पश्चिमी देशों के स्नैपबैक प्रतिबंधों से कैसे निपटेगा ईरान?
२८ सितम्बर २०२५
ईरान की राजधानी तेहरान की एक गली में किराने की दुकान के बाहर लंबी कतार लगी थी. लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. सबकी नजरें चावल, दूध और मांस पर टिकी थीं, जिनकी कीमतें हर दिन बढ़ती जा रही हैं. 12 साल के बेटे के पिता सीना ने समाचार एजेंसी एपी से कहा, "जब से मुझे याद है, हम आर्थिक कठिनाइयों से ही जूझ रहे हैं, और हर साल हालात पिछले साल से बदतर होते जा रहे हैं. हमारी पीढ़ी के लिए हमेशा या तो बहुत देर हो चुकी होती है या बहुत जल्दी, हमारे सपने हाथ से फिसलते जा रहे हैं.”
ईरान पर रविवार को लगे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों से ईरानी जनता पर बोझ बढ़ सकता है. इन्हें स्नैपबैक प्रतिबंध कहा जा रहा है. यह व्यवस्था 2015 के परमाणु समझौते का हिस्सा थी, ताकि अगर ईरान शर्तों का उल्लंघन करे, तो सभी पुराने प्रतिबंध वापस लागू हो जाएं.
‘स्नैपबैक' का इतिहास और उद्देश्य
साल 2015 में ईरान और पी5 देशों (अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन) के बीच समझौता हुआ था. इसके तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित रखने का वादा किया और बदले में उस पर लगे प्रतिबंध हटा लिए गए. लेकिन समझौते में यह भी लिखा गया था कि अगर ईरान नियम तोड़ेगा तो बिना किसी वोटिंग या वीटो के प्रतिबंध दोबारा लागू हो जाएंगे. यही स्नैपबैक है, जो असल में ‘वीटो प्रूफ' है. यानी चीन और रूस, जो पी 5 का हिस्सा हैं, वो भी इसे पारित करने में बाधा नहीं डाल सकते. रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने शनिवार को कहा कि यह एक ‘जाल' है.
फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र को बताया कि ईरान समझौते का पालन नहीं कर रहा है. ईरान ने ना तो अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को अपने परमाणु ठिकानों पर लौटने दिया और ना ही यह बताया कि उसके पास कितना संवर्धित यूरेनियम जमा है. इसके बाद 30 दिन की प्रक्रिया शुरू हुई और रविवार को आधी रात से प्रतिबंध लागू हो गए.
नए प्रतिबंध और असर
प्रतिबंधों का मतलब है कि ईरान की विदेशों में जमा संपत्तियां जब्त हो जाएंगी. उसके साथ हथियारों की खरीद-बिक्री बंद हो जाएगी और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर रोक लग जाएगी. साथ ही, यूरेनियम और उससे जुड़ा कोई भी सामान खरीदने या बेचने पर भी पाबंदी होगी.
पहले ही ईरान की मुद्रा रियाल काफी नीचे जा चुकी है. खाने-पीने की चीजें आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं. एपी की रिपोर्ट बताती है कि एक साल में चावल 80 से 100 प्रतिशत महंगा हुआ है, राजमा तीन गुना, मक्खन लगभग दोगुना और चिकन की कीमत 26 प्रतिशत ऊपर जा चुकी है.
तेहरान की एक गृहिणी सीमा तघावी ने एपी को बताया, "हर दिन चीज, दूध और मक्खन की बढ़ी हुई कीमतें देखती हूं. इन्हें फलों और मांस की तरह अपनी खानपान की सूची से हटा नहीं सकती, क्योंकि मेरे बच्चे छोटे हैं और उन्हें इनसे वंचित नहीं किया जा सकता.”
अमेरिका और यूरोप का रुख
अमेरिका ने यूरोपीय देशों के फैसले की सराहना की. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा, "यह वैश्विक नेतृत्व का निर्णायक कदम है. बातचीत अब भी एक विकल्प है. लेकिन इसके लिए ईरान को सीधे बातचीत स्वीकार करनी होगी.”
हालांकि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि मामला इतना मामूली भी नहीं है. वॉशिंगटन में परमाणु मामलों की विशेषज्ञ केल्सी डेवनपोर्ट ने कहा, "ट्रंप प्रशासन को लगता है कि ईरान पर हमलों के बाद वे मजबूत स्थिति में हैं और इसलिए वे ईरान का, बातचीत की मेज पर आने का, इंतजार कर सकते हैं. लेकिन ईरान के पास जो जानकारी और सामग्री है, उसे देखते हुए यह एक बेहद खतरनाक धारणा है.”
एक ईरानी सांसद ने रॉयटर्स से कहा, "यह स्नैपबैक पश्चिम का आखिरी हथियार है. एक बार उन्होंने इसे इस्तेमाल कर लिया, उसके बाद उनके पास हमारे खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए और कुछ नहीं बचेगा.”
ईरान की प्रतिक्रिया और रणनीति
तेहरान ने कहा है कि वह चुप नहीं बैठेगा. प्रतिबंध वापस लौटने से कुछ ही देर पहले एक वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने रॉयटर्स से कहा, "अगर स्नैपबैक लागू होता है और प्रतिबंध वापस आते हैं, तो हम निश्चित रूप से परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ अपने रिश्ते पर पुनर्विचार करेंगे. निरीक्षणों पर और प्रतिबंध लगाए जाएंगे.”
ईरानी संसद पहले ही कानून पास कर चुकी है कि अब परमाणु स्थलों पर निरीक्षण केवल राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की मंजूरी से हो सकेगा. इससे पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि निरीक्षकों की कमी का मतलब है कि ईरान क्या कर रहा है, यह दुनिया को पता नहीं चल पाएगा.
ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांति के लिए है, लेकिन पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी का मानना है कि 2003 तक उसके पास हथियार बनाने की योजना थी. अब जब उस पर नए प्रतिबंध लगाए गए हैं, तो वह रहस्य बनाए रखकर दुनिया पर दबाव डाल सकता है.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के अली वाएज ने रॉयटर्स से कहा, "युद्ध से पहले तक ईरान के पास अपनी परमाणु गतिविधियों के विस्तार का दबाव बनाने का हथियार था, अब उसकी सबसे बड़ी ताकत है उसका रहस्य. लेकिन यह बेहद जोखिम भरा दांव है.”
जनता पर बोझ और ईरान सरकार का सख्त रुख
कूटनीतिक दांव पेचों से परे आम लोगों को प्रतिबंधों की सख्त मार झेलनी होगी. आर्थिक दबाव ना केवल जेब पर असर डाल रहा है, बल्कि लोगों की मानसिक स्थिति भी खराब हो रही है. शाहिद बेहेश्ती विश्वविद्यालय की मनोवैज्ञानिक डॉ. सीमा फर्दौसी ने हमशहरी अखबार से कहा, "12 दिन के युद्ध से पैदा हुए मनोवैज्ञानिक दबाव और दूसरी तरफ बेलगाम महंगाई ने समाज को थका दिया है और लोगों का उत्साह खत्म कर दिया है.”
साल 2025 में ईरान में फांसी की सजा का आंकड़ा 1,000 से ऊपर पहुंच गया है, जिसे ओस्लो स्थिति ईरान ह्यूमन राइट्स संस्था और अब्दुर्रहमान बोरूमंद केंद्र ने पिछले तीन दशकों का सबसे बड़ा उछाल बताया है. यह दिखाता है कि सरकार जनता के असंतोष का जवाब और सख्ती से दे रही है.
आगे का रास्ता
पश्चिमी देश अब फिर से दबाव और बातचीत, दोनों का सहारा लेने की सोच रहे हैं. लेकिन रूस और चीन जैसे देशों की अलग राय के कारण ईरान पर दबाव डालना आसान नहीं होगा. दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र में आखिरी समय पर स्नैपबैक रोकने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे.
एक ई3 राजनयिक ने कहा, "आईएईए के साथ ईरान का सहयोग पहले से ही सीमित है. यह आगे और भी बिगड़ सकता है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह परमाणु अप्रसार संधिसे बाहर निकलेगा.” वह बताते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि चीन या रूस, ईरान की इस जल्दबाजी को स्वीकार करेंगे. वे कहते हैं, "... और अगर वे (रूस और चीन) ऐसा करते भी हैं, तो इस्राएल यह नहीं होने देगा.”