संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2040 तक अफ्रीकी महाद्वीप के सभी ग्लेशियर पिघल सकते हैं.
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ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में अफ्रीका का हिस्सा 4 फीसदी से कम है, लेकिन जलवायु परिवर्तन से इस क्षेत्र पर भारी असर पड़ने की संभावना है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2040 तक अफ्रीकी महाद्वीप के सभी ग्लेशियर पिघल सकते हैं.
संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप खाद्य असुरक्षा, गरीबी और बड़े पैमाने पर जनसंख्या विस्थापन जैसी "अनियमित कमजोरियों" पर रौशनी डालती है.
हमारे ग्लेशियरों का बचना बहुत मुश्किल
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संयुक्त राष्ट्र पहले ही चेतावनी दे चुका है कि जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई चरम स्थितियां और भी अधिक लोगों को अपने महाद्वीप से दूसरे स्थान पर प्रवास करने के लिए मजबूर कर सकती हैं. नई रिपोर्ट ग्लासगो COP26 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले जारी हुई है.
पिछले साल चक्रवाती तूफान और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने लगभग 12 लाख लोगों को विस्थापित किया. यह संख्या उस वर्ष संघर्ष से विस्थापित हुए लोगों की संख्या से ढाई गुना अधिक है.
क्या कहती है रिपोर्ट?
अफ्रीकी संघ आयोग में ग्रामीण अर्थशास्त्र और कृषि आयुक्त लियोनेल कोरेआ सैको का कहना है, "अगर इस स्थिति को रोकने के लिए उचित उपाय नहीं किए गए तो अनुमान है कि 2030 तक लगभग 11.8 करोड़ बेहद गरीब लोग गंभीर रूप से प्रभावित होंगे. वे सूखे, बाढ़ और खराब मौसम का सामना करेंगे."
रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र और विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई है. रिपोर्ट के अनुसार सबसे गरीब लोग वे हैं जिनकी दैनिक आय 1.90 डॉलर से कम है.
सैको कहते हैं, "उप-सहारा अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद को 3 प्रतिशत तक कम कर सकता है."
तस्वीरों मेंः प्रलय से पहले पर्यटन
प्रलय से पहले पर्यटन
खत्म होती सबसे बड़ी मूंगा चट्टान से लेकर पिघलते ग्लेशियरों तक, पर्यटक ऐसी जगहों को देखने भारी तादाद में पहुंच रहे हैं, जिन पर अस्तित्व खोने और गायब होने का खतरा मंडरा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/McPhoto/SBA
ग्रेट बैरियर रीफ - ऑस्ट्रेलिया
हर साल करीब 20 लाख लोग इसे देखने पहुंचते हैं. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाली एजेंसी का कहना है कि अगर हम वैश्विक तापमान को दो डिग्री बढ़ने तक सीमित भी कर लें, तब भी इस कोरल रीफ का 99 फीसदी खो देंगे. इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों के छूने से यह और जल्दी खत्म हो सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Probst
ध्रुवीय भालू - कनाडा
कनाडा के चर्चिल इलाके में ध्रुवीय भालू दिखाने के लिए सफारी का आयोजन होता है. 2010 में हुई एक स्टडी से पता चला कि सफारी के कारण यहां का कार्बन फुटप्रिंट कई गुना बढ़ जाता है. पर्यटक हवाई यात्रा कर वहां पहुंचते हैं, जो कि कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन के बोझ को और बढ़ाता है.
तस्वीर: picture-alliance/McPhoto/SBA
अंटार्कटिक की यात्रा
ध्रुवीय भालू की ही तरह जलवायु परिवर्तन का नाम लेते ही पिघलते ग्लेशियरों की तस्वीर जेहन में आती है. इनको पास से देखने जाने वाले पर्यटक न केवल क्रूज जहाजों को भारी कीमत चुकाते हैं बल्कि ग्लेशियर को भी नुकसान पहुंचाते हैं. 1990 के दशक में सालाना केवल 5,000 लोग पहुंचे थे वहीं 2018 में करीब 46,000 लोग.
तस्वीर: S. Weniger/M. Marek
अफ्रीकी नेशनल पार्क
यहां के नेशनल पार्कों में सवाना मैदानों के पीछे किलिमंजारो पर्वत की बर्फीली चोटियां देखी जा सकती हैं. हर साल यहां केवल पर्यटन से 5 करोड़ डॉलर की कमाई होती है. कई पर्यटक फर्टवेंगलर ग्लेशियर पर भी चढ़ते हैं. पिछले 100 सालों में इसकी करीब 85 फीसदी बर्फ पिघल चुकी है. बाकी बची बर्फ भी इसी सदी के मध्य तक गल जाएगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Schnoz
मोंटाना ग्लेशियर नेशनल पार्क
सन 1920 में खुले मोंटाना पार्क में तब 100 से भी ज्यादा बर्फीली संरचनाएं थीं. आज दो दर्जन से भी कम बची हैं. इतनी तेजी से बर्फ खोने के कारण यह पार्क जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों का केंद्र बन गया है. हर साल इसे देखने करीब 30 लाख पर्यटक पहुंचते हैं.
तस्वीर: Imago Images/Aurora/J. Miller
मालदीव के डूबते द्वीप
मालदीव में सफेद रेतीले तटों वाले करीब 1,200 कोरल द्वीप हैं. नीले समुद्री पानी से ये द्वीप करीब 2.5 मीटर की ही ऊंचाई पर हैं. 2017 में नए हवाई अड्डे और कई मेगा-रिजॉर्ट बना कर यहां पर्यटकों की तादाद सात गुना बढ़ाने की योजना बनी. राष्ट्रपति इसकी कमाई से नए द्वीप बसा कर डूब रहे द्वीपों के लोगों को वहां बसाना चाहते थे. लेकिन सत्ता से बाहर हो चुके पूर्व राष्ट्रपति अब भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हैं.
तस्वीर: Colourbox
खारे पानी के दलदल
केवल द्वीप ही नहीं बल्कि दलदल वाले इलाकों पर भी खतरा है. फ्लोरिडा के एवरग्लेड वेटलैंड तेजी से गायब हुए हैं. पिछली सदी में इसके आधे हिस्से को सुखा कर वहां खेती की जाने लगी है. बाकी बचे प्राकृतिक दलदल में नमकीन पानी घुस रहा है. विश्व धरोहरों में शामिल एवरग्लेड दलदल गंभीर खतरे में है.
तस्वीर: Imago/Robertharding/F. Fell
गालापागोस की भंग होती शांति
डार्विन के नाम से जुड़े गालापागोस के द्वीप भी भारी बदलाव से गुजर रहे हैं. इसके उलट डार्विन के समय उनकी खासियत ही यही थी कि वे बाकी दुनिया से कटा होने के कारण काफी जैवविविधता संरक्षित किए हुए थे. वहां इतने पर्यटक पहुंचते हैं कि वातावरण में तेज बदलाव हो रहे हैं. समुद्र का तापमान बढ़ने से यहां के खास समुद्री इगुआना जीव भूखे मरने लगे हैं. (रुबी रसेल/आरपी)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Kaufhold
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ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में अफ्रीका का हिस्सा 4 प्रतिशत से कम है, लेकिन यह लंबे समय से भविष्यवाणी की गई है कि यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है. इस क्षेत्र की फसलें पहले से ही सूखे से पीड़ित हैं और इसके अधिकांश प्रमुख शहर तट पर स्थित हैं. साथ ही इसकी अधिकांश आबादी व्यापक गरीबी में रहती है.
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जब पिघलेंगे अफ्रीका के ग्लेशियर
डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी टालस ने कहा, "पिछले साल अफ्रीका में भी तापमान में लगातार वृद्धि देखी गई, जिससे समुद्र के स्तर में तेजी से वृद्धि हुई, बाढ़, भूस्खलन और सूखा पड़ा. मौसमी घटनाएं होती रहीं. ये सभी चीजें जलवायु परिवर्तन के संकेतक हैं."
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रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि अगर परिवर्तन मौजूदा दर पर जारी रहा तो 2040 तक अफ्रीका के तीनों ग्लेशियर पिघल जाएंगे. टालस कहते हैं, "पूर्वी अफ्रीका में अंतिम शेष ग्लेशियरों का तेजी से सिकुड़ना, जो निकट भविष्य में पूरी तरह से पिघलने की आशंका है, पृथ्वी की प्रणाली में तत्काल और अपरिवर्तनीय परिवर्तनों के खतरे को इंगित करता है."
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल अफ्रीका की भूमि और पानी दोनों वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हुए. रिपोर्ट कहती है, "अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो 2040 के दशक तक टक्सन के ग्लेशियर पूरी तरह से गायब हो जाएंगे."
रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से माउंट केन्या के एक दशक पहले पिघलने की संभावना है. इसके मुताबिक, "मानव गतिविधियों के चलते जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों को पूरी तरह से खोने वाले ये पहले पहाड़ होंगे."
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)
आइस मैन ओएत्सी के 25 साल
दुनिया का सबसे मशहूर ग्लेशियर ममी 25 साल पहले खोजा गया था. इटली के साउथ तिरोल के रिसर्चर्स बता रहे हैं 5,250 साल पुराने ओएत्सी से जुड़ी कई खास बातें, देखिए.
आज ओएत्सी को इटली के साउथ तिरोल म्यूजियम ऑफ आर्कियोलॉजी में रखा गया है. लेकिन काफी लंबे समय तक इस पर विवाद रहा कि उसे किसी देश में रखा जाना चाहिए. ‘ओएत्सी द आइसमैन’ के नाम से मशहूर ये ममी 19 सितंबर 1991 को दो जर्मन पर्यटकों को मिली. इस पर ऑस्ट्रिया और इटली दोनों ने दावा किया. ठीक से माप लेने पर पता चला कि ममी इटली की सीमा में करीब 303 फीट की गहराई में दबा मिली थी.
तस्वीर: AP
पहचान कैसे हुई
पहले पहल तो किसी को नहीं लगा कि यह इतनी बड़ी खोज है. बवेरिया का एक युगल हाइकिंग पर गया तो और इस जमे हुए मानव शरीर को उसने पहले वहां गए किसी पर्यटक का समझा. किसी ने उसे अपना रिश्तेदार बताया तो किसी ने बाइबिल में वर्णित बहुत बड़ी बाढ़ की चपेट में आया व्यक्ति. रिसर्चर्स ने जब उसकी सही उम्र पता लगाई तो हैरान रह गए.
तस्वीर: dapd
टैटू वाला ओएत्सी
ओएत्सी के शरीर पर 61 टैटू गुदे हुए मिले. ये टैटू आजकल के जैसे कोई खूबसूरत डिजाइन या बच्चों के नाम वाले नहीं बल्कि कई रेखाएं और क्रॉस थे. पाषाण काल के टैटू कलाकारों ने ओएत्सी की त्वचा को काट कर उसमें बनी जगह में कोयला भर दिया था, जिससे ये टैटू बने. अंत में ओएत्सी की मौत का राज भी खुला कि वह पीछे से अपने कंधे में तीर लगने से मारा गया था.
उसके जमे हुए शरीर में पेट की जांच से यह भी पता चला कि उसने आखिरी बार क्या भोजन किया था. रिसर्चर्स ने बताया कि उसका आखिरी भोजन काफी भारी भरकम और तैलीय था. ओएत्सी ने बाकी चीजों के अलावा पाषाण काल में पाए जाने वाले खास तरह के अनाज और बकरी के मीट का सेवन किया था.
ओएत्सी के शरीर में आजकल प्रचलित बीमारियों जैसे कई लक्षण पाए गए. उसके दांतों में कैविटी थी, बैक्टीरिया से होने वाली लाइम बीमारी के सबूत, शरीर में कीड़े लगे थे और फैफड़े ऐसे जैसे धूम्रपान करने वालों के होते हैं. ओएत्सी को लैक्टोज से एलर्जी थी और पेट में हेलिकोबैक्टर का संक्रमण था. अगर उसे तीर नहीं लगा होता तो भी वह अपनी ऐसी शारीरिक अवस्था के कारण ज्यादा नहीं जी पाता.
तस्वीर: picture alliance/dpa
उसके जैसे कपड़े
2015 में "ओएत्सी वॉकर्स" ने पश्चिमी जर्मनी में हाइकिंग की और पाषाण काल की चीजों की प्रदर्शनी का प्रचार किया. उन्होंने भी वैसे ही कपड़े पहने जैसे ओएत्सी के शरीर पर मिले थे. उनके सिर पर भूरे भालू के फर से बनी हैट थी, बकरी के चमड़े से बनी पैंट और बकरी और भेड़ की त्वचा से मिलाकर बनाया गया कोट था.
तस्वीर: DW/C. Bleiker
ओएत्सी की नकल
आइस मैन की ममी बेहद मूल्यवान है. ज्यादा से ज्यादा लोग इसके बारे में जान समझ सकें और ममी को नुकसान भी ना पहुंचे, इसके लिए अप्रैल 2016 में उसके शरीर की नकल तैयार की गई. थ्री डी प्रिंटर की मदद से बोजेन के रिसर्चर्स ने पेड़ों से निकलने वाले रेजिन से एक दूसरा ओएत्सी बना दिया. फिर पेलियो आर्टिस्ट से पेंट करवा कर अंतिम रूप देने के बाद इसे न्यूयॉर्क भेज दिया गया.