ब्रिटेन चुनाव: बोरिस जॉनसन की बहुमत के साथ सत्ता में वापसी
ऋषभ कुमार शर्मा
१३ दिसम्बर २०१९
बोरिस जॉनसन की कंजरवेटिव पार्टी ने ब्रिटेन के आम चुनावों में बहुमत हासिल कर लिया है. ब्रेक्जिट को मुख्य मुद्दा बनाकर चुनाव में उतरी बोरिस जॉनसन की पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने से ब्रेक्जिट का रास्ता अब साफ हो गया है.
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ब्रिटेन में हुए आम चुनावों के नतीजे अब स्पष्ट हो गए हैं. बोरिस जॉनसन और उनकी पार्टी की सत्ता में वापसी हुई है. जॉनसन की कंजरवेटिव पार्टी ने 650 सदस्यों वाली संसद में बहुमत के लिए जरूरी 326 के आंकड़े को पार कर लिया है. अब तक आए रुझानों से कंजरवेटिव टोरी पार्टी को 364 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं विपक्षी लेबर पार्टी इस बार भी सत्ता पाने में नाकाम रही है. अभी के रुझानों के मुताबिक लेबर पार्टी को 203 सीटें मिलती दिख रही हैं. 2017 में हुए मध्यावधि चुनावों में लेबर को 261 सीटें मिली थीं. वहीं कंजरवेटिव पार्टी को तब बहुमत से 10 कम यानी 316 सीटें मिली थीं. दूसरी पार्टियों की बात करें तो स्कॉटलैंड नेशनल पार्टी को 47, लिबरल डेमोक्रेट्स को 12, डीयूपी को 8, एसएफ को 7, पीलेड को 4, ग्रीन को 1 और अन्य पार्टियों को तीन सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं. हालांकि ओपिनियन पोल में इस बार भी त्रिशंकु नतीजों के कयास लगाए गए थे, जो गलत साबित हुए.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इन नतीजों का स्वागत करते हुए कहा है कि उन्हें ब्रेक्जिट को लागू करने और ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग करने के लिए जनादेश मिला है. अब वो ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग करने और ब्रिटिश संघ को मजबूती देने का काम करेंगे. वहीं लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन ने इन नतीजों को निराशाजनक बताया है और इसे लेबर पार्टी के लिए एक काली रात की तरह कहा है. हार के साथ की कॉर्बिन ने भविष्य में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से इनकार भी किया है. लिबरल डेमोक्रेट्स की नेता जो स्विंसन 159 वोटों के अंतर से अपनी सीट पर चुनाव हार गई हैं. लिबरल डेमोक्रेट्स का कहना है कि वो अब अपना एक नया नेता चुनेंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बोरिस जॉनसन को जीत पर बधाई दी है. ट्रंप ने ट्वीट कर कहा कि यूके और यूएस अब एक नई और बड़ी ट्रेड डील कर सकेंगे. यूरोपीय संघ के नेताओं ने भी ब्रिटेन के चुनाव नतीजों का स्वागत किया है. ऑस्ट्रिया के पूर्व चांसलर सेबास्टियान कुर्त्स ने बोरिस जॉनसन को जीत की बधाई देते हुए कहा कि इस जीत से ब्रेक्जिट अब आसानी से हो सकेगा और ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के अच्छे संबंध बने रहेंगे.
इन चुनाव नतीजों में मिले वोटों की तुलना पिछले चुनावों से करें तो कंजरवेटिव पार्टी को पिछले चुनाव में मिले 42.4 प्रतिशत की तुलना में 1.2 प्रतिशत ज्यादा वोट यानी 43.6 प्रतिशत, लेबर को पिछले चुनाव में मिले 40 प्रतिशत से 7.7 प्रतिशत कम वोट यानी 32.3 प्रतिशत, लिबरल डेमोक्रेट्स को पिछली बार के 7.4 प्रतिशत से 4.1 प्रतिशत ज्यादा यानी 11.5 प्रतिशत, एसएनपी को पिछली बार के तीन प्रतिशत से 0.9 प्रतिशत ज्यादा यानी 3.9 प्रतिशत और ग्रीन को पिछली बार के 1.6 प्रतिशत से 1.1 प्रतिशत ज्यादा यानी 2.7 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले हैं. कंजरवेटिव पार्टी के लिए ये मार्गेट थैचर के बाद सबसे बड़ी जीत है. वहीं लेबर पार्टी को 1935 के बाद इतने बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा है.
ब्रिटेन ने तीन साल पहले यह घोषणा की थी कि वह यूरोपीय संघ से अलग हो जाएगा. इसके लिए 31 अक्टूबर की तिथि तय की गई है. शुरुआत में उम्मीद थी कि सबकुछ सौहार्दपूर्वक हो जाएगा लेकिन अब यह तलाक के मामले की तरह उलझता दिख रहा है.
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ब्रिटेन अलग होने में इतना समय लंबा समय क्यों ले रहा
ईयू से अलग होने के प्रस्ताव पर ब्रिटेन में खाने के टेबल से लेकर संसद तक में तीखी बहस हो रही है. यूरोपीय संघ के अन्य 27 देशों के मोर्चे का सामना कर रहे ब्रिटिश वार्ताकारों के लिए यह एक आदर्श स्थिति है. पूर्व पीएम टेरीजा मे ने ईयू से अलग होने का प्रस्ताव पेश किया तो उसे तीन बार ब्रिटिश संसद ने खारिज कर दिया था. ईयू ब्रेक्जिट समझौते का सम्मान करता लेकिन यह ब्रिटिश संसद से ही पास नहीं हो पा रहा है.
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ब्रिटेन के नए नेता ने ब्रेक्जिट वार्ता को कैसे प्रभावित किया
ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ईयू से अलग होने की दिशा में कदम बढ़ाया. ब्रेक्जिट वार्ताकार जिसके लिए वर्षों से काम कर रहे थे, बोरिस ने अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से उसे दिनों में बदलने की कोशिश की. यह बदलाव ब्रिटेन के उत्तरी आयरलैंड और यूरोपीय संघ के सदस्य आयरलैंड के बीच के संबंधों की मांग को लेकर है. लेकिन जॉनसन के प्रस्ताव पर लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है.
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अगले चार सप्ताह में और क्या हो सकता है
जॉनसन काफी ज्यादा कहते हैं और ईयू बहुत कम. आयरलैंड की सीमा जैसे मुद्दे को जॉनसन फिर से तय करना चाहते हैं. सीमा का जो स्वरूप जॉनसन चाहते हैं, उसे कानूनी अमलीजामा पहनाना असंभव लगता है. इसके लिए ब्रेजिक्ट की जो सीमा 31 अक्टूबर तक तय की गई है, उसे फिर से बढ़ाना पड़ सकता है. हालांकि, जॉनसन का कहना है कि वे तय तिथि तक ईयू से अलग हो जाएंगे. इस समय सीमा को 'जीने और मरने' जैसी अहम बता रहे हैं.
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आयरिश सीमा को लेकर सबसे मुश्किल क्या है
आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच की सीमा तय करना एक बड़ी बाधा है. कोई भी पक्ष ठोस सीमा नहीं चाहता है. इस सीमा पर किसी तरह की जांच न होना 'गुड फ्राइडे शांति समझौते' की एक प्रमुख उपलब्धि रही है, जिसने 1998 में दशकों से जारी हिंसा को कम करने में मदद की. समस्या तब आती है जब ब्रिटेन ईयू से अलग होता है. ऐसे में आयरलैंड में ईयू और ब्रिटेन के अलग करने वाली नई सीमा बनानी होगी.
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समस्या से निपटने के लिए बोरिस जॉनसन की योजना
ब्रिटेन के नए ब्रेक्जिट प्रस्ताव में उत्तरी आयरलैंड को ईयू शुल्क क्षेत्र से हटाने के लिए कहा गया है. इसका मतलब यह आयरलैंड के लिए एक अलग सीमा शुल्क क्षेत्र होगा. इस सीमा से पार करने वाले ट्रकों को अलग से शुल्क देना होगा. ऐसे में काफी ज्यादा भौतिक जांच की संभावना बनती है,लेकिन ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव दिया है कि सीमा शुल्क को इलेक्ट्रॉनिक कर दिया जाए और काफी कम जगहों पर भौतिक जांच हो.
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यह अदृश्य सीमा कैसे काम करेगी
ब्रिटिश सरकार को उम्मीद है कि कागजी कार्रवाई को कारगर बनाने के लिए तकनीकी समाधान मिल सकता है. जबकि ईयू ने इस प्रस्ताव को काफी पहले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया है. नई योजना ईयू के एकल बाजार नियमों का पालन करने के लिए उत्तरी आयरलैंड में भी लागू होती है, जो अब ब्रिटेन के बाकी हिस्सों में लागू नहीं होगी. उत्तरी आयरलैंड और ब्रिटेन के बीच ले जाए जा रहे सामानों की जांच के लिए नई प्रणाली बनानी होगी.
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उत्तरी आयरलैंड के लोग ईयू के साथ रहना चाहते हैं
जॉनसन का प्रस्ताव है कि उत्तरी आयरलैंड के सदन को ब्रेक्जिट सीमा समझौते को मानने या ना मानने का मौका दिया जाए और इसे हर चार साल पर बढ़ाया जाना चाहिए. यह योजना उत्तरी आयरलैंड की गुड फ्राइडे शांति समझौते द्वारा स्थापित पावर शेयरिंग असेंबली पर निर्भर करती है. लेकिन दो साल पहले पावर-शेयरिंग असेंबली को भंग कर दी गई और फिर से गठित नहीं की गई. इस पर ईयू और आयरलैंड सहमत नहीं है.