म्यांमार में तख्तापलट के बाद से लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे लोगों का प्रदर्शन लगातार जारी है. रविवार को पुलिस की गोलीबारी में कम से कम 18 लोगों की मौत हो गई. यूएन मानवाधिकार आयोग ने हिंसा की निंदा की है.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
विज्ञापन
संयुक्त राष्ट्र ने रविवार को म्यांमार में प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई की निंदा की और देश के सैन्य शासकों से बलपूर्वक कार्रवाई रोकने का आग्रह किया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने इसे सैन्य तख्तापलट के विरोध में किए जा रहे प्रदर्शनों का सबसे घातक दिन बताया. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शामदासानी ने एक बयान में कहा, "हम म्यांमार में विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की कड़ी निंदा करते हैं और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल के इस्तेमाल को तुरंत रोकने के लिए सेना से आग्रह करते हैं."
सबसे अधिक कार्रवाई म्यांमार के तीन शहरों यंगून, दवेई और मंडाले में हुई. इन शहरों में पुलिस ने नागरिक आंदोलन को खत्म करने के लिए बल का इस्तेमाल किया और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे लोगों को निशाना बनाया. शामदासानी ने आगे कहा, "म्यांमार के लोगों को शांति के साथ इकट्ठा होने और लोकतंत्र की बहाली की मांग करने का अधिकार है." उन्होंने कहा, "इन मौलिक अधिकारों का सम्मान सेना और पुलिस द्वारा किया जाना चाहिए, न कि हिंसा और और खूनी दमन किया जाना चाहिए."
पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के स्टेन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया. तस्वीर: Thuya Zaw/ZUMA Wire/imago images
सैन्य शासन की कार्रवाई की निंदा
1 फरवरी को देश की सेना ने विद्रोह किया और चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदखल कर डाला था. सेना का कहना है कि पिछले साल नवंबर में आम चुनाव में धांधली हुई थी. सैन्य तख्तापलट को लोगों ने पसंद नहीं किया था लेकिन शुरूआती कुछ दिनों में विरोध प्रदर्शन शुरू नहीं हुआ था. फिर, कुछ दिनों बाद सेना के खिलाफ लोगों के विरोध प्रदर्शन ने गति पकड़ना शुरू किया और अब ये लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन पूरे देश में फैल गए हैं. शुरू में सुरक्षा बल थोड़ी सावधानी के साथ काम कर रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे जनता का विरोध फैलता गया, पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई में तेजी आई.
बड़ी संख्या में गिरफ्तारी
म्यांमार की सेना ने कई दशकों तक देश पर राज किया, जबकि ताजा सैन्य तख्तापलट के विरोध में लाखों नागरिक अब हर दिन सड़कों पर उतर रहे हैं, लेकिन इस देश में सत्ता के सैन्य अधिग्रहण ने एक बार फिर दुनिया को चिंता में डाल दिया है. इस बीच अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने सुरक्षाबलों की कार्रवाई की निंदा की है. उन्होंने ट्वीट किया, "हम बर्मा के साहसी लोगों के साथ दृढ़ता के साथ खड़े हैं और सभी देशों को उनकी इच्छा के समर्थन में एक स्वर से बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं."
रविवार को भारी संख्या में प्रदर्शनकारी गिरफ्तार.तस्वीर: REUTERS
यंगून में रविवार को भारी संख्या में छात्रों और शिक्षकों को हिरासत में लिया गया. कई जख्मी लोगों की मदद करने की तस्वीर भी इस शहर से सामने आई हैं. एक टीचर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "पुलिस ट्रक से उतरी और उसके बाद बिना किसी चेतावनी के स्टेन ग्रेनेड फेंकना शुरू कर दिया."
ईयू ने प्रतिबंधों की पुष्टि की
यूरोपीय संघ के शीर्ष विदेश नीति प्रमुख जोसेफ बोरेल ने भी हिंसा की निंदा की, उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि ईयू तख्तापलट के विरोध में प्रतिबंध लगाएगा. बोरेल ने एक बयान में कहा, "हिंसा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को अवैध रूप से उखाड़ फेंकने को वैधता नहीं देगी. निहत्थे नागरिकों के खिलाफ गोलीबारी में, सुरक्षा बलों ने अंतरराष्ट्रीय कानून की सख्त अवहेलना दिखाई है और इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए." ईयू आने वाले दिनों में प्रतिबंधों पर अंतिम निर्णय लेगा.
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
तस्वीर: AP
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
तस्वीर: Getty Images/P. Walter
हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
तस्वीर: Erika SatelicesAFP/Getty Images
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
तस्वीर: Camille Laffont/AFP/Getty Images
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.