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ईयू में नहीं, ईयू के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं ब्रिटिश पीएम

२९ अगस्त २०२४

यूरोपीय संघ छोड़ने यानि ब्रेक्जिट के बाद के कुछ ठंडे सालों के बाद ब्रिटेन की नई सरकार अब ईयू के साथ अपने रिश्तों में फिर से गर्माहट लाना चाहती है. इसी क्रम में ब्रिटेन, जर्मनी के साथ एक द्विपक्षीय समझौता कर रहा है.

ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर का बर्लिन में स्वागत करते जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स.
लेबर पार्टी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि ईयू से करीबी संबंध उसकी प्राथमिकताओं में है. स्टार्मर नाटो और ईयू, दोनों में एकजुटता के समर्थक हैं. उनकी सरकार में विदेश सचिव डेविड लैमी ने भी पद संभालने के बाद ईयू देशों की यात्रा की. तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance

जर्मनी और ब्रिटेन व्यापार, रक्षा समेत कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौते पर आगे बढ़ रहे हैं. जर्मनी की आधिकारिक यात्रा पर पहुंचे ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स से मुलाकात के बाद इस प्रस्तावित समझौते की घोषणा की.

पीएम स्टार्मर ने इसे दोनों देशों के आपसी संबंधों की संभावना का एक दस्तावेज बताया. शॉल्त्स ने कहा कि वह ईयू के साथ नए सिरे से संबंध शुरू करने की दिशा में स्टार्मर की कोशिशों का स्वागत करते हैं. शॉल्त्स ने कहा, "हम आगे बढ़ाए इस हाथ को थामना चाहते हैं." प्रधानमंत्री बनने के बाद स्टार्मर की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा थी. 

पीएम स्टार्मर ने जर्मनी समेत यूरोपीय देशों में धुर-दक्षिणपंथ के बढ़ते आधार पर भी चिंता जताई. पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि प्रगतिशील पार्टियों को मिलकर इसका सामना करना चाहिए. तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance

नई सरकार, नई नीति

स्टार्मर लेबर पार्टी के नेता हैं. 14 सालों तक विपक्ष में रहने के बाद लेबर पार्टी की सत्ता में वापसी हुई है. ब्रेक्जिट, यानी ब्रिटेन के ईयू छोड़ने का फैसला पूर्ववर्ती कंजरवेटिव के कार्यकाल में लिया गया था. स्टार्मर सरकार ब्रेक्जिट के बाद ईयू के साथ आई दरार को भरना चाहती है. जर्मनी आने से पहले ही स्टार्मर ने कहा था कि यह यात्रा "टूटे हुए रिश्तों" को दुरुस्त करने की व्यापक कोशिशों का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि वह ब्रेक्जिट को पीछे छोड़ते हुए यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्यों के साथ फिर से मजबूत संबंध बनाना चाहते हैं.

जर्मनी, ईयू की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. ब्रेक्जिट के बावजूद जर्मनी, ब्रिटेन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. पीएम स्टार्मर ने उम्मीद जताई कि इस साल के अंत तक ब्रिटेन और जर्मनी के बीच बहुपक्षीय समझौता हो जाएगा. इसका दायरा रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, "यह महत्वाकांक्षी होगा. इसमें कई व्यापक पक्ष होंगे. व्यापार, अर्थव्यवस्था, रक्षा समेत कई पहलू शामिल होंगे." स्टार्मर ने उम्मीद जताई कि इस समझौते से दोनों देशों में नए रोजगार पैदा होंगे और आर्थिक तरक्की आएगी.

स्टार्मर ने यह भी स्पष्ट किया है कि ब्रेक्जिट खत्म करने की कोई संभावना नहीं है. उन्होंने कहा, "मैं बिल्कुल स्पष्ट हूं कि हम यूरोप के साथ, ईयू के साथ नए सिरे से संबंध शुरू करना चाहते हैं. लेकिन इसका मतलब ब्रेक्जिट को पलटना या (ईयू के) के एकल बाजार में फिर से घुसना नहीं है. इसका तात्पर्य है कई मोर्चों पर करीबी संबंध. इनमें अर्थव्यवस्था और रक्षा क्षेत्र शामिल हैं."

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गैरकानूनी तरीके से आने वाले विदेशी हैं एक बड़ा मुद्दा

स्टार्मर ने यह भी कहा कि दोनों देश गैरकानूनी तरीके से होने वाले माइग्रेशन से निपटने के लिए एक साझा योजना विकसित करने पर विचार कर रहे हैं. ब्रिटेन में इमिग्रेशन एक बड़ा मुद्दा है. 4 जुलाई को हुए चुनाव में भी कंजरवेटिव पार्टी और दक्षिणपंथी दलों ने अवैध प्रवासियों को रोकने और इमिग्रेशन कानूनों को सख्त बनाने का वायदा किया था.

पूर्व प्रधानमंत्री और कंजरवेटिव सरकार के नेता ऋषि सुनक अवैध माइग्रेंट्स को रवांडा भेजने की योजना लाए, जिसपर काफी विवाद हुआ. अब लेबर सरकार पर भी छोटी नावों से इंग्लिश चैनल पार कर ब्रिटेन आने वालों को रोकने के लिए प्रभावी नीति लाने का दबाव है.

जर्मनी: जोलिंगन हमले के बाद तेज हुई इमिग्रेशन विरोधी बहस

माइग्रेशन, जर्मनी में भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है. हालिया महीनों में चाकू से हुए हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं. बीते हफ्ते जोलिंगन शहर में हुए ऐसे ही एक हमले में तीन लोग मारे गए. संदिग्ध हमलावर एक सीरियाई युवक है, जो असाइलम आवेदन नामंजूर होने के बाद भी जर्मनी में रह रहा था. इस घटना के बाद डिपोर्टेशन कानूनों पर सख्ती से अमल करने और अवैध प्रवासियों ने निपटने की प्रभावी नीतियां लाने पर बहस तेज हो गई है.

जर्मनी के तीन राज्यों (सैक्सनी, ब्रांडनबुर्ग और थुरिंजिया) में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भी इस मुद्दे पर काफी गर्मागर्म बहस जारी है. धुर-दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़ी एएफडी और पॉपुलिस्ट पार्टियां इसपर सरकार को घेर रही हैं. अगले साल देश में आम चुनाव होना है. जर्मनी की केंद्र सरकार के तीनों घटक दलों (एसपीडी, ग्रीन्स और एफडीपी) लोकप्रियता और जनाधार के मामले में ढलान पर हैं.

ऐसे में शॉल्त्स सरकार के ऊपर ठोस कदम उठाने का दबाव बढ़ता जा रहा है. इसका असर कुछ हालिया घोषणाओं में भी दिखता है. मसलन, इसी साल जून में सरकार ने बताया कि ऐसे अफगान और सीरियाई प्रवासियों को डिपोर्ट करने पर विचार किया जा रहा है, जो सुरक्षा के लिए खतरा हैं.

एसएम/आरपी (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)

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