महिलाएं चुकाती हैं युद्ध और संघर्ष में सबसे ज्यादा कीमत
१८ मार्च २०२२
संयुक्त राष्ट्र महिला एजेंसी का कहना है सभी संकटों और संघर्षों में महिलाएं और लड़कियां सबसे अधिक कीमत चुकाती हैं. म्यांमार, अफगानिस्तान से लेकर साहेल और हैती के बाद अब यूक्रेन का भयानक युद्ध उस सूची में शामिल हो गया है.
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संयुक्त राष्ट्र महिला एजेंसी की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने यूक्रेन में जारी युद्ध पर कहा कि हर गुजरते दिन के साथ यह महिलाओं और लड़कियों की जिंदगी, उम्मीदों और भविष्य को बर्बाद कर रहा है. उन्होंने कहा तथ्य ये है कि यह युद्ध गेहूं और तेल उत्पादक दो देशों के बीच होने की वजह से दुनिया भर में जरूरी चीजों तक पहुंच को खतरा पैदा कर रहा है और यह ''महिलाओं और लड़कियों को सबसे कठिन तरीके से प्रभावित करेगा.''
बहाउस ने उन पुरुषों का जिक्र नहीं किया जो यूक्रेन युद्ध में मारे जा रहे हैं और घायल हुए हैं. हालांकि उन्होंने कहा, ''मैं प्रार्थना करती हूं कि महिलाएं और वे सभी जो संघर्ष का सामना कर रहे हैं, उन्हें जल्द ही शांति मिले.''
युद्ध के बीच यूक्रेन में ऐसी है जिंदगी
यूक्रेन में हो रही तबाही से जुड़ी सैकड़ों तस्वीरें बाहर आ रही हैं. खंडहर, जो कुछ दिनों पहले तक घर थे. जहां कल बाजार थे, वहां कंक्रीट का मलबा भरा है...ये सब तो फिर भी निर्जीव हैं. लाखों इंसान शरणार्थी बन गए हैं.
तस्वीर: Alexandros Avramidis/REUTERS
बर्बादी के दस्तावेज
8 मार्च को ली गई इस तस्वीर में खारकीव की एक क्षतिग्रस्त इमारत दिख रही है. सामने जहां मलबा पड़ा है, उसे गौर से देखिए. कुछ दिनों पहले तक यहां बच्चों के खेलने का मैदान था. उन दिनों की निशानी उस हरे-पीले झूले में खोजिए, जिसपर कुछ रोज पहले तक बच्चे मजे से फिसलते होंगे. अब उसी यूक्रेन के 10 लाख बच्चे शरणार्थी हो गए हैं.
तस्वीर: Sergey Bobok/AFP/Getty Images
आत्मरक्षा
रूस से जंग में नागरिक भी साथ हैं. 4 मार्च को पश्चिमी कीव में मोलोतोव कॉकटेल बना रही एक महिला. चेकपोस्ट बनाना, खंदक खोदना, टायर जमा करके उनपर किताबों के ढेर रखना, ताकि जरूरत पड़ने पर रूसी सैनिकों को चकमा देने के लिए उसे जलाकर काला धुआं पैदा किया जा सके...कीव की घेराबंदी कर रहे रूसी सैन्य काफिले से मुकाबले के लिए राजधानी में नागरिक बड़े स्तर पर तैयारियां कर रहे हैं.
तस्वीर: Lafargue Raphael/ABACA/picture alliance
मिलकर लड़ेंगे
राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की लगातार सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर नागरिकों का हौसला बढ़ा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से मदद मांग रहे हैं. आपने युद्ध पर बनी पीरियड फिल्में देखी हैं? जब सेनापति युद्ध में आगे रहता है, तो सेना का हौसला बना रहता है.
तस्वीर: Instagram/@zelenskiy_official/via REUTERS
ऑल फॉर वन
नागरिकों को युद्ध लड़ने की इमरजेंसी ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि रूसी सेना से लड़ने के लिए लोगों की कमी ना हो. यह तस्वीर राजधानी कीव के पश्चिम में बसे जेटोमेयर की है.
तस्वीर: Viacheslav Ratynskyi/REUTERS
चोट लगी है, टूटे नहीं हैं
9 मार्च को मारियोपोल के एक मैटरनिटी अस्पताल पर हमला हुआ. तस्वीर में एक महिला क्षतिग्रस्त इमारत के बाहर अपना सामान लिए खड़ी है. 12 दिनों से रूस ने इस शहर की घेराबंदी की हुई है. गोलीबारी में अब तक डेढ़ हजार से ज्यादा आम लोग मारे गए हैं. मारियोपोल काउंसिल ने अपने बयान में कहा है कि वे अपने शहर में मानवता के खिलाफ किए जा रहे अपराध को ना कभी भूलेंगे और ना इसके लिए रूस को कभी माफ करेंगे.
यह तस्वीर यूक्रेन के ओडेसा की है. 27 साल के विक्टर अनातोलेविच अपनी तीन बरस की बेटी को गोद में थामे अंडरग्राउंड शेल्टर में जा रहे हैं. जब बमबारी के लिए रूसी विमान आ रहे होते हैं, जब कोई मिसाइल दागी जा रही होती है, तो हमले का संकेत देने के लिए सायरन बजता है. लोग फौरन शेल्टरों की ओर भागते हैं. घंटों वहां दुबके रहना पड़ता है.
तस्वीर: Alexandros Avramidis/REUTERS
शरणागत
4 मार्च की इस तस्वीर में कीव सेंट्रल स्टेशन पर बचाव ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करते लोग दिख रहे हैं. 24 फरवरी से अब तक करीब 25 लाख लोग शरणार्थी बन चुके हैं.
तस्वीर: Dimitar Dilkoff/AFP/Getty Images
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इस साल यूएन महिला एजेंसी के दो सप्ताह की बैठक का प्राथमिक विषय जलवायु परिवर्तन से निपटने में महिलाओं को सशक्त बनाना है. यह कोविड-19 महामारी के बाद तीन वर्षों में महिलाओं की स्थिति पर आयोग का पहला ऑफलाइन सत्र है.
बहाउस ने कहा सभी संघर्षों के साथ साथ जलवायु परिवर्तन भी महिलाओं और लड़कियों से भारी कीमत वसूलता है.
दूसरी ओर बैठक को संबोधित करते हुए यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि समाज आज भी पुरुष प्रधान है. उन्होंने कहा जलवायु संकट, प्रदूषण, मरुस्थलीकरण और जैव विविधता के नुकसान के साथ-साथ कोरोना महामारी और अब यूक्रेन युद्ध का असर सभी को प्रभावित करता है लेकिन महिलाओं और लड़कियों को ''सबसे बड़े खतरों और सबसे गहरे नुकसान का सामना करना पड़ता है.''
मीठे तरीके से शांति का संदेश: "पीस डोनट"
रूस और यूक्रेन में जारी युद्ध के बीच एक जर्मन बेकरी खास डोनट बेच रही है. बेकरी ने इस डोनट का नाम "शांति डोनट" रखा है. इसका मकसद यूक्रेन का समर्थन थोड़े मीठे तरीके से करना है.
तस्वीर: Timm Reichert/REUTERS
'शांति डोनट'
यह खास 'शांति डोनट' यूक्रेन के राष्ट्रीय ध्वज के रंग में बनाया गया है. फ्रैंकफर्ट में स्थित हुक बेकरी पेस्ट्री और डोनट बेच कर ऐसे बच्चों के लिए धन जमा कर रही है, जिन्हें रूस के हमले के कारण यूक्रेन छोड़ना पड़ा है.
तस्वीर: Timm Reichert/REUTERS
बच्चों के लिए पहल
इस डोनट के ऊपर नीले और पीले रंग की फ्रॉस्टिंग है. इस खास डोनट की कीमत एक यूरो है (करीब 82 रुपये). डोनट की बिक्री से हुई आय यूक्रेन के उन बच्चों को दान कर दी जाएगी जिन्होंने फ्रैंकफर्ट में शरण ली है.
तस्वीर: Timm Reichert/REUTERS
मदद का जरिया
बेकरी की सह-मालकिन तान्या हुक कहती हैं, "हमने सोचा कि हमें बहुत जल्दी कुछ करना होगा. हमने ऐसा कुछ बनाने का फैसला किया जो महंगा ना हो और सभी के लिए किफायती हो. लोग दफ्तर जाते वक्त इसे अपने साथ ले जा सकते हैं."
तस्वीर: Timm Reichert/REUTERS
खूब मांग है शांति डोनट की
पिछले हफ्ते शुरू हुआ यह अभियान सफल नजर आ रहा है. पिछले गुरूवार को दस बेकरी शॉप में इस तरह के 600 डोनट बिके. लोग एडवांस में भी इसे खरीदने के लिए ऑर्डर दे रहे हैं.
तस्वीर: Timm Reichert/REUTERS
सोशल मीडिया पर भी चर्चा
सोशल मीडिया के जरिए इस 'पीस डोनट' की खूब की चर्चा हो रही है. लोगों को जब इसके बारे में पता चल रहा है तो वे बेकरी पहुंचकर इसे चख रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.C. Alfred
समर्थन के लिए आगे आए लोग
इस अभियान को खासा समर्थन मिल रहा है. फ्रैंकफर्ट में रहने वाली पोलैंड की महिला ने इस बेकरी से एक पेस्टरी खरीदी और वो इस अभियान से भावुक नजर आई.
तस्वीर: Hannibal Hanschke/Getty Images
यूक्रेन से भाग रहे लोग
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यूक्रेन से करीब 15 लाख लोग भागकर पड़ोसी देशों में जा पहुंचे हैं. जर्मनी, हंगरी और पोलैंड जैसे देशों में ऐसे लोगों को शिविरों में रखा गया है. इनमें महिलाएं और बड़ी संख्या में बच्चे हैं. एए/सीके (रॉयटर्स)
तस्वीर: Hannibal Hanschke/Getty Images
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यूक्रेन युद्ध की वजह से लाखों की संख्या में महिलाएं और बच्चे देश छोड़ने पर मजबूर हुए हैं. यूक्रेन से अब तक 32 लाख लोग भाग चुके हैं. यूएन की मानवीय राहत एजेंसी का कहना है कि यूक्रेन में मौजूदा हालात की वजह से लगभग हर एक सेकंड में एक बच्चा शरणार्थी बनने के लिए मजबूर है.
रूस से जंग के बीच क्या कर रहे हैं यूक्रेन के बच्चे
युद्ध के शुरुआती दो हफ्ते में ही 20 लाख से ज्यादा यूक्रेनी रिफ्यूजी बन गए हैं. शरणार्थियों में मुख्य रूप से महिलाएं और बच्चे ही हैं क्योंकि यूक्रेन में अभी 18 से 60 की उम्र के पुरुषों के देश से जाने पर रोक है.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
कितना प्यारा दिल...
8 मार्च तक 12 लाख से ज्यादा शरणार्थी पोलैंड आ चुके थे. इसके अलावा हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक, मोलदोवा, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, आयरलैंड में भी यूक्रेनी शरणार्थी पहुंच रहे हैं. इस तस्वीर में यूक्रेन से भागकर आया एक रिफ्यूजी बच्चा बुडापेस्ट के युगाति रेलवे स्टेशन पर ट्रांसपोर्ट का इंतजार करते हुए कांच पर अपने हाथ जोड़कर दिल बना रहा है.
तस्वीर: Marton Monus/REUTERS
हर हाल में हंस पड़ना...
यूक्रेन के पड़ोसी देशों ने वहां से आ रहे शरणार्थियों के लिए बड़े स्तर पर इंतजाम किए हैं. रोमानिया ने कहा कि उसकी सीमाएं जरूरतमंदों के लिए खुली हैं. शरणार्थियों को सुरक्षित महसूस करवाने के लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश करेगी. इस तस्वीर में एक शरणार्थी बच्ची रोमानिया के अपने कैंप के पास खड़ी होकर मुस्कुरा रही है. कैसे भी हालात में हंस पड़ना, खुश हो जाना...बचपन सच में कितना निर्दोष होता है.
तस्वीर: Cristian Ștefănescu/DW
मदद के नन्हे हाथ
पोलैंड की सरकार ने यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए एक अलग फंड बनाने का फैसला किया है. इसके तहत हर एक रिफ्यूजी को एक बार के लिए एक रकम भी दी जाएगी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यह यूरोप का सबसे तेजी से बढ़ रहा शरणार्थी संकट है. तस्वीर में एक शरणार्थी बच्चा ट्रॉली के साथ.
तस्वीर: Cristian Ștefănescu/DW
बच्ची और बिल्ली
संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि शरणार्थियों की दूसरी खेप ज्यादा दयनीय स्थिति में हो सकती है. यूएनएचसीआर ने कहा कि अगर युद्ध जारी रहता है, तो बड़ी संख्या में ऐसे शरणार्थी आते रहेंगे जिनके पास ना कोई संसाधन होगा, ना अपना कोई संपर्क. ऐसे में यूरोपीय देशों के लिए जटिल स्थिति होगी. तस्वीर में मरियोपोल से आई एक शरणार्थी बच्ची अपनी बिल्ली के साथ.
तस्वीर: AA/picture alliance
इंतजार
दी इंटरनेशनल रेस्क्यू कमिटी (आईआरसी) ने कहा है कि शरणार्थियों के लिए लंबे समय तक मानवीय सहायता का इंतजाम करना होगा. लोगों के रोजगार का इंतजाम करना होगा. वे किराया दे सकें, सामान्य जीवन जी सकें, अपने पैरों पर खड़े हो सकें, इसके लिए उन्हें मदद देनी होगी. इस तस्वीर में मरियोपोल से आया एक शरणार्थी बच्चा स्कूल की इमारत के भीतर सुरक्षित निकाले जाने का इंतजार कर रहा है.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
बदलाव
शरणार्थियों पर हंगरी का रवैया बेहद सख्त रहा है. सात साल पहले उसने शरणार्थियों को अपनी सीमा में घुसने से रोकने के लिए कंटीली बाड़ लगवाई थी और कु्त्ते तैनात किए थे. उसी हंगरी ने अब तक करीब दो लाख यूक्रेनी शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी है. तस्वीर में हंगरी का एक अस्थायी शरणार्थी शिविर, जिसे म्यूनिसिपल्टी और बैप्टिस्ट चैरिटी मिलकर चला रहे हैं.
तस्वीर: Anna Szilagyi/AP Photo/picture alliance
आम आबादी भी कर रही है मदद
हंगरी के एक अस्थायी शेल्टर के भीतर स्ट्रोलर में बैठी बच्ची. यूक्रेनी शरणार्थियों की मदद के लिए सरकारी इंतजामों के अलावा आम आबादी भी सामने आ रही है. पड़ोसी देशों में स्थानीय लोग खाने-पीने की चीजों के अलावा बच्चों के लिए जरूरत पड़ने वाली चीजें भी डोनेट कर रहे हैं. बड़ी संख्या में लोग शेल्टर होम्स में वॉलंटियर सर्विस भी दे रहे हैं.
तस्वीर: Anna Szilagyi/AP/picture alliance
जर्मनी में भी शरणार्थियों का स्वागत
यूक्रेनी शरणार्थी बस और ट्रेन से जर्मनी भी आ रहे हैं. बर्लिन में शरणार्थियों को लेने के लिए रेलवे स्टेशन पर आए आम लोगों की तस्वीरें खूब वायरल हुईं. लोग शरणार्थियों को अपने घर में जगह दे रहे हैं. इस तस्वीर में दिख रही बस शरणार्थियों को लेकर पोलैंड के एक रेलवे स्टेशन जा रही है, जहां से उन्हें जर्मनी ले जाया जाएगा.
तस्वीर: Markus Schreiber/AP Photo/picture alliance