संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने प्रवासी प्रजातियों पर एक रिपोर्ट जारी की है. इसमें सामने आया है कि कई प्रवासी जानवरों की संख्या तेजी से कम हो रही है, वहीं कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं.
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प्रवासी प्रजातियां हर साल अपने भोजन और प्रजनन के लिए यात्रा करती हैं. वे समुद्र और महाद्वीपों को पार करती हैं. कई बार ये प्रजातियां हजारों किलोमीटर की दूरी तय करती हैं.
इन प्रवासी प्रजातियों की स्थिति बताने वाली यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है. इसे सोमवार को उज्बेकिस्तान के समरकंद में हो रहे यूएन जैव विविधता सम्मेलन में पेश किया गया. ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन' (सीएमएस) ने इस रिपोर्ट को जारी किया.
चमगादड़ों के लिए उनकी अम्मा बन गई है यह महिला
पोलैंड में एक महिला चमगादड़ों को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए एक मां की तरह उनका ख्याल रखती हैं. ये चमगादड़ कई बार उनके कपड़ों में लिपटे हुए उनके साथ घर से बाहर भी चले जाते हैं.
तस्वीर: SERGEI GAPON/AFP
"चमगादड़ों की अम्मा"
69 साल की बारबरा गोरेका को स्थानीय लोग "बैट मम" यानी चमगादड़ों की अम्मा कहने लगे हैं. नौकरी से रिटायर होने के बाद से यह पोलिश महिला अपना पूरा समय बीमार चमगादड़ों की देखभाल में बिताती हैं.
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1,600 से ज्यादा चमगादड़
आवासीय इमारत की नौंवीं मंजिल पर बने अपार्टमेंट में गोरेका ने चमगादड़ों का एक तरह से अभयारण्य बना रखा है. यहां पर वो खुद भी रहती हैं और उनके मुताबिक अब तक उन्होंने 1,600 से ज्यादा चमगादड़ों की देखभाल की है.
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16 सालों से चला आ रहा है सिलसिला
चमगादड़ों की देखभाल का यह सिलसिला 16 साल पहले शुरू हुआ जब उनके अपार्टमेंट के वेंटिलेशन डक्ट से चमगादड़ निकलने लगे. इस समय उनके अपार्टमेंट में करीब 3 दर्जन चमगादड़ रहते हैं जो बीमार, घायल या फिर समय से पहले हाइबरनेशन से बाहर आ गए हैं.
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जलवायु परिवर्तन का असर
गोरेका का कहना है कि चमगादड़ों पर जलवायु परिवर्तन के असर और उनके घर में पलते चमगादड़ों की बढ़ती संख्या के बीच सीधा संबंध है. वैज्ञानिक भी बताते हैं कि बढ़ती रोशनी, शोर और गर्मी की वजह से चमगादड़ों का जीवन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है. उन्हें अकसर भोजन भी नहीं मिलता.
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चमगादड़ों से डर नहीं लगता
गोरेका ने बताया कि पहले उन्हें भी चमगादड़ों से जुड़ी भ्रांतियों और बीमारियों का डर था. बाद में उन्होंने जीवविज्ञानियों से इस बारे में बात की और यह जान गईं कि ऐसी कोई समस्या नहीं है और इनके साथ भी रहा जा सकता है.
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चमगादड़ों की देखभाल
उनके अपार्टमेंट में रहने वाले हर चमगादड़ को एक नाम मिलता है. उन्हें समय पर खाना और दवाइयां दी जाती हैं साथ ही उनकी दूसरी जरूरतों का भी ख्याल रखा जाता है. कुछ चमगादड़ उनके यहां हफ्ते दो हफ्ते रह कर वापस चले जाते हैं लेकिन जिनके शरीर में टूट फूट हुई हो या कोई और बीमारी तो वो ज्यादा समय तक उनके मेहमान बनते हैं.
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चमगादड़ों के लिए वॉलंटियर
गोरेका ना सिर्फ खुद ये काम कर रही हैं बल्कि अभयारण्य के लिए दूसरे वॉलंटियरों को भी तैयार कर रही हैं. ये चमगादड़ों की देखभाल में उनकी मदद करते हैं. छोटे बच्चों तो खासतौर से इसमें काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
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चमगादड़ों के बारे में जागरुकता
गोरेका इन चमगादड़ों को लेकर स्कूल में बच्चों के पास भी जाती हैं और उन्हें इनके बारे में जानकारी देती हैं. उनका मकसद है बच्चों को धरती के लिए जरूरी इन जीवों के बारे में बताना और जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे भारी नुकसान के बारे में आगाह करना.
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सीएमएस संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संधि है, जो प्रवासी जानवरों और उनके आवास के संरक्षण के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करती है. इसके तहत दुनियाभर की प्रवासी प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक सीएमएस में सूचीबद्ध प्रजातियों में से लगभग आधी (44 फीसदी) की आबादी में पहले ही स्पष्ट गिरावट देखी जा चुकी है जबकि, मछलियों की लगभग सभी सूचीबद्ध प्रजातियां (97 फीसदी) विलुप्त होने के कगार पर हैं.
क्यों जरूरी हैं प्रवासी प्रजातियां?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा, "यह रिपोर्ट दिखाती है कि अस्थिर मानवीय गतिविधियां प्रवासी प्रजातियों के भविष्य को खतरे में डाल रही हैं. प्रवासी प्रजातियां पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन के बारे में बताती हैं. साथ ही धरती के जटिल पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य और लचीलेपन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं.”
जैव विविधता से मिलने वाले आंतरिक लाभों के साथ-साथ, प्रवासी प्रजातियां वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. वे अक्सर पौधों को पॉलिनेट करती हैं और कीटों का शिकार करती हैं. इसके अलावा प्रमुख पोषक तत्वों का परिवहन करने और कार्बन भंडारण में भी मदद करती हैं.
बड़े खतरे कौन से हैं?
रिपोर्ट कहती है कि प्रवासी प्रजातियों के लिए सबसे बड़े खतरे इंसानी गतिविधियों से पैदा होते हैं. जैसे कि उनके प्राकृतिक आवास का खत्म होना और अत्यधिक दोहन होना.
बांध सूखा तो उबर आया 400 साल पुराना चर्च
मेक्सिको में बांध का पानी इतना नीचे चला गया कि 16वीं सदी का एक चर्च नजर आने लगा.
तस्वीर: Jose de Jesus Cortes/REUTERS
16वीं सदी का चर्च
ओहाका घाटी के बेनितो हुआरेज बांध में पानी इतना नीचे चला गया है कि यह चर्च दिखाई दे रहा है.
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अशुभ का संकेत
मेक्सिको के इस चर्च का दिखना लोगों को अब अशुभ लगने लगा है. इतना पानी सूखने का मतलब है कि सूखा पड़ने वाला है.
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मछुआरे परेशान
बांध के पास हालापा डेल मार्केज कस्बे में रहने वाले आलेहांद्रो ओलिवारा कहते हैं कि बांध में कम पानी का मतलब है खराब फसल और कम मछलियां.
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अब सूखा पड़ेगा
ओलिवारा कहते हैं, “जब यह चर्च उबर के आता है तो हम सूखे के बारे में सोचने लगते हैं क्योंकि पानी कम हो गया है. हम मछली पकड़ते हैं इसलिए जानते हैं कि अब मछलियां कम हो जाएंगी. जब बांध भरा होता है तो मछली पकड़ने के लिए बहुत सी जगह होती हैं.”
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कम बारिश का नतीजा
स्थानीय लोग बताते हैं कि बांध में पानी इसलिए कम हुआ है क्योंकि हाल के सालों में बारिश बहुत कम हुई है. जनवरी में ही पानी 47 फीसदी कम हो गया.
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बढ़ रहा है सूखा
मेक्सिको में हाल के सालों में सूखा पड़ने की बारंबारता बढ़ी है, खासकर ओहाका घाटी में. 2022 में देश का 85 फीसदी हिस्सा सूखे से ग्रस्त था.
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कन्वेंशन में सूचीबद्ध प्रजातियों में से 75 फीसदी अपने प्राकृतिक आवास में गिरावट, विखंडन और नुकसान होने से प्रभावित हुईं. इन प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण, निगरानी वाली 58 फीसदी जगहें मानव-जनित दबाव के अस्थिर स्तर का सामना कर रही थीं.
अत्यधिक दोहन होने के चलते कन्वेंशन में सूचीबद्ध 70 फीसदी प्रजातियां प्रभावित हुईं. अत्यधिक दोहन का मतलब जानबूझकर होने वाले शिकार, मछली पकड़ने और आकस्मिक कब्जे से है.
इन सबके अलावा जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियों ने भी प्रवासी प्रजातियों को प्रभावित किया है.
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय से क्या उम्मीद?
रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आह्वान किया गया है कि प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण को मजबूत करने और उन्हें गंभीर संकट से बाहर निकालने के लिए कदम उठाए जाएं.
सीएमएस के कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल कहते हैं, "जब ये प्रजातियां दूसरे देशों में जाती हैं, तो इनका जीवित रहना उन देशों के प्रयासों पर निर्भर करता है. यह ऐतिहासिक रिपोर्ट, दुनियाभर में प्रवासी प्रजातियों के फलने-फूलने के लिए जरूरी नीतिगत कार्रवाइयों को रेखांकित करने में मदद करेगी.”
इस रिपोर्ट में कई नीतिगत सुझाव भी दिए गए हैं. मसलन, प्रवासी प्रजातियों के रहवास पर अवैध और अस्थिर कब्जे से निपटने के लिए प्रयास बढ़ाना, ऐसी प्रजातियों के लिए जरूरी जगहों की सुरक्षा और प्रबंधन बढ़ाना और विलुप्त होने का खतरा झेल रहीं प्रजातियों पर आए संकट पर तत्काल ध्यान देना.
एयरपोर्ट पर 130 जहरीले मेंढक
कोलंबिया में एयरपोर्ट पर एक महिला के पास 130 मेंढक पकड़े गए. ये नन्हे लेकिन बेहद जहरीले मेंढक चुराकर ले जाए जा रहे थे.
तस्वीर: Bogota Environment Secretary/REUTERS
बैग में जहरीले मेंढक
बोगोटा की पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक महिला को गिरफ्तार किया. ब्राजील की रहने वाली इस महिला के पास प्लास्टिक के 130 जार थे, जिनमें मेंढक थे.
तस्वीर: Bogota Environment Secretary/REUTERS
लुप्तप्राय प्रजाति
ये मेंढक लुप्त हो जाने के मुहाने पर खड़ी ऊफागा हिस्ट्रियोनिका प्रजाति के हैं. महिला ने कहा कि वह इन्हें अपने आदिवासी दोस्तों को तोहफे में देने के लिए ले जा रही है.
तस्वीर: Bogota Environment Secretary/REUTERS
रंग-बिरंगे मेंढक
ऊफागा प्रजाति के ये मेंढक बेहद खूबसूरत होते हैं. अपने रंग-बिरंगे शरीर के लिए मशहूर ये मेंढक उमस भरे जंगलों में पाए जाते हैं और दुनिया की सबसे घातक प्रजातियों में से हैं.
तस्वीर: Bogota Environment Secretary/REUTERS
130 मेंढक
अधिकारियों ने कहा कि महिला के पास 130 मेंढक थे जिन्हें छिपाकर ले जाया जा रहा था. इन्हें जिन डिब्बों में रखा गया था, उनमें हवा आने-जाने का कोई जरिया नहीं था इसलिए मेंढकों का दम घुट रहा था.
तस्वीर: Bogota Environment Secretary/REUTERS
1,000 डॉलर तक कीमत
एग्जॉटिक जानवरों के संग्रह का शौकीन रखने वाले इन मेंढकों के लिए एक हजार डॉलर यानी लगभग 90 हजार रुपये तक देते हैं. इसलिए इनकी खूब तस्करी होती है. पहले भी इन मेंढकों को चुराने वाले पकड़े गए हैं.
तस्वीर: Bogota Environment Secretary/REUTERS
अस्पताल में देखभाल
दम घुटने से लगभग बेहोश हो चुके इन मेंढकों को फौरन अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका इलाज किया गया. अधिकारियों ने कहा कि कुछ घंटे और ना मिलते तो इन मेंढकों की मौत हो जाती.
तस्वीर: Bogota Environment Secretary/REUTERS
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रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई की बढ़ती मांग को भी जोड़ा गया है. साथ ही सीएमएस की सूची में और भी प्रजातियों को जोड़ने की जरूरत पर भी प्रकाश डाला गया है.
समरकंद में हो रहे सीएमएस सम्मेलन में दुनियाभर के नेता जुटेंगे. यहां उनके पास महत्वपूर्ण प्रजातियों के संरक्षण में काम आ सकने वाली प्रथाओं पर सहमत होने का मौका होगा.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक एंडरसन कहते हैं, "वैश्विक समुदाय के पास मौका है कि वे दबाव झेल रहीं प्रवासी प्रजातियों के लिए ठोस संरक्षण योजना बनाएं. इनमें से कई जानवरों की खतरनाक स्थिति को देखते हुए हम देरी नहीं कर सकते. इन सुझावों को वास्तविकता में बदलने के लिए सभी को मिलकर काम करना चाहिए."