ब्रिटेन में बिना नोटिस नागरिकता छीनने वाले कानून पर बवाल
स्वाति बक्शी
२१ दिसम्बर २०२१
ब्रिटेन में नागरिकता और सीमा बिल 2021 पर विवाद छिड़ा हुआ है. इस कानून की एक धारा सरकार को ये हक देती है कि वो बिना नोटिस दिए किसी ब्रिटिश नागरिक से उसकी नागरिकता छीन ले.
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ब्रिटेन में एक तरफ ओमिक्रोन के पसरने का डर है तो दूसरी ओर विवादास्पद नागरिकता और सीमा बिल भी हाउस ऑफ कॉमंस की सीमा लांघते हुए ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन में पहला पड़ाव पार कर चुका है. सरकार कहती है कि वो नागरिकता, शरण और आव्रजन की प्रक्रिया को नियमित करना चाहती है लेकिन बिल के कुछ पहलुओं पर जमकर विवाद हो रहा है.
मानवाधिकार संस्थाओं समेत ब्रिटेन में बसे भारतीय व दक्षिण एशियाई मूल के लोग इस बात का डर जता रहे हैं कि इस कानून के तहत, सरकार दोहरी नागरिकता रखने वाले या विदेश में जन्मे ब्रिटिश नागरिकों को उनकी नागरिकता से बेदखल कर सकती है. हालांकि सरकार ने अपने एक बयान में कहा है कि नागरिकता वापिस लेने का कानून दशकों से है लेकिन उसका इस्तेमाल धोखे से नागरिकता हासिल करने वालों या भयानक अपराधियों के खिलाफ होता है.
विवादास्पद पहलू
विवाद की सबसे बड़ी वजह है बिल की धारा 9 जिसे नवंबर में निचले सदन में लाए गए संशोधन के तहत जोड़ा गया. ब्रिटिश नागरिकता कानून 1981 के तहत अगर सरकार किसी की नागरिकता वापिस लेती है तो इसके लिए व्यक्ति को नोटिस दिया जाना जरूरी है.
तस्वीरेंः यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड की 10 अहम बातें
हर थोड़े दिनों में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता को लेकर राजनीतिक गलियारों में बहस शुरू हो जाती है. जानिए कि यह समान नागरिक संहिता है क्या और इसके लागू होने से क्या बदलाव आएंगे.
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एक देश, एक कानून
समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून लागू करने की कोशिश है.
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क्या बदलेगा
इसके तहत संपत्ति के अधिकार के अलावा शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, बच्चा गोद लेने और वारिस तय करने जैसे विषयों पर सब लोगों के लिए एक कानून होगा.
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अभी क्या नियम है
अभी भारत इसके अलग-अलग नियम हैं. मतलब संपत्ति और तलाक के नियम हिंदुओं को लिए कुछ और हैं, मुसलमानों के लिए कुछ और ईसाइयों के लिए कुछ और.
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समान संहिता का विरोध
भारत में मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड समान नागरिक संहिता का विरोध करता है. वह इसे इस्लामी नियमों और सिद्धातों में हस्तक्षेप मानता है.
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दखल
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि समान नागरिक संहिता से लैंगिक भेदभाव को कम करने में मदद मिलेगी, जबकि कई मुस्लिम समुदाय इसे अपने धार्मिक मामलों में दखल के तौर पर देखते हैं.
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संहिता एक हल
दूसरी तरफ, तीन तलाक जैसे मुद्दों का विरोध करते हुए लोग कहते हैं कि समान नागरिक संहिता एक हल है. अब सरकार ने त्वरित तीन तलाक को अपराध बना दिया है. ऐसा करने पर सजा का प्रावधान है.
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भाजपा के एंजेडे में
समान नागरिक संहिता को लागू करना दशकों से भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में रहा है.
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सियासत
समान नागरिकता संहिता सियासी मुद्दा रहा है, जिससे वोट बैंक बनते-बिगड़ते रहे हैं. इस सिलसिले में 1985 का शाह बानो केस अहम माना जाता है.
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पलट दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि 60 वर्षीय शाह बानो तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. लेकिन मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के कड़े विरोध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद के जरिए इस फैसले को पलटवा दिया.
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गुजारा भत्ता
वैसे, बाद में एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इद्दत की अवधि के बाद मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता दिए जाने का फैसला सुनाया. इद्दत तलाक के बाद की वो अवधि होती है जिसमें महिला दूसरी शादी नहीं कर सकती.
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नए बिल की धारा 9 नोटिस दिए जाने की अनिवार्यता को खत्म करती है. इसके मुताबिक अगर गृह मंत्री के पास नोटिस देने के लिए पर्याप्त जानकारी ना हो, किसी अन्य कारण से नोटिस देना वाजिब ना हो या राष्ट्रीय सुरक्षा व सार्वजनिक हित के लिए जरूरी हो तो नागरिकता छीनने के लिए नोटिस देने की जरूरत नहीं है. ये धारा जनता के विचार जानने के लिए संसद की वेबसाइट पर जारी किए गए बिल के मसौदे का हिस्सा नहीं थी.
बिल पर विरोध दर्ज करने वालों की दलील है कि सीरिया में इस्लामिक स्टेट का हिस्सा बनने गई शमीमा बेगम के मामले में सरकार ने मनमाने ढंग से कार्रवाई की थी और ये कानून सरकार को उससे भी ज्यादा बेलगाम हो जाने की इजाजत देता है. हाउस ऑफ कॉमंस में लेबर पार्टी के नेता तनमनजीत सिंह देसी ने कहा कि ये बिल पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण है जिसका इस्तेमाल नस्ली आधार पर भी किया जा सकता है.
पिछले कुछ दिनों में ट्विटर पर ऐसी तमाम प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं जिनमें प्रवासी भारतीयों ने अपनी भावनाएं खुलकर रखीं. ‘स्टोरीज फॉर साउथ एशियन सुपरगर्ल्स' नाम की किताब लिखने वालीं कथाकार और ऐक्टिविस्ट राज कौर ने कहा, "मैं अपने दादा-दादी के साथ बड़ी हुई जिन्होंने अपना गैर-ब्रिटिश पासपोर्ट नहीं बदला. उन्हें लगता था कि पता नहीं ये कब हमें बाहर निकाल दें. हम हंसते थे कि ऐसा कभी नहीं होगा...मैं नागरिकता और सीमा बिल से बेहद दुखी हूं जिसने मुझे इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है”.
केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उत्तर-औपनिवेशिक अध्ययन की प्रोफेसर प्रियंवदा गोपाल कहती हैं कि ये बिल टेरेसा मे के जमाने में तैयार किए गए नफरती माहौल का मूर्त रूप है. प्रियंवदा मानती हैं कि ब्रिटेन में जातीय अल्पसंख्यक समुदायों में दोहरी नागरिकता की संभावना और अपनी ऐतिहासिक विरासत वाले देशों से संबंध रखने वाले लोगों की बड़ी संख्या को देखते हुए ये निश्चित तौर पर ब्रिटिश भारतीयों समेत काले लोगों को भी बहुत प्रभावित करेगा. वह कहती हैं, "शायद यही वजह है कि इसका मजबूत राजनैतिक विरोध भी नहीं हो रहा है.”
आंकड़ों की नजर से देखें तो ब्रिटेन में करीब साठ लाख लोग विदेशी विरासत रखते हैं यानी दोहरी नागरिकता या नागरिकता की संभावना रखने के दायरे में आते हैं जो इस कानून से प्रभावित हो सकते हैं. करीब छह लाख पैंतीस हजार की संख्या के साथ प्रवासी भारतीय इसमें सबसे बड़ा समुदाय है. उसके बाद पोलैंड और पाकिस्तान से संबंध रखने वाले लोग हैं.
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गृह-मंत्री की बेतहाशा बढ़ती ताकत
साल 2005 में हुए लंदन बम धमाकों के बाद से गृह मंत्रालय ने नागरिकता वापिस लेने के अधिकार का बहुत तेजी से इस्तेमाल किया है. गृह मंत्रालय के आंकड़े साफ करते हैं कि 2006 से 2017 के बीच 199 लोगों को नागरिकता वापिस ली गई है. केवल साल 2017 में नागरिकता गंवाने वाले लोगों की संख्या 104 पर पहुंच गई.
कौन से देश विदेशियों को करते हैं अपनी सेना में शामिल
क्या कोई देश किसी दूसरे देश के नागरिकों को अपनी सेना में भर्ती कर सकता है? जर्मनी इस बारे में विचार कर रहा है, लेकिन वास्तव में अमेरिका और रूस समेत कई देश सेना में विदेशी लोगों को भर्ती करते हैं.
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कनाडा
2022 के नवंबर की शुरुआत में कनाडा के सशस्त्र बलों (सीएएफ) ने घोषणा की कि स्थायी निवासियों को अब सेवाओं में भर्ती दी जाएगी, क्योंकि सेना में इन दिनों सैनिकों की कमी है. सीएएफ के इस कदम से कनाडा निवासी भारतीयों को फायदा मिलेगा. 2021 में करीब एक लाख भारतीय कनाडा के स्थायी निवासी बने थे.
तस्वीर: Ryan Remiorz/Canadian Press/Zuma/picture alliance
अमेरिका
अमेरिका की सेना में स्थाई निवासी और ग्रीन कार्ड रखने वाले ही शामिल हो सकते हैं. हालांकि उन्हें सेना में कमीशन नहीं मिलता. 2002 में तब के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने गैर-अमेरिकी सैनिकों की नागरिकता को आसान और तेज बनाने के आदेश दिए. हर साल यहां सेना में 8,000 विदेशी नागरिक भर्ती होते हैं. इनमें ज्यादातर मेक्सिको और फ्रांस के लोग हैं. माइक्रोनेशिया और पलाउ के लोग भी सेना में आ सकते हैं.
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रूस
सेना में शामिल होने के नियमों को 2010 में रूस ने आसान किया. इसे पुराने सोवियत संघ के देशों में रह रहे रूसी लोगों को बुलाने का जरिया माना गया. हालांकि रूस ने विदेशियों के लिए कई दूसरे कदम भी उठाए हैं. रूसी भाषा बोलने वाले गैर-रूसी लोग 5 साल के करार पर सेना में जा सकते हैं. 3 साल बाद नागरिकता के भी कई विकल्प मिलते हैं.
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ब्रिटेन
ब्रिटेन ने 2018 में कॉमनवेल्थ देशों के नागरिकों के सेना में भर्ती होने के लिए चली आ रही 5 साल ब्रिटेन में रहने की शर्त को खत्म कर दिया है. अन्य देशों के नागरिक यहां की सेना में नहीं जा सकते यहां तक कि यूरोपीय संघ के भी नहीं.
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फ्रांस
फ्रांस का फॉरेन लीजन अनोखा है. यह सबसे पुरानी सिर्फ विदेशी सैनिकों की शाखा है जो अब भी सक्रिय है. यह 1831 में बनी और इसे अब भी फ्रेंच सेना के अधिकारियों से आदेश मिलता है. इसमें शामिल लोग 3 साल की नौकरी के बाद ही फ्रांस की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/G. Fuentes
स्पेन
स्पेन ने 2002 से विदेशियों की सेना में भर्ती शुरू की. पहले स्पेन के पुराने उपनिवेशों के नागरिकों को मौका दिया गया. बाद में इसमें मोरक्को भी शामिल हुआ. मोरक्को का उत्तरी हिस्सा कभी स्पेन का उपनिवेश रहा था. सेना में कई ऐसे लोग भी हैं जो स्पेनवासी नहीं हैं. विदेशियों का कोटा 2 फीसदी से बढ़ कर अब 9 फीसदी हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/Legan P. Mace
बेल्जियम
2004 से बेल्जियम की सेना में 18-34 साल के यूरोपीय नागरिकों की सैनिक के रूप में भर्ती शुरू की गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Lefour
आयरलैंड
आयरलैंड यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र यानी यूरोपीय संघ समेत आइसलैंड, लिश्टेनश्टाइन और नॉर्वे के लोगों को सेना में शामिल करता है. दूसरे देश के नागरिक अगर 3 साल से ज्यादा समय से आयरलैंड में रह रहे हों, तो वे भी सेना में भर्ती हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/A. Widak
लग्जमबर्ग
लग्जमबर्ग भी यूरोपीय नागरिकों को अपनी सेना में जगह देता है. बशर्ते वो देश में 3 साल से ज्यादा वक्त से रह रहे हों और उनकी उम्र 18 से 24 साल के बीच हो.
तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Marin
डेनमार्क
डेनमार्क की सेना में भर्ती होने के लिए डेनमार्क में रहने वाले विदेशी लोग आवेदन दे सकते हैं. डेनमार्क में रहने के अलावा उम्मीदवार का डैनिश भाषा बोलना भी जरूरी है.
तस्वीर: imago/ZUMA Press
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पिछले दस सालों के दौरान लगातार कानूनी बदलाव होते रहे हैं जिनसे नागरिकता समाप्त करने से पहले दिए जाने वाले नोटिस की जरूरत को खत्म किया जा सके. 2018 से ही ये प्रक्रिया कमजोर होती दिखी जब शमीमा बेगम की नागरिकता खत्म करने से पहले नोटिस की जरूरत को पूरा करने के लिए गृह मंत्रालय को ये अधिकार दिया गया कि नोटिस शमीमा की फाइल में लगा दिया जाए क्योंकि उसका पता-ठिकाना मालूम नहीं है.
यदि धारा 9 नए कानून का हिस्सा बनती है तो गृह मंत्री को पूरी ताकत होगी कि गंभीर माने जा रहे किसी मामले में दोहरी नागरिकता रखने वाले या किसी दूसरे देश में नागरिकता की संभावना वाले व्यक्ति से ब्रिटिश नागरिकता वापिस ले सके. ये आदेश जारी करने के लिए किसी न्यायालय या प्राधिकरण जाने की जरूरत नहीं है.
सुरक्षा के नाम पर बिना नोटिस दिए गृह-मंत्री को ये आदेश जारी करने का हक होगा, ये बिल इस बेतहाशा ताकत को कानूनी मोहर लगाने के इरादा रखता है.
प्रवासी और शरणार्थियों पर असर
नए बिल के विरोध का कारण प्रवासियों और शरणार्थियों के साथ अपराधियों जैसा रवैया अपनाने की बात भी है. प्रस्तावित कानून ब्रिटेन में गैर-कानूनी तरीके से प्रवेश करने वालों और उनकी मदद करने वालों को भी कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान करता है. साथ ही पानी के रास्ते ब्रिटेन में प्रवेश की कोशिश को रोकने के दौरान होने वाली मौतों के लिए सीमा सुरक्षा बलों को कार्रवाई में छूट देने की भी बात रखी गई है.
शरणार्थियों के मसले को मानवाधिकारों से इतर कानूनी समस्या का रूप देने की इस कोशिश के खिलाफ लगातार प्रतिक्रियाएं आती रही हैं. ब्रिटिश संसदीय मानवाधिकार संयुक्त समिति पहले ही कह चुकी है कि ये बिल मानवाधिकारों कानूनों और शरणार्थी समझौतों के खिलाफ जाता है लेकिन गृह मंत्रालय का कहना है कि "ब्रिटिश नागरिकता एक विशेषाधिकार है, स्वाधिकार नहीं”.
अपनी नागरिकता को विशेष अधिकार का दर्जा देने वाले इस ब्रिटिश रवैये पर प्रोफेसर प्रियंवदा गोपाल कहती हैं, "ब्रिटेन ने विउपनिवेशीकरण का जवाब जातीय भेदभाव आधारित ऐसे कानूनों से दिया है जिनसे वह उसके पुराने उपनिवेशों से संबंध रखने वाले लोगों को बाहर ब्रिटेन से खदेड़ सके. ये जातीय भेदभाव का ही नमूना है कि देश के अंदर ऐसे कानून बनें कि ब्रिटिश नागरिकों को ही बाहर फेंका जा सके.”
यहां पैदा होने पर मिल जाती है नागरिकता
अमेरिका के अलावा दुनिया में 29 ऐसे देश हैं, जहां इस तरह का कानून है.