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ट्विटर ने किया किसान मोर्चा का हैंडल बैन

चारु कार्तिकेय
२८ जून २०२२

भारत सरकार के निर्देश पर ट्विटर द्वारा कई हैंडल बैन कर दिए जाने की खबरें आ रही हैं. इनमें किसान आंदोलन के दौरान बनाए गए किसान मोर्चा और फ्रीडम हाउस जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के हैंडल भी शामिल हैं.

Logo von Twitter ist auf einem Smartphone
तस्वीर: Thomas Trutschel/photothek/picture alliance

मोदी सरकार को नए कृषि कानून वापस ले लेने के लिए मजबूर कर देने वाले किसान आंदोलन के ट्विटर हैंडलों पर अब ताला लगा हुआ है. ट्विटर ने इस बारे में सिर्फ इतनी जानकारी सार्वजनिक की है कि भारत में एक कानूनी मांग के तहत @Kisanektamorcha और @Tractor2twitr खातों पर रोक लगा दी गई है.

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) के मुताबिक ट्विटर को इन दोनों खातों के अलावा और भी कई खातों पर भारत के इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कानून के तहत रोक लगाने के अनुरोध मिले थे. आईएफएफ ने यह जानकारी इंटरनेट सेंसरशिप पर नजर रखने वाली अमेरिकी संस्था 'लुमेन डेटाबेस' से हासिल की है.

लुमेन के मुताबिक हाल ही में भारत सरकार ने ट्विटर को कम से कम दो कानूनी अनुरोध भेजे थे. हर अनुरोध में कई ट्विटर खाते शामिल हैं. आईएफएफ द्वारा जारी की गई इन खातों की सूची में कम से कम 75 खाते हैं.

इनमें अमेरिकी मानवाधिकार संस्था फ्रीडम हाउस जैसी संस्थाओं, कांग्रेस, सीपीएम और आम आदमी पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियों के नेताओं और राणा अयूब जैसे पत्रकारों समेत कई ट्विटर हैंडल शामिल हैं. हालांकि इन सभी खातों पर रोक लगी या नहीं, इसकी जानकारी लुमेन ने नहीं दी है.

लुमेन ने बताया कि ये अनुरोध पांच जनवरी, 2021 और 29 दिसंबर, 2021 के बीच भेजे गए थे, लेकिन ट्विटर ने इनके बारे में अब जा कर बताया है.

किसान मोर्चा ने फेसबुक पर अपने सत्यापित पेज पर इसकी आलोचना करते हुए इस "आपातकाल का जीता जागता उदाहरण" बताया है. मोर्चा ने यह भी कहा है कि यह पाबंदी "सरकार द्वारा मानवाधिकारों के खिलाफ हमले के एक बड़े अभियान का हिस्सा है."

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अपने एक ट्वीट के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पत्रकार जुबैर अहमद ने कुछ दिन पहले ट्विटर पर ही बताया था कि सरकार ने उनके हैंडल पर भी रोक लगाने के लिए ट्विटर को लिखा था, लेकिन ट्विटर ने इस अनुरोध को मंजूर नहीं किया.

आईएएफ का कहना है कि ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक कर दिए जाने को चुनौती देने का अधिकार नागरिकों को है लेकिन वो अक्सर ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि इस तरह के आदेशों को उनके साथ साझा नहीं किया जाता. संस्था ने सरकार से इस तरह के आदेशों को सार्वजनिक करने की मांग की है.

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