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रोहिंग्या के लिए यूरोपीय संघ देगा तीन करोड़ यूरो

२३ अक्टूबर २०१७

यूरोपीय संघ ने रोहिंग्या लोगों की मदद के लिए तीन करोड़ यूरो की रकम देने का वादा किया है. म्यांमार से बांग्लादेश पहुंचे लाखों लोगों के लिए मदद जुटाने के इरादे से जेनेवा में यूएन के सम्मेलन के मौके पर यह वादा किया गया है.

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तस्वीर: Reuters/D. Balibouse

संयुक्त राष्ट्र ने बांग्लादेश में मौजूद रोहिंग्या लोगों की मदद के लिए फरवरी 2018 तक 43.4 करोड़ डॉलर की रकम जुटाने का लक्ष्य तय किया है. इसमें से तीन करोड़ यूरो (3.2 करोड़ डॉलर) देने की घोषणा सोमवार को यूरोपीय आयोग ने की.

इस साल अगस्त से लगभग छह लाख रोहिंग्या लोग बांग्लादेश पहुंचे हैं जिनमें लगभग आधे बच्चे हैं. ये लोग म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा और सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए बांग्लादेश में आसरा लिये हुए हैं. बांग्लादेश में कुल रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या लगभग नौ लाख बतायी जाती है.

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जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिए बांग्लादेश के राजदूत शमीम अहसान ने बताया कि उनके देश के सामने "बेकाबू हालात" हैं. उन्होंने बताया कि बांग्लादेश की सरकार इस बारे में म्यांमार की सरकार के साथ बातचीत कर रही है, लेकिन म्यांमार लगातार कहता रहा है कि रोहिंग्या उसके यहां बांग्लादेश से आये गैर कानूनी आप्रवासी हैं.

वहीं रोहिंग्या लोगों का कहना है कि वे रखाइन प्रांत के मूल निवासी हैं और वे हजारों सालों से वहां रहते आये हैं. जेनेवा में एक दिवसीय डोनर कांफ्रेस के सह आयोजकों में यूरोपीय संघ के अलावा कुवैत भी शामिल है. इस सम्मेलन से पहले ही 10 करोड़ डॉलर की राशि या तो दी जा चुकी है या उसका वादा किया गया है. विश्व खाद्य कार्यक्रम की उप प्रमुख एलिजाबेथ रासमुसन ने बताया, "आज यहां पर हम आये हैं क्योंकि जितना हम अपने मौजूदा संसाधनों से मुहैया करा पा रहे हैं, जरूरत उससे कहीं ज्यादा है. हम लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए आपसे ज्यादा मांग रहे हैं."

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संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि म्यांमार के सैनिक और बौद्ध भिक्षु रोहिंग्या लोगों की हत्याओं, आगजनी और बलात्कार का अभियान छेड़े हुए हैं जो उनके जातीय सफाये के बराबर है. म्यांमार की सेना ने यह कार्रवाई कई सुरक्षा चौकियों पर रोहिंग्या चरमपंथीं के हमलों के बाद छेड़ी.

इस बीच, बांग्लादेश के दौरे पर गयीं भारत की विदेश मंत्री ने कहा है कि म्यांमार को रोहिंग्या मुसलमानों को वापस लेना चाहिए ताकि एशिया में एक दशक से चले आ रहे सबसे बड़े शरणार्थी संकट को दूर किया जा सके. 

 

एके/एनआर (रॉयटर्स, डीपीए, एएफपी)

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