आम माफी के बावजूद अफगानिस्तान में सौ से ज्यादा कत्ल
३१ जनवरी २०२२
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि तालिबान के राज में हत्याओं का सिलसिला जारी है और दर्जनों लोगों को कत्ल किया जा चुका है. इस बीच अमेरिका ने दो साल से अपहृत अपने पूर्व सैनिक की रिहाई की मांग की है.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो साल से अफगानिस्तान की कैद में बंद अपने पूर्व सैनिक की रिहाई की मांग की है. इलिनोई के रहने वाले सिविल इंजीनियर मार्क फ्रेरिष को जनवरी 2020 में तालिबान ने बंदी बना लिया था. रविवार को जो बाइडेन ने एक बयान जारी कर उनकी रिहाई की मांग की.
बाइडेन ने स्पष्ट किया कि तालिबान अगर अमेरिकी सरकार से किसी तरह की वैधता या मान्यता की उम्मीद रखता है तो मार्क फ्रेरिष को फौरन रिहा करे क्योंकि इस पर मोलभाव की कोई गुंजाइश नहीं है. उन्होंने कहा, "अमेरिकी नागरिकों या किसी भी अन्य निर्दोष व्यक्ति की सुरक्षा को खतरा अस्वीकार्य है. किसी का अपहरण करना तो खासतौर पर क्रूरता और कायरता है.”
मान्यता की कोशिश जारी
तालिबान ने बीते साल अगस्त में अफगानिस्तान की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था. तब से उनकी सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता के प्रयास कर रही है. इस मान्यता पर देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता भी दांव पर लगी है क्योंकि अफगान सेंट्रल बैंक के अरबों डॉलर विदेशों में फ्रीज हो गए हैं.
मिल गया काबुल की भगदड़ में खोया सोहेल
अगस्त में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और तमाम लोग देश छोड़कर भागना चाहते थे, तो एक भगदड़ मच गई थी. उस भगदड़ में दो महीने का सोहेल अपने परिवार से बिछड़ गया था. पांच महीने बाद सोहेल मिल गया है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
पांच महीने बाद मिला नन्हा सोहेल
काबुल की भगदड़ में अपने माता-पिता से बिछड़ा सोहेल तब दो महीने का था. 19 अगस्त को सोहेल लापता हो गया था.
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भागते मां-बाप के हाथों से छूटा
तालिबान के आने के बाद जब लोग किसी भी तरह काबुल से बाहर निकलना चाहते थे तब सोहेल को दीवार के ऊपर से एक अमेरिकी सैनिक को सौंपा गया था
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भटकते रहे माता-पिता
सोहेल के पिता मिर्जा अली अहमदी अमेरिकी दूतावास में सिक्यॉरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे. उन्हें, उनकी पत्नी और चार अन्य बच्चों को एक अमेरिकी विमान से काबुल से बाहर निकाला गया.
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महीनों तक पता नहीं चला
वे लोग तो अमेरिका चले गए लेकिन दो महीने का सोहेल पीछे छूट गया. महीनों तक वे दर-दर भटकते रहे लेकिन सोहेल का कहीं पता नहीं चला.
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खबरों से पता चला
सोहेल के बारे में कई जगह समाचार छपे. उन समाचारों को काबुल में भी लोगों ने पढ़ा. और तब बात एक टैक्सी ड्राइवर हामिद सफी तक पहुंची.
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सोहेल को मिला नया नाम
सफी ने बताया कि उन्होंने सोहेल के घरवालों को काफी खोजा फिर उसे वे अपने घर ले गए. उन्होंने उसे मोहम्मद आबिद नाम भी दिया और अपने फेसबुक पेज पर उसकी तस्वीरें पोस्ट की.
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दादा को सौंपा सोहेल
सारी मालूमात के बाद सोहेल के दादा मोहम्मद कासिम रजावी सफी से मिले. दोनों परिवारों के बीच सात हफ्ते तक बातचीत होती रही. इस बीच पुलिस को भी दखल देना पड़ा.
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आखिरकार घर लौटा सोहेल
रजावी ने जब अपने पोते को सफी से गोद में लिया तो सफी फूट-फूटकर रो रहे थे. पांच महीने में ही सोहेल उनका अपना हो गया था.
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अब अमेरिका का सफर
सोहेल के सौंपे जाने को उसके माता-पिता वीडियो चैट से देख रहे थे. रजावी बताते हैं कि वे खुशी से नाचने-गाने और उछलने लगे थे. परिवार को उम्मीद है कि सोहेल के अमेरिका जाने का प्रबंध जल्दी ही किया जाएगा जहां वह महीनों बाद अपनी अम्मी से मिल पाएगा.
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इस बीच संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि देश में कम से कम 47 लाख लोग इस साल गंभीर कुपोषण का खतरा झेल रहे हैं. इनमें 39 लाख बच्चे हैं. यूएन ने कहा है कि यदि मदद नहीं मिली तो एक लाख 31 हजार बच्चे भूख से मर जाएंगे.
यूएन ने यह भी कहा है कि तालिबान ने पिछली अफगानिस्तान सरकार में काम करने वाले सौ से ज्यादा लोगों को मार डाला है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जिन लोगों को कत्ल किया गया है उनमें सरकार के साथ काम करने वाले लोगों के अलावा सेना के सदस्य और अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के साथ काम करने वाले लोग शामिल हैं. सत्ता हासिल करने के फौरन बाद तालिबान ने कहा था कि किसी पूर्व कर्मचारी या अन्य व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा.
खतरे में हैं लोग
समाचार एजेंसी एपी को मिली एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि मारे गए लोगों में से कम से कम दो तिहाई ऐसे थे जिन्हें बिना किसी सुनवाई के कत्ल कर दिया गया. अफगानिस्तान में काम कर रहे यूएन राजनीतिक मिशन को मिली "विश्वसनीय जानकारी” के अनुसार तालिबान ने आईएसआईएल-केपी नामक आतंकवादी संगठन से जुड़े होने के संदेह में कम से कम 50 लोगों को मार डाला है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को सौंपी रिपोर्ट में गुटेरेश ने बताया है कि तालिबान ने भरोसा दिलाया था कि लोगों को आम माफी दी जाएगी लेकिन यूएन राजनीतिक मिशन को विश्वसनीय जानकारी मिली है कि लोग लापता हो रहे हैं और उनकी जान को खतरा बना हुआ है. उन्होंने कहा, "मानवाधिकार कार्यकर्ता और मीडियाकर्मी भी धमकियां, शोषण, गिरफ्तारियां और यातनाएं झेल रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि आठ सामाजिक कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं जिनमें तीन को तालिबान ने कत्ल किया है जबकि तीन को इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने. दो पत्रकारों को मार दिया गया जिनमें से एक की हत्या आईएस ने की.
वीके/एए (डीपीए, एपी)
जिंदा रहने के लिए एक अफगान परिवार का संघर्ष
जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, अफगानिस्तान के लोग लंबे समय से सबसे भयानक अकालों में से एक का सामना कर रहे हैं. बामियान प्रांत के इन लोगों समेत कई लोगों के पास सबसे बुनियादी चीजों की कमी है.
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कुछ नहीं बचा
31 साल के कुली सैयद यासीन मोसावी कहते हैं, "सर्दियों में, हम आम तौर पर दुकानों या बेकरी से उधार लेते हैं और हम दो या तीन महीने के बाद कर्ज चुकाते देते हैं." वे कहते हैं, "लेकिन बड़े बदलाव हुए हैं." उनका कहना है, "जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, कोई काम नहीं है, कीमतें बढ़ गई हैं, लोग देश छोड़कर चले गए हैं. हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है."
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तालिबान क्या कर रहा है
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हम इन समस्याओं को कम करने का इरादा रखते हैं." लेकिन इस सर्दी में अफगानिस्तान के सामने संकट 20 वर्षों में नहीं देखा गया है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लगभग 2.3 करोड़ अफगान अत्यधिक भूख से पीड़ित हैं और लगभग 90 लाख लोगों के सामने अकाल का खतरा है.
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हताश स्थिति
कुबरा का परिवार जल्द ही अत्यधिक भूख से पीड़ित 55 फीसदी अफगान समाज में शामिल हो सकता है. वह कहती हैं, "हमें पिछले वसंत में दो बोरी आटा मिला, जिसका हम अभी भी इस्तेमाल कर रहे हैं. उसके बाद, हमें यकीन होना चाहिए कि अल्लाह हमारी मदद करेगा." उसने आगे कहा, "मेरा बेटा स्क्रैप के टुकड़े इकट्ठा करता था, लेकिन अभी उसके पास कोई काम नहीं है."
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कड़कड़ाती ठंड
घटती खाद्य आपूर्ति के अलावा एक और समस्या है-सर्दी. बामियान में तापमान बहुत तेजी से नीचे गिरता है. अधिकांश परिवारों के पास अपनी झोपड़ियों को इस भयानक ठंडी हवा से बचाने के लिए कम ही तिरपाल होते हैं. कई लोगों के लिए भोजन की तरह जलाने वाली लकड़ी जुगाड़ करना भी बहुत कठिन है.
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बुद्ध की मूर्ति की जगह तालिबान का झंडा
अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में पहाड़ियों में उकेरी गईं बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं सदियों से वहां मौजूद थीं. लेकिन 2001 में तालिबान ने इन्हें तबाह कर दिया था. अब वहां तालिबान का झंडा लहरा रहा है. वर्तमान में यहां के लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली जरूरत के अलावा, बामियान को अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है - 2016 में यहां एक मैराथन दौड़ आयोजित की गई थी. (रिपोर्ट: फिलिप बोएल)