ट्विटर ने कहा है कि गलत सूचना के प्रसार से लड़ने के प्रयास के तहत सोशल नेटवर्किंग साइट पर अधिक तेजी से विश्वसनीय जानकारी देने के लिए वह एसोसिएटेड प्रेस और रॉयटर्स के साथ साझेदारी करेगा.
विज्ञापन
अन्य सोशल मीडिया कंपनियों की तरह सैन फ्रांसिस्को स्थित कंपनी पर भी भ्रामक या गलत सूचना को हटाने का दबाव रहता है. इस साल की शुरुआत में ट्विटर ने बर्डवॉच नामक कार्यक्रम लॉन्च किया था, इसका मकसद यूजर्स को ऐसे ट्वीट्स को परखने का माध्यम देना है जो भ्रामक हैं.
ट्विटर ने कहा कि वह ब्रेकिंग न्यूज के दौरान समाचार एजेंसियाों के साथ सहयोग करेगा ताकि सटीक संदर्भ को जोड़ा जा सके. किसी घटना से जुड़े ट्रेंडिंग टॉपिक को लेकर ट्विटर एक खास लेबल लाएगा.
सटीक जानकारी देने की कोशिश
ट्विटर के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह साझेदारी पहली बार है जब ट्विटर अपनी साइट पर सटीक जानकारी बढ़ाने के लिए समाचार संगठनों के साथ औपचारिक रूप से सहयोग करेगा.
प्रवक्ता ने साथ ही कहा कि ट्विटर एपी और रॉयटर्स दोनों के साथ अलग-अलग काम करेगा. सूचना सेवा कंपनी थॉमसन रॉयटर्स कॉर्प का एक विभाग और न्यूजवायर एक दूसरे के साथ संपर्क नहीं करेंगे.
रॉयटर्स में यूजीसी (यूजर-जेनरेटेड कॉन्टेंट) न्यूजगैदरिंग की वैश्विक प्रमुख हेजल बेकर के मुताबिक, "विश्वास, सटीकता और निष्पक्षता हर दिन रॉयटर्स के दिल में है. वे मूल्य गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए हमारी प्रतिबद्धता को भी प्रेरित करते हैं."
सोशल मीडिया कंपनियां नेताओं के साथ कैसे पेश आती हैं
फेसबुक और ट्विट्टर द्वारा डॉनल्ड ट्रंप के खातों को बंद कर देने के बाद सोशल मीडिया कंपनियों के व्यवहार को लेकर काफी चर्चा हुई थी. कैसे तय करती हैं कंपनियां कि उनके मंचों पर किस नेता को क्या-क्या बोलने दिया जाए.
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
किसके साथ होता है विशेष व्यवहार?
फेसबुक और ट्विटर दोनों के ही मौजूदा नियम आम यूजर के मुकाबले चुने हुए नुमाइंदों और राजनीतिक प्रत्याशियों को ज्यादा अभिव्यक्ति की आजादी देते हैं. ट्विटर के जनहित नियमों के तहत तो सत्यापित सरकारी अधिकारी भी आते हैं.
तस्वीर: Ozan Kose/AFP/Getty Images
तो क्या हैं मौजूदा नियम?
ट्विटर कहती है कि सामग्री अगर जनहित में हो तो वो उसे हटाती नहीं है, क्योंकि ऐसी सामग्री का रिकॉर्ड रहेगा तभी नेताओं को जवाबदेह बनाया जा सकेगा. फेसबुक राजनेताओं की पोस्ट और भुगतान किए हुए विज्ञापनों को अपने बाहरी फैक्ट-चेक कार्यक्रम से छूट देती है. फेसबुक राजनेताओं द्वारा किए गए कंपनी के नियम तोड़ने वाले पोस्ट को भी नहीं हटाती है अगर उनका जनहित उनके नुकसान से ज्यादा बड़ा है.
तस्वीर: Diptendu Dutta/AFP
आतंकवाद गंभीर मामला
ट्विटर का कहना है कि दुनिया में कहीं भी अगर कोई नेता आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला ट्वीट करता है तो उसे कंपनी हटा देती है. किसी दूसरे की निजी जानकारी जाहिर करने वाले ट्वीटों को भी हटा दिया जाता है. फेसबुक के तो कर्मचारियों ने ही भड़काऊ पोस्ट ना हटाने पर कंपनी की आलोचना की है. यूट्यूब कहता है कि उसने नेताओं के लिए कोई अलग नियम नहीं बनाए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/S. Babbar
ट्रंप के साथ क्या हुआ?
छह जनवरी 2021 को वॉशिंगटन में हुए कैपिटल दंगों के बाद ट्विट्टर, फेसबुक, स्नैपचैट और ट्विच ने ट्रंप पर हिंसा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. यूट्यूब ने भी ट्रंप के चैनल पर रोक लगा दी थी.
तस्वीर: Christoph Hardt/Geisler-Fotopress/picture alliance
दूसरे नेताओं का क्या?
मानवाधिकार समूहों ने मांग की है कि इन कंपनियों को दूसरे नेताओं के खिलाफ भी इसी तरह के कदम उठाने चाहिए. कई नेता हैं जिनकी सार्वजनिक रूप से काफी आलोचना होती है लेकिन वो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. इनमें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई, ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोल्सोनारो और वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो शामिल हैं. म्यांमार में तख्तापलट के बाद फेसबुक ने सेना पर प्रतिबंध लगा दिया था.
तस्वीर: Office of the Iranian Supreme Leader/AP/picture alliance
अब क्या हो रहा है?
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों और कैपिटल दंगों के दौरान फेसबुक और ट्विटर की भूमिका को लेकर सवाल उठने के बाद दोनों कंपनियों ने अपनी नियमों पर राय मांगी है. फेसबुक ने अपने ओवरसाइट बोर्ड से सुझाव मांगे हैं और ट्विट्टर ने जनता से. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Leah Millis/REUTERS
6 तस्वीरें1 | 6
भ्रामक जानकारी पर अंकुश
ट्विटर का कहना है कि समाचार एजेंसियों को व्यापक रुचि वाले विषयों पर संदर्भ मुहैया करने में मदद करने का भी काम सौंपा जाएगा, जिनमें वे भी शामिल हैं जो संभावित रूप से भ्रामक जानकारी का कारण बनता है.
एपी के वैश्विक व्यापार विकास के उपाध्यक्ष टॉम यानुशेवस्की ने एक बयान में कहा, "यह काम हमारे मिशन के लिए मूल है." उन्होंने आगे कहा, "तथ्यात्मक पत्रकारिता की पहुंच का विस्तार करने के लिए एपी का ट्विटर के साथ-साथ अन्य सोशल मीडिया मंचों के साथ मिलकर काम करने का एक लंबा इतिहास रहा है."
सोशल मीडिया साइटों पर कई बार भ्रामक जानकारियां तेजी से वायरल हो जाती हैं और सही जानकारी यूजर्स तक पहुंचने में देर लगती है. अब कई ऐसी संस्थाएं हैं जो फैक्ट चेकिंग का काम करती हैं और वे बताती हैं कि जानकारी भ्रामक है या सही है.
एए/वीके (एपी, रॉयटर्स)
अखबार, टीवी या इंटरनेट: कौन है खबरों की दुनिया का बादशाह
रॉयटर्स इंस्टीट्यूट द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में भारत में समाचारों की खपत को लेकर दिलचस्प नतीजे सामने आए हैं. आइए देखते हैं भारत में लोग किस माध्यम से खबरें देखना ज्यादा पसंद करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/P. Kumar
खबरों पर भरोसा कम
संस्थान ने पाया कि भारत में सिर्फ 38 प्रतिशत लोग खबरों पर भरोसा करते हैं. यह अंतरराष्ट्रीय स्तर से नीचे है. पूरी दुनिया में 44 प्रतिशत लोग खबरों पर भरोसा करते हैं. फिनलैंड में खबरों पर भरोसा करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है (65 प्रतिशत) और अमेरिका में सबसे कम (29 प्रतिशत). भारत में लोग टीवी के मुकाबले अखबारों पर ज्यादा भरोसा करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/S. Pan
खोज कर खबरें देखना
45 प्रतिशत लोगों को परोसी गई खबरों के मुकाबले खुद खोज कर पढ़ी गई खबरों पर ज्यादा भरोसा है. सोशल मीडिया से आई खबरों पर सिर्फ 32 प्रतिशत लोगों को भरोसा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
इंटरनेट पसंदीदा माध्यम
82 प्रतिशत लोग खबरें इंटरनेट पर देखते हैं, चाहे मीडिया वेबसाइटों पर देखें या सोशल मीडिया पर. इसके बाद नंबर आता है टीवी का (59 प्रतिशत) और फिर अखबारों का (50 प्रतिशत).
तस्वीर: DW/P. Samanta
स्मार्टफोन सबसे आगे
खबरें ऑनलाइन देखने वाले लोगों में से 73 प्रतिशत स्मार्टफोन पर देखते हैं. 37 प्रतिशत लोग खबरें कंप्यूटर पर देखते हैं और सिर्फ 14 प्रतिशत टैबलेट पर.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
व्हॉट्सऐप, यूट्यूब की लोकप्रियता
इंटरनेट पर खबरें देखने वालों में से 53 प्रतिशत लोग व्हॉट्सऐप पर देखते हैं. इतने ही लोग यूट्यूब पर भी देखते हैं. इसके बाद नंबर आता है फेसबुक (43 प्रतिशत), इंस्टाग्राम (27 प्रतिशत), ट्विटर (19 प्रतिशत) और टेलीग्राम (18 प्रतिशत) का.
तस्वीर: Javed Sultan/AA/picture alliance
साझा भी करते हैं खबरें
48 प्रतिशत लोग इंटरनेट पर पढ़ी जाने वाली खबरों को सोशल मीडिया, मैसेज या ईमेल के जरिए दूसरों से साझा भी करते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
सीमित सर्वेक्षण
यह ध्यान देने की जरूरत है कि ये तस्वीर मुख्य रूप से अंग्रेजी बोलने वाले और इंटरनेट पर खबरें पढ़ने वाले लोगों की है. सर्वेक्षण सामान्य रूप से ज्यादा समृद्ध युवाओं के बीच किया गया था, जिनके बीच शिक्षा का स्तर भी सामान्य से ऊंचा है. इनमें से अधिकतर शहरों में रहते हैं. इसका मतलब इसमें हिंदी और स्थानीय भाषाओं बोलने वालों और ग्रामीण इलाकों में रहने वालों की जानकारी नहीं है.