ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी की लिज ट्रस के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देने के बाद वहां की राजनीतिक उथल-पुथल में भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता भी फंस गया है.
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भारत और ब्रिटेन इस कोशिश में लगे थे किदिवाली तक मुक्त व्यापार समझौता हो जाए. लेकिन ब्रिटेन में मची राजनीतिक उथल-पुथल ने ऐसी संभावनाओं पर पानी फेर दिया है. हालांकि दोनों देशों के अधिकारी इस समझौते पर बातचीत जारी रखे हुए हैं लेकिन भारत ने कहा है कि वह ‘इंतजार करेगा और देखेगा' कि ऊंट किस करवट बैठता है.
भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को लिज ट्रस के इस्तीफे के बाद कहा कि अब इंतजार करना होगा. गोयल ने कहा, "हमें देखना होगा कि अब क्या होता है. वे जल्दी से नेतृत्व में बदलाव करते हैं या फिर पूरी प्रक्रिया दोबारा होगी. देखते हैं कि सरकार में कौन आता है और उसके क्या विचार होंगे. उसके बाद ही हम ब्रिटेन के संबंध में कोई रणनीति बना पाएंगे.”
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने गुरुवार को पद से इस्तीफा दे दिया था. "वादे पूरे ना कर पाने के कारण' उन्होंने अपना पद मात्र छह हफ्ते में छोड़ दिया. ट्रस ने कहा कि उन्होने "भयंकर आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय अस्थिरता के वक्त कुर्सी संभाली” लेकिन वो अपने वादे पूरे नहीं कर पाईं जिनके दम पर वो सत्ता में आईं थीं.
‘सब सहमत हैं'
कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में गोयल ने कहा कि ब्रिटेन में राजनेताओं के बीच इस बात की सहमति है कि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करना उनके लिए भी "बहुत महत्वपूर्ण” है. उन्होंने कहा, "इसलिए मेरी समझ कहती है कि जो कोई भी सरकार में आए, हमारे साथ जुड़ना चाहेगा.”
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनकर राजनीति में छाने वालीं महिलाएं
लिज ट्रस ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री का पद संभाल चुकी हैं. ट्रस उन एक दर्जन से ज्यादा यूरोपीय महिलाओं के समूह में शामिल हो गईं, जिन्होंने अपने-अपने देशों में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनकर राजनीति में इतिहास रचा.
तस्वीर: Yui Mok/Pool photo/AP/picture alliance
ब्रिटेन की तीसरी महिला प्रधानमंत्री बनीं ट्रस
ब्रिटेन में लिज ट्रस ने सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व की दौड़ जीत ली. जुलाई में बोरिस जॉनसन के इस्तीफे के बाद पीएम पद की रेस में ट्रस ने बाजी मारी. 1979 से 1990 तक प्रभार संभालने वाली 'आयरन लेडी' मारग्रेट थैचर और 2016 से 2019 तक शासन करने वाली थेरेसा मे के बाद ट्रस ब्रिटेन की तीसरी महिला प्रधानमंत्री बनी हैं.
तस्वीर: Phil Noble/REUTERS
डेनमार्क की सबसे युवा प्रधानमंत्री
सोशल डेमोक्रेट नेता मेटे फ्रेडरिक्सन जून 2019 में डेनमार्क की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री बनीं. उन्होंने 41 साल की उम्र में प्रधानमंत्री का पद संभाला. यहां की पहली महिला प्रधानमंत्री, सोशल डेमोक्रेट नेता हेले थॉर्निंग-श्मिट थीं, जिन्होंने 2011 से 2015 तक पद संभाला.
तस्वीर: Philip Davali/Ritzau Scanpix/REUTERS
एस्टोनिया की पहली महिला राष्ट्रपति
52 साल की पूर्व ईयू ऑडिटर केर्स्टी कलजुलैद अक्टूबर 2016 में बाल्टिक राज्य एस्टोनिया की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं. हालांकि, एस्टोनिया में राष्ट्रपति पद का औपचारिक महत्व होता है, जिसमें शक्तियां कम होती हैं.
तस्वीर: John Minchillo/AP Photo/picture alliance
एस्टोनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री
जनवरी 2021 में काजा कलास एस्टोनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. उनके पिता सिम कलास 2002-2004 तक प्रधानमंत्री थे.
तस्वीर: Ints Kalnins/REUTERS
दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री
दिसंबर 2019 में, सोशल डेमोक्रेट, सना मरीन, 34 साल की उम्र में दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री बनीं. फिनलैंड की तीसरी महिला प्रधानमंत्री मरीन हाल ही में दोस्तों के साथ डांस और पार्टी करते हुए अपनी तस्वीरों को लेकर काफी सुर्खियों में रहीं.
तस्वीर: Frederick Florin/AFP/Getty Images
फ्रांस की दूसरी महिला प्रधानमंत्री
61 साल की इंजीनियर एलिसाबेथ बोर्न मई में फ्रांस की प्रधानमंत्री बनीं, जो समाजवादी नेता एडिथ क्रेसन के बाद पद संभालने वाली दूसरी महिला हैं. क्रेसन 1990 के दशक की शुरुआत में एक साल से भी कम समय तक इस पद पर रहीं थी.
तस्वीर: Franck Castel/abacca/picture alliance
ग्रीस की पहली महिला राष्ट्रपति
पेशे से तेज तर्रार वकील कैटरीना सकेलारोपोलू जनवरी 2020 में ग्रीस की पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गईं. हालांकि ग्रीस में राष्ट्रपति पद की भूमिका मोटे तौर पर औपचारिक है. साकेलारोपोलू 2018 में देश की शीर्ष अदालत की अध्यक्ष बनकर पहले ही न्यायपालिका के मैदान में झंडे गाड़ चुकी थीं.
तस्वीर: Petros Giannakouris/AP/picture alliance
हंगरी की पहली महिला राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की करीबी सहयोगी और पूर्व फैमिली पॉलिसी मंत्री कैटलिन नोवाक को मार्च 2022 में हंगरी की पहली महिला राष्ट्रपति चुना गया.
47 साल की रॉक और आइस हॉकी फैन, लिथुआनिया की पूर्व वित्त मंत्री इंग्रिडा सिमोनीटे दिसंबर 2020 में सेंटर-राइट सरकार की प्रधानमंत्री बनीं. लिथुआनिया में महिला नेतृत्व की एक मजबूत परंपरा है, जिसमें "बाल्टिक आयरन लेडी" डालिया ग्राइबॉस्काइट ने 2009 से 2019 तक सत्ता में एक दशक बिताया.
तस्वीर: Petras Malukas/AFP/Getty Images
स्लोवाकिया की पहली महिला राष्ट्रपति
उदारवादी वकील और भ्रष्टाचार विरोधी 48 साल की जुजाना कैपुतोवा ने जून 2019 में स्लोवाकिया की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में पद संभाला. एक राजनीतिक नौसिखिया होने के बावजूद उन्होंने चुनाव में सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार को आसानी से हराया था. स्लोवाकिया में राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री की तुलना में कम शक्ति होती है लेकिन वह वरिष्ठ न्यायाधीशों के कानूनों और नियुक्तियों को वीटो कर सकता है.
तस्वीर: Boris Grdanoski/AP Photo/picture alliance
स्वीडन को मिली पहली महिला प्रधानमंत्री
लैंगिक समानता का चैंपियन देश होने के बावजूद स्वीडन में कभी भी माग्दालेना एंडरसन से पहले प्रधानमंत्री के रूप में कोई महिला नहीं रही. सोशल डेमोक्रेट माग्दालेना ने नवंबर 2021 में जीत हासिल की थी. माग्दालेना एक अर्थशास्त्री भी हैं, जिन्होंने सात साल तक वित्त मंत्री के रूप में काम किया.
तस्वीर: Jonas Ekstromer/TT News Agency via REUTERS
बाकी देश जहां सत्ता के शीर्ष पर महिलाएं
फिलहाल और भी महिला नेता जैसे जॉर्जियाई राष्ट्रपति सैलोम ज़ुराबिशविली, आइसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकब्सडॉटिर, कोसोवो की राष्ट्रपति वोजोसा उस्मानी, मोल्दोवा की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मिया संदू और नतालिया गैवरिलिता, सर्बिया की गे एना ब्रनाबिक और स्कॉटलैंड सरकार फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जन की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया ज सकता. केके/ओएसजे (एएफपी)
तस्वीर: Jane Barlow/PA Wire/empics/picture alliance
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गोयल ने कहा कि समझौता न्यायपूर्ण, संतुलित और बराबरी का होना चाहिए, जिसमें दोनों को फायदा हो. उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष संतुष्ट नहीं होंगे तो कोई समझौता नहीं होगा. गोयल ने कहा, "हम अभी इंतजार करो और देखो की नीति पर चलेंगे लेकिन मेरा मानना है कि यूके, कनाडा, यूरोपीय संघ और एक अन्य देश, जिसका नाम हम जल्दी ही घोषित कर सकते हैं, इन सबके साथ हमारे मुक्त व्यापार समझौते सही रास्ते पर हैं.”
पीयूष गोयल ने कहा कि भारत 2027 तक दो खरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य लेकर चल रहा है, "जो चुनौतीपूर्ण लगता है” और इसे "2030 तक हासिल किया जा सकता है.” उन्होंने कहा कि अगर हालात भारत के पक्ष में हों और उद्योग अतिरिक्त कोशिश करें तो "अगर हम इसे 2027 तक कर पाएं तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी” लेकिन कोविड के कारण काफी वक्त जाया हो गया और यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण भी दिक्कतें आ रही हैं.
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भारत की दिक्कतें
भारत को दूसरे देशों के साथ समझौते में सबसे ज्यादा दिक्कत एमआरए यानी ‘परस्पर मान्यता समझौता' (म्यूच्यूअल रिकग्निशन एग्रीमेंट) करने में आ रही है. एमआरए के तहत दोनों देश एक दूसरे के सामान की गुणवत्ता को मान्यता देते हैं और उनके एक-दूसरे के बाजार में पहुंचना आसान हो जाता है. इससे चीजों को बार-बार क्वॉलिटी चेक से नहीं गुजरना पड़ता और आवाजाही में कम समय व धन खर्च होता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भारत को होने वाले नफा-नुकसान
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गोयल ने कहा कि कई देश भारत के साथ एमआरए करने में झिझक रहे हैं. उन्होंने कहा, "पता नहीं कयों, कम से कम विकसित दुनिया बहुत ज्यादा एमआरए स्वीकार करने में बहुत ज्यादा झिझक रहे हैं. शायद उन्हें हमारी चीजों और सेवाओं की गुणवत्ता पर भरोसा करने के लिए ज्यादा वक्त चाहिए.”
वाणिज्य मंत्री को लगता है कि इसका हल अन्य देशों के सामानों पर शर्तें लगाकर हो सकता है. उन्होंने कहा कि भारत को भी उन चीजों पर क्वॉलिटी कंट्रोल लगाना चाहिए, जिसे वे भेजना चाहते हैं और फिर "हम बराबरी पर आ जाएंगे, जहां हम कहेंगे कि तुम हमें एमआरए दो, हम तुम्हें एमआरए देंगे.” हालांकि उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि सरकार को भारतीय उद्योगों से भी समर्थन नहीं मिल रहा है क्योंकि वे भी क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर पर सहमत नहीं हैं.
गोयल ने मौजूद उद्योगपतियों से कहा, "मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि इस पर विचार करें. हमें बताएं कि किन उद्योगों में आपको क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर चाहिए. इससे हमें दूसरे देशों के साथ मोलभाव करने में थोड़ा फायदा मिलेगा.” उन्होंने कहा कि अमेरिका ने 4,500 क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर लगा रखे हैं, जबकि भारत ने सिर्फ 450.