तालिबान से यूएन ने कहा, महिलाओं पर लगे बैन वापस हों
२८ अप्रैल २०२३
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गुरुवार को एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें तालिबान से महिलाओं के खिलाफ सभी प्रतिबंधों को तत्काल वापस लेने की मांग की गई है.
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यूएनएससी ने विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करने वाली अफगान महिलाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों की निंदा की है.
यूएनएससी के सभी 15 सदस्य देशों ने गुरुवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें कहा गया है कि अफगानिस्तान में अप्रैल की शुरुआत में घोषित प्रतिबंध "मानव अधिकारों और मानवीय सिद्धांतों को कमजोर करता है."
तालिबान के प्रतिबंध की निंदा
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करने वाली महिलाओं पर तालिबान द्वारा बैन की निंदा की. सुरक्षा परिषद ने व्यापक रूप से तालिबान से "उन नीतियों और प्रथाओं को तेजी से पलटने का आह्वान किया जो महिलाओं और लड़कियों द्वारा उनके मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के आनंद को प्रतिबंधित करती हैं."
सुरक्षा परिषद ने शिक्षा, रोजगार, यात्रा करने की आजादी और "सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की पूर्ण, समान और सार्थक भागीदारी" में पूरी तरह से छूट देने का आह्वान किया.
परिषद ने साथ ही "सभी देशों और संगठनों से आग्रह किया गया है कि वे अपने प्रभाव के इस्तेमाल के जरिए और यूएन चार्टर के अनुरूप इन नीतियों को तत्काल वापिस लिए जाने की दिशा में तेज कोशिश करें."
सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान की "गंभीर आर्थिक और मानवीय स्थिति" का हवाला दिया और कहा कि देश में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की मौजूदगी बहुत अहम है.
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"चुप नहीं बैठेगी दुनिया"
सुरक्षा परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव में सदस्य देशों ने यह चिंता जाहिर की है कि इन प्रतिबंधों से देश भर में यूएन के राहत अभियानों और जरूरतमंद आबादी तक जीवनदायी सहायता व बुनियादी सेवाएं पहुंचाने के प्रयासों पर असर होगा.
संयुक्त राष्ट्र में यूएई की राजदूत लाना नुसेबीह ने कहा, "अफगान समाज से महिलाओं को गायब किया जा रहा है, ऐसे में दुनिया चुपचाप नहीं बैठेगी."
सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों ने कहा है कि ऐसी पाबंदियों से देश में मानवाधिकार और मानव कल्याण सिद्धांत कमजोर हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने 4 अप्रैल को बताया था कि तालिबान ने दिसंबर में महिलाओं को घरेलू और विदेशी एनजीओ के लिए काम करने से प्रतिबंधित करने के बाद देश भर में यूएन मिशन के लिए काम करने से अफगान महिलाओं पर प्रतिबंध लगा दिया.
इसके विरोध में कई सहायता एजेंसियों ने देश में अपने कार्य को स्थगित कर दिया है. देश की आधी से अधिक आबादी इस वक्त भुखमरी का सामना कर रही है और ऐसे में राहत कार्य ठप्प होने से उनके दुखों में इजाफा ही हुआ है. देश की लगभग दो तिहाई आबादी यानी 2 करोड़ 80 लाख लोगों को इस साल मानवीय सहायता की जरूरत है. ये संख्या साल 2021 की तुलना में तीन गुना बढ़ गई है.
18 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अफगानिस्तान सोशियो-इकोनिमिक आउटलुक 2023 शीर्षक वाली नई रिपोर्ट जारी की, जिसमें अगस्त 2021 में देश की सत्ता पर तालिबान का कब्जा स्थापित होने और उसके बाद उसके शासन से उत्पन्न हुई परिस्थितियों की समीक्षा की गई है.
रिपोर्ट बताती है कि सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद अफगान अर्थव्यवस्था ढह गई थी, जिसके कारण पहले से ही कठिनाइयों से जूझ रहे इस देश के निर्धनता के गर्त में धंसने की गति तेज हो गई.
गर्भवती अफगान महिलाओं की उम्मीदें टिकी हैं इन दाइयों पर
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अफगानिस्तान में हर दो घंटों में प्रसूति के दौरान एक महिला की मौत हो जाती है. ऐसे में दाइयों के प्रशिक्षण के लिए शुरू किया एक पायलट प्रोजेक्ट अफगान महिलाओं को उम्मीद दे रहा है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
प्रसूति वार्ड को देखना, समझना
बामियान के एक अस्पताल में प्रशिक्षु दाइयां विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में प्रसूति के समय गर्भवती महिलाओं का और नवजात बच्चों का ध्यान रखना सीख रही हैं. इस कार्यक्रम की शुरुआत शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने स्थानीय संगठन वतन सोशल एंड टेक्निकल सर्विसेज एसोसिएशन के साथ मिल की है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
प्रसव का इंतजार
2021 में सत्ता फिर से हासिल करने के बाद तालिबान ने महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया है. स्वास्थ्य क्षेत्र एकमात्र अपवाद है. बामियान के इस अस्पताल में जिन 40 महिलाओं को इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है वो बाद में अपने अपने गांवों में गर्भवती महिलाओं का ध्यान रखेंगी.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
महिलाएं ही शिक्षक, महिलाएं ही छात्र
सभी प्रशिक्षु महिलाएं हर सबक को एकाग्रता और प्रेरणा के साथ सीख रही हैं. एक 23 वर्षीय छात्रा कहती हैं, "मैं सीखना और फिर अपने गांव के लोगों की मदद करना चाहती हूं." इस मदद की जरूरत भी है: अफगानिस्तान में करीब छह प्रतिशत नवजात बच्चों की पांच साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
तजुर्बा भी जरूरी है
रोज के प्रशिक्षण का एक हिस्सा है गर्भवती महिलाओं का रक्तचाप मापना. प्रशिक्षुओं में से कुछ महिलाएं खुद मां हैं और गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में जानती हैं. उनमें से एक ने बताया, "शुरू में तो मैं नर्स या दाई नहीं बनना चाहती थी." लेकिन उन्होंने बताया कि खुद गर्भवती होने के समय उन्हें जो अनुभव हुए उनकी वजह से उनकी राय बदल गई.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
एक बार शीशे में देख लेना
20 साल की एक प्रशिक्षु शिफ्ट शुरू होने से पहले आईने में देख कर अपना हिजाब और मास्क ठीक कर रही हैं. प्रशिक्षण के लिए वो इतनी प्रतिबद्ध हैं कि वो अस्पताल पहुंचने के लिए दो घंटे पैदल चल कर आती हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
जहां मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है
प्रशिक्षण के बाद ये दाइयां दूर दराज के गांवों में महिलाओं की मदद करेंगी. ऐसे स्थानों पर अक्सर लोगों को स्वास्थ्य सेवायें नहीं मिल पाती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अफगानिस्तान की मातृत्व मृत्यु दर दुनिया की सबसे ऊंची दरों में से है. वहां करीब तीन प्रतिशत महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान या उसकी वजह से मौत हो जाती है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
बेटे की मौत का दुख
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की वजह से 35 साल की अजीजा रहीमी ने अपना बेटा खो दिया. उन्होंने बताया, "करीब दो घंटों तक मेरा खून बहता रहा और मेरे पति को एम्बुलेंस नहीं मिली." उन्हें अपने बेटे को अपने घर पर बिना किसी मदद के जन्म देना पड़ा लेकिन उसकी जन्म के थोड़ी देर बाद ही मौत हो गई. वो कहती हैं, "मैंने अपने बच्चे को अपने पेट में नौ महीनों तक रखा और फिर उसे खो दिया, ये बेहद दुखदाई है."
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
अफगान महिलाओं के लिए जानकारी की कमी
बामियान के अस्पताल में इलाज का इंतजार कर रहीं कई महिलाओं के पास गर्भावस्था, प्रसव या परिवार नियोजन के बार में कोई जानकारी नहीं है. यहां जन्म दर भी प्रांत के औसत से ज्यादा है. आंकड़े कहते हैं कि यहां एक महिला औसत 4.64 बच्चों को जन्म देती है. पड़ोसी देश ईरान में यह दर 1.69 है. (फिलिप बोल)