संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस साल अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में 100 से अधिक निर्दोषों की हत्याएं हुईं. जिनमें से अधिकांश हत्याएं तालिबान से जुड़ी हैं.
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संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने और अफगानिस्तान में सत्ता संभालने के बाद से उसे अफगानिस्तान में निर्दोषों की हत्याओं की विश्वसनीय रिपोर्ट मिली है. यूएन ने खुलासा किया है कि इनमें से ज्यादातर हत्याएं तालिबान ने खुद की थीं.
संयुक्त राष्ट्र की उप अधिकार प्रमुख नादा अल-नाशिफ ने कहा कि 15 अगस्त को तालिबान के देश पर कब्जे के बाद आम माफी की घोषणा के बावजूद इस तरह की हत्याओं की लगातार रिपोर्टों से वह बहुत चिंतित हैं. उन्होंने कहा, "अगस्त और नवंबर के बीच हमें विश्वसनीय रिपोर्ट मिली है कि पूर्व अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों और पूर्व सरकारी अधिकारियों समेत 100 से अधिक लोगों की हत्याएं हुईं." उन्होंने इन हत्याओं में से कम से कम 72 के लिए तालिबान को जिम्मेदार ठहराया है.
तालिबान राज में कुछ ऐसी है आम जिंदगी
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार की स्थापना के बाद लोगों को कट्टरपंथी मिलिशिया के तहत जीवन में वापस लौटना पड़ा है. लोगों के लिए बहुत कुछ बदल गया है, खासकर महिलाओं के लिए.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
बुर्के में जिंदगी
अभी तक महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कई महिलाएं कार्रवाई के डर से ऐसा करती हैं. इस तस्वीर में दो महिलाएं अपने बच्चों के साथ बाजार में पुराने कपड़े खरीद रही हैं. देश छोड़कर भागे हजारों लोग अपने पुराने कपड़े पीछे छोड़ गए हैं, जो अब ऐसे बाजारों में बिक रहे हैं.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
गलियों और बाजारों में तालिबानी लड़ाके
पुराने शहर के बाजारों में चहल-पहल है, लेकिन सड़कों पर तालिबान लड़ाकों का भी दबदबा है. वे गलियों में सब कुछ नियंत्रित करते हैं और उनके विचारों या नियमों के खिलाफ कुछ होने पर तुरंत दखल देते हैं.
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दाढ़ी बनाने पर रोक
तालिबान ने नाइयों को दाढ़ी काटने और शेव करने से मना किया है. यह आदेश अभी हाल ही में हेलमंद प्रांत में लागू किया गया है. यह अभी साफ नहीं है कि इसे देश भर में लागू किया जाएगा या नहीं. 1996 से 2001 तक पिछले तालिबान शासन के दौरान पुरुषों की दाढ़ी काटने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.
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महिलाओं के चेहरे मिटाए जा रहे
ब्यूटी पार्लर के बाहर तस्वीरें हों या विज्ञापन तालिबान महिलाओं की ऐसी तस्वीरों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता है. ऐसी तस्वीरें हटा दी गईं या फिर उन्हें छुपा दिया गया.
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लड़कियों को अपनी शिक्षा का डर
तालिबान ने लड़कियों को प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने की इजाजत दी है, लेकिन लड़कियों ने अभी तक माध्यमिक विद्यालयों में जाना शुरू नहीं किया है. यूनिवर्सिटी में लड़के और लड़कियों को अलग-अलग बैठने को कहा गया है.
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क्रिकेट का खेल
क्रिकेट खेलने के लिए काबुल के चमन-ए-होजरी पार्क में युवकों का एक समूह इकट्ठा हुआ है. जबकि महिलाओं को अब कोई खेल खेलने की इजाजत नहीं है. क्रिकेट अफगानिस्तान में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है.
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बढ़ती बेरोजगारी
अफगानिस्तान गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. विदेशी सहायता रुकने से वित्त संकट खड़ा हो गया है. इस तस्वीर में ये दिहाड़ी मजदूर बेकार बैठे हैं.
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नमाज भी जरूरी
जुमे की नमाज के लिए लोग इकट्ठा हुए हैं. मुसलमानों के लिए शुक्रवार का दिन अहम होता है और जुमे की नमाज का भी खास महत्व होता है. इस तस्वीर में एक लड़की भी दिख रही है जो जूते पॉलिश कर रोजी-रोटी कमाती है.
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आम नागरिक परेशान, तालिबान खुश
अफगान नागरिक एक अजीब संघर्ष में जिंदगी बिता रहे हैं, लेकिन तालिबान अक्सर इसका आनंद लेते दिखते हैं. इस तस्वीर में तालिबान के लड़ाके स्पीडबोट की सवारी का मजा ले रहे हैं.
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तालिबान के कब्जे के बाद हालात
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने इस साल अगस्त में तालिबान के कब्जे के बाद से स्थिति की समीक्षा की है. उसके मुताबिक काबुल के पतन के तुरंत बाद कट्टरपंथी चरमपंथी तालिबान ने हत्याओं और नरसंहारों का दौर शुरू कर दिया. राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों समेत अन्य क्षेत्रों में पिछले शासन में शामिल 100 से अधिक अफगान मारे गए. यूएन का कहना है कि तालिबान युवा लड़कों को सैनिकों के रूप में भर्ती कर रहा है और महिलाओं के अधिकारों का गंभीर उल्लंघन कर रहा है.
नादा अल-नाशिफ के मुताबिक हत्याओं के अलावा इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान के कम से कम 50 संदिग्ध सदस्यों को तालिबान द्वारा फांसी दी गई या सिर कलम कर दिया गया है. तालिबान इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान को अपना वैचारिक दुश्मन मानता है.
तालिबान की वापसी के बाद से देश में कम से कम आठ मानवाधिकार कार्यकर्ता और दो पत्रकार मारे जा चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र ने भी अवैध हिरासत और डराने-धमकाने के 55 मामलों का दस्तावेजीकरण किया है.
नादा अल-नाशिफ ने जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को बताया, "अफगान न्यायाधीशों, अभियोजकों, वकीलों और विशेष रूप से महिला कानूनी पेशेवरों के लिए खतरे की घंटी बज रही है." तालिबान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बल्खी ने मंगलवार को कहा कि सरकार आम माफी के लिए "पूरी तरह से प्रतिबद्ध" है और उन आरोपों से इनकार किया कि पिछली सरकार के कर्मचारियों को सताया जा रहा है.
जेनेवा में मंगलवार को अल-नाशिफ ने युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में मानवीय संकट की एक गंभीर तस्वीर पेश की. उन्होंने बताया कि "बहुत से लोग निराश हैं और वे अपने अस्तित्व के लिए खतरनाक कदम उठाने के लिए मजबूर हैं. इनमें बाल श्रम और यहां तक की बच्चे की बिक्री की जैसे मामले भी शामिल हैं."
एए/वीके (डीपीए, एएफपी)
तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
अफगानिस्तान सूखा, भुखमरी और आर्थिक संकट से घिरा हुआ है. देश में अनिश्चितता के माहौल के बीच अफगान पुरुष कुछ पल दंगल के लिए निकाल रहे हैं.
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अफगान दंगल
हर सप्ताह के अंत में अफगानिस्तान के लड़ाके राजधानी काबुल में एक सार्वजनिक मैदान पर इकट्ठा होते हैं और वहां जूडो और कुश्ती के मिश्रण वाले खेल में एक-दूसरे के खिलाफ अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं.
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जो जीता वही सिकंदर
कुश्ती को देखने के लिए राजधानी काबुल के चमन-ए-हजूरी मैदान में बड़ी भीड़ जुटती है. प्रशंसक अपने पसंदीदा या फिर अपने गृह जिले के किसी पहलवान के लिए ताली बजाते हैं और उन्हें उत्साहित करते हैं.
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लोकप्रिय है कुश्ती
उत्तरी अफगानिस्तान के समांगन प्रांत के गठीले 31 वर्षीय मोहम्मद आतिफ कहते हैं, "मैं 17 साल से लड़ रहा हूं." उन्होंने एक मैच में अपने प्रतिद्वंद्वी को एक विशेष दांव से पटखनी दी है. वे कहते हैं, "कुश्ती समांगन, कुंदुज, बगलान में बहुत लोकप्रिय है और शेबरघन में भी कई प्रसिद्ध पहलवान हैं."
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गांव के गौरव
जूडो और कुश्ती उत्तर में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं. गांवों और जिलों में स्थानीय चैंपियन बनने के बाद खिलाड़ी क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं और यहां तक कि राष्ट्रीय खेलों के लिए आगे बढ़ते हैं.
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अनुशासन के साथ दंगल
अफगान पहलवान मैदान पर अनुशासन का पालन करते हैं. मुकाबले के दौरान रेफरी यह सुनिश्चित करने के लिए होता कि नियमों का सख्ती से पालन हो और विजेता घोषित किया जाए. एक मुकाबला शायद ही कभी एक या दो मिनट से अधिक समय तक चलता है. मैच के बाद पहलवान एक दूसरे को गले लगा लेते हैं.
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सट्टा मत लगाना
विजेता के लिए एक छोटा सा इनाम होता है. हालांकि तालिबान द्वारा सट्टे पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन कुछ पुराने सट्टेबाज हैं जो चोरी से सट्टा लगाते हैं.
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मनोरंजन का सहारा
इस तरह के आयोजन स्थानीय लोग और कुछ स्पॉन्सर मिलकर करते हैं. लोगों का कहना है कि तालिबान इस तरह के आयोजन में आने से बचता है. रिपोर्ट: (एए/सीके)