यूरोपीय संघ ने रोहिंग्या लोगों की मदद के लिए तीन करोड़ यूरो की रकम देने का वादा किया है. म्यांमार से बांग्लादेश पहुंचे लाखों लोगों के लिए मदद जुटाने के इरादे से जेनेवा में यूएन के सम्मेलन के मौके पर यह वादा किया गया है.
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संयुक्त राष्ट्र ने बांग्लादेश में मौजूद रोहिंग्या लोगों की मदद के लिए फरवरी 2018 तक 43.4 करोड़ डॉलर की रकम जुटाने का लक्ष्य तय किया है. इसमें से तीन करोड़ यूरो (3.2 करोड़ डॉलर) देने की घोषणा सोमवार को यूरोपीय आयोग ने की.
इस साल अगस्त से लगभग छह लाख रोहिंग्या लोग बांग्लादेश पहुंचे हैं जिनमें लगभग आधे बच्चे हैं. ये लोग म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा और सैन्य कार्रवाई से बचने के लिए बांग्लादेश में आसरा लिये हुए हैं. बांग्लादेश में कुल रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या लगभग नौ लाख बतायी जाती है.
जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिए बांग्लादेश के राजदूत शमीम अहसान ने बताया कि उनके देश के सामने "बेकाबू हालात" हैं. उन्होंने बताया कि बांग्लादेश की सरकार इस बारे में म्यांमार की सरकार के साथ बातचीत कर रही है, लेकिन म्यांमार लगातार कहता रहा है कि रोहिंग्या उसके यहां बांग्लादेश से आये गैर कानूनी आप्रवासी हैं.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.
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वहीं रोहिंग्या लोगों का कहना है कि वे रखाइन प्रांत के मूल निवासी हैं और वे हजारों सालों से वहां रहते आये हैं. जेनेवा में एक दिवसीय डोनर कांफ्रेस के सह आयोजकों में यूरोपीय संघ के अलावा कुवैत भी शामिल है. इस सम्मेलन से पहले ही 10 करोड़ डॉलर की राशि या तो दी जा चुकी है या उसका वादा किया गया है. विश्व खाद्य कार्यक्रम की उप प्रमुख एलिजाबेथ रासमुसन ने बताया, "आज यहां पर हम आये हैं क्योंकि जितना हम अपने मौजूदा संसाधनों से मुहैया करा पा रहे हैं, जरूरत उससे कहीं ज्यादा है. हम लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए आपसे ज्यादा मांग रहे हैं."
म्यांमार-बांग्लादेश बॉर्डर पर लंबी कतार
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संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि म्यांमार के सैनिक और बौद्ध भिक्षु रोहिंग्या लोगों की हत्याओं, आगजनी और बलात्कार का अभियान छेड़े हुए हैं जो उनके जातीय सफाये के बराबर है. म्यांमार की सेना ने यह कार्रवाई कई सुरक्षा चौकियों पर रोहिंग्या चरमपंथीं के हमलों के बाद छेड़ी.
इस बीच, बांग्लादेश के दौरे पर गयीं भारत की विदेश मंत्री ने कहा है कि म्यांमार को रोहिंग्या मुसलमानों को वापस लेना चाहिए ताकि एशिया में एक दशक से चले आ रहे सबसे बड़े शरणार्थी संकट को दूर किया जा सके.