ट्विटर ने बताया है कि दुनिया भर की सरकारों ने बीते साल जनवरी से जून के बीच उसके मंच से कॉन्टेंट को हटाने के लिए 43,387 बार कानूनी आदेश जारी किए. ऐसे देशों की सूची में भारत पांचवें नंबर पर रहा.
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छह महीनों की इस अवधि में इस तरह के निर्देश 1,96,878 खातों से कॉन्टेंट को हटाने के बारे में दिए गए. ट्विटर ने बताया कि 2012 में जब से कंपनी ने अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट जारी करनी शुरू की तबसे ले कर अभी तक एक रिपोर्ट की अवधि में निशाना बनाए गए खातों की यह सबसे बड़ी संख्या है.
यह अभी तक एक रिपोर्ट की अवधि में सरकार से मिले कॉन्टेंट हटाने के आदेशों की भी सबसे बड़ी संख्या है. इन निर्देशों में से 95 प्रतिशत निर्देश सिर्फ पांच देशों से आए. इनमें जापान पहले नंबर पर है और उसके बाद हैं रूस, तुर्की, भारत और दक्षिण कोरिया.
सरकारों का हस्तक्षेप
चीन और उत्तर कोरिया जैसे कई देशों में तो ट्विटर ब्लॉक ही है. कंपनी ने बताया कि इनमें से 54 प्रतिशत मामलों में उसे या तो चिन्हित कॉन्टेंट तक लोगों की पहुंच को रोक कर रखना पड़ा या खाताधारकों को कॉन्टेंट का कुछ या पूरा हिस्सा हटा देने के लिए कहना पड़ा.
जलवायु ऐक्टिविस्ट दिशा रवि को उनके ट्वीटों की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया थातस्वीर: facebook.com/disha.ravi
ट्विटर में ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी और फिलांथ्रोपी के वाइस प्रेजिडेंट सिनेड मैकस्वीनी ने एक बयान में कहा, "हमें अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि पूरी दुनिया में सरकारों द्वारा हस्तक्षेप करने और कॉन्टेंट को हटवाने की कोशिशें बढ़ती जा रही हैं".
उन्होंने यह भी कहा, "यह निजता और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए एक खतरा है और एक ऐसी गंभीर रूप से चिंताजनक प्रवृत्ति है जिस पर हमें पूरा ध्यान देना चाहिए." पिछले साल ट्विटर को भारत से लेकर नाइजीरिया तक में सरकारों के साथ कॉन्टेंट से छेड़छाड़ और नियमन को लेकर दो दो हाथ करने पड़े.
बढ़ रही प्रवृत्ति
फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों की ही तरह ट्विटर को भी अमेरिका और दूसरे देशों में झूठी जानकारी और हिंसक भाषा जैसे विषयों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ा.
पूरी दुनिया में सरकारें ट्विटर पर सामग्री के नियंत्रण में लगी हुई हैंतस्वीर: Stephen Lam/REUTERS
ट्विटर के डाटा के मुताबिक इन कानूनी निर्दोषों में चिन्हित किए गए खातों की संख्या में पिछले छह महीनों की अवधि के मुकाबले लगभग 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. पिछले छह महीनों में 1,31,933 खातों को लेकर ऐसे निर्देश मिले थे.
ऐसे निर्देशों की संख्या भी पिछली अवधि के मुकाबले 14 प्रतिशत बढ़ गई. कंपनी ने कुछ महीनों पहले बताया था कि 2020 में सरकारों द्वारा पत्रकारों और समाचार संस्थाओं के कॉन्टेंट को हटाने की मांगें काफी बढ़ गई थीं. हालांकि ताजा रिपोर्ट में इस तरह की मांगों के लिए चिन्हित खातों में 14 प्रतिशत की कमी आई है.
कंपनी ने यह भी बताया कि सरकारों द्वारा खातों की जानकारी संभाल कर रखने की मांगों में चार प्रतिशत की कमी आई है. ताजा रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऐसी मांगों में से 57 प्रतिशत मांगें अकेले अमेरिकी सरकार से मिलीं. सरकारों द्वारा ट्विटर से जानकारी मांगने में भी अमेरिकी सरकार ही सबसे आगे रही.
सीके/एए (रॉयटर्स)
सोशल मीडिया कंपनियां नेताओं के साथ कैसे पेश आती हैं
फेसबुक और ट्विट्टर द्वारा डॉनल्ड ट्रंप के खातों को बंद कर देने के बाद सोशल मीडिया कंपनियों के व्यवहार को लेकर काफी चर्चा हुई थी. कैसे तय करती हैं कंपनियां कि उनके मंचों पर किस नेता को क्या-क्या बोलने दिया जाए.
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किसके साथ होता है विशेष व्यवहार?
फेसबुक और ट्विटर दोनों के ही मौजूदा नियम आम यूजर के मुकाबले चुने हुए नुमाइंदों और राजनीतिक प्रत्याशियों को ज्यादा अभिव्यक्ति की आजादी देते हैं. ट्विटर के जनहित नियमों के तहत तो सत्यापित सरकारी अधिकारी भी आते हैं.
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तो क्या हैं मौजूदा नियम?
ट्विटर कहती है कि सामग्री अगर जनहित में हो तो वो उसे हटाती नहीं है, क्योंकि ऐसी सामग्री का रिकॉर्ड रहेगा तभी नेताओं को जवाबदेह बनाया जा सकेगा. फेसबुक राजनेताओं की पोस्ट और भुगतान किए हुए विज्ञापनों को अपने बाहरी फैक्ट-चेक कार्यक्रम से छूट देती है. फेसबुक राजनेताओं द्वारा किए गए कंपनी के नियम तोड़ने वाले पोस्ट को भी नहीं हटाती है अगर उनका जनहित उनके नुकसान से ज्यादा बड़ा है.
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आतंकवाद गंभीर मामला
ट्विटर का कहना है कि दुनिया में कहीं भी अगर कोई नेता आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला ट्वीट करता है तो उसे कंपनी हटा देती है. किसी दूसरे की निजी जानकारी जाहिर करने वाले ट्वीटों को भी हटा दिया जाता है. फेसबुक के तो कर्मचारियों ने ही भड़काऊ पोस्ट ना हटाने पर कंपनी की आलोचना की है. यूट्यूब कहता है कि उसने नेताओं के लिए कोई अलग नियम नहीं बनाए हैं.
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ट्रंप के साथ क्या हुआ?
छह जनवरी 2021 को वॉशिंगटन में हुए कैपिटल दंगों के बाद ट्विट्टर, फेसबुक, स्नैपचैट और ट्विच ने ट्रंप पर हिंसा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. यूट्यूब ने भी ट्रंप के चैनल पर रोक लगा दी थी.
तस्वीर: Christoph Hardt/Geisler-Fotopress/picture alliance
दूसरे नेताओं का क्या?
मानवाधिकार समूहों ने मांग की है कि इन कंपनियों को दूसरे नेताओं के खिलाफ भी इसी तरह के कदम उठाने चाहिए. कई नेता हैं जिनकी सार्वजनिक रूप से काफी आलोचना होती है लेकिन वो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. इनमें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई, ब्राजील के राष्ट्रपति जाएर बोल्सोनारो और वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो शामिल हैं. म्यांमार में तख्तापलट के बाद फेसबुक ने सेना पर प्रतिबंध लगा दिया था.
तस्वीर: Office of the Iranian Supreme Leader/AP/picture alliance
अब क्या हो रहा है?
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों और कैपिटल दंगों के दौरान फेसबुक और ट्विटर की भूमिका को लेकर सवाल उठने के बाद दोनों कंपनियों ने अपनी नियमों पर राय मांगी है. फेसबुक ने अपने ओवरसाइट बोर्ड से सुझाव मांगे हैं और ट्विट्टर ने जनता से. (रॉयटर्स)