यूएन में चीन की बड़ी जीत, भारत ने भी नहीं किया विरोध
७ अक्टूबर २०२२
चीन को संयुक्त राष्ट्र में उस वक्त बड़ी जीत मिली जब उसके खिलाफ पहली बार आया एक प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया. भारत समेत कई देशों ने चीन के खिलाफ वोट नहीं किया.
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संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों के लिए सबसे बड़ी संस्था में चीन को उस वक्त मामूली अंतर से लेकिन बड़ी जीत मिली जब उसके शिनजियांग प्रांत में मानवाधिकार उल्लंघन पर चर्चा का प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया. ब्रिटेन, तुर्की, अमेरिका और कुछ अन्य पश्चिमी देशों ने इस विषय पर बहस का प्रस्ताव रखा था, जिसके तहत उइगुर मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे कथित शोषण पर अगले साल मार्च में आयोजित सत्र में बात होनी थी.
संयुक्त राष्ट्र की 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद में 17 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जबकि 19 ने विरोध में. 11 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया.
इस्लाम के रास्ते से मुसलमानों को हटाता चीन
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
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बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
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यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
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आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
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क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
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इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
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कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
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धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
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नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
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लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
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गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
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खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.
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अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता तो पहली बार चीन के कथित मानवाधिकार उल्लंघनों पर अंतरराष्ट्रीय संस्था में चर्चा होती. लेकिन चीन इस परीक्षा को पास करने में कामयाब रहा और उसने दिखाया कि कैसे खासकर अफ्रीकी और एशियाई देशों पर उसका प्रभाव है. जब मतदान के नतीजों का ऐलान हुआ तो सदस्यों ने तालियां बजाकर स्वागत किया.
कामयाब रहा चीन
इस प्रस्ताव पर मतदान से पहले जेनेवा में कई दिनों तक जमकर राजनीति और कूटनीति हुई. पश्चिमी देशों ने अफ्रीकी और अन्य देशों को अपनी तरफ लाने की भरसक कोशिशें की. इस प्रस्ताव का आधार मानवाधिकार परिषद प्रमुख मिशेल बैचलेट के दफ्तर द्वारा 31 अगस्त को जारी एक रिपोर्ट थी जिसमें कहा गया था कि शिनजियांग में ‘मानवता के विरुद्ध' अपराध हुए हैं.
प्रस्ताव को पारित होने के लिए सामान्य बहुमत की जरूरत थी लेकिन चीन अपने कई साथियों के अलावा कुछ ऐसे देशों को भी अपने पक्ष में लाने में कामयाब रहा, जिसकी पश्चिमी देशों को उम्मीद नहीं थी. इनमें कई अफ्रीकी देश, मध्यू पूर्व के देश जैसे कतर और यूएई आदि शामिल रहे. सोमालिया एकमात्र ऐसा अफ्रीकी देश था जिसने चीन का साथ नहीं दिया. अर्जेंटीना, ब्राजील, भारत, मलेशिया, मेक्सिको और यूक्रेन ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया, जिसका फायदा चीन को मिला.
विश्व उइगुर कांग्रेस की अध्यक्ष डोल्कुन ईसा ने एक बयान में कहा कि दुनिया ने बड़ा मौका खो दिया. उन्होंने कहा, "चीन को अन्य देशों के बराबर मानकों पर परखने का एक मौका परिषद के सदस्य देशों ने खो दिया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय उइगुर जनसंहार के पीड़ितों से मुंह नहीं मोड़ सकता.” हालांकि मानवाधिकार परिषद ने अपनी रिपोर्ट में इसे जनसंहार नहीं कहा था लेकिन कई देश इस शब्द का इस्तेमाल करते रहे हैं.
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‘चूक गई परिषद'
मानवाधिकार परिषद की स्थापना 16 साल पहले हुई थी और तब से हर साल इसके सदस्य बदलते रहते हैं. लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य चीन के खिलाफ कभी भी इस परिषद में कोई प्रस्ताव पास नहीं हो पाया है. जो प्रस्ताव पश्चिमी देशों ने पेश किया था उसमें सिर्फ बहस की बात थी. चीन की निगरानी आदि का प्रस्ताव नहीं था जबकि काउंसिल चाहे तो प्रस्ताव पास कर ऐसा भी कर सकती है. यहां तक कि प्रस्ताव में जांचकर्ताओं का एक दल बनाने या इस मुद्दे पर विशेष दूत नियुक्त करने तक की मांग भी प्रस्ताव में शामिल नहीं थी.
चीन के उइगुर मुसलमान
चीन में रहने वाले उइगुर मुसलमान न तो दाढ़ी रख सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं. चीन सरकार के नए नियमों के मुताबिक उन पर कई बंदिशें लगाई गई हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं उइगुर लोग.
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नए नियम, नयी बंदिशें
उइगुर चीन में रहने वाला एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय है. ये लोग सांस्कृतिक रूप से खुद को चीन के मुकाबले मध्य एशियाई देशों के ज्यादा करीब पाते हैं. मुख्यतः चीन के शिनचियांग प्रांत में रहने वाले उइगुर लोग न तो सार्वजनिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं.
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धार्मिक कट्टरपंथ
नए सरकारी नियमों के मुताबिक मस्जिद में जाने के लिए व्यक्ति को कम से 18 साल का होना चाहिए. इसके अलावा अगर कोई सार्वजनिक जगह पर धार्मिक उपदेश देता दिखा तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसके अलावा धार्मिक रीति रिवाज से शादी और अंतिम संस्कार को भी धार्मिक कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है.
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शक और संदेह
उइगुर लोग शिनचियांग में सदियों से रह रहे हैं. 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने अपने इलाके को पूर्वी तुर्केस्तान नाम देते हुए आजादी की घोषणा की थी. लेकिन 1949 में माओ त्सेतुंग ने ताकत के साथ वहां चीनी शासन लागू कर दिया. उसके बाद से चीन और उइगुर लोगों के संबंध संदेह और अविश्वास का शिकार हैं.
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बदल गया समीकरण
शिनचियांग पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीन की सरकार ने देश के अन्य हिस्सों से हान चीनियों को वहां ले जाकर बसाया है. 1949 में शिनचियांग में हान आबादी सिर्फ छह प्रतिशत थी जो 2010 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. शिनचियांग के उत्तरी हिस्से में उइगुर लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं.
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'अच्छे' मुसलमान
चीन में उइगुर अकेला मुस्लिम समुदाय नहीं है. हुई मुस्लिम समुदाय को भाषा और सांस्कृतिक लिहाज से हान चीनियों के ज्यादा नजदीक माना जाता है. उन्हें अधिकार भी ज्यादा मिले हुए हैं. अपनी मस्जिदें और मदरसे बनाने के लिए उन्हें चीन की सरकार से मदद भी मिलती है.
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आतंकवाद और अलगाववाद
शिनचियांग की आजादी के लिए लड़ने वाले गुटों में सबसे अहम नाम ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट का है. इसके अलावा तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी भी है जिस पर अल कायदा से संबंध रखने के आरोप लगते हैं. इस गुट को शिनचियांग में हुए कई धमाकों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है.
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समृद्धि का दायरा
शिनचियांग क्षेत्रफल के हिसाब से चीन का सबसे बड़ा प्रांत हैं और यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है. कभी सिल्क रूट का हिस्सा रहे इस इलाके में चीन बड़ा निवेश कर रहा है. लेकिन उइगुर लोग चीन की चमक दमक और समृद्धि के दायरे से बाहर दिखाई देते हैं.
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असमानता
हाल के बरसों में शिनचियांग में उइगुर और हान चीनियों के बीच असमानता बढ़ी है. वहां हो रहे तेज विकास के कारण चीन भर से शिक्षित और योग्य हान चीनी पहुंच रहे हैं. उन्हें अच्छी नौकरियां और अच्छे वेतन मिल रहे हैं. वहीं उइगुर लोगों के लिए उतने मौके उलब्ध नहीं हैं.
(रिपोर्ट: रिज्की नुग्रहा/एके)
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मतदान से पहले संयुक्त राष्ट्र में चीन के दूत चेन शू ने कहा कि उनका देश इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करता है. उन्होंने पश्चिम देशों पर अपने यहां हो रहे कथित मानवाधिकार उल्लंघनों पर आंखें मूंदकर दूसरों पर उंगली उठाने का आरोप लगाया. उन्होंने जोर देकर कहा कि चीन ने बैचलेट की रिपोर्ट का समर्थन नहीं किया है और यह एक बुरी मिसाल है.
अमेरिकी दूत मिशेल टेलर ने कहा कि बहस की मांग मात्र ‘चर्चा का एक निष्पक्ष मंच' उपलब्ध कराने के लिए थी. उन्होंने कहा, "यहां मौजूद किसी भी देश में मानवाधिकार की निर्दोष स्थिति नहीं है. कोई भी देश, चाहे वह कितना भी ताकतवर हो, परिषद की चर्चा से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए. इसमें मेरा देश अमेरिका भी शामिल है और चीन भी.”
मानवाधिकार संगठन निराश
मानवाधिकार संगठन चीन पर आरोप लगाते रहे हैं कि उसने शिनजियांग इलाके के करोड़ों मूल अल्पसंख्य निवासियों को हिरासत कैंपों में बंद कर रखा है और उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं. इन संगठनों का दावा है कि उइगुर मुसलमान और अन्य अल्पसंख्यकों को उनका धर्म और भाषा छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है और प्रताड़ित किया जा रहा है. कहा जाता है कि चीन शिनजियांग में अतिवाद के खिलाफ अभियान के तहत लोगों का दमन कर रहा है.
जला दिए हिजाब
सीरिया में सैकड़ों महिलाओं ने अपने हिजाब जला दिए. अपना गुस्सा जाहिर करतीं कुछ महिलाओं ने बाल भी काटे.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
गुस्से में महिलाएं
उत्तरी सीरिया के कुर्द-नियंत्रित इलाके में महिलाओं ने कुछ इस तरह अपना गुस्सा जाहिर किया.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
महसा अमीनी के लिए
ये महिलाएं ईरान में महसा अमीनी की मौत पर क्रोधित हैं. महसा अमीनी भी कुर्द थीं.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
हक की बात
सीरिया में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था कोंगरा स्टार की सदस्य अरवा अल-सालेह ने कहा कि वे ईरान में विरोध कर रहीं महिलाओं के समर्थन में सड़क पर उतरी हैं.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
कैसे हुई अमीनी की मौत?
22 साल की महसा अमीनी की हाल ही में नैतिक-पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद मौत हो गई थी. हालांकि ईरानी अधिकारियों का कहना है कि अमीनी के साथ कोई ज्यादती नहीं की गई थी.
तस्वीर: Orhan Qereman/REUTERS
दुनियाभर में विरोध
दुनियाभर की महिलाओं में अमीनी की मौत पर गुस्सा है. ईरान में भी इस घटना के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY via REUTERS
ईरान में भारी विरोध
अमीनी को नैतिक पुलिस ने इसलिए पकड़ा था क्योंकि उन्होंने हिजाब नहीं पहना था. अब विरोधस्वरूप ईरान और दुनिया के अन्य हिस्सों में महिलाएं हिजाब जलाकर विरोध जता रही हैं.
तस्वीर: Andre Penner/AP/picture alliance
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परिषद में प्रस्ताव गिरने पर कई मानवाधिकार संगठनों ने निराशा जाहिर करते हुए इस मुद्दे पर लगातार काम करते रहने की बात कही. एमनेस्टी इंटरनेशनल की महासचिव ऐग्नेस कैलामार्द ने कहा, "आज का मतदान पीड़ितों के बजाय मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले शोषक की रक्षा करता है. यह एक निराशाजनक नतीजा है जो दिखाता है कि काउंसिल ने अपनी ही रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया.”
कैलामार्द ने चीन के खिलाफ मतदान ना करने वाले देशों को परिषद की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का दोषी बताया. उन्होंने कहा, "30 देशों की चुप्पी, बल्कि चीनी सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचार पर बहस को ना होने देना, मानवाधिकार काउंसिल की छवि को और धूमिल करता है.”