संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार स्वीकार किया है कि उसके कदमों से हैती में हैजा फैला. तो क्या यूएन पर हर्जाने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
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पांच साल के लंबे इनकार के बाद संयुक्त राष्ट्र को आखिर अपनी गलती माननी ही पड़ी. रिसर्चरों के मुताबिक 2010 में हैती की सबसे बड़ी नदी में हैजे के विषाणु फैले. नदी के पास यूएन शांति मिशन का अड्डा था. मिशन के सीवेज से निकले गंदे पानी को साफ नहीं किया गया. हैजे के विषाणु वाला गंदा पानी नदी में गया और देखते ही देखते पूरे हैती में हैजा फैल गया.
देश की सात फीसदी जनता को महामारी ने अपनी चपेट में लिया. कुल 8,00,000 लोग प्रभावित हुए. 9,200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, औसतन हर महीने 37 लोग मरे.
यूएन अब तक इन रिपोर्टों को खारिज करता रहा. लेकिन बीते कुछ दिनों से पीड़ितों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और यूएन के सलाहकारों ने रिपोर्ट और जबावदेही को लेकर दबाव बढ़ाया. हैजे के चलते जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों ने इस बीच अमेरिका में यूएन के खिलाफ मुकदमा दायर करने की कोशिश भी की. लेकिन किसी भी देश के कानून से कूटनीतिक छूट मिले होने के अधिकार के चलते ऐसा नहीं हो सका.
हैती में 2010 में भयानक भूकंप आया. आपदा के बाद राहत और बचाव के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वहां शांति मिशन भेजा. राहत और बचाव कार्य शुरू करने के कुछ ही दिन बाद देश में हैजा फैल गया. यूएन के उप प्रवक्ता फरहान हक ने गुरुवार को एक बयान जारी कर महामारी फैलाने में यूएन की भूमिका स्वीकार की.
पीड़ितों और उनके वकीलों ने यूएन के बयान का स्वागत किया है. हैती के मानवाधिकार अटॉर्नी मारियो जोसेफ ने कहा, "यह हैती के उन हजारों लोगों की जीत है जो न्याय के लिए मार्च निकाल रहे थे, यूएन को लिख रहे थे, उसे कोर्ट में ला रहे थे." जोसेफ 5,000 मृतकों के परिवार की तरफ से केस लड़ रहे हैं.
लेकिन इन कोशिशों के बावजूद यूएन पर मुकदमा नहीं चलेगा. गुरुवार को न्यूयॉर्क में अमेरिकी संघीय कोर्ट ने पीड़ितों की अपील खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि यूएन के पास इम्यूनिटी है. 2015 में निचली अदालत ने भी इसी आधार पर याचिका ठुकरा दी थी. अब पीड़ित पक्ष सिर्फ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से अपील कर सकते हैं. इसके लिए उनके पास 90 दिन का समय है.
इस बीच यूएन का कहना है कि भविष्य में ऐसी भूलों को टालने के लिए नई योजना बनाई जा रही है. दो महीने के भीतर इस योजना को सार्वजनिक किया जाएगा. लेकिन इस घटना के बाद दुनिया भर के प्रमुख अखबारों ने यूएन के काम करने के तरीके पर कई सवाल खड़े किए हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, हैजा फैलने के कुछ साल बाद यूएन ने वादा किया कि वह हैती में कुछ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाएगा और हैजे के विषाणु को खत्म करेगा. लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ है.
2012 में यूएन के महासचिव बान की मून ने हैती और पड़ोसी डोमिनिकन रिपब्लिक से हैजे के सफाये के लिए 2.27 अरब डॉलर के प्रोजेक्ट की पहल की. लेकिन इस 10 वर्षीय योजना के लिए यूएन अब तक पैसा नहीं जुटा सका है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल नंबवर तक यूएन सिर्फ 30.7 करो़ड़ डॉलर जमा कर सका.
(देखिये: अब तक के सबसे विनाशकारी भूकंप)
अब तक के सबसे विनाशकारी भूकंप
भूकंप, सबसे जानलेवा प्राकृतिक आपदाओं में से एक हैं. पृथ्वी के भीतर होने वाली ये शक्तिशाली भूगर्भीय हलचल अब तक करोड़ों लोगों की जान ले चुकी है. एक नजर, अब तक के सबसे जानलेवा भूकंपों पर.
तस्वीर: Reuters
शांशी, 1556
चीन के शांशी प्रांत में 1556 में आए भूकंप को मानव इतिहास का सबसे जानलेवा भूकंप कहा जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक रिक्टर स्केल पर करीब 8 तीव्रता वाले उस भूकंप से कई जगहों पर जमीन फट गई. कई जगह भूस्खलन हुए. भूकंप ने 8,30,000 लोगों की जान ली.
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तांगशान, 1976
चीन की राजधानी बीजिंग से करीब 100 किलोमीटर दूर तांगशान में आए भूकंप ने 2,55,000 लोगों की जान ली. गैर आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक मृतकों की संख्या 6 लाख से ज्यादा थी. 7.5 तीव्रता वाले उस भूकंप ने बीजिंग तक अपना असर दिखाया.
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हिंद महासागर, 2004
दिसंबर 2004 को 9.1 तीव्रता वाले भूकंप ने इंडोनेशिया में खासी तबाही मचाई. भूकंप ने 23,000 परमाणु बमों के बराबर ऊर्जा निकाली. इससे उठी सुनामी लहरों ने भारत, श्रीलंका, थाइलैंड और इंडोनेशिया में जान माल को काफी नुकसान पहुंचाया. सबसे ज्यादा नुकसान इंडोनेशिया के सुमात्रा द्पीव में हुआ. कुल मिलाकर इस आपदा ने 2,27,898 लोगों की जान ली. 17 लाख लोग विस्थापित हुए.
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अलेप्पो, 1138
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक सीरिया में आए उस भूकंप ने अलेप्पो को पूरी तरह झकझोर दिया. किले की दीवारें और चट्टानें जमींदोज हो गईं. अलेप्पो के आस पास के छोटे कस्बे भी पूरी तरह बर्बाद हो गए. अनुमान लगाया जाता है कि उस भूकंप ने 2,30,000 लोगों की जान ली.
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हैती, 2010
रिक्टर पैमाने पर 7 तीव्रता वाले भूकंप ने 2,22,570 को अपना निवाला बनाया. एक लाख घर तबाह हुए. 13 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा. हैती आज भी पुर्नर्निमाण में जुटा है.
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दमघान, 856
कभी दमघान ईरान की राजधानी हुआ करती थी. ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक करीब 12 शताब्दी पहले दमघान शहर के नीचे से एक शक्तिशाली भूकंप उठा. भूकंप ने राजधानी और उसके आस पास के इलाकों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया. मृतकों की संख्या 2 लाख आंकी गई.
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हैयुआन, 1920
चीन में आए करीब 7.8 तीव्रता वाले भूकंप के झटके हजारों किलोमीटर दूर नॉर्वे तक महसूस किये गए. भूकंप ने हैयुआन प्रांत में 2 लाख लोगों की जान ली. पड़ोसी प्रांत शीजी में भूस्खलन से एक बड़ा गांव दफन हो गया. लोगंदे और हुइनिंग जैसे बड़े शहरों के करीब सभी मकान ध्वस्त हो गए. भूकंप ने कुछ नदियों को रोक दिया और कुछ का रास्ता हमेशा के लिए बदल दिया.
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अर्दाबिल, 893
ईरान में दमघान के भूकंप की सिहरन खत्म भी नहीं हुई थी कि 37 साल बाद एक और बड़ा भूकंप आया. इसने पश्चिमोत्तर ईरान के सबसे बड़े शहर अर्दाबिल को अपनी चपेट में लिया. करीब 1,50,000 लोग मारे गए. 1997 में एक बार इस इलाके में एक और शक्तिशाली भूकंप आया.
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कांतो, 1923
7.9 तीव्रता वाले भूकंप ने टोक्यो और योकोहामा इलाके में भारी तबाही मचाई. पौने चार लाख से ज्यादा घरों को नुकसान पहुंचा. इसे ग्रेट टोक्यो अर्थक्वेक भी कहा जाता है. भूकंप के बाद चार मीटर ऊंची सुनामी लहरें आई. आपदा ने 1,43,000 लोगों की जान ली.
तस्वीर: Reuters
अस्गाबाद, 1948
पांच अक्टूबर 1948 को तुर्कमेनिस्तान का अस्गाबाद इलाका शक्तिशाली भूकंप की चपेट में आया. 7.3 तीव्रता वाले जलजले ने अस्गाबाद और उसके आस पास के गांवों को भारी नुकसान पहुंचाया. कई रेलगाड़ियां भी हादसे का शिकार हुईं. भूकंप ने 1,10,000 लोगों की जान ली.
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कश्मीर, 2005
भारत और पाकिस्तान के विवादित इलाके कश्मीर में 7.6 तीव्रता वाले भूकंप ने कम से कम 88 हजार लोगों की जान ली. सुबह सुबह आए इस भूकंप के झटके भारत, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान और चीन तक महसूस किए गए. पाकिस्तान में करीब 87 हजार लोगों की मौत हुई. भारत में 1,350 लोग मारे गए.
तस्वीर: AFP/Getty Images/T. Mahmood
सिंचुआन, 2008
87,000 से ज्यादा लोगों की जान गई. करीब एक करोड़ लोग विस्थापित हुए. 7.9 तीव्रता वाले भूकंप ने 10,000 स्कूली बच्चों की भी जान ली. चीन सरकार के मुताबिक भूकंप से करीब 86 अरब डॉलर का नुकसान हुआ.