असंभव हो गया है 2030 तक महिलाओं की बराबरी का लक्ष्य
८ सितम्बर २०२३
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि महिलाओं की बराबरी के लिए तय किये गये लक्ष्य हासिल करना असंभव हो गया है.
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2030 तक विश्व में लैंगिक समानता हासिल करने का लक्ष्य अब पूरी तरह पहुंच के बाहर हो चुका है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक व व्यापारिक सत्ता केंद्रों में महिलाओं के प्रति मौजूद भेदभाव के कारण यह लक्ष्य हासिल करना अब असंभव हो गया है.
गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग ने लैंगिक समानता के लिए काम कर रही यूएन की एजेंसी के साथ मिलकर एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है, "महिलाओं और लड़कियों के अधिकार देने के मामले में दुनिया नाकाम रही है.”
निवेश की कमी
‘द जेंडर स्नैपशॉट 2023' शीर्षक से जारी यह रिपोर्ट कहती है, कि लैंगिक समानता को सक्रिय रूप से विरोध झेलना पड़ रहा है. इसके अलावा मुख्य क्षेत्रों में लगातार कम निवेश भी इस विफलता की एक बड़ी वजह है और कई क्षेत्रों में तो जो प्रगति हो गयी थी, वह भी पलट गयी है.
संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव मारिया-फ्रैंचेस्का स्पैटोलिजानो ने एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में यह रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि लैंगिक समानता एक लगातार दूर होता लक्ष्य बनता जा रहा है. युद्धग्रस्त और नाजुक इलाकों में रहने वाली महिलाओं का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले सालों में जो प्रगति हुई थी, वह भी अब खोती जा रही है.
अफगानिस्तान: ब्यूटी पार्लर बैन होने से 60,000 महिलाओं के सामने खड़ा हुआ संकट
तालिबान के आदेश के बाद अफगानिस्तान के हजारों ब्यूटी पार्लर 25 जुलाई से बंद कर दिए गए. इन ब्यूटी पार्लरों के बंद होने से वहां काम करने वाली महिलाओं की आय का जरिया तो बंद ही हो गया,साथ ही अन्य महिलाओं से संपर्क भी टूट गया.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
ब्यूटी पार्लर आय का एक जरिया
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत तो पहले से ही पतली है, लेकिन तालिबान के आदेश के बाद 25 जुलाई को देश के सभी ब्यूटी पार्लर बंद कर दिए गए. उद्योग से जुड़े जानकारों का अनुमान है कि देश में कुल 12 हजार ब्यूटी पार्लर हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
खत्म हो गई आर्थिक आजादी
34 साल की मरजिया रेयाजी पिछले आठ साल से अफगानिस्तान में केवल महिलाओं का ब्यूटी पार्लर चलाती आ रही थीं. ब्यूटी पार्लर के सहारे वो अपने परिवार का समर्थन करती रही हैं लेकिन अब ब्यूटी पार्लर का बिजनेस बंद होने से उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचेगा. उन्होंने अपना बिजनेस शुरू करने के लिए करीब 18 हजार डॉलर खर्च किए थे.
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"हम काम करना चाहते हैं"
रेयाजी कहती हैं, "अब हम यहां काम नहीं कर पाएंगे. हम अपने परिवार का पेट नहीं पाल पाएंगे. हम काम करना चाहते हैं." रेयाजी अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए महिलाओं द्वारा ब्यूटी पार्लर चलाने वाली हजारों महिलाओं में से एक हैं. एक अनुमान के मुताबिक तालिबान के इस आदेश के बाद इस सेक्टर से जुड़ीं 60,000 महिलाएं प्रभावित होंगी.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
तालिबान छीन रहा अधिकार
काबुल के एक ब्यूटी पार्लर में बहारा नाम की ग्राहक ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हम यहां आकर अपने भविष्य के बारे में बातें कर समय बिताते थे. लेकिन अब हमसे यह अधिकार भी छीन लिया गया है."
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अफगान समाज से गायब होती महिलायें
ब्यूटी सलून में बतौर मेक अप आर्टिस्टि काम करने वाली एक महिला ने नम आंखों से कहा, "तालिबान दिन-ब-दिन महिलाओं को समाज से खत्म करने की कोशिश कर रहा है. हम भी तो इंसान हैं." इस महिला ने सुरक्षा कारणों से अपना नाम नहीं बताया.
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देश की महिला उद्यमियों का क्या होगा
अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि रोजा इसाकोवना ओटुनबायेवा ने तालिबान के आदेश पर चिंता जताते हुए कहा, "यह महिला उद्यमियों पर प्रभाव डालेगा, गरीबी में कमी लाने के कदम और आर्थिक सुधार के लिए यह एक झटका है."
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कम हो जाएंगी कमकाजी महिलाएं
अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आईएलओ) ने रॉयटर्स को बताया कि प्रतिबंध से महिलाओं के रोजगार में भी "महत्वपूर्ण" कमी आएगी. आईएलओ के मुताबिक अफगानिस्तान की विदेश समर्थित सरकार के शासन के दौरान औपचारिक कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 23 प्रतिशत के आसपास थी.
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तालिबान का बेतुका तर्क
अफगानिस्तान के नैतिकता मंत्रालय की ओर से चार जुलाई को ब्यूटी पार्लर को बैन करने संबंधी आदेश में कहा गया था कि उसने यह आदेश इसलिए दिया क्योंकि मेकअप पर बहुत ज्यादा खर्च हो रहा है और गरीब परिवारों को कठिनाई होती है. तालिबान का कहना है कि सैलून में होने वाले कुछ ट्रीटमेंट गैर-इस्लामी हैं.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
महिलाओं के लिए बदतर होते हालात
अगस्त 2021 में सत्ता कब्जाने के बाद से तालिबान ने महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगाई हैं. उनका हाई स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ना बंद कर दिया गया है. उन्हें पार्कों, मेलों और जिम आदि सार्वजनिक स्थानों पर जाने की मनाही है.
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महिलाओं के लिए क्या है तालिबान की सोच
तालिबान के सुप्रीम लीडर अखुंदजादा ने जून 2023 में कहा था कि इस्लामिक नियमों को अपनाकर महिलाओं को पारंपरिक अत्याचारों से बचाया जा रहा है और उनके "सम्मानित और स्वतंत्र इंसान" के दर्जे को फिर से स्थापित किया जा रहा है. तालिबान का कहना है कि वह इस्लामी कानून और अफगान संस्कृति की अपनी व्याख्या के मुताबिक ही महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करता है.
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संयुक्त राष्ट्र ने महिला अधिकारों के क्षेत्र में 17 लक्ष्य हासिल करने की बात कही थी. गरीबी उन्मूलन से लेकर शिक्षा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में तय किये गये ये 2030 तक ये लक्ष्य हासिल किये जाने थे. रिपोर्ट में इन्हीं लक्ष्यों की प्रगति का आकलन किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक तस्वीर बहुत उदास नजर आती है और इसकी वजह ‘ढीली-ढाली प्रतिबद्धता' भी है.
महिलाओं के बीच अत्यधिक गरीबी दूर करने के लक्ष्य के बारे में रिपोर्ट कहती है कि आज भी दुनिया में हर दस में से एक महिला यानी लगभग 10.3 फीसदी महिलाएं 2.15 डॉलर यानी लगभग 200 रुपये रोजाना पर जीने को मजबूर हैं और अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2030 तक आठ फीसदी से ज्यादा महिलाएं इसी स्तर पर जी रही होंगी. इनमें से अधिकतर महिलाएं सब-सहारा अफ्रीका में रह रही हैं.
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खोती जा रही प्रगति
शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कों लड़कियों के लिए शिक्षा सुविधाएं कराने में कुल मिलाकर तो प्रगति हुई है लेकिन आज भी करोड़ों लड़कियां ऐसी हैं जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा है. ऐसा ज्यादातर युद्धग्रस्त क्षेत्रों में है.
यूएन का लक्ष्य है कि हर बच्चे को कम से कम दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई उपलब्ध हो. फिर भी, तालिबान ने अफगानिस्तान में लड़कियों की प्राथमिक स्कूल के बाद शिक्षा प्रतिबंध लगा दिया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, "2023 तक पूरी दुनिया में 12.9 करोड़ लड़कियां स्कूलों से बाहर हो सकती हैं. प्रगति की यदि यही दर रहती है तो 2030 तक 11 करोड़ लड़कियां ऐसी होंगी जो स्कूल नहीं जा रही होंगी.”
महिलाओं को सम्मानजनक काम उपलब्ध कराने का लक्ष्य भी पहुंच से बहुत दूर बताया गया है. 2022 में 25 से 54 वर्ष की 61.4 फीसदी महिलाओं को ही काम हासिल था जबकि पुरुषों के मामले में यह संख्या 90.6 फीसदी थी. साथ ही, महिलाओं को पुरुषों से कम भुगतान का दर्द भी झेलना पड़ रहा है.
पुरुषों से पीछे
रिपोर्ट कहती है, "2019 में पुरुषों को मिले एक डॉलर के मुकाबले महिलाओं को सिर्फ 51 सेंट्स मिल रहे थे.”
भविष्य के रोजगार क्षेत्रों जैसे साइंस, तकनीक और इनोवेशन के बारे में रिपोर्ट कहती है कि "लगातार मौजूद बाधाओं के कारण महिलाओं की भूमिका सीमित है” जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में साफ दिखायी दे रहा है.
शोधकर्ता लिखते हैं, "2022 में जिन खोजियों ने अपनी खोजों के लिए पेटेंट की अर्जी दी, उनमें महिला होने की संभावना पुरुषों से पांच गुना कम थी. 2020 में दुनियाभर में शोध क्षेत्रों में हर तीन में से एक ही महिला थी. साइंस, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों की नौकरियों में तो हर पांच में से एक ही महिला थी.”
कोर्ट के वो फैसले जिनसे महिलाएं बनीं सशक्त
भारतीय सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट ने देश की आधी आबादी के पक्ष में कई ऐसे ऐतिहासिक फैसले सुनाए जिनसे वो और अधिक सशक्त हुईं हैं.
तस्वीर: Sunil Jaglan/DW
एमटीपी एक्ट के दायरे में मैरिटल रेप
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट के तहत रेप के दायरे में मैरिटल रेप भी आएगा.
दिल्ली हाई कोर्ट ने फरवरी 2023 में कहा है कि किसी आरोपी महिला का वर्जिनिटी टेस्ट करना संविधान के खिलाफ है. यह अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है.
तस्वीर: Mohammed Huwais/AFP/Getty Images
शक के आधार पर डीएनए टेस्ट नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के डीएनए टेस्ट पर एक अहम फैसले में कहा कि वैवाहिक विवाद मामले में नाबालिग बच्चे का डीएनए टेस्ट रेगुलर कोर्स में और सिर्फ शक के आधार पर नहीं किया जा सकता है.
तस्वीर: Mehedi Hasan/NurPhoto/picture alliance
बलात्कार तो बलात्कार है, चाहे पति क्यों न करे
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि एक व्यक्ति केवल इसलिए दुष्कर्म के मुकदमे से बच नहीं सकता क्योंकि पीड़िता उसकी बीवी है. बेंच ने कहा यह समानता के अधिकार के खिलाफ है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा "एक पुरुष एक पुरुष है, एक कृत्य एक कृत्य है; बलात्कार एक बलात्कार है, चाहे वह पुरुष 'पति' द्वारा 'पत्नी' पर किया जाए."
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
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यूएन का एक लक्ष्य महिलाओं को निर्णय-क्षमता उपलब्ध कराने वाले पदों पर बराबरी दिलाना भी है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया के संसदों में सिर्फ 26.7 फीसदी महिलाएं हैं. प्रबंधक स्तर पर 28.2 फीसदी महिलाएं हैं. इसके अलावा 2022 में 61.4 करोड़ महिलाएं और लड़कियां युद्धग्रस्त क्षेत्रों में रह रही हैं जो 2017 से 50 प्रतिशत ज्यादा हो गया है.