संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में करीब 60 लाख लोगों को भयंकर अकाल का खतरा है. इसके दो प्रमुख कारण हैं चरम मौसम की स्थिति और तालिबान सरकार की नीतियों की वजह से अनिश्चितता.
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संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यों के समन्वयक मार्टिन ग्रिफिथ्स ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता अभियानों की वर्तमान स्थिति के बारे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक बैठक में बताया यह चेतावनी दी है.
ग्रिफिथ्स ने सुरक्षा परिषद को बताया कि अफगानिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मानवीय सहायता की सख्त जरूरत है. ग्रिफिथ्स के मुताबिक पिछले साल अगस्त में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से इस देश में पहले से ही खराब स्थिति और बदतर हो गई है.
उन्होंने सुरक्षा परिषद को बताया कि अत्यधिक बेरोजगारी और अत्यधिक गरीबी के कारण लाखों अफगान एक बार फिर अपनी मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं. इसके अलावा हाल ही में आए विनाशकारी भूकंप और विभिन्न हिस्सों में अचानक आई बाढ़ ने स्थिति को और खराब कर दिया है.
वैश्विक संगठन के मानवीय सहायता निगरानी निकाय के मुताबिक अंतराष्ट्रीय समुदाय अफगान अर्थव्यवस्था को बहाल करने के लिए हर हफ्ते लगभग चार करोड़ यूरो के बराबर वित्तीय संसाधन प्रदान कर रहा है. हालांकि, इस सहायता के संबंध में आम शिकायतें हैं कि तालिबान नेतृत्व इस सहायता राशि का एक बड़ा हिस्सा अपने समर्थकों में बांट रहा है.
जिंदा रहने के लिए एक अफगान परिवार का संघर्ष
जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, अफगानिस्तान के लोग लंबे समय से सबसे भयानक अकालों में से एक का सामना कर रहे हैं. बामियान प्रांत के इन लोगों समेत कई लोगों के पास सबसे बुनियादी चीजों की कमी है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
कुछ नहीं बचा
31 साल के कुली सैयद यासीन मोसावी कहते हैं, "सर्दियों में, हम आम तौर पर दुकानों या बेकरी से उधार लेते हैं और हम दो या तीन महीने के बाद कर्ज चुकाते देते हैं." वे कहते हैं, "लेकिन बड़े बदलाव हुए हैं." उनका कहना है, "जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, कोई काम नहीं है, कीमतें बढ़ गई हैं, लोग देश छोड़कर चले गए हैं. हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है."
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तालिबान क्या कर रहा है
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हम इन समस्याओं को कम करने का इरादा रखते हैं." लेकिन इस सर्दी में अफगानिस्तान के सामने संकट 20 वर्षों में नहीं देखा गया है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लगभग 2.3 करोड़ अफगान अत्यधिक भूख से पीड़ित हैं और लगभग 90 लाख लोगों के सामने अकाल का खतरा है.
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हताश स्थिति
कुबरा का परिवार जल्द ही अत्यधिक भूख से पीड़ित 55 फीसदी अफगान समाज में शामिल हो सकता है. वह कहती हैं, "हमें पिछले वसंत में दो बोरी आटा मिला, जिसका हम अभी भी इस्तेमाल कर रहे हैं. उसके बाद, हमें यकीन होना चाहिए कि अल्लाह हमारी मदद करेगा." उसने आगे कहा, "मेरा बेटा स्क्रैप के टुकड़े इकट्ठा करता था, लेकिन अभी उसके पास कोई काम नहीं है."
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कड़कड़ाती ठंड
घटती खाद्य आपूर्ति के अलावा एक और समस्या है-सर्दी. बामियान में तापमान बहुत तेजी से नीचे गिरता है. अधिकांश परिवारों के पास अपनी झोपड़ियों को इस भयानक ठंडी हवा से बचाने के लिए कम ही तिरपाल होते हैं. कई लोगों के लिए भोजन की तरह जलाने वाली लकड़ी जुगाड़ करना भी बहुत कठिन है.
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बुद्ध की मूर्ति की जगह तालिबान का झंडा
अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में पहाड़ियों में उकेरी गईं बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं सदियों से वहां मौजूद थीं. लेकिन 2001 में तालिबान ने इन्हें तबाह कर दिया था. अब वहां तालिबान का झंडा लहरा रहा है. वर्तमान में यहां के लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली जरूरत के अलावा, बामियान को अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है - 2016 में यहां एक मैराथन दौड़ आयोजित की गई थी. (रिपोर्ट: फिलिप बोएल)
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ग्रिफिथ्स के मुताबिक, "नतीजा यह है कि देश में गरीबी बढ़ती जा रही है और जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति अभी भी समाप्त नहीं हुई है." उन्होंने कहा, "जहां तक तालिबान सरकार का सवाल है, उसने अभी तक अफगान लोगों के भविष्य के लिए कोई निवेश नहीं किया है और न ही देश के बजट का कोई हिस्सा इसके लिए आवंटित किया है."
यूएन के मुताबिक आने वाली सर्दी के दौरान अफगान लोगों की मदद के लिए उसे तत्काल करीब 60 करोड़ यूरो की जरूरत है.
इन निधियों के जरिए संगठन सबसे जरूरतमंद अफगानों के आवासों की मरम्मत करना चाहता है और उन्हें गर्म कपड़े और कंबल भी प्रदान करना चाहता है.
अफगानिस्तान में बड़े पैमाने वाली विकास सहायता, लगभग एक साल से ठप्प पड़ी है, जबकि देश पहले से ही खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के गंभीर स्तर का सामना कर रहा था, और ये हालात ज्यादा बदतर ही हुए हैं.
ग्रिफिथ्स ने बताया कि मानवीय सहायता कर्मियों को भी अपने अभियान जारी रखने के लिए, बेहद चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि तालिबान के साथ तालमेल करना बहुत मुश्किल काम है.
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
अफगानिस्तान ने दो दशक से नहीं देखा ऐसा भूकंप
अफगानिस्तान में आए भूकंप ने करीब 1,000 लोगों की जान ले ली. अमेरिका के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन के मुताबिक ये हैं पिछले तीन दशकों में अफगानिस्तान में आए वो भूकंप जिन्होंने 100 से ज्यादा की जान ले ली.
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1991, हिंदु कुश
पक्तिका में भूकंप के बाद का नजारा देखते लोग.अफगानिस्तान में भूकंपों का लंबा इतिहास है जिनमें से कई तो पाकिस्तान की सीमा से सटे पहाड़ी हिंदु कुश इलाके में आए थे. 1991 में इसी इलाके में आए एक भूकंप में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और सोवियत संघ में 848 लोग मारे गए थे.
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1997, कायेन
पक्तिका में भूकंप के बाद का हाल. सुदूरवर्ती होने और दशकों से चल रहे अलग अलग युद्धों की वजह से इंफ्रास्ट्रक्चर बुरे हाल में है और इस वजह से इस इलाके में भूकंप से मरने वालों की संख्या अकसर काफी बढ़ जाती है. 1997 में अफगानिस्तान और ईरान की सीमा पर 7.2 तीव्रता के भूकंप ने दोनों देशों में 1,500 से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी. 10,000 से ज्यादा घर भी बर्बाद हो गए थे.
तस्वीर: Bakhtar News Agency/AP/picture alliance
फरवरी 1998, तखर
पक्तिका में भूकंप के बाद घायलों को ले जाते लोग. 1998 में सुदूर तखर प्रांत में आए भूकंप ने कम से कम 2,300 लोगों की जान ले ली थी. कुछ अनुमानों के हिसाब से 4,000 लोगों के मारे जाने की संभावना है.
तस्वीर: BAKHTAR NEWS AGENCY/REUTERS
मई 1998, तखर
पक्तिका में तालिबान के लड़ाके घायलों की मदद के लिए एक हेलीकॉप्टर को सुरक्षा देते हुए. मई 1998 में तखर में फिर से एक भीषण भूकंप आया और तबाही मचा गया. 6.6 तीव्रता वाले इस भूकंप ने 4,700 लोगों की जान ले ली.
तस्वीर: Bakhtar News Agency/AP/picture alliance
2002, हिंदु कुश.
पक्तिका में भूकंप से टूटा हुआ एक घर. मार्च 2002 में हिंदु कुश इलाके में एक के बाद एक कर दो भूकंप आए जिनकी वजह से कुल 1,100 लोगों की जान चली गई.
तस्वीर: Bakhtar News Agency/dpa/picture alliance
2015, हिंदु कुश
यह तस्वीर बदगीस में जनवरी 2022 में आए भूकंप में टूटे एक घर की है. 2015 में आया यह भूकंप देश के इतिहास में सबसे तीव्र भूकंपों में से था. इसकी तीव्रता 7.5 आंकी गई थी. इसने अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि पड़ोसी देशों पाकिस्तान और भारत में कुल 399 लोगों की जान ले ली. (रॉयटर्स)