जर्मनी के राष्ट्रपति से चिढ़ते क्यों है यूक्रेन के लोग
२६ अप्रैल २०२२कीव ने जर्मन राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर का स्वागत करने से इनकार कर दिया. यह साफ नहीं हुआ है कि यूक्रेन के नेतृत्व में यह फैसला किसने किया. बहरहाल, श्टाइनमायर उन यूरोपीय राष्ट्रपतियों में शामिल नहीं हो सके, जिनका यूक्रेन की राजधानी में गर्मजोशी से स्वागत हुआ.
जर्मन राष्ट्रपति के साथ ऐसा क्यों?
सबसे पहले तो मैं अपनी ही एक छोटी सी कहानी कहता हूं. 2016 की गर्मियों में के आखिर में, मैं जर्मन शहर वाइमार में था. वहां मुझे नाइजीरिया के अहम फोटोग्राफर और एक मशहूर जॉर्जियन पुरातत्व विज्ञानी के साथ गोएथे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
अवॉर्ड के आधिकारिक प्रोग्राम में हमारी तीन विदेश मंत्रियों के साथ बैठक भी शामिल थी. ये तीनों विदेशमंत्री, जर्मनी, पोलैंड और फ्रांस के थे, जिन्हें "वाइमार ट्राएंगल" भी कहा जाता है. इन तीनों देशों के विदेशमंत्री अक्सर मिलते रहते हैं. कार्यक्रम के तहत मंत्रियों को नए सम्मानित लोगों को बधाई देनी थी.
हमारी मुलाकात करीब एक से तीन मिनट की थी. फ्रांस के विदेशमंत्री थोड़े बोर होते नजर आए. हो सकता है कि थकान हो. पोलैंड के विदेशमंत्री किसी कारणवश नाखुश और चिड़चिड़े से लगे. सिर्फ जर्मन विदेशमंत्री श्टाइनमायर दोस्ताना लगे. ऐसा लगा जैसे वे लगातार हमारी पीठ या कंधा थपथपाते रहेंगे.
तभी उन्होंने कहा, "ओह, वेल डन. बधाई... द गोएथे मेडल! ग्रेट, ग्रेट, क्या कोई मुझे बता सकता है कि यह किस चीज के लिए दिया जाता है, किस योग्यता के आधार पर?" उन्होंने हम तीनों से इस तरह बात की. सब कुछ बहुत तेजी से हुआ और किसी ने वाकई में हमारा उत्तर भी नहीं सुना. जैसे ही टीवी कैमरे अपने शॉट्स ले चुके थे, तीनों मंत्री आगे बढ़ गए.
पुतिन के हमदर्द
बाद में एकिनबोडे एकिनबियी, डेविड लॉर्डकिपानिदजे और मैंने उस तथाकथित मीटिंग के बारे में अपने विचार साझा किए. हम सब इस बात से सहमत थे कि मीटिंग पेशेवर नहीं लगी और श्टाइनमायर के सवाल को तो हमने एक चुटकुला सा माना, वह भी बुरा. हम तीनों को यह उम्मीद नहीं थी कि मंत्री हमारे सामने सिर झुकाएंगे. लेकिन साफ नजर आने वाला आडंबर और कम दिखने लेकिन महसूस होने वाली अकड़, निराश करने वाले रहे.
मेरे लिए तो खासतौर पर यह बहुत निराशाजनक था, क्योंकि मैं तो उस देश से आता हूं, जिसके बारे में फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर ने अपना एक मशहूर फॉर्मूला सुझाया था. मैं ये दावा नहीं करता कि उस फॉर्मूले ने उनके आगे के राजनीतिक करियर में कोई निर्णायक भूमिका निभाई या नहीं या फिर क्या उसी की वजह से श्टाइनमायर दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए. लेकिन मैं दृढ़ता के साथ यह जरूर कह सकता हूं कि उस फॉर्मूले की वजह से ही यूक्रेन का समाज उन्हें पुतिन का हमदर्द और "मॉस्को का एजेंट" सा समझता है.
मॉस्को के इशारों पर चलने वाले नेता?
वह फॉर्मूला, जो 24 फरवरी को सामने आ गया. वह फॉर्मूला यूक्रेन को डोनबास रूस को सौंप देने की वकालत करने का आभासी संदेश देता था. फॉर्मूला पुतिन के प्लान से इस कदर मिलता है कि यूक्रेन के लोग बेशक फॉर्मूला देने वाले को "मॉस्को को लेखक" कहते हैं. आरोप है कि श्टाइनमायर अपने रूसी दोस्तों की इच्छाओं का पालन कर रहे थे. यूक्रेन के लिए विनाशकारी साबित होने वाले प्रोजेक्ट में वह अपना नाम शामिल करने के लिए सहमत हुए. कई यूक्रेनियों की नजर में जर्मन राष्ट्रपति ने यही किया.
मुझे नहीं लगता कि श्टाइनमायर इस बात से वाकिफ भी हैं कि 2019 से अब तक यूक्रेनी मीडिया ने कितनी बार उनका नाम और फॉर्मूला शब्द एक साथ बोला या छापा है. बढ़ा-चढ़ाकर न भी कहा जाए, तो ऐसा हजारों या फिर लाखों बार तो हुआ ही होगा. लोकप्रियता के साथ-साथ वह आलोचना, अविश्वास और सीधे तौर पर खारिज होने का तूफान भी झेल रहे हैं. यूक्रेन के लोगों के लिए "श्टाइनमायर फॉर्मूला" का मतलब है 'कुछ कपट से भरा और डरावना'. एक ऐसा व्यक्ति जो गुप्त तरीके से यूक्रेनी राष्ट्र को तबाह करने के लिए हो.
यूक्रेन में नहीं हैं लोकप्रिय
शायद "लेखक" तब से करियर की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते या मानद व सम्मानित पड़ाव पर पहुंचते-पहुंचते अपने "फॉर्मूले" का मूल तत्व भूल चुके हैं. लेकिन यूक्रेन इसे नहीं भूला है. उसे यह बीते कई वर्षों से याद है. करीबन हर दिन, हर वक्त. एक ऐसे अभिशाप की तरह, जो कहीं न कहीं श्टाइनमायर के नाम से जुड़ा है. यूक्रेनी लोग जिन जर्मन राजनेताओं को सबसे ज्यादा नापंसद करते हैं, उनमें श्टाइनमायर दूसरे नंबर पर हैं. अपने पूर्व बॉस और जर्मनी के पूर्व चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर के बाद. मौजूदा दौर की सक्रिय राजनीति में यूक्रेन के लोग श्टाइनमायर को सबसे ज्यादा नापसंद करते हैं.
श्टाइनमायर का उदाहरण ध्यान में रखते हुए जर्मनी के प्रभावशाली लोगों को यह याद करना चाहिए कि रूस-यूक्रेन विवाद में उनकी अनिश्चित नीतियों ने 2014 से अब तक कितना नुकसान पहुंचाया है. इस प्रक्रिया में उन्होंने न सिर्फ यूक्रेन को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि खुद को भी हानि पहुंचाई है. वे अब ऐसे पार्टनर के रूप में देखे जा रहे हैं, जो बेहद अविश्वसनीय, स्वार्थी और कुटिल है. जिसके शब्द कुछ और कहते हैं और कदम कुछ और. इसका नतीजा यह है कि जर्मनी अपनी अहमियत खो चुका है और इसके लिए पुरानी और नई संघीय सरकार जिम्मेदार हैं. अब जर्मनी एक बाहरी दर्शक है.
यूक्रेन को इतनी मदद देकर भी आलोचना झेल रहा है जर्मनी
'गैरजरूरी देश के गैरजरूरी राष्ट्रपति'
यूक्रेनी समाज और देश का नेतृत्व काफी हद तक पब्लिक ओपियनियन यानी सार्वजनिक राय पर निर्भर है. अमेरिका और ब्रिटेन ने जब निर्वात की स्थिति भरी, तो लोगों ने राहत महसूस की. उसी वक्त वे जर्मन राष्ट्रपति को न कहने की स्थिति में आ गए थे और इसके रणनीतिक कारण भी थे.
लेकिन "गैरजरूरी देश के गैर जरूरी राष्ट्रपति" इस हालात को तेजी से बदल सकते हैं. पूरा जर्मनी यूक्रेनियों की नजर में अपनी भूमिका बदल सकता है. ये काम न तो अमेरिका कर सकता है और न ही ब्रिटेन. जर्मनी यूक्रेन को यूरोपीय संघ का सदस्य बनाने के लिए कारगर और असरदार समर्थन दे सकता है. जर्मनी को ऐसा करना चाहिए, वह भी हमलावर के साथ फ्लर्ट और असमंजस के बिना.
((यूरी आंद्रुचोविच एक यूक्रेनी लेखक, कवि और अनुवादक हैं. आज उन्हें यूक्रेन की सबसे अहम सांस्कृतिक और बौद्धिक आवाजों में गिना जाता है आंद्रुचोविच का काम कई भाषाओं में अनूदित होकर दुनियाभर में छपता है.))
यह आर्टिकल मूल रूप से यूक्रेनी भाषा में लिखा गया था.