संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अफ्रीका 2021 की पहली छमाही में आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र बन गया क्योंकि इस्लामिक स्टेट और अल कायदा चरमपंथी समूहों और उनके सहयोगियों ने अपना प्रभाव बढ़ाया है.
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अफ्रीकी महाद्वीप में आतंकवादी गतिविधियों पर नई रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा संकलित की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ मध्य पूर्वी देशों में सक्रिय दो प्रमुख जिहादी समूह अब अफ्रीकी देशों में स्थानांतरित हो गए हैं. वे कई देशों में बहुत सक्रिय हैं.
इस्लामिक स्टेट और अल कायदा का प्रभाव मध्य, पूर्वी और पश्चिम अफ्रीका में फैल गया है. इस्लामिक स्टेट और अल कायदा से जुड़े चरमपंथी समूहों की क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति है. रिपोर्ट कहती है-ये समूह हिंसक हमलों और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना जारी रखते हैं अगर वे अपने विरोधियों को काबू में करने और अन्य क्षेत्रों के लोगों को अपने साथ लाने में विफल रहते हैं तो नतीजतन अनगिनत लोगों की जान जा सकती है.
हथियारों के लिए पैसे इकट्ठा कर रहे आतंकी
रिपोर्ट के मुताबिक इन दोनों जिहादी संगठनों के कार्यकर्ता भी लगातार हथियार हासिल कर रहे हैं और इस उद्देश्य के लिए वे अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों और अन्य समान विचारधारा वाले क्षेत्रों से चंदा और फंड इकट्ठा करने में सफल होते दिख रहे हैं. वे अब अपनी आतंकवादी गतिविधियों के लिए ड्रोन का भी उपयोग कर रहे हैं.
तस्वीरों मेंः पाकिस्तान में एक महिला की जिंदगी कैसे हुई बर्बाद
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
अफगान सीमा से लगे पाकिस्तान के मोहमंद जिले में रहने वाली बसुआलिहा का पति और बेटा आतंकी हमलों में मारे गए थे. आज जब इलाके में तालिबान के लौटने का डर फैलता जा रहा है, 55-वर्षीय बसुआलिहा किसी तरह अपने हालात से लड़ रही हैं.
तस्वीर: Saba Rehman/DW
एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की कबायली महिलाओं के लिए जिंदगी कठिन है. 55 साल की विधवा बसुआलिहा के लिए आतंकवादी हमलों में 2009 में अपने बेटे और 2010 में अपने पति को खो देने के बाद जिंदगी और दर्द भरी हो गई. वो अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली जिले मोहमंद में गलनाइ नाम के शहर में रहती हैं. 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद इस इलाके पर तालिबान के विद्रोह का बड़ा बुरा असर पड़ा था.
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हर तरफ से हमले
बसुआलिहा के बड़े बेटे इमरान खान की 23 साल की उम्र में एक स्थानीय "शांति समिति" ने हत्या कर दी थी. बसुआलिहा ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो समिति एक तालिबान-विरोधी समूह थी और उसके लोगों ने उनके बेटे को आतंकवादियों की मदद करने के शक में मार दिया था. पिछले कुछ सालों में यहां थोड़ी शांति आई है, लेकिन तालिबान के लौटने की संभावना से यहां फिर से डर का माहौल कायम हो गया है.
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एक हिंसक दौर
अगले ही साल छह दिसंबर 2010 को बसुआलिहा के पति अब्दुल गुफरान की एक सरकारी इमारत पर आत्मघाती बम विस्फोट में जान चली गई. उन्होंने बताया कि उनके पति अपने बेटे की मौत का मुआवजा लेने वहां गए थे. हमले में बीसियों लोग मारे गए थे. बसुआलिहा कहती हैं कि कबायली इलाकों में पति या किसी और व्यस्क मर्द के बिना एक महिला की जिंदगी खतरों और जोखिमों से भरी हुई होती है.
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उम्मीद का दामन
बसुआलिहा को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. उनके गांव में गैस, बिजली की स्थिर आपूर्ति और इंटरनेट जैसी सुविधाएं नहीं हैं लेकिन पति और बेटे की मौत के बावजूद उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. उन्हें सरकार से मदद के रूप में 10,000 रुपये हर महीने मिलते थे, लेकिन को सिर्फ इस पर निर्भर नहीं रहना चाहती थीं. सरकारी मदद 2014 में बंद भी हो गई.
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सिलाई का काम
बसुआलिहा चाहती हैं कि उनके बाकी बच्चों को उचित शिक्षा मिले. उन्होंने बताया, "यह आसान नहीं था. एक बार तो मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरी जिंदगी बेकार है और मैं इस समाज में नहीं रह सकती हूं." आज कपड़ों की सिलाई उनकी कमाई का एक अहम जरिया है. वो महिलाओं के लिए सूट सिलती हैं और हर सूट के लिए 150-200 रुपए लेती हैं.
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मर्द का साथ अनिवार्य
बसुआलिहा कहती हैं, "मेरे पति की मौत के बाद मैं रोटियां बनाती थी और मेरी छोटी बेटियां उन्हें मुख्य सड़क पर बेचा करती थीं. फिर मेरी बेटियां थोड़ी बड़ी हो गईं और हमारे इलाके में लड़कियों का 'इधर उधर घूमना' बुरा माना जाता है." वो कहती हैं कि इसके बाद उन्होंने रजाइयां और कंबल सिलना और उन्हें बेचना शुरू किया. जब भी वो बाजार जाती हैं उनके साथ एक मर्द जरूर होना चाहिए, चाहे वो किसी भी उम्र का हो.
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और हिंसा होने वाली है?
पाकिस्तान के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी कबायली इलाकों में ऐसे हजारों परिवार हैं जो हिंसा के शिकार हुए हैं. बसुआलिहा के देवर अब्दुर रजाक कहते हैं उन्हें आज भी याद है जब मियां अब्दुल गुफरान तालिबान के हमले में मारे गए. वो उम्मीद कर रहे हैं कि कबायली इलाके एक बार फिर हिंसा और उथल पुथल में ना डूब जाएं. (सबा रहमान)
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इराक और सीरिया में सक्रिय एक जिहादी संगठन इस्लामिक स्टेट से संबद्ध सशस्त्र समूहों को अफ्रीका में जिहादी गतिविधि से प्रभावित देशों में अल कायदा की तुलना में अधिक सफलता मिली है. मध्य और पश्चिम अफ्रीकी देशों में इस्लामिक स्टेट समूहों के प्रभाव वाले क्षेत्र हैं. इसके विपरीत अल कायदा सोमालिया और तटीय क्षेत्र में सक्रिय है.
जिहादियों ने माली की सीमाओं के पार बुरकिना फासो, आइवरी कोस्ट, नाइजर और सेनेगल तक अपनी जिहादी गतिविधियों को फैला दिया है. इन देशों के अलावा नाइजीरिया से कैमरून और चाड होते हुए दूसरे पड़ोसी देशों में हिंसा फैल रही है.
आतंक का नेटवर्क
नाइजीरिया में चरमपंथी समूह बोको हराम अभी भी राष्ट्रपति मोहम्मद बुखारी की सरकार के दावों के बावजूद सक्रिय है और अल शबाब सोमालिया में सक्रिय है. पूर्वी अफ्रीका के सोमालिया में सक्रिय अल शबाब के चरमपंथी केन्या और मोजाम्बिक के रास्ते तंजानिया पहुंच गए हैं.
2021 में सबसे परेशान करने वाली खबर रही कि स्थानीय इस्लामिक स्टेट समूहों द्वारा मोजाम्बिक के तटीय शहर मोसाम्बा दे प्राएया पर हमला किया. यह रणनीतिक बंदरगाह शहर तंजानिया के साथ सीमा के करीब है. संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के मुताबिक जवाबी कार्रवाई में हारे जिहादी शहर में कहर बरपाने से नहीं कतराते हैं और उनकी चेतावनी है कि भविष्य में और हमला कर सकते हैं.
देखिएः आतंक की बलि चढ़ीं ये धरोहरें
आतंकवाद की बलि चढ़ी ये खूबसूरत धरोहरें
लोगों ने इन खूबसूरत इमारतों और मूर्तियों को सालों तक बनाया. और आतंकवादियों ने इन्हें पल भर में मिट्टी में मिला दिया. एक नजर दुनिया की उन नायाब धरोहरों पर जिनका हाल देख कर दिल दुखता है.
तस्वीर: Xinhua/imago images
अफगानिस्तान की बामियान घाटी
बामियान प्रांत में महात्मा बुद्ध की दो विशाल मूर्तिया होती थीं. इन्हें बौद्ध भिक्षुओं ने करीब 1,500 साल पहले पहाड़ को काट कर बनाया था. यह मूर्तियां अफगानिस्तान में इस्लामपूर्व युग की गवाह थीं. 1973 की इस तस्वीर में 53 मीटर ऊंची प्रतिमा दिख रही है. अब इसे नया रूप दे दिया गया है.
तस्वीर: ddp
माली में टिम्बकटू
माली के उत्तर में स्थित इस सदियों पुराने मकबरों को इस्लामी कट्टरपंथी गुट 'अंसार दिने' के विद्रोहियों ने 2012 में नष्ट कर दिया. 15वीं और 16वीं सदी में इस्लामिक शिक्षा के केंद्र के रूप में विख्यात टिम्बकटू यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E.Schneider
मोसुल में अल-नूरी मस्जिद
इराक के मोसुल में स्थित ऐतिहासिक अल-नूरी मस्जिद और उसकी मीनार अल-हदबा को आईएस ने तबाह कर दिया है. इसी मस्जिद से 2014 में अबू बकर अल बगदादी ने इस्लामी खिलाफत की घोषणा की थी. यह मीनार पीसा की प्रसिद्ध मीनार की ही तरह झुकी हुई थी और 840 सालों से वहां खड़ी थी. हालांकि आईएस इसे गिराने का इल्जाम अमेरिका के सिर रख रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Al-Rubaye
दोबारा निर्माण की चुनौती
कई मकबरों को संयुक्त राष्ट्र संगठन दुबारा बनाने की कोशिश कर रहा है. पवित्र माने जाने वाला अल्फा मोया के मकबरे का ख्याल रखने की जिम्मेदारी यहीं रहने वाले कुछ लोगों को सौंपी गई है, जैसे साने शिरफी (तस्वीर में) का परिवार.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Rieussec
आस्था का प्रतीक
2014 की इस तस्वीर में एक व्यक्ति टिम्बकटू की ही नष्ट की गई एक कब्र के सामने सिर झुकाए हुए. अपने असली स्वरूप के मुकाबले यह कितना अलग हो गया है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Ahmed
मार एलेना, सीरिया
सीरियाई ईसाइयों के लिए मार एलेना सबसे महत्वपूर्ण मठों में से एक था. केंद्रीय सीरिया के सर्जातेन में स्थित पांचवी सदी की ये ईसाई मॉनेस्ट्री भी आतंकियों के हमले की शिकार बनी गई.
तस्वीर: UNESCO
सीरिया का पाल्मिरा
इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने 2015 में सीरिया के पाल्मिरा में 2,000 साल पुराने टेंपल ऑफ बेल, आर्क डि ट्रायंफ जैसे कई गुंबद नष्ट कर डाले. फोटोग्राफर ने हाथ में इस जगह की पहले की तस्वीर पकड़े हुए वर्तमान स्थिति की तुलना करते हुए. बाल मंदिर की यह फोटो 2014 में ली गई थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Eid
इराक का अल-हद्रा
इस जगह को प्रथम अरब साम्राज्य की राजधानी माना जाता है. अपनी मोटी दीवारों के कारण 116 और 198 ईसवी में रोमन आक्रमणकारियों से यह बच गया था. लेकिन 2015 में नहीं बच सका.
मार एलेना को 2015 में आईएस ने धरती में मिला दिया. इंटरनेट पर डाले गए वीडियो में इसे बुलडोजरों के नीचे कुचलते हुए दिखाया गया था. इस शहर को आईएस के कब्जे से छु़ड़ा लिया गया है. अंदर से पूरी तरह जल चुके मठ के पुनर्निर्माण का काम चल रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. Sancha
नहीं रही सबसे ऊंची मूर्ति
दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति होने का गौरव प्राप्त बमियान के बुद्ध की मूर्ति को कट्टर इस्लामी तालिबानों ने सन 2001 में नष्ट कर दिया. टैंकों, मिसाइलों और डायनामाइट लगा कर कई हफ्तों तक तालिबान ने इस मूर्ति को तबाह करने की कोशिश की. 2003 से बामियान घाटी के सांस्कृतिक लैंडस्केप और पुरातात्विक स्थल यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल हैं.
तस्वीर: AP
आईएस और अल-हद्रा
साल 2015 की शुरुआत में आईएस ने अल-हद्रा के कई हिस्सों को नष्ट कर डाला. यह फोटो आईएस मिलिशिया द्वारा जारी वीडियो से ही निकाली गई है. इस वीडियो के सही होने की पुष्टि होने के बाद उत्तरी इराकी शहर मोसुल में हजारों साल पुरानी मूर्तियों को नष्ट करने की खबर आई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Militant video
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विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि घातक कोरोना वायरस महामारी ने भी कुछ हद तक जिहादी समूहों को प्रभावित किया है. जानकारों का मानना है कि इस्लामिक स्टेट वायरस के हथियार से दुश्मन देशों को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पाया है.