भारत में जो जितना ज्यादा पढ़ा-लिखा है, उसके बेरोजगार होने की संभावना उतनी ज्यादा है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ताजा रिपोर्ट कहती है कि देश के बेरोजगारों में 80 फीसदी युवा हैं.
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इसी हफ्ते जारी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के कुल बेरोजगारों में 80 फीसदी युवा हैं. ‘द इंडिया इंपलॉयमेंट रिपोर्ट 2024' के मुताबिक पिछले करीब 20 सालों में भारत में युवाओं के बीच बेरोजगारी लगभग 30 फीसदी बढ़ चुकी है. साल 2000 में युवाओं में बेरोजगारी दर 35.2 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 65.7 फीसदी हो गई.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन डिवेलपमेंट (आईएचडी) ने मिलकर यह रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट कहती है कि हाई स्कूल या उससे ज्यादा पढ़े युवाओं में बेरोजगारी का अनुपात कहीं ज्यादा है.
रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीम के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने इस रिपोर्ट को जारी करते हुए बताया कि साल 2000 से 2019 के बीच युवाओं के बीच बेरोजगारी लगातार बढ़ी जबकि कोविड महामारी के बाद बेरोजगारी दर में कमी आई.
सर्वे: भारतीय कंपनियों में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी
जॉब्स फॉर हर की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कॉर्पोरेट भारत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियां महिलाओं को अधिक रोजगार देने के लिए तरह-तरह के कदम उठा रही है.
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बढ़ी कामकाजी महिलाएं
जॉब्स फॉर हर ने 300 कंपनियों का सर्वे किया और पाया कि सर्वे में शामिल कंपनियों में महिलाएं लगभग 50 फीसदी हैं. 2021 की तुलना में यह 17 फीसदी की वृद्धि है.
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लिंग विविधता पर जोर
अध्ययन के मुताबिक 70 फीसदी कंपनियों के पास अब अपनी नियुक्ति में लिंग विविधता हासिल करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित लक्ष्य हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि का संकेत है.
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काम पर महिलाओं के लौटने के लिए आसान होते रास्ते
काम पर लौटने वाली महिलाओं के समर्थन में 57 प्रतिशत बड़े उद्यमों और 43 प्रतिशत स्टार्टअप/एसएमई ने उनकी सहायता के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं.
महिलाओं की भर्ती बढ़ाने के लिए भी कंपनियां जोर दे रही हैं. सर्वे में शामिल 51 फीसदी कंपनियों ने बताया कि उन्होंने नौकरी देने वाले प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी की है.
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वर्क फ्रॉम होम का चलन घटा
कोरोना काल के दौरान वर्क फ्रॉम होम का चलन बढ़ा था. 2022 में आयोजित विविधता सर्वे ने महामारी के बाद की अवधि के दौरान इस नीति को अपनाने में धीरे-धीरे कमी का संकेत दिया है. वर्तमान कार्यान्वयन दर अभी भी महामारी-पूर्व युग से अधिक है. 2019 में वर्क फ्रॉम होम को लागू करने वाली कंपनियों का प्रतिशत 59 प्रतिशत था, जो 2020 में बढ़कर 85, 2021 में 83 और फिर 2022 में घटकर 63 प्रतिशत हो गया.
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नागेश्वरन ने कहा, "साल 2000 से 2019 के बीच युवाओं में बेरोजगारी दर 5.7 फीसदी से बढ़कर 17.5 फीसदी हो गई. लेकिन 2022 में यह कम होकर 12.4 फीसदी पर आ गई.”
महिलाएं सबसे ज्यादा बेरोजगार
सबसे ज्यादा बेरोजगारी ग्रैजुएट डिग्री धारकों में पाई गई. इनमें महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित समूह था. 2022 में ऐसी महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा थी जो ना तो कोई नौकरी कर रही थीं और ना ही किसी तरह की पढ़ाई या ट्रेनिंग कर रही थीं.
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ऐसी महिलाओं की संख्या 48.4 फीसदी थी जबकि पुरुषों की मात्र 9.8 फीसदी. यानी बेरोजगारों में महिलाएं लगभग 95 फीसदी थीं.
रिपोर्ट कहती है, "युवा महिलाओं के बेरोजगार होने की संभावना पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. 20-24 वर्ष और 25-29 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं में यह चलन सबसे ज्यादा पाया गया है.”
भारत में रोजगार मुख्यतया या तो अनौपचारिक है या फिर लोग अपना काम कर रहे हैं. साल 2000 से 2022 के बीच औपचारिक नौकरी कर रहे लोगों की संख्या मात्र 10 फीसदी रही जबकि 90 फीसदी लोग या तो अपना काम कर रहे हैं या फिर अनौपचारिक रोजगार कर रहे हैं.
साल 2000 के बाद से औपचारिक रोजगार का अनुपात लगातार बढ़ रहा था लेकिन 2018 के बाद इसमें भारी गिरावट आई है. ठेके पर आधारित नौकरियों में इजाफा हुआ है जबकि बहुत कम लोग नियमित और लंबी अवधि के अनुबंध वाली नौकरियों में हैं.
रिपोर्ट कहती है, "नौकरीपेशा लोगों का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है जिन्हें लंबी अवधि के अनुबंध मिले हैं.”
नागरिकता छोड़ कहां बस रहे हैं भारतीय
भारत सरकार के मुताबिक जून 2023 तक कम से कम 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपना नया ठिकाना बना रहे हैं.
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भारत छोड़ विदेशों में बसते भारतीय
भारतीय विदेश मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि जून 2023 तक 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी.
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अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जाते भारतीय
नागरिकता छोड़ने वाले भारतीय 135 देशों में जा बसे, जिनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
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17 लाख से अधिक भारतीय छोड़ चुके नागरिकता
2011 के बाद से 17 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी है. भारत दोहरी नागरिकता की इजाजत नहीं देता, इसलिए जो दूसरे देश की नागरिकता लेते हैं उन्हें भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है.
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2022 में सबसे ज्यादा भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता
विदेश मंत्री ने संसद को बताया कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी जबकि 2021 में उनकी संख्या 1,63,370 और 2020 में 85,256 थी.
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अमेरिका अब भी लोकप्रिय देश
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक संख्या के आधार पर भारतीयों ने अमेरिकी सपने का पीछा करना जारी रखा है और उनमें से 78 हजार से ज्यादा भारतीयों ने वहां की नागरिकता ली.
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ऑस्ट्रेलिया भी पसंद
अमेरिका के बाद दूसरी पसंद पर ऑस्ट्रेलिया है. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में 23,533 भारतीयों ने ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता ली, इसके बाद कनाडा (21,597), और यूके (14,637) है.
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यूरोपीय देश भी पसंदीदा ठिकाना
हाल के सालों में इटली, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, स्वीडन, स्पेन और सिंगापुर जैसे देश पसंदीदा ठिकाना बनकर सामने आए हैं. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग यहां जाकर बसना पसंद कर रहे हैं.
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भारत के लिए एसेट
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में दिए बयान में कहा कि सरकार मानती है कि देश के बाहर रह रहे लोग देश के लिए बहुत मायने रखते हैं. उनका कहना है कि विदेश में रहने वाले भारतीयों की कामयाबी और प्रभाव से देश को लाभ पहुंचता है.
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क्यों छोड़ रहे हैं नागरिकता
विदेश मंत्री ने बताया कि पिछले दो दशकों में बड़ी संख्या में भारतीय ग्लोबल वर्कप्लेस की तलाश करते रहे हैं. उन्होंने कहा कि इनमें से कई लोगों ने अपनी सुविधा के लिए दूसरे देशों की नागरिकता ली.
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करोड़पति छोड़ रहे भारत
ब्रिटिश कंपनी हेनली एंड पार्टर्नस की सालाना हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 के मुताबिक इस साल भारत के 6,500 करोड़पति देश छोड़कर चले जाएंगे. पिछले साल के मुकाबले यह संख्या कम है. 2022 में 7,500 करोड़पतियों ने भारत छोड़ा था.
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लेकिन चिंता की बात यह बताई गई है कि स्थायी नौकरीपेशा लोगों की आय 2019 के बाद से या तो स्थिर रही है या फिर कम हुई है. 2012 से 2022 के बीच अनौपचारिक रोजगार करने वालों की आय में कुछ वृद्धि हुई है.
युवाओं में कौशल की कमी
भारत सबसे ज्यादा युवा आबादी वाले देशों में से एक है और इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े लाभ के रूप में देखा जाता है लेकिन आईएलओ की रिपोर्ट में इस बात को लेकर चिंता जताई गई है कि अधिकतर युवाओं में जरूरी कौशल की कमी है.
जर्मनी आकर कर सकते हैं ये नौकरियां
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रिपोर्ट बताती है कि 75 फीसदी युवा ईमेल में अटैचमेंट के साथ डॉक्युमेंट भेजने तक में सक्षम नहीं हैं. 60 फीसदी युवा कंप्यूटर पर कॉपी-पेस्ट जैसे बहुत सामान्य काम भी नहीं कर पाते जबकि 90 फीसदी युवाओं को स्प्रैडशीट पर गणित के फॉर्म्युलों का प्रयोग करना नहीं आता.
2021 में भारत में युवाओं की आबादी 27 फीसदी थी जो 2036 तक घटकर 21 फीसदी हो जाएगी. यानी हर साल 70 से 80 लाख युवा रोजगार चाहने वालों की लाइन में जुड़ रहे हैं. लेकिन आमतौर पर उपलब्ध रोजगार कम गुणवत्ता वाला है और अधिकतर अनौपचारिक काम ही उपलब्ध है.
नागेश्वरन ने कहा कि फिलहाल नौकरियां देने का ज्यादातर काम सरकार ने संभाल रखा है जबकि उद्योग जगत को इस मामले में बढ़त लेने की जरूरत है. साथ ही, रिपोर्ट में गैर-कृषि रोजगार बढ़ाने के लिए नीतियों में बदलाव की जरूरत पर भी जोर दिया गया है, ताकि आने वाले सालों में बेरोजगारों की लाइनों को और लंबा होने से रोका जा सके.