जो निपा वायरस भारत में लोगों की जान ले रहा है वह दरअसल कोई नया वायरस नहीं है, बल्कि 20 साल पहले ही उसकी पहचान की जा चुकी है. जानिए कहां से आया जानलेवा निपा वायरस.
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निपा वायरस का आतंक केरल के बाद बाकी राज्यों में भी अपने पांव पसार रहा है. पश्चिम बंगाल से निपा का एक मामला सामने आने के बाद लोगों में तेजी से इस वायरस का डर बढ़ रहा है. चिकित्सकों का कहना है कि इस वायरस का कोई कारगर इलाज नहीं है, बल्कि एकमात्र बचाव ही इसका इलाज है. केरल में निपा वायरस से 10 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र द्वारा देशभर में हाई अलर्ट जारी किया गया है. नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनोलॉजी विभाग की मृणाल सरकार ने बताया, "निपा वायरस के बारे में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मनुष्यों या जानवरों के लिए इसका कोई टीका उपलब्ध नहीं है. अगर कोई मनुष्य निपा वायरस से संक्रमित होता है, तो ऐसी स्थिति में सहायक देखभाल ही एकमात्र विकल्प है. गंभीर हालत के रोगियों को इंटेन्सिव केयर युनिट में रखा जाता है."
ऐसे मिला नाम
निपा एक ऐसी बीमारी है जो मनुष्यों और जानवरों दोनों को प्रभावित करती है. यह वायरस आमतौर पर फ्रूट बैट यानी चमगादड़ और सूअरों को संक्रमित करता है. यह संक्रमित चमगादड़, सूअर या मनुष्यों से सीधे संपर्क के द्वारा फैल सकता है. निपा वायरस एन्सेफलाइटिस यानी मस्तिष्क की सूजन का कारण बन सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस वायरस की पहचान 1998 में मलेशिया के कंपंग सुंगई निपा में हुई थी. उस दौरान सूअर इस वायरस के मेजबान थे. 2004 में बांग्लादेश में चमगादड़ से दूषित होने वाले खजूर के उपयोग के परिणामस्वरूप निपा वायरस इंसानों में फैल गया था. सूअरों और चमगादड़ों के अलावा यह वायरस अन्य पालतू जानवरों को भी संक्रमित करने में सक्षम है.
क्या है निपा वायरस?
अफ्रीका में इबोला जैसे जानलेवा वायरस के कहर के बाद अब एशिया में निपा नाम का वायरस सामने आया है. चमगादड़ की एक खास प्रजाति से फैलने वाला यह वायरस इंसान को 24-48 घंटे के भीतर ही कोमा में भेज सकता है.
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क्या है निपा?
निपा एक तरह का संक्रमण फैलाने वाला वायरस है. इसे "निपा वायरस एन्सेफलाइटिस" भी कहा जाता है. भारत में इसके कुछ मामले केरल में सामने आए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह वायरस इंसान और जानवर दोनों पर हमला कर सकता है.
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कब हुई पहचान?
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इस वायरस की पहचान साल 1998 में सिंगापुर और मलेशिया में हुई. उस वक्त यह सिर्फ सुअरों में देखने को मिलता था. लेकिन फिर यह इंसानों को भी प्रभावित करने लगा.
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कहां से आता है?
डब्लयूएचओ के मुताबिक इस वायरस का नेचुरल होस्ट फ्रूट बैट (चमगादड़) होता है. ये वायरस चमगादड़ों के मूत्र, लार और शरीर से निकलने वाले द्रव में होता है. फिर जो भी इनके संपर्क में आता है, उसमें यह वायरस घर कर लेता है.
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भारत और बांग्लादेश
साल 2004 में भारत और बांग्लादेश में इस वायरस के कुछ मामले सामने आए. इन मामलों में देखा गया कि ऐसे लोग जिन्होंने खजूर के पेड़ से मिलने वाली ताड़ी या खजरी को पिया, उन्हें इस वायरस ने अपनी चपेट में लिया. क्योंकि ये वही पेड़ थे जो चमगादड़ों से प्रभावित हुए थे.
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क्या हैं लक्षण?
निपा वायरस हवा से नहीं फैलता, बल्कि वायरस प्रभावित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है. ऐसे में बुखार के साथ सिर दर्द, थकान, भटकाव, मेंटल कंफ्यूजन महसूस होता है. अगर समय रहते इसकी पहचान नहीं की जाती तो महज 24-48 घंटे में व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है.
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क्या है इलाज?
अब तक इसके उपचार के लिए कोई पुख्ता वैक्सीन नहीं बनी है. मरीजों को आईसीयू में रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता. इसके अलावा ताड़ी, खजरी जैसे पेय पदार्थों से कुछ समय तक दूर रहें. इसके साथ ही जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि लोग सावधान रहें.
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निपा से बचाव के उपाय बताते हुए मृणाल सरकार कहती हैं, "ऐसे फलों को नहीं खाना चाहिए जो कटा हो या उसे किसी जानवर ने खाया हो. पालतू जानवरों को भी चमगादड़ों से दूषित फल नहीं खाने देना चाहिए और यहां तक कि ऐसे फल मिलने पर उसे घर के बाहर भी नहीं फेंकना चाहिए, ऐसी स्थिति में अन्य जानवरों या पक्षियों में संक्रमण फैलने की आशंका हो सकती है. संक्रमित खजूर खाने से बचना चाहिए. साथ ही अस्पतालों में मरीजों की देखभाल करने वाले चिकित्साकर्मियों को गाउन, दस्ताने और मास्क पहनना चाहिए."
लक्षणों पर दें ध्यान
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 75 प्रतिशत की मृत्युदर के खतरे के साथ यह वायरस अत्यधिक घातक हो सकता है. वैशाली स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में चिकित्सीय सलाहकार डॉक्टर एनपी सिंह ने बताया, "ऐसे लोग, जिनके आसपास सूअर हैं, उन्हें इस वायरस से खतरा ज्यादा है और यह सूअरों का मांस खाने वाले लोगों को भी अपनी चपेट में ले सकता है." निपा के लक्षणों के बारे में बताते हुए एनपी सिंह ने कहा, "निपा को एनआईवी वायरस के नाम से भी जाना जाता है. इंसानों में इसके संक्रमण के बाद तेज बुखार और श्वसन संबंधी परेशानी हो सकती है. यह मस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिससे पीड़ित के सिर में तेज दर्द होता है. इस संक्रमण के लिए कोई विशिष्ट चिकित्सा, कोई टीका या कोई एंटीवायरल थेरेपी नहीं है."
इसके बचाव के बारे में बात करते हुए हेल्थकेयर एट होम के चीफ ऑपरेशन ऑफिसर गौरव ठुकराल ने आईएएनएस को बताया, "निपा से बचने के लिए आप बस ध्यान रखें कि कोई फल, जैसे नारियल या फिर खजूर को खरीदते या खाते वक्त यह देंखे कि फल पूरी तरह साबुत होना चाहिए. वह कहीं से भी कटा या उस पर निशान नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही फलों को अच्छी तरह पानी से धोना चाहिए. अपने हाथों से भी अच्छी तरह धोएं. डब्ल्यूएचओ द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार, हर किसी शख्स के हाथ धोने की अवधि कम से कम 30 सेंकड तक होनी चाहिए." उन्होंने आगे कहा, "सार्वजनिक स्थानों या यात्रा के दौरान संभव हो तो एन95 मास्क का उपयोग करना चाहिए. खांसते या छींकते समय हाथों का नहीं, हमेशा टिशू पेपर या किसी कपड़े का इस्तेमाल करना चाहिए. किसी भी लक्षण के नजर आने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए."
प्रज्ञा कश्यप (आईएएनएस)
कैसे बचें वायरस के खतरा से?
कभी स्वाइन फ्लू, कभी बर्ड फ्लू तो कभी मर्स वायरस लोगों की जान का दुश्मन बन जाता है. जानिए कि खुद को एच7एन9, एच10एन8 और एच1एन5 जैसे वायरस से कैसे बचाया जा सकता है.
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खूबसूरती पर मत जाना
ये देखने में जितने खूबसूरत हैं, उतने ही खतरनाक भी. नंगी आंखों से आप इन्हें नहीं देख सकते, लेकिन जब ये वायरस आपके शरीर पर हमला बोलते हैं तो खांसी, जुकाम, सर दर्द, बदन दर्द और बुखार इनके होने का पूरा एहसास करा देते हैं.
तस्वीर: Novartis Vaccines
बस जुकाम या फ्लू?
अधिकतर लोग फ्लू को नजला या जुकाम समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं. हालांकि दोनों वायरस के ही कारण होते हैं, लेकिन फ्लू का वायरस कई गुना ज्यादा खतरनाक होता है.
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हर साल कुछ नया
फ्लू का खतरा सर्दी में बढ़ जाता है. जनवरी में न्यूयॉर्क में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को फ्लू हुआ. माना जा रहा है कि इस साल जर्मनी में फ्लू का खतरा पिछले साल से अधिक है.
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कोई छोटी बात नहीं
1918 से 1920 के बीच स्पेन में फ्लू के कारण ढाई करोड़ लोगों की जान गयी. इनमें 20 से 40 साल के लोगों की काफी संख्या थी. यानि फ्लू को संजीदगी से लेना जरूरी है.
तस्वीर: National Museum of Health and Medicine, Armed Forces Institute of Pathology/Washington D.C./United States
क्या करें?
फ्लू हो जाने के बाद अधिकतर डॉक्टर केवल बीमारी के लक्षणों से लड़ने की कोशिश करते हैं. वे खांसी, जुकाम या बुखार के खिलाफ दवा दे देते हैं. कोशिश यह होती है कि मरीज ज्यादा से ज्यादा आराम ले सके.
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बर्ड फ्लू का कहर
बर्ड फ्लू तब होता है जब इन्फ्लुएंजा का वायरस एच5एन1 पक्षियों को बीमार कर दे. वैसे तो यह वायरस एक पक्षी से दूसरे में ही फैलता है, लेकिन कई मामलों में बर्ड फ्लू का असर इंसानों पर भी देखा गया है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
चीन में बर्ड फ्लू
चीन में एक महीने में ही बर्ड फ्लू के सौ से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. हॉन्ग कॉन्ग में एहतियातन बीस हजार मुर्गों को मार दिया गया है.
तस्वीर: Reuters
स्वाइन फ्लू की मार
इसी तरह से एच1एन1 वायरस के कारण स्वाइन फ्लू होता है. यह वायरस इंसानों के लिए भी उतना ही खतरनाक है जितना कि जानवरों के लिए.
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वायरस के खिलाफ
यदि वायरस बहुत ज्यादा फैल गया है तब ही डॉक्टर एंटी वायरल दवा देते हैं. हालंकि फ्लू के लिए बनी दवा टैमीफ्लू पर काफी विवाद हुआ है. कई शोध बताते हैं कि यह दवा उतनी असरदार नहीं है जितना इसे समझा जाता है.
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टीके भी बेअसर
आप खुद को फ्लू से बचाने के लिए टीका भी लगवा सकते हैं. लेकिन हर साल वायरस की नई प्रजातियां सक्रिय होती हैं, इसलिए इनसे बचने के लिए हर साल एक नए तरह का टीका लगवाना होगा.
तस्वीर: Novartis Vaccines
अपना ख्याल रखिए
फ्लू से बचने का सबसे बेहतरीन तरीका है साफ सफाई रखना. खाना खाने से पहले और बाद में हाथ धोना कभी ना भूलें.