कोरोनाः खसरे के टीके से करोड़ों बच्चे महरूम हो सकते हैं
१४ अप्रैल २०२०
बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से दुनियाभर में 11.7 करोड़ बच्चों को खसरे का टीका नहीं दिए जाने की आशंका है.
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दुनियाभर के करीब 200 देश इस समय कोरोना वायरस की महामारी से निपटने में जुटे हुए हैं. बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का कहना है कि इस वजह से 11.7 करोड़ बच्चे टीकाकरण अभियान से छूट सकते हैं. यूनिसेफ का कहना है कि कोरोना वायरस के कारण सोशल डिस्टेंसिंग और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव के कारण ऐसी आशंका है. खसरा (मीजल्स) बेहद संक्रामक बीमारी है. हर संक्रमित व्यक्ति करीब 15 स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमित कर देता है. मीजल्स एंड रूबेला इनेशिएटिव (एम एंड आरआई) के मुताबिक 24 देशों में खसरे के टीकाकरण अभियान में पहले ही देरी हो चुकी है और कई जगह अभियान रद्द किए जा सकते हैं, संभावना है कि 37 देशों के बच्चे इस कारण जोखिम में आ सकते है.
समूह ने एक बयान जारी कर कहा, "कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए अगर टीकाकरण को रोकने का कठिन विकल्प चुना गया है तो हम नेताओं से आग्रह करेंगे कि ऐसे बच्चों को ट्रैक किया जाए जिनको मीजल्स का टीका नहीं लगा है. इस तरह से सबसे कमजोर आबादी को खसरे का टीका दिया जा सके जब भी ऐसा करना संभव हो पाए. हम जानते हैं कि स्वास्थ्य प्रणाली से कई मांगें होंगी और कोविड-19 के खतरे के दौरान और उसके बाद भी स्वास्थ्यकर्मियों को सभी तरह के टीकाकरण अभियान को चलाना है, जिसमें मीजल्स भी शामिल है." कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर में 1,13,000 लोगों की जान ले ली है. दुनियाभर के देश तालाबंदी लागू कर इस महामारी से जूझ रहे हैं. तालाबंदी कर सभी देश कोरोना वायरस के संक्रमण को किसी तरह से रोकने की कोशिश में हैं. लेकिन इसकी छाया में खसरे की वृद्धि एक और प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य खतरा है.
स्पैनिश फ्लू से क्यों हो रही है कोरोना महामारी की तुलना
एक सदी पहले की बात है जब स्पैनिश फ्लू नाम की महामारी ने दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी को अपनी चपेट में ले लिया और कोई पांच करोड़ इंसानों की जान ले ली. क्या कोरोना वायरस इस जानलेवा इतिहास को दोहरा सकता है?
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महामारी बना 1918 में शुरु हुआ इन्फ्लुएंजा
सन 1918 से 1920 के बीच दुनिया भर के 2.5 से 5 करोड़ लोगों को लील लेने वाली महामारी स्पैनिश फ्लू कहलाई. इस महामारी में पहले विश्वयुद्ध से भी ज्यादा लोगों की जान गई जो कि इसके ठीक पहले ही थमा था.
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रहस्य बनी रही शुरुआत की कहानी
एक दशक से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी संक्रमण की शुरुआत के कारणों की पुष्टि नहीं हो पाई थी. 1930 के दशक में आते आते कुछ लोगों ने यह कहा कि इस पैथोजन को असल में जर्मन सेना ने एक हथियार के रूप में विकसित किया था और वह लीक हो गया. कोरोना के मामले में भी ऐसी एक थ्योरी निकली और खुद अमेरिकी राष्ट्रपति इसे "चीनी वायरस" कह चुके हैं.
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क्या कोरोना काल में फिर दोहराएगा इतिहास
अमेरिकी सेनाकर्मियों में 1918 में इसकी पुष्टि हुई. आगे चल कर दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी स्पैनिश फ्लू से संक्रमित हुई. मरने वालों में 5 साल से कम उम्र वालों और 65 से ऊपर की उम्र वाले लोगों की तादात अधिक थी जैसा कि कोरोना में भी है. लेकिन 20 से 40 साल की उम्र वालों का मरना स्पैनिश फ्लू् की खास बात रही.
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क्वॉरंटीन, हाइजीन, डिसइन्फेक्टेंट और भीड़भाड़ पर रोक
यही सारी चीजें स्पैनिश फ्लू के समय भी काम आई थीं और कोरोना काल में भी इन्हीं सब कदमों से संक्रमण को रोकने में मदद मिल रही है. स्पैनिश फ्लू का कोई टीका नहीं बन पाया था और ना ही एंटीबायोटिक दवाएं काम आईं. हालांकि कोरोना वायरस का टीका बनाने में फिलहाल विश्व भर के रिसर्चर लगे हुए हैं.
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स्पैनिश फ्लू वायरस की टाइमलाइन
102 साल पहले शुरु हुआ संक्रमण. 1930 में जाकर पता चला कि इसका कारण कोई बैक्टीरिया नहीं बल्कि वायरस है. 1960 में अमेरिका में इसके लिए ऐसी वैक्सीन उपलब्ध हुई जिसे फ्लू शॉट के रूप में हर साल फ्लू सीजन में लिया जा सकता है. सन 2005 में जाकर स्पैनिश फ्लू के वायरस की पूरी सीक्वेंसिंग हो पाई.
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सारे फ्लू से बचाने वाली वैक्सीन का रास्ता खुला
स्पैनिश फ्लू का वैक्सीन ही आज तक लोगों को सभी तरह के सीजनल फ्लू से बचाता आया है. 2009 में आए स्वाइन फ्लू फैलाने वाले एच1एन1 वायरस और बर्ड फ्लू फैलाने वाले एच5एन1 जैसे रोगों से भी इसी की वैक्सीन बचाती है.
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खसरा एक संक्रामक बीमारी है जिससे देखने और सुनने की क्षमता खत्म हो सकती है, मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है और जान भी जा सकती है. बच्चों को इससे बचाने के लिए खसरे की वैक्सीन की खुराक दी जाती है. हालांकि इस बीमारी को टीके के माध्यम से रोका जा सकता है. कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में अधिकांश देशों में स्वास्थ्य कर्मचारियों को संक्रमण से सुरक्षित रखने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के सख्त निर्देश लागू किए गए हैं. डब्ल्यूएचओ ने सरकारों को सलाह दी है कि वे निवारक टीकाकरण अभियान को रोक सकती हैं, जैसे कि खसरे के खिलाफ टीका अभियान ऐसे जगहों पर रोका जा सकता है जहां वैक्सीन द्वारा रोकथाम वाली बीमारी सक्रिय नहीं है. अफ्रीका के कई भागों में चिकित्सा सहायता परियोजनाएं रुक गई हैं क्योंकि देशों ने अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं, इनमें खसरे के खिलाफ टीकाकरण अभियान भी शामिल है. कोरोना वायरस को लेकर जारी अभियान के तहत देशों में खसरा समेत अन्य टीका अभियान ठप्प हो चुका है और नियमित स्वास्थ्य सेवाएं भी सीमित हो गई हैं. एम एंड आरआई समूह का कहना है कि कोरोना वायरस से समुदायों और स्वास्थ्य कार्यकर्ता की रक्षा का वह समर्थन करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि बच्चे स्थायी रूप से टीकाकरण से छूट जाएं.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' ने 2019 के लिए उन 10 चीजों की सूची तैयार की है, जिनसे लोगों की सेहत को सबसे ज्यादा खतरा है.
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वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन
इस सूची में सबसे ऊपर है हमारी आबोहवा. राजधानी दिल्ली में हवा का यह हाल है कि एक दिन वहां सांस लेना 20 सिगरेट पीने के बराबर है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप तो मानते ही नहीं हैं कि जलवायु परिवर्तन जैसा भी कुछ होता है.
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गैर संक्रामक बीमारियां
दुनिया भर में होने वाली 70 फीसदी से ज्यादा मौतों का कारण गैर संक्रामक बीमारियां होती हैं. इसमें हृदय रोग के मामले सबसे अधिक हैं. इसके बाद कैंसर, फिर सांस से जुड़ी बीमारियां और मधुमेह का नंबर आता है.
आम भाषा में इसे फ्लू कहा जाता है. यह हर साल सर्दियों के मौसम में वायरस के कारण फैलता है और किसी भी तरह की दवा इस पर असर नहीं कर पाती है. बच्चे सबसे ज्यादा इसकी चपेट में आते हैं.
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कमजोर आधारभूत संरचनाएं
आधारभूत संरचनाओं को बेहतर बनाकर कई तरह की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है. क्योंकि यह कोई बीमारी नहीं है, इसलिए अकसर सेहत की बात करते वक्त इस ओर लोगों का ध्यान ही नहीं जाता है.
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रोगाणु प्रतिरोध क्षमता
नई जीवनशैली लोगों की इम्यूनिटी घटा रही है. दिन भर बंद कमरों में रहना इसका एक बड़ा कारण है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार स्कूली बच्चों के मैदान या जंगलों में ना जाने के कारण उनमें रोग प्रतिरोधी क्षमता घट रही है.
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इबोला और अन्य रोगाणु
अभी भी कई तरह के रोगाणुओं से लड़ने के लिए टीके विकसित नहीं हो पाए हैं. इबोला के खिलाफ प्रयोग के तौर पर एक टीका तैयार किया गया जिसका अफ्रीका के गिनी में सकारात्मक प्रभाव देखा गया.
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कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं
मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग छोटी मोटी बीमारियों के चलते भी जान गंवा रहे हैं. इससे निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ कई तरह के कार्यक्रम भी चला रहा है.
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टीके का डर
आज भी दुनिया भर में बहुत से लोग अपने बच्चों को टीका नहीं लगवाते हैं. कोई इसे अपने धर्म के खिलाफ मानता है, तो कोई टीकाकरण को दवा माफिया की साजिश बताता है. कई लोगों का यह भी मानना है कि टीकाकरण से बच्चों में ऑटिज्म का खतरा बढ़ जाता है.
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डेंगू
मच्छर के काटने से होने वाली इस बीमारी से भारत के लोग अनजान नहीं हैं. 2017 में देश में डेंगू के रिकॉर्ड मामले दर्ज किए गए थे. पहली बार 1950 के दशक में फिलीपींस और थाईलैंड में डेंगू का वायरस पाया गया था.
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एचआईवी
एड्स और एचआईवी को ले कर पिछले दशकों में काफी जागरूकता फैलाई गई है लेकिन आज भी अफ्रीका में लाखों लोग इससे संक्रमित हैं. (सूत्र: विश्व स्वास्थ्य संगठन)