संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने विभिन्न देशों से आग्रह किया है कि दासता और साम्राज्यवाद की विरासत और नस्लवादी भेदभाव की प्रतिक्रिया स्वरूप क्षतिपूर्ति के लिए कदम उठाए जाने चाहिए.
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दुनियाभर में फैले नस्लवाद और अफ्रीकी मूल के लोगों पर इसके असर के बारे में एक रिपोर्ट पेश करते हुए मिशेल बैचलेट ने कहा कि वित्तीय और अन्य माध्यमों से क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए. 2020 में एक श्वेत अमेरिकी पुलिस अफसर द्वारा एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या किए जाने के बाद इस अध्ययन की मांग उठी थी.
अध्ययन में एक भी ऐसा मामला नहीं मिला जबकि किसी देश ने अपने बीते वर्षों में किए गए कृत्यों को पूरी तरह से स्वीकार किया हो या अफ्रीकन लोगों पर हुए असर को पूरी तरह से समझा ही हो. ऐसा तब है जबकि कुछ देशों ने माफी मांगी है, कुछ अपील जारी हुई हैं और कुछ स्मारक भी बनाए गए हैं.
अमेरिका ने किया रिपोर्ट का स्वागत
बैचलेट ने सिफारिश की है कि विभिन्न देश एक "विस्तृत प्रक्रिया तैयार करें, उसे लागू करें और उसके लिए धन उपलब्ध करवाएं” जो इतिहास में हुए कृत्यों और उनकी वजह से आज तक हो रहे प्रभावों की पूरी सच्चाई उजागर करे. उन्होंने कहा, "इसमें प्रभावित समुदायों की भागीदारी होनी चाहिए.”
बैचलेट ने कहा कि यह प्रक्रिया हमारे समाजों के घाव भरने में और खौफनाक अपराधों के लिए न्याय करने में बहुत अहम साबित होगी.
तस्वीरों मेंः नस्ली दंगों का इतिहास
अमेरिका में नस्लीय नफरत से भड़के दंगों का इतिहास
अमेरिका वैसा नहीं है जैसा हॉलीवुड की ज्यादातर फिल्में दिखाती हैं. अमेरिका अपने ही भीतर त्वचा के रंग को लेकर संघर्ष करने वाला देश भी है. एक नजर बीते 60 साल में अमेरिका में हुए दंगों पर.
तस्वीर: picture-alliance/AA/I. Tayfun Salci
अगस्त 1965
लॉस एजेंलिस शहर में पुलिस ने आईडेंटिटी चेक के लिए दो अश्वेत पुरुषों को रोका और फिर उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाया गया. पुलिस पर आरोप लगा कि उसने ऐसा नस्लीय घृणा के चलते किया. इसके बाद 11-17 अगस्त तक शहर के एक हिस्से में भयानक दंगे हुए. 34 लोगों की मौत हुई.
तस्वीर: AFP
जुलाई 1967
दो श्वेत पुलिस अधिकारियों ने एक मामूली ट्रैफिक नियम उल्लंघन के लिए एक अश्वेत टैक्सी ड्राइवर को गिरफ्तार किया और पीटा. इसके बाद नेवार्क में 12-17 जुलाई तक दंगे हुए. 26 लोगों की मौत हुई और 1,500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए. इसके हफ्ते भर बाद डेट्रॉएट और मिशीगन में भी दंगे हुए, वहां 43 लोग मारे गए और 2,000 से ज्यादा घायल हुए.
तस्वीर: AFP
अप्रैल 1968
मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद टेनेसी में हिंसा भड़ गई. 4-11 अप्रैल तक चले इन दंगों में 46 लोग मारे गए और 2,600 से ज्यादा घायल हुए. हिंसा इस कदर भड़की कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन को दंगा रोकने के लिए सेना भेजनी पड़ी.
तस्वीर: AFP
मई 1980
दिसंबर 1979 में चार श्वेत पुलिस अधिकारियों पर एक अश्वेत मोटरसाइकिल सवार को पीट पीटकर मार डालने का आरोप लगा. सुनवाई के बाद मई में पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया गया. इससे नाराज अश्वेत समुदाय ने मियामी लिबर्टी सिटी में भारी हिंसा की. चार दिन के दंगों में 18 लोग मारे गए.
तस्वीर: AFP
अप्रैल 1992
लॉस एंजेलिस के दंगों में 59 लोग मारे गए. अश्वेत कार चालक की पिटाई के वीडियो बनाने वाले श्वेत पुलिस अधिकारियों की रिहाई की वजह से ये दंगे हुए. यह दंगे अटलांटा, कैलिफोर्निया, लॉस वेगस, न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को और सैन जोस में भी फैले.
तस्वीर: picture-alliance/AP/K. Djansezian
अप्रैल 2001
19 साल के अश्वेत युवक टिमोथी थॉमस को एक पुलिस अधिकारी ने मार डाला. इसके बाद सिनसिनैटी शहर में दंगे भड़क उठे. चार रातों तक शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा.
तस्वीर: AFP/D. Maxwell
अगस्त 2014
श्वेत पुलिस अधिकारी के हाथों एक निहत्थे अश्वेत किशोर की मौत के बाद फर्गुसन शहर में दंगे हुए. 9-19 अगस्त तक हुई हिंसा में काफी आर्थिक नुकसान हुआ. नवंबर में आरोपी पुलिस अधिकारी से हत्या की धाराए हटाने के बाद शहर में फिर तनाव लौट आया.
तस्वीर: AFP/S. Olson
अप्रैल 2015
25 साल के अश्वेत युवा फ्रेडी ग्रे को गिरफ्तार करते समय पुलिस ने इतनी ताकत लगाई कि युवक की पुलिस वैन में मौत हो गई. फ्रेडी की गिरफ्तारी का वीडियो भी सामने आया. वीडियो के प्रसारित होने के बाद बाल्टीमोर में भारी हिंसा हुई जिसके इमरजेंसी लगानी पड़ी.
तस्वीर: Reuters/M. Stone
सितंबर 2016
पुलिस फायरिंग में 43 साल के कीट लैमॉन्ट स्कॉट की मौत के बाद शारलोटे शहर में दंगे हुए. प्रशासन को हिंसा रोकने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना बुलानी पड़ी.
तस्वीर: AFP/S. Rayford
मई 2020
मिनियापोलिस शहर में पुलिस अधिकारियों ने जॉर्ज फ्लॉएड नाम के एक अश्वेत शख्स को गिरफ्तार किया. गिरफ्तारी के दौरान फ्लॉएड ने पुलिस को अपनी बीमारी के बारे में बताया. इसके बावजूद पुलिस अधिकारियों ने उन पर ताकत आजमाई. फ्लॉएड की मौके पर ही मौत हो गई. उनकी मौत के एक दिन बाद से ही अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में प्रदर्शन हो रहे हैं. ओएसजे/एके (एएफपी)
तस्वीर: picture-alliance/AA/I. Tayfun Salci
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जेनेवा में अमेरिका के उप-राजदूत बेन्जामिन मोएलिंग ने इस ‘गहरी और बेबाक' रिपोर्ट का स्वागत किया है. काउंसिल को भेजे एक वीडियो संदेश में मोएलिंग ने कहा, "अमेरिका घर के अंदर और बाहर, दोनों ही जगह इन चुनौतियों को हल कर रहा है. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ नस्लवादी भेदभाव और पुलिस द्वारा जरूरत से ज्यादा बल इस्तेमाल किए जाने के पीछे की वजहों को दूर किया जा रहा है.”
दासता और सामाजिक व न्यायिक भेदभाव की क्षतिपूर्ति करने के विचार पर अमेरिका में बहस जारी है.
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क्या कहती है रिपोर्ट?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने यह रिपोर्ट विस्तृत अध्ययन के बाद तैयार की है. बैचलेट ने कहा कि उन्होंने पुलिस द्वारा कत्ल किए गए अफ्रीकी मूल के लोगों के परिवारों से मुलाकात की. 340 से ज्यादा लोगों से बातचीत की गई, जिनमें से ज्यादातर अफ्रीकी मूल के थे. विभिन्न देशों और पक्षों से 110 लिखित प्रतिक्रियाएं भी मिलीं.
बैचलेट ने बताया कि इस रिपोर्ट में जाहिर होता है कि अफ्रीकी मूल के लोगों को जिंदगी के हर पहलू में भेदभाव से गुजरना पड़ता है, जिसकी शुरुआत बचपन में ही हो जाती है. उन्होंने कहा, "अफ्रीकी मूल के बच्चों को अक्सर स्कूलों में भेदभाव सहना पड़ता है. उनकी शिक्षा के नतीजे प्रभावित होते हैं और बहुत बार तो कम उम्र से ही उनसे अपराधियों की तरह सलूक किया जाता है.”
देखिए, विवादित विज्ञापन
विवादित विज्ञापन जिनसे हुए बड़े विवाद
लोगों का ध्यान खींचने के लिए विज्ञापन जगत क्या क्या नहीं करता. लेकिन क्रिएटिव होने चक्कर में कभी कभार बड़ी गलतियां भी हो जाती है. एक नजर ऐसी गलतियों से विवाद खड़ा करने वाले विज्ञापनों पर.
बेनेटन कंपनी ने 2011 में अनहेट नाम का अभियान चलाया. इस अभियान के तहत टेक्सटाइल कंपनी ने पोप बेनेडिक्ट 16 और मिस्र की अल अजहर मस्जिद के शेख को चूमते हुए दिखाया. वैटिकन की मुकदमे की धमकी के बाद इस विज्ञापन को वापस लेना पड़ा.
स्वीडन की फैशन चेन H&M ने हूडी के विज्ञापन में एक अश्वेत बच्चे को दिखाया. हूडी में लिखा हुआ था, "जंगल का सबसे कूल मंकी." इस विज्ञापन पर ऐसा विवाद हुआ कि दक्षिण अफ्रीका में H&M के कुछ स्टोर बंद हो गए. बाद में कंपनी ने माफी मांगते हुए विज्ञापन वापस लिया.
तस्वीर: picture-alliance/AP/H&M
गोरे रंग की चाह
चीन की एक कंपनी ने अपने वॉशिंग पाउडर ने विज्ञापन से विवाद खड़ा कर दिया. विज्ञापन में दिखाया गया कि एक लड़की अश्वेत युवक को वॉशिंग मशीन में डालती है और कंपनी का वॉशिंग पाउडर इस्तेमाल करती है. धुलाई के बाद वह युवक गोरा हो जाता है. नस्लवाद के आरोपों के चलते कंपनी को माफी मांगनी पड़ी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Schiefelbein
दो नहीं तीन
इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बेचने वाली चेन मीडिया मार्क्ट ने 2001 में यह विज्ञापन जारी किया. कुछ ही दिनों में दुनिया भर में इसके 15,000 से ज्यादा पोस्टर लग गए. पोस्टर में लिखा था, "भीतर आपकी सोच से ज्यादा है." इस विज्ञापन ने मीडिया मार्क्ट की खासी किरकिरी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Carstensen
एथलीट बच्चे
रूस में फुटबॉल वर्ल्ड कप से पहले बर्गर किंग ने महिलाओं से कहा कि वे विदेशी खिलाड़ियों के संपर्क आएं और उनसे बच्चा पैदा करें. इस तरह रूस को खिलाड़ियों को जीन मिलेंगे. ऐसा करने वाली महिलाओं को बोनस राशि और आजीवन बर्गर मुफ्त का वादा किया गया. विवाद होने पर बर्गर किंग ने माफी मांगी और विज्ञापन हटाया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/G.J. Puskar
बच्चों के कपड़ों पर यहूदी सितारा
फैशन चेन जारा ने 2014 में बच्चों की शर्ट पेश की. शर्ट में सुनहरे रंग का सितारा बना था, यह सितारा कुछ वैसा ही था जैसा जर्मन नाजियों ने यहूदियों के लिए इस्तेमाल किया था. जारा ने माफी मांगी और बाजार से शर्ट वापस ली. कंपनी ने कहा कि स्टार वाला आइडिया पश्चिमी फिल्मों से लिया गया था.
तस्वीर: Zara
त्रासदी का मजाक
टेक्सटाइल कंपनी बेनेटन को अक्सर विवादित विज्ञापनों के चलते शर्मिंदा होना पड़ा है. कंपनी ने एक बार भूमध्यसागर में बचाए गए अफ्रीकी परिवारों की तस्वीर इस्तेमाल की. तस्वीर के नीचे लिखा, "यूनाइटेड कलर्स ऑफ बेनेटन." (रिपोर्ट: मार्को मुलर/ओएसजे)
तस्वीर: picture-alliance/ROPI
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बैचलेट के मुताबिक उनके दफ्तर को कानूनपालकों के हाथों अफ्रीकी मूल के कम से कम 190 लोगों की मौत की सूचना मिली. इनमें से 98 प्रतिशत यूरोप, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में हुईं.
उन्होंने कहा, "बहुत से देशों ने बल प्रयोग को लेकर स्पष्ट और प्रभावशाली कानून नहीं बनाए हैं, जिस कारण इनके उल्लंघन के खतरे बढ़ जाते हैं. साथ ही, कानूनपालक अधिकारियों को मानवाधिकार उल्लंघन और अफ्रीकी मूल के लोगों के खिलाफ अपराधों के लिए सजा भी शायद ही कभी होती है. ढीली-ढाली जांच, शिकायत और जवाबदेही की प्रक्रिया और अफ्रीकी मूल के लोगों के दोषी होने की पूर्व-अवधारणा भी अहम कारक हैं”