पारंपरिक ज्ञान को लुटने से बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में एक अंतरराष्ट्रीय संधि अब लगभग निश्चित हो गई है. सोमवार को इस समझौते पर बातचीत का दौर शुरू हुआ है, जिसे ऐतिहासिक संधि के लिए अंतिम चरण माना जा रहा है.
बुजुर्गों को जो ज्ञान है, उसे सुरक्षित रखने की जरूरत हैतस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
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विभिन्न समुदायों और समाजों में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने वाले पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा को लेकर संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) ने उम्मीद जताई है कि जल्दी ही संधि पर हस्ताक्षर हो जाएंगे जिससे पेटेंट व्यवस्था में ज्यादा पारदर्शिता लाई जा सकेगी.
संगठन के प्रमुख डैरेन टैंग ने कहा, "यह एक ऐतिहासिक क्षण है.”
24 मई तक चलने वाली इस बैठक के लिए 190 से ज्यादा सदस्य देशों के प्रतिनिधि जेनेवा में जुटे हैं. फ्रांसीसी प्रतिनिधि क्रिस्टोफ बिगोट ने कहा, "यह बायोपाइरेसी के खिलाफ लड़ाई का मामला है ताकि जेनेटिक संसाधनों या पारंपरिक ज्ञान को बिना सहमति के उनसे लेकर कोई अन्य लाभ ना उठाए."
क्या है बायोपाइरेसी?
बायोपाइरेसी उस ज्ञान के बिना सहमति इस्तेमाल को कहा जाता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के बीच आगे बढ़ता है. जैसे कि किसी पौधे या फसल के औषधीय गुणों की जानकारी और इस्तेमाल या फिर किसी जानवर की प्रजाति का इस्तेमाल. इस तरह के नियम बनाने की कोशिश की जा रही है कि इस ज्ञान के आधार पर कोई किसी तरह की खोज को बिना उस समुदाय की सहमति के पेटेंट ना करा पाए.
कैंसर में इनसे होगा फायदा
भारतीय खाने में तरह तरह के मसालों का इस्तेमाल होता है. ये मसाले सिर्फ खाने का जायका ही नहीं बढ़ाते, बल्कि दवा की तरह काम भी करते हैं. जो लोग कैंसर का इलाज करवा रहे हों, उनके लिए ये मसाले अतिरिक्त लाभ पहुंचा सकते हैं.
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अदरक
सर्दी जुकाम, पेट दर्द और उल्टी होने पर अदरक का इस्तेमाल किया जाता है. अदरक को आप ताजा भी ले सकते हैं और सुखा कर पाउडर के रूप में भी. कैंसर की दवा में इतने रसायन होते हैं कि पेट पर उनका बुरा असर होता है. ऐसे में अदरक लेने से फायदा मिलता है.
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हल्दी
आयुर्वेद में हल्दी के कई फायदे बताए गए हैं. हल्दी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. इसीलिए चोट लगने पर उस पर तेल में हल्दी मिला कर लगाई जाती है और दूध में हल्दी मिला कर पी जाती है. नए शोध में पेट के कैंसर से लड़ने में इसे फायदेमंद बताया गया है.
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लाल मिर्च
हालांकि मिर्च का इस्तेमाल डॉक्टर से पूछे बिना नहीं करना चाहिए लेकिन लाल मिर्च को थोड़ी थोड़ी मात्रा में लेने से दर्द में कमी आती है. दरअसल मिर्च में एक ऐसा तत्व होता है, जो दर्द के एहसास को कम कर देता है.
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लहसुन
शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने में लहसुन योगदान देता है. इसमें सल्फर की बड़ी मात्रा होती है जो कई तरह के कैंसर से लड़ सकता है. लहसुन पर कई शोध हुए हैं जिनसे पता चलता है कि वह अंडाशय, पेट, पैंक्रिया और ब्रेस्ट कैंसर से लड़ने में सहायक होता है.
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पोदीना
अक्सर खाने के साथ धनिया पोदीना की चटनी खाई जाती है. लेकिन बिना किसी भी मसाले का इस्तेमाल किए हुए, सिर्फ उबले हुए पानी में डाल कर भी पोदीना लिया जा सकता है. इससे कैंसर की दवाओं से पेट में होने वाली जलन से राहत मिलती है.
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बबूने का फूल
कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के कई साइड इफेक्ट होते हैं. कई लोगों के मुंह में छाले पड़ जाते हैं, गले में जख्म हो जाते हैं. ऐसे में बबूने के फूल को पानी में उबाल कर गरारा करने से फायदा मिलता है. इसे पीने से नींद भी अच्छी आती है.
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रोजमेरी
भारतीय खाने में इसका इस्तेमाल कम ही होता है लेकिन बड़े सुपरमार्केट में इसे खरीदा जा सकता है. दवाओं के कारण मुंह का बिगड़ा स्वाद इससे ठीक होता है, पाचन बेहतर होता है और भूख भी ठीक से लगती है.
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दुनिया में कई बड़ी कंपनियां इस ज्ञान का इस्तेमाल दवाओं से लेकर बायोटेक्नोलॉजी, खाने का सामान या बीज विकसित करने में करती हैं. समाजसेवी संस्थाओं के मुताबिक भारत के नीम से लेकर पेरू के मक्का और दक्षिण अफ्रीका के हूदिया तक तमाम तरह के पौधे इसी ज्ञान के तहत आने चाहिए.
इस दिशा में कई छोटी-छोटी कामयाबियां भी मिली हैं. मसलन भारत में पाए जाने वाले नीम के गुणों को लेकर 1995 में केमिकल कंपनी डब्ल्यू आर ग्रेस ने एक कई पेटेंट दर्ज करा लिए थे. भारत में नीम के औषधीय और अन्य गुणों का इस्तेमाल हजारों साल से होता आया है.
पेटेंट की शर्तें
दस साल तक चले संघर्ष के बाद यूरोपीय पेटेंटे ऑफिस ने बायोपाइरेसी को आधार मानकर नीम पर दर्ज तमाम पेटेंट खारिज कर दिए थे. यह बायोपाइरेसी के आधार पर पेटेंट खारिज होने का पहला मामला था.
डब्ल्यूआईपीओ ने संधि का जो मसौदा तैयार किया है उसमें पेटेंट के लिए अर्जी में यह बताना जरूरी होगा कि संबंधित खोज किस देश के पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है और किस समुदाय के लोगों ने अपना पारंपरिक ज्ञान उपलब्ध कराया है.
बीमारी भगाने वाले 10 पौधे
भारत में आयुर्वेद एक स्थापित चिकित्सा पद्धति है जिसमें कई पेड़ पौधों, जड़ों, फूलों से इलाज किया जाता है. हर देश के अपने खास पेड़ पौधे हैं जिनका इस्तेमाल किसी न किसी बीमारी को ठीक करने के लिए किया जाता है.
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लहसुन
दक्षिण एशियाई देशों में प्रचुरता से इस्तेमाल किया जाता है. इसके इस्तेमाल से न केवल कोलेस्ट्रॉल कम होता है बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. उच्च रक्तचाप को यह कम करता है और बैक्टीरिया को भी खत्म करता है. इसका रस और गोली दोनों बाजार में उपलब्ध है.
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मरमरी त्वचा के लिए
जंगली एले वेरा प्राकृतिक रूप से संरक्षित प्रजाति है. इसकी पत्तियों से निकलने वाला रस त्वचा की बीमारियों, जलने और सनबर्न के इलाज के लिए काम में आता है. इतना ही नहीं यह त्वचा को नमी देता है.
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हल्दी
हल्दी अदरक की प्रजाति का पौधा है. कील मुंहासों पर लेप के रूप में इसे लगाने से या दूध में मिला कर त्वचा में लगाने से रंग निखरता है. गर्म दूध में लेने से कफ और खांसी ठीक होती है. दिल की बीमारियों में भी यह काफी लाभदायक मानी जाती है.
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स्वादिष्ट और सेहतमंद
आर्टिचोक कहे जाने वाला ये पौधा मिस्र और रोम में काफी इस्तेमाल किया जाते थे. यह पेट से जुड़ी बीमारियों को ठीक कर सकते हैं. असरकारी होता है इनमें पाया जाने वाला फ्लेवोनॉयड और कड़वी पत्तियां. पत्तियों का सूखा पावडर या फिर जूस बनाया जाता है.
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दिल के लिए दालचीनी
शहद और दालचीनी का मिक्स दिल, खांसी, सर्दी जुकाम के लिए अच्छा बताया जाता है. हालांकि इसे किस अनुपात में मिक्स करना है, यह अच्छे से पता होना चाहिए. वैसे दालचीन तो भारतीय गरम मसाले का अहम हिस्सा है.
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किडनी और ब्लैडर के लिए
बिच्छू घास के नाम से लोकप्रिय यह जंगली घास अगर छू जाए तो जलन पैदा करती है. लेकिन काढ़े या रस के तौर पर इसका सत्व गठिया या किडनी के छोटे स्टोन में फायदा पहुंचा सकता है. इतना ही नहीं इसकी जड़ों का रस प्रोस्टेट और ब्लैडर की बीमारियों को ठीक कर सकता है.
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खुशबूदार
अदरक भारतीय रसोई का अहम साथी है. यह जड़ भूख बढ़ाती है और पाचन अच्छा करती है. साथ ही यह जमा कफ पिघला देती है. ठंड में अदरक की चाय बेहद असरदार साबित होती है.
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पेट के लिए
बबूने का फूल या कैमोमिल यूरोप में बहुत लोकप्रिय है. इस छोटे से फूल को आज पूरी दुनिया जानती है. इस फूल की पत्तियों से निकला अर्क पेट की बिमारीयों और त्वचा पर आई सूजन को ठीक कर सकता है.
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सुंदर और शांत करने वाला
पैशन फ्रूट का रस खट्टा मीठा होता है. लेकिन इसका फूल जिसे राखी का फूल भी कहा जाता है, वह काफी काम का है. इसकी पंखुडियों का अर्क घबराहट, हल्के विषाद, नींद में खलल, रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाली परेशानियों से निजात दिलाता है.
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लौंग
सर्दी जुकाम में लौंग बढ़िया होती है. दांत दर्द होने पर लौंग बहुत फायदा करती है. इसका तेल बहुत तीखा और एंटीबायोटिक के गुणों वाला होता है.
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इस संधि के विरोधियों की भी कमी नहीं है. उनका कहना है कि इससे खोज और विकास की भावना हतोत्साहित होगी. लेकिन संधि के समर्थकों का कहना है कि इससे कानूनी निश्चितता, पारदर्शिता और पेटेंट व्यवस्था की सक्षमता बढ़ेगी.
डब्ल्यूपीओ के पारंपरिक ज्ञान की देखरेख करने वाले विभाग के प्रमुख वेंड वेंडलैंड कहते हैं, "इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों के इस्तेमाल के लिए संबंधित समुदायों या देशों की इजाजत ली गई हो और इस ज्ञान के आधार पर होने वाली खोजों का लाभ उन्हें भी मिले.”
सहमति की कोशिश
वेंडलैंड कहते हैं कि यह संधि हो जाना एक ऐसे मुद्दे पर दो दशकों से जारी बातचीत का समापन होगा जो बहुत देशों के लिए अहमियत रखता है. संगठन को उम्मीद है कि सदस्य देशों के बीच इस मुद्दे पर पूरी सहमति बन पाएगी. हालांकि अब भी कई असहमतियां है जिन पर चर्चा होनी बाकी है. इनमें प्रतिबंधों की शर्तें और पेटेंट खारिज होने के आधार शामिल हैं.
कुदरत और इसके ज्ञान पर एकाधिकार क्यों जमाती हैं कंपनियां
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55 विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक थिंक टैंक साउथ सेंटर में विशेषज्ञ विवियाना मुनोज टेलेज कहती हैं, "मसौदे की भाषा को बहुत कसा गया है ताकि एक संभावित सहमति पर पहुंचा जा सके. इस समझौते की एक प्रतीकात्मक अहमियत है क्योंकि यह पहली बार होगा कि इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी संबंधित दस्तावेजों में पारंपरिक ज्ञान के उदाहरणों का जिक्र करना होगा.”
30 देशों में ऐसे स्थानीय कानून लागू हैं जिनके तहत किसी भी पेटेंट के लिए यह बताना जरूरी होता है कि खोज किस पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है. इनमें चीन, ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों के अलावा फ्रांस जर्मनी और स्विट्जरलैंड जैसे देश भी शामिल हैं.