उस हिस्से में गड़बड़ दिखती है, जहां ड्रग्स लेने वालों के दिमाग में दिखती है.
तस्वीर: Imago/All Canada Photos
लत लग गई?
हमारी भावनाओं, एकाग्रता और निर्णय को नियंत्रित करने वाले दिमाग के हिस्से पर काफी बुरा असर पड़ता है. सोशल मीडिया इस्तेमाल करते समय लोगों को एक छद्म खुशी का भी एहसास होता है क्योंकि उस समय दिमाग को बिना ज्यादा मेहनत किए "इनाम" जैसे सिग्नल मिल रहे होते हैं. यही कारण है कि दिमाग बार बार और ज्यादा ऐसे सिग्नल चाहता है जिसके चलते आप बार बार सोशल मीडिया पर पहुंचते हैं. यही लत है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg
मल्टी टास्किंग जैसा?
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि दफ्तर में काम के साथ साथ जब आप किसी दोस्त से चैटिंग कर लेते हैं या कोई वीडियो देख कर खुश हो लेते हैं, तो आप कोई जबर्दस्त काम करते हैं. शायद आप इसे मल्टीटास्किंग समझते हों लेकिन असल में ऐसा करते रहने से दिमाग "ध्यान भटकाने वाली" चीजों को अलग से पहचानने की क्षमता खोने लगता है और लगातार मिल रही सूचना को दिमाग की स्मृति में ठीक से बैठा नहीं पाता.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Klose
क्या फोन वाइब्रेट हुआ?
मोबाइल फोन बैग में या जेब में रखा हो और आपको बार बार लग रहा हो कि शायद फोन बजा या वाइब्रेट हुआ. अगर आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है तो जान लें कि इसे "फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम" कहते हैं और यह वाकई एक समस्या है. जब दिमाग में एक तरह खुजली होती है तो वह उसे शरीर को महसूस होने वाली वाइब्रेशन समझता है. ऐसा लगता है कि तकनीक हमारे तंत्रिका तंत्र से खेलने लगी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/W. Zhao
मैं ही हूं सृष्टि का केंद्र?
सोशल मीडिया पर अपनी सबसे शानदार, घूमने की या मशहूर लोगों के साथ ली गई तस्वीरें लगाना. जो मन में आया उसे शेयर कर देना और एक दिन में कई कई बार स्टेटस अपडेट करना इस बात का सबूत है कि आपको अपने जीवन को सार्थक समझने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया की दरकार है. इसका मतलब है कि आपके दिमाग में खुशी वाले हॉर्मोन डोपामीन का स्राव दूसरों पर निर्भर है वरना आपको अवसाद हो जाए.
तस्वीर: imago/Westend61
सारे जहान की खुशी?
दिमाग के वे हिस्से जो प्रेरित होने, प्यार महसूस करने या चरम सुख पाने पर उद्दीपित होते हैं, उनके लिए अकेला सोशल मीडिया ही काफी है. अगर आपको लगे कि आपके पोस्ट को देखने और पढ़ने वाले कई लोग हैं तो यह अनुभूति और बढ़ जाती है. इसका पता दिमाग फेसबुक पोस्ट को मिलने वाली "लाइक्स" और ट्विटर पर "फॉलोअर्स" की बड़ी संख्या से लगाता है.
तस्वीर: Fotolia/bonninturina
डेटिंग में ज्यादा सफल?
इसका एक हैरान करने वाला फायदा भी है. डेटिंग पर की गई कुछ स्टडीज दिखाती है कि पहले सोशल मी़डिया पर मिलने वाले युगल जोड़ों का रोमांस ज्यादा सफल रहता है. वे एक दूसरे को कहीं अधिक खास समझते हैं और ज्यादा पसंद करते हैं. इसका कारण शायद ये हो कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपने पार्टनर के बारे में कल्पना की असीम संभावनाएं होती हैं.