'अभूतपूर्व' आर्थिक झटके झेल रहा अफगानिस्तानः रिपोर्ट
२ दिसम्बर २०२१
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय सहायता में कटौती से अफगान अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है. दो दशक चले युद्ध और आंतरिक कलह की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पहले ही कमजोर हो चुकी थी.
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संयुक्त राष्ट्र ने 1 दिसंबर को जारी अपनी एक नई रिपोर्ट में भविष्यवाणी की है कि अफगानिस्तान की जीडीपी एक साल के भीतर 20 प्रतिशत सिकुड़ सकती है. रिपोर्ट में कहा है कि तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद अंतरराष्ट्रीय सहायता में कमी एक "अभूतपूर्व राजकोषीय झटका" है. दशकों से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था युद्ध और सूखे के कारण कमजोर हुई है.
इस परेशान करने वाली स्थिति का जिक्र 2021-2022 के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के अफगानिस्तान सामाजिक-आर्थिक आउटलुक में किया गया है. एशिया के लिए यूएनडीपी की निदेशक कानी वाग्नराजा ने बताया कि रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद 2021-2022 के दौरान 20 प्रतिशत कम हो जाएगा, जो पहले से ही लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को और कमजोर कर देगा. इस आउटलुक के मुताबिक, आने वाले सालों में जीडीपी 30 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है.
अफगानिस्तान के हालात बेहद चिंताजनक
वाग्नराजा का कहना है कि सीरिया की अर्थव्यवस्था पांच साल के युद्ध के बाद गहरी मंदी में है लेकिन अफगानिस्तान में ऐसा सिर्फ पांच महीनों में हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के अन्य सूत्र का कहना है "जनसंख्या की जरूरतों और संस्थानों की कमजोरी के मामले में यह ऐसी स्थिति है जो पहले कभी नहीं देखी गई. यमन, सीरिया, वेनेजुएला इस स्थिति के करीब नहीं आते."
अमेरिका और नाटो बलों की वापसी के बाद अंतरराष्ट्रीय सहायता का प्रवाह भी बंद हो गया है. यह अंतरराष्ट्रीय सहायता अफगानिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत और उसके वार्षिक बजट का 80 प्रतिशत है.
अफगान औरतों के लिए 20 साल में क्या बदला
पिछले 20 साल अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा नहीं था. उसके शासन में औरतों की स्थिति बेहद खराब बताई जाती है. क्या बीते 20 साल में महिलाओं के लिए कुछ बदला है?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
वाकई कुछ बदला क्या?
अफगानिस्तान में महिलाएं अब अलग-अलग भूमिकाएं निभाती नजर आती हैं. लेकिन वाकई उनके लिए पिछले 20 साल में कुछ बदला है या नहीं, आइए जानते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
काम के अवसर
ब्रिटेन के नेशनल स्टैटिस्टिक्स एंड इन्फॉरमेशन अथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक 2004 में 51,200 महिलाएं सरकारी दफ्तरों में काम कर रही थीं. 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 87 हजार हो गई.
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पुरुषों से ज्यादा कर्मचारी
सरकारी दफ्तरों में काम करने में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा बढ़ी है. सरकारी कर्मचारी पुरुषों की संख्या जबकि 41 प्रतिशत बढ़ी, महिलाओं की संख्या में 69 प्रतिशत का इजाफा हुआ.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
राजनीति में महिलाएं
2018 के आम चुनाव में 417 महिला उम्मीदवार थीं, जो एक रिकॉर्ड है. तालिबान के नियंत्रण से पहले की संसद में 27 प्रतिशत महिला सांसद थीं, जो अंतरराष्ट्रीय औसत (25 फीसदी) से ज्यादा है.
तस्वीर: Stringer/REUTERS
न्यायपालिका में महिलाएं
2007 में अफगानिस्तान में 5 फीसदी महिला जज थीं जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई.
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कॉलेजों में लड़कियां
अफगान सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2002 से 2019 के बीच सरकारी कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या सात गुना बढ़ी. यह इजाफा लड़कों की संख्या से ज्यादा था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
शिक्षक महिलाएं
अफगानिस्तान में अब पहले से कहीं ज्यादा महिला शिक्षक हैं. 2018 में देश के कुल शिक्षकों का लगभग एक तिहाई महिलाएं थीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
स्कूलों में लड़कियां
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट कहती है कि 2001 में 90 हजार बच्चे स्कूल जाते थे जो 2017 में बढ़कर 92 लाख हो गए. इनमें से 39 प्रतिशत लड़कियां थीं.
तस्वीर: Paula Bronstein/Getty Images
कानूनी हक
2009 में अफगानिस्तान में एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट विमिन कानून पास किया गया जिसके तहत 22 गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में डाला गया. इन गतिविधियों में महिलाओं को मारना, बलात्कार, जबरन शादी आदि शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
पुलिस में महिलाएं
अमेरिका सरकार की लैंगिक समानता पर रिपोर्ट के मुताबिक 2005 में अफगानिस्तान में 180 महिला पुलिसकर्मी थीं जो 2019 में बढ़कर 3,560 हो गईं.
तस्वीर: DW/S. Tanha
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महिलाओं को नौकरी देने की मांग
वाग्नराजा का कहना है कि एक बार राहत प्रक्रिया बहाल हो जाने के बाद बीमार और लकवाग्रस्त संस्थानों का सक्रिय होना बहुत जरूरी होगा क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की प्रक्रिया शुरू होगी. उन्होंने कहा कि यह पुनर्वास बेरोजगारों के लिए रोजगार का स्रोत होगा. अफगानिस्तान का सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण वर्तमान शासकों को महिलाओं को वेतन वाली नौकरियों से वंचित नहीं करने की चेतावनी देता है और अगर ऐसा किया जाता है तो विकास दर में और पांच प्रतिशत की गिरावट आएगी.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने तालिबान सरकार से महिलाओं को रोजगार की मुख्यधारा में शामिल करने का आग्रह किया है. यूएनडीपी के मुताबिक अफगानिस्तान में नियमित नौकरियों में 20 प्रतिशत महिलाओं की छंटनी की जा सकती है और इससे पैदा हुई आर्थिक कठिनाई को कम करने में भी मदद मिलेगी.
एए/वीके (एएफपी)
अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
अफगानिस्तान कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की पृष्ठभूमि रहा है. देश को और करीब से जानने के लिए ये 10 फिल्में मददगार हो सकती हैं.
तस्वीर: 2007 Universal Studios
हवा, मरयम, आएशा (2019)
अफगान निदेशक सहरा करीमी की यह फिल्म वेनिस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी. इसमें काबुल में रहने वाली तीन महिलाओं की कहानी है, जो अपने-अपने तरीकों से गर्भावस्था के हालात से जूझती हैं. सहरा करीमी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक खुले खत में दुनियाभर से उनके देश की मदद का आग्रह किया था.
तस्वीर: http://hava.nooripictures.com
ओसामा (2003)
1996-2003 के दौरान अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था. ज्यादातर क्षेत्रों में महिलाओं के काम करने पर पाबंदी थी. ऐसे में जिन परिवारों के मर्द मारे जाते, उनके सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जातीं. ओसामा ऐसी किशोरी की कहानी है जो अपने परिवार की मदद के लिए लड़का बनकर काम करती है. 1996 के बाद यह पहली ऐसी फिल्म थी जिसे पूरी तरह अफगानिस्तान में फिल्माया गया.
तस्वीर: United Archives/picture alliance
द ब्रैडविनर (2017)
आयरलैंड के स्टूडियो कार्टून सलून ने ‘ओसामा’ से मिलती जुलती कहानी पर एनिमेशन फिल्म बनाई थी. यह डेब्रा एलिस के मशहूर उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म को ऑस्कर में नामांकन मिला था.
खालिद हुसैनी के उपन्यास पर जर्मन-स्विस फिल्मकार मार्क फोरस्टर ने यह फिल्म बनाई थी जो अफगानिस्तानी जीवन के बहुत से पहलुओं का संवेदनशील चित्रण है.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
कंदहार (कंधार) (2001)
ईरान के महान फिल्मकारों में शुमार मोहसिन मखमलबाफ की यह फिल्म कनाडा में रहने वालीं एक ऐसी अफगान महिला की कहानी है जो अपनी बहन को खुदकुशी से रोकने के लिए घर लौटती है. फिल्म का प्रीमियर कान फिल्म महोत्सव में हुआ था.
तस्वीर: Mary Evans Arichive/imago images
एट फाइव इन द आफ्टरनून (2003)
मोहसिन मखमलबाफ की बेटी समीरा ने अफगान महिलाओं पर यह फिल्म बनाई जिसमें देश का राष्ट्रपति बनने का ख्वाब देखती एक अफगान महिला की कहानी है.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture alliance
इन दिस वर्ल्ड (2002)
यह फिल्म एक अफगान शरणार्थी की पाकिस्तान होते हुए लंदन पहुंचने की अवैध यात्रा की कहानी कहती है. माइकल विंटरबॉटम ने इस फिल्म को डॉक्युमेंट्री के अंदाज में फिल्माया था. फिल्म ने बर्लिन में गोल्डन बेयर और BAFTA का सर्वश्रेष्ठ गैर-अंग्रेजी भाषी फिल्म का पुरस्कार जीता था.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance
लोन सर्वाइवर (2013)
यह फिल्म अमेरिकी नेवी सील मार्कस लटरेल की किताब पर आधारित है जिसमें 2005 में कुनार प्रांत में हुए ‘ऑपरेशन रेड विंग्स’ की कहानी बयान की गई है. उस अभियान में लटरेल के तीन साथी मारे गए थे और वह अकेले लौट पाए थे.
तस्वीर: Gregory E. Peters/SquareOne/Universum Film/dpa/picture alliance
रैंबो lll (1988)
सिल्वेस्टर स्टैलन की मशहूर सीरीज रैंबो की तीसरी फिल्म में नायक रैंबो अपने पूर्व कमांडर को बचाने के लिए अफगानिस्तान जाता है.
तस्वीर: United Archives/IFTN/picture alliance
चार्ली विल्सन्स वॉर (2007)
यह फिल्म तब की कहानी है जब अमेरिका ने रूस के खिलाफ मुजाहिद्दीन की मदद की थी, जिन्होंने बाद में तालिबान और अल कायदा जैसे संगठन बनाए. टॉम हैंक्स अभिनीत यह फिल्म माइक निकोलस ने निर्देशित की और अपने समय की बेहतरीन फिल्मों में गिनी गई.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/picture-alliance