जर्मनी में रूस के समर्थन में रविवार को फिर प्रदर्शन हुए. कुछ लोग इसे यूक्रेन पर मॉस्को के हमले के समर्थन के रूप में देखते हैं लेकिन आयोजकों का कहना है कि उनका लक्ष्य देश में रूसियों के खिलाफ भेदभाव को उजागर करना है.
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जर्मनी में रविवार को दूसरे दिन भी रूस समर्थक प्रदर्शनकारियों ने रैली निकाली और यूक्रेन में हमले के बाद से देश की बड़ी रूसी भाषी आबादी के साथ भेदभाव को खत्म करने की मांग की. लगभग 600 लोगों ने देश के वित्तीय केंद्र फ्रैंकफर्ट में मार्च किया जिस दौरान कई लोगों ने रूसी झंडे लहराए. जर्मन पुलिस के मुताबिक उत्तरी शहर हनोवर में भी इसी तरह का प्रदर्शन हुआ, जिसमें लगभग 350 कारों का काफिला शामिल था.
हालांकि रैली की शुरुआत में देरी हुई क्योंकि अधिकारियों ने आदेश दिया था कि वाहनों के बोनट को झंडे से ढका न जाए. ऐसे प्रदर्शनों के आयोजकों ने कहा कि वे जर्मनी में रहने वाले रूसियों के प्रति बढ़ती असहिष्णुता जैसे मुद्दों को उजागर करना चाहते हैं. हालांकि कई समीक्षकों ने सवाल किया है कि क्या प्रदर्शन कुछ हद तक युद्ध का समर्थन करते हैं. उनके अनुसार इस तरह की दोनों रैलियां यूक्रेन समर्थक प्रदर्शनों के जवाब में रैलियों के अनुरूप हैं.
जर्मनी लगभग 12 लाख रूसी और लगभग 3,25,000 यूक्रेनियों का घर है. 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से जर्मन पुलिस ने रूसियों के खिलाफ 383 घृणा अपराध और यूक्रेनियन के खिलाफ 181 अपराध दर्ज किए हैं.
एक दिन पहले, रूस समर्थक काफिले कई जर्मन शहरों से होकर गुजरे थे. लगभग 190 कारों का एक काफिला "रूसी भाषी लोगों के खिलाफ भेदभाव के खिलाफ" नारे के साथ स्टुटगार्ट से होकर गुजरा. कार रैली में भाग लेने वाले "रूसी फोबिया बंद करो" वाले बैनर लिए हुए थे. रैली के दौरान वे स्कूलों में रूसी भाषी बच्चों के साथ भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान कर रहे थे.
युद्ध से दूर बर्लिन के स्कूल में थोड़ी पढ़ाई, थोड़ी मस्ती करते यूक्रेनी बच्चे
यूक्रेन युद्ध के कारण लाखों लोगों ने देश छोड़कर यूरोपीय देशों में पनाह ली है. बर्लिन में भी हजारों की संख्या में लोग पहुंचे हैं. उनके बच्चे अब स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. देखिए, नए स्कूल में बच्चों की नई जिंदगी.
तस्वीर: Lisi Niesner/REUTERS
शरणार्थियों के लिए कक्षाएं
यूक्रेन से जर्मनी आने वाले शरणार्थियों के बच्चों के लिए राजधानी बर्लिन में एक खास योजना के तहत कक्षाएं शुरू की गईं हैं. बच्चे क्लास में आकर खुश नजर आ रहे हैं.
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तनाव से दूर
कैमिला नाम की इस लड़की के परिवार ने भी बर्लिन में शरण ली है. कैमिला एक नए देश में आकर स्कूली जीवन में वापसी कर खुश है. क्लास में गणित की पढ़ाई करती कैमिला.
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मिल गए नए दोस्त
क्लास में कैमिला को एक नई दोस्त मिल गई है. कैमिला की दोस्त का नाम सोफिया है. वह भी युद्ध के दौरान अपने परिवार के साथ बर्लिन चली आई थी. कैमिला और सोफिया अब साथ ही पढ़ना पसंद करते हैं.
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जर्मन स्कूलों के लिए तैयारी
शरणार्थी बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाने का एक साधन पढ़ाई भी है. बच्चे नए स्कूल में नए दोस्त बना रहे हैं और जर्मनी के स्कूलों के लिए तैयारी कर रहे हैं.
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मातृभाषा में शिक्षा
कई जर्मन वॉलंटियर्स यूक्रेन के शरणार्थियों के साथ खड़े होने के लिए आगे आए हैं. कई निजी संगठनों ने इस संबंध में पहल की है. 'आर्शे नोवा' नाम के संगठन ने यूक्रेनी बच्चों के लिए उनकी मातृभाषा में पढ़ाई का इंतजाम किया है, ताकि उनके लिए पढ़ाई करना आसान हो सके.
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शरणार्थी बच्चों की नई जिंदगी
ये बच्चे इस स्कूल में पढ़ने के बाद जर्मनी के रेगुलर स्कूलों में जाने के लिए तैयार हो जाएंगे और इस तरह से वे आसानी से नई संस्कृति को अपना पाएंगे.
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कम हुआ तनाव
बच्चों को पढ़ाने वाली एक टीचर ने बताया कि बच्चे अपने ही देश के अन्य बच्चों से मिलकर खुश हैं और इसका उन पर सकारात्मक असर हुआ है.
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जर्मन भाषा भी
बच्चों को यूक्रेनी भाषा में पढ़ाने के साथ-साथ जर्मन भाषा भी सिखाई जाएगी. कुछ वॉलंटियर्स ने इन बच्चों की पढ़ाई के लिए धन इकट्ठा किया और फिर स्कूल की शुरूआत हो गई. इसका प्रचार टेलीग्राम मैसेजिंग ऐप के जरिए भी किया गया.
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पढ़ाई के साथ एक्टिविटी भी
स्कूल में बच्चे हर दिन तीन घंटे बिताते हैं. इस दौरान वे पेंटिंग और हैंडीक्राफ्ट भी करते हैं.
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टीचर भी यूक्रेनी
बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर भी यूक्रेन से हैं और उन्हें दान के तौर 500 यूरो हर महीने दिया जाएगा, जब तक कि उनको जर्मनी में काम करने का परमिट ना मिल जाए. इस स्कूल में पढ़ाने वाली दो टीचर भी रूसी हमले के बाद देश से निकलकर जर्मनी आ गई थीं.
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इस पहल के पीछे कौन
36 साल की सेव्लिगेन खुद बर्लिन में शिक्षिका हैं और उनकी 31 साल की दोस्त कार्लित्सकी ने रिफ्यूजी क्लास शुरू करने के बारे में सोचा और इसे अंजाम तक पहुंचाया.
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शहर के अधिकारियों ने पहले ही रैली में शामिल होने वाले लोगों को चेतावनी दी थी कि कार्यक्रम यूक्रेन संघर्ष का समर्थन नहीं कर सकता. अधिकारियों ने जेड और वी जैसे प्रतीकात्मक अक्षरों के इस्तेमाल के खिलाफ भी चेतावनी दी, जो रूसी आक्रमण और समर्थन का प्रतीक बन गए हैं.
रूस-समर्थक प्रदर्शनों को जर्मनी में कड़ी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं और कई लोग ऐसी रैलियों को क्रेमलिन के समर्थन के रूप में देखते हैं. इसी तरह के समर्थकों ने पिछले हफ्ते बर्लिन में कार रैली की थी, जिसकी कई लोगों ने कड़ी आलोचना की थी. जर्मन अखबार बिल्ड ने इसे "शर्मनाक परेड" कहा था.
प्रदर्शन को गैर-राजनीतिक बताया गया था, लेकिन उसी दिन यूक्रेनी शहर बुचा में कथित रूसी अत्याचारों का खुलासा हुआ था. जर्मनी में यूक्रेन के राजदूत आंद्री मेलनिक ने गुस्से में प्रतिक्रिया देते हुए बर्लिन की मेयर फ्रांजिस्का गेफी से सवाल किया, "आप इस शर्मनाक काफिले को बर्लिन के केंद्र से कैसे गुजरने दे सकती हैं?"
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
पुतिन के युद्ध का दुनिया पर असर
रूस के यूक्रेन पर हमले का असर पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है. खाने पीने की चीजों और ईंधन की कीमतें आसमान पर हैं. कुछ देशों में तो महंगाई के कारण लोग सड़कों पर उतर आए हैं.
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यूक्रेन के कारण महंगाई
जर्मनी में लोगों की जेब पर यूक्रेन युद्ध का असर महसूस हो रहा है. मार्च में जर्मनी की मुद्रास्फीति दर 1981 के बाद सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है.
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केन्या में लंबी लाइन
केन्या के नैरोबी में पेट्रोल पंपों के सामने लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. तेल महंगा हो गया है और सप्लाई बहुत कम है. इसका असर खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरत की बाकी चीजों पर भी नजर आ रहा है.
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तुर्की में ब्रेड हुई महंगी
रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है और रूसी उत्पादों पर लगे प्रतिबंधों के कारण गेहूं की आपूर्ति प्रभावित हुई है. यूक्रेन भी गेहूं के पांच सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. नतीजतन कई जगह ब्रेड महंगी हो गई है.
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इराक में गेहूं बस के बाहर
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से इराक में गेहूं के दाम आसमान पर हैं. इराक ने फिलहाल यूक्रेन के मुद्दे पर निष्पक्ष रुख अपनाया हुआ है. हालांकि देश में पुतिन समर्थक पोस्टर बैन कर दिए गए हैं.
तस्वीर: Ameer Al Mohammedaw/dpa/picture alliance
लीमा में प्रदर्शन
पेरू की राजधानी लीमा में महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करते लोगों की पुलिस से खासी झड़प हुई. सरकार ने कुछ समय के लिए कर्फ्यू भी लगाकर रखा था लेकिन जैसे ही कर्फ्यू हटाया गया, प्रदर्शन फिर शुरू हो गए.
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श्रीलंका में संकट
श्रीलंका इस वक्त ऐतिहासिक आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है. पहले से ही खराब देश की आर्थिक हालत को यूक्रेन युद्ध ने और ज्यादा बिगाड़ दिया है और लोग अब सड़कों पर हैं.
स्कॉटलैंड में लोगों ने महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया. पूरे युनाइटेड किंग्डम में ट्रेड यूनियनों ने बढ़ती महंगाई का विरोध किया है. पहले ब्रेक्जिट, फिर कोविड और अब यूक्रेन युद्ध ने लोगों की हालत खराब कर रखी है.
तस्वीर: Jeff J Mitchell/Getty Images
मछली पर मार
ब्रिटेन के राष्ट्रीय डिश फिश एंड चिप्स पर यूक्रेन युद्ध का असर नजर आ रहा है. सालभर में 38 करोड़ ‘फिश एंड चिप्स’ खाने वाले ब्रिटेन में अब रूस से आने वाली व्हाइट फिश और खाने का तेल इतना महंगा हो गया है कि लोगों को इससे मुंह मोड़ना पड़ा है. फरवरी में यूके की मुद्रास्फीति दर 6.2 प्रतिशत थी.
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नाइजीरिया के लिए मौका
यूक्रेन युद्ध को नाइजीरिया के उत्पादक एक मौके की तरह देख रहे हैं. वे रूस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं. देश के सबसे धनी व्यक्ति अलीको दांगोट ने हाल ही में नाइजीरिया का सबसे बड़ा खाद कारखाना खोला है.