यूएनएचसीआर ने कहा कि 20 लाख से अधिक शरणार्थियों को अगले साल एक स्थायी नया घर खोजने की जरूरत होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि वे न तो मौजूदा स्थान पर रह सकते हैं और न ही अपने मूल घरों में वापस लौट सकते हैं.
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यूएनएचसीआर की प्रवक्ता शाबिया मंटू ने इस साल के लिए शरणार्थियों की संख्या 14.7 लाख रखी है. उन्होंने कहा, "इस वृद्धि को महामारी के मानवीय प्रभावों, अलग-अलग जगह शरणार्थी स्थिति पैदा होने और पिछले एक साल में नई विस्थापन स्थितियों के उभार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है."
अधिकांश शरणार्थियों को स्थायी घरों में पुनर्वास की जरूरत है, वे फिलहाल अफ्रीकी देशों या मध्य पूर्व में हैं. इसके बाद सीरियाई शरणार्थी और अफगान इस श्रेणी में सबसे बड़ा समूह बनाते हैं. रिपोर्ट में उल्लेख किए गए अन्य देशों में डेमोक्रैटिक रिपब्लिकन ऑफ कांगो (डीआरसी), दक्षिण सूडान और म्यांमार हैं.
युद्ध से दूर बर्लिन के स्कूल में थोड़ी पढ़ाई, थोड़ी मस्ती करते यूक्रेनी बच्चे
यूक्रेन युद्ध के कारण लाखों लोगों ने देश छोड़कर यूरोपीय देशों में पनाह ली है. बर्लिन में भी हजारों की संख्या में लोग पहुंचे हैं. उनके बच्चे अब स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. देखिए, नए स्कूल में बच्चों की नई जिंदगी.
तस्वीर: Lisi Niesner/REUTERS
शरणार्थियों के लिए कक्षाएं
यूक्रेन से जर्मनी आने वाले शरणार्थियों के बच्चों के लिए राजधानी बर्लिन में एक खास योजना के तहत कक्षाएं शुरू की गईं हैं. बच्चे क्लास में आकर खुश नजर आ रहे हैं.
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तनाव से दूर
कैमिला नाम की इस लड़की के परिवार ने भी बर्लिन में शरण ली है. कैमिला एक नए देश में आकर स्कूली जीवन में वापसी कर खुश है. क्लास में गणित की पढ़ाई करती कैमिला.
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मिल गए नए दोस्त
क्लास में कैमिला को एक नई दोस्त मिल गई है. कैमिला की दोस्त का नाम सोफिया है. वह भी युद्ध के दौरान अपने परिवार के साथ बर्लिन चली आई थी. कैमिला और सोफिया अब साथ ही पढ़ना पसंद करते हैं.
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जर्मन स्कूलों के लिए तैयारी
शरणार्थी बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाने का एक साधन पढ़ाई भी है. बच्चे नए स्कूल में नए दोस्त बना रहे हैं और जर्मनी के स्कूलों के लिए तैयारी कर रहे हैं.
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मातृभाषा में शिक्षा
कई जर्मन वॉलंटियर्स यूक्रेन के शरणार्थियों के साथ खड़े होने के लिए आगे आए हैं. कई निजी संगठनों ने इस संबंध में पहल की है. 'आर्शे नोवा' नाम के संगठन ने यूक्रेनी बच्चों के लिए उनकी मातृभाषा में पढ़ाई का इंतजाम किया है, ताकि उनके लिए पढ़ाई करना आसान हो सके.
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शरणार्थी बच्चों की नई जिंदगी
ये बच्चे इस स्कूल में पढ़ने के बाद जर्मनी के रेगुलर स्कूलों में जाने के लिए तैयार हो जाएंगे और इस तरह से वे आसानी से नई संस्कृति को अपना पाएंगे.
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कम हुआ तनाव
बच्चों को पढ़ाने वाली एक टीचर ने बताया कि बच्चे अपने ही देश के अन्य बच्चों से मिलकर खुश हैं और इसका उन पर सकारात्मक असर हुआ है.
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जर्मन भाषा भी
बच्चों को यूक्रेनी भाषा में पढ़ाने के साथ-साथ जर्मन भाषा भी सिखाई जाएगी. कुछ वॉलंटियर्स ने इन बच्चों की पढ़ाई के लिए धन इकट्ठा किया और फिर स्कूल की शुरूआत हो गई. इसका प्रचार टेलीग्राम मैसेजिंग ऐप के जरिए भी किया गया.
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पढ़ाई के साथ एक्टिविटी भी
स्कूल में बच्चे हर दिन तीन घंटे बिताते हैं. इस दौरान वे पेंटिंग और हैंडीक्राफ्ट भी करते हैं.
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टीचर भी यूक्रेनी
बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर भी यूक्रेन से हैं और उन्हें दान के तौर 500 यूरो हर महीने दिया जाएगा, जब तक कि उनको जर्मनी में काम करने का परमिट ना मिल जाए. इस स्कूल में पढ़ाने वाली दो टीचर भी रूसी हमले के बाद देश से निकलकर जर्मनी आ गई थीं.
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इस पहल के पीछे कौन
36 साल की सेव्लिगेन खुद बर्लिन में शिक्षिका हैं और उनकी 31 साल की दोस्त कार्लित्सकी ने रिफ्यूजी क्लास शुरू करने के बारे में सोचा और इसे अंजाम तक पहुंचाया.
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संबंधित लोगों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है या खास देखभाल की जरूरत है, वर्तमान में जिस देश में वे रह रहे हैं वह प्रदान नहीं कर सकते हैं.
यूएनएचसीआर के मुताबिक पिछले पूरे साल में सिर्फ 39,266 पुनर्वास स्थान प्रदान किए गए थे, जिसमें अमेरिका और कनाडा सबसे स्थायी स्थानों की पेशकश करने वाले देशों में शामिल थे.
इसी महीने की 16 तारीख को यूएनएचसीआर ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा था दुनिया भर में करीब दस करोड़ लोग अपना घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर हुए हैं. बड़े पैमाने पर विस्थापन के लिए खाद्य असुरक्षा, जलवायु संकट, यूक्रेन में युद्ध और अफ्रीका से अफगानिस्तान तक अन्य आपात परिस्थितियों को मुख्य वजह बताया गया.
यूएनएचसीआर के अध्यक्ष फिलिपो ग्रांडी ने कहा था, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक साथ मिलकर मानव त्रासदी से निबटने, हिंसक टकरावों को सुलझाने और स्थायी समाधान ढूंढने के लिए कार्रवाई करनी होगी, या फिर ये भयावह रुझान जारी रहेगा."
यूएनएचसीआर के मुताबिक दुनिया में हर 78 में एक व्यक्ति विस्थापित है. उसने इसे एक ऐसा नाटकीय पड़ाव बताया है जिसके बारे में एक दशक पहले सोचना नामुमकिन था.
एए सीके (डीपीए, एएफपी)
मां की तलाश में शहर शहर भटकी छोटी अमाल
नौ साल की एक काल्पनिक सीरियाई लड़की के किरदार अमाल को दिखाती यह मूर्ति यूरोप में जगह जगह ‘भटक’ रही है.
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मां को तलाशती अमाल
अमाल एक किरदार है. सीरिया की एक आप्रवासी लड़की जिसे दक्षिण अफ्रीका की एक कंपनी ‘हैंड्स्प्रिंग पपेट’ ने विशाल कठपुतली का रूप दिया है. ‘द वॉक’ नाम से यह कठपुतली एक यात्रा पर निकली है. इस यात्रा में अमाल की अपनी मां को खोजने की कहानी बताई गई है, जो तुर्की से शुरू हुई.
तस्वीर: Eren Bozkurt/AA/picture alliance
वेटिकन में अमाल
‘द वॉक’ के जरिए उन बच्चों की मुश्किलात बयान की गई हैं, जिन्हें युद्ध या दूसरी वजहों से अपने घर छोड़कर जाना पड़ता है. अमाल की यात्रा उसे कई जगह ले जाती है. जैसे इस तस्वीर में आप उसे वेटिकन स्थित एंजल्स अनअवेयर्स को गले लगाते देख सकते हैं.
तस्वीर: Remo Casilli/REUTERS
पोप से मुलाकात
अमाल की मुलाकात ईसाई धर्मगुरु पोप से हो चुकी है. 10 सितंबर को पोप ने अमाल सहित कई आप्रवासी बच्चों से मुलाकात की थी.
तस्वीर: VATICAN MEDIA/REUTERS
रोम में तलाश जारी
अमाल जहां भी जाती है, लोग उसे बड़े प्यार से मिलते हैं. कुछ लोग उसे फूल देते हैं, कुछ हाथ मिलाते हैं तो कुछ उसके समर्थन में कागज पर दस्तखत भी करते हैं. रोम में 12 सितंबर को कई लोगों ने अमाल से मुलाकात की. इस कठपुतली को चलाने के लिए एक साथ चार कलाकार चलते हैं.
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यूरोपीय संसद
अमाल की यूरोप यात्रा का आयोजन क्लेयर बेंजामिन नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने किया है. वह दुनियाभर के बच्चों से कह रही हैं कि अमाल को पत्र लिखें और वे पत्र यूरोपीय संसद को दिए जाएंगे. ऐसे एक लाख पत्र जमा करने की योजना है.
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मिलान में मंचन
जहां भी अमाल जाती है, वहां एक शो आयोजित होता है. इस शो में विशाल कठपुतली परफॉर्म भी करती है. जैसे यहां आप एक कलाकार को अमाल के चेहरे को भाव देते देख सकते हैं.
तस्वीर: Piero Cruciatti/AA/picture alliance
जर्मनी के कोलोन में अमाल
अक्टूबर में अमाल जर्मनी के कोलोन पहुंची, जहां उसका भव्य स्वागत हुआ. लोग खूब सज धज कर आए थे और उन्होंने अमाल के साथ डांस भी किया. जर्मनी के बाद वह इंग्लैंड जाएगी.