इंसानी खोपड़ी की नीलामी पर क्यों उबला नागालैंड
१० अक्टूबर २०२४नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो समेत राज्य के चर्च और सामाजिक संगठनों के विरोध के बाद लंदन में 19वीं सदी के एक इंसानी खोपड़ी की नीलामी भले रुक गई हो, इस मुद्दे पर ब्रिटिश शासकों के खिलाफ असंतोष लगातार तेज हो रहा है. राज्य के आम लोगों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि ब्रिटिश अधिकारी उनके पूर्वजों की कई अनमोल विरासत अपने साथ ब्रिटेन ले गए थे. अब नागा इंसानी खोपड़ी की नीलामी करने को वे अपने पूर्वजों की समृद्ध विरासत का अपमान मानते हैं.
क्या है नीलामी का पूरा मामला?
ब्रिटेन के टेट्सवर्थ में स्वान नामक नीलामी घर की ओर से नागा समुदाय की एक इंसानी खोपड़ी की नीलामी का आयोजन किया गया था. यह नौ अक्तूबर को होनी थी. इसे '19वीं सदी की सींग वाली नागा इंसानी खोपड़ी' के तौर पर सूचीबद्ध किया गया था. इसकी कीमत साढ़े तीन से चार हजार ब्रिटिश पाउंड रखी गई थी. जानकारी के मुताबिक, यह खोपड़ी बेल्जियम के एक्स फ्रांसियोस कोपेन्स संग्रह के पास थी.
लेकिन मुख्यमंत्री समेत विभिन्न संगठनों के भारी विरोध के कारण फिलहाल वह नीलामी रोक दी गई है.
इस नीलामी का सबसे मुखर विरोध करने वाले फोरम फॉर नागा रिकॉन्सिलिएशन (एफएनआर) के संयोजक वाटी एअर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "हमारे पूर्वजों की खोपड़ी की नीलामी बेहद अमानवीय है. यह हमारे लिए बेहद पवित्र और भावनात्मक मुद्दा है. केंद्र सरकार को नागालैंड के लोगों की अमानत वापस लाने का प्रयास करना चाहिए. अंग्रेज यहां से हमारी कई चीजें छीन ले गए थे." उनका कहना है कि सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी किसी वस्तु की नीलामी नहीं हो जो हमारे लिए बेहद पवित्र हो. संभव हो तो उनको वापस लाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
नागालैंड सरकार क्या कर रही है
नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो डीडब्ल्यू से कहते हैं, "यह पूरे नागा समाज के लिए एक बेहद भावनात्मक मुद्दा है. हमारे समाज में मृतकों के अवशेषों को सर्वोच्च सम्मान देने की परंपरा है." यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि उक्त नीलामी रोकने के लिए रियो ने विदेश मंत्री एस.जयशंकर को पत्र लिखा था.
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एफएनआर के सदस्य एलेन कोन्याक कहते हैं कि नीलामीकर्ता ने भारी विरोध के बाद खोपड़ी की नीलामी रोक जरूर दी है. उसे शायद इस मामले की भावनात्मक अहमियत का अनुमान नहीं था. लेकिन यह मुद्दा पूरे नागा समाज के लिए बेहद भावनात्मक है. सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं हो.
वो डीडब्ल्यू से कहते हैं, "ब्रिटिश शासकों ने जबरन नागा लोगों की जमीन पर कब्जा किया था. उस दौरान नागा लोगों ने ब्रिटिश शासकों का भारी विरोध किया था. उसके बाद देश छोड़ते समय प्रतिहिंसा की भावना के कारण ब्रिटिश लोग हमारी कई बहुमूल्य विरासत अपने साथ ले गए."
ब्रिटिश राज के दौर से
ब्रिटिश शासन के नागा समाज पर प्रभाव के मुद्दे पर शोध करने वाले नागालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता चुख्पा के. डीडब्ल्यू से कहते हैं, "ब्रिटिश शासक बदले की भावना से राज्य से कितनी बहुमूल्य अमानत और हमारे पूर्वजों की विरासत साथ ले गए थे. इनमें से कई चीजें कुछ निजी संग्रहकर्ताओं के पास हैं. इस बारे में कोई आधिकारिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. पहली बार नीलामी में सूचीबद्ध होने के बाद इसका पता चला. पता नहीं आगे अभी ऐसी कितनी चीजें सामने आएंगी. सरकार को हमारे आदिवासी विरासत को संरक्षित करने और दोबारा हासिल करने की पहल करनी चाहिए."
एक नागा इतिहासकार केसी अपांग कहते हैं, "पूर्वजों और नागा जनजाति की विरासत की रक्षा के लिए एकजुट होना जरूरी है. इस विरोध के बाद आगे से ऐसी किसी सार्वजनिक नीलामी पर शायद रोक लग सके."
नागा समाज लंबे समय से इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड स्थित पिट्स रिवर म्यूजियम से नागा पूर्वजों के मानव अवशेषों को दोबारा हासिल करने का प्रयास कर रहा है. ऐसे करीब साढ़े छह हजार अवशेष उस म्यूजियम में मौजूद हैं. इन सबको ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारत से ले जाया गया था. एफएनआर ही इस अभियान की अगुवाई कर रहा है. संगठन ने मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो को भेजे एक पत्र में कहा है कि ताजा मामले से साफ है कि पूर्वजों के अवशेषों की वापसी की मुहिम और तेज की जानी चाहिए.