जर्मनी और भारत की कौन सी जगहें बनेंगी यूनेस्को विश्व धरोहरें
११ जुलाई २०२५
कुछ ही दिनों में तमिलनाडु और महाराष्ट्र में स्थित मराठा साम्राज्य के प्राचीन किले को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया जा सकता है. इस किले के साथ-साथ दुनिया भर की 31 और ऐतिहासिक जगहों को भी इस सूची के लिए नामित किया गया है. पेरिस में 16 जुलाई तक चलने वाली 47वीं वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में इन सभी पर फैसला लिया जाएगा.
भारत ने विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल होने के लिए प्राचीन किलों के एक समूह को नामित किया है. यह किले 17वीं से 19वीं सदी के बीच भारत के बड़े हिस्से पर शासन करने वाले मराठा साम्राज्य की सैन्य शक्ति का प्रतीक हैं. यह भव्य और ऐतिहासिक किले महाराष्ट्र और तमिलनाडु में स्थित है.
जर्मनी की कई सारी इमारतें हो सकती हैं इस सूची में शामिल
पिछले 10 सालों से जर्मनी कई महलों को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल करवाने की कोशिश कर रहा है. जैसे कि आल्प्स पहाड़ियों के किनारे ऊंचाई पर बसा नॉयश्वानस्टीन किला, जो कि जर्मनी की सबसे मशहूर इमारतों में से एक है. इसकी ऊंची-ऊंची मीनारों वाले ढांचे को देखकर ऐसा लगता है मानो यह किसी परियों की कहानी से निकला हो. हर साल दुनिया भर से 10 लाख से भी अधिक पर्यटक इसे देखने आते हैं.
1869 में राजा लुडविग द्वितीय ने इस किले की नींव रखी थी और इसे राजा के निजी निवास के तौर पर बनवाया जा रहा था. हालांकि यह किला कभी पूरा ही नहीं हो पाया. आज के समय में यह खूबसूरत महल बवेरिया राज्य की संपत्ति है और अपनी भव्य सजावट के लिए काफी प्रसिद्ध है.
जर्मनी ने नॉयश्वानश्टाइन किले के अलावा लिंडरहोफ महल, शाखेन किंग्स हाउस और हेरेनकीमजे महल परिसर को भी इस सूची में शामिल होने के लिए नामांकित किया है.
जर्मनी से लेकर जमैका तक, विश्व धरोहर स्थलों की बढ़ती सूची
1970 के दशक से अब तक, जब से यूनेस्को की विश्व धरोहर संधि लागू हुई है. आखन चर्च और जोलफेराइन कोयला खदान परिसर समेत जर्मनी के 50 से भी अधिक स्थानों को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया जा चुका है. क्योंकि उस समय द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सांस्कृतिक धरोहरों को हुआ नुकसान इस संधि की शुरुआत का मुख्य कारण था.
हालांकि, असली मोड़ तब आया जब 1960 के दशक में मिस्र ने असवान हाई डैम का निर्माण शुरू किया. जिससे अबू सिम्बल के प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर जलमग्न हो सकते थे. तब दुनिया भर के देशों ने मिलकर उन्हें बचाने की कोशिश की और यही विश्व धरोहर संधि की नींव बनी. आज करीब 195 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जिसका मकसद सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों की रक्षा करना है.
इस सूची में अब तक कुल 1,223 विश्व धरोहर स्थल है. इस साल यूनेस्को को कुल 32 नए सांस्कृतिक स्थलों के नामांकन मिले हैं. जैसे कि ताजिकिस्तान का प्राचीन खुत्ताल क्षेत्र, जमैका का समुद्र में डूबा शहर पोर्ट रॉयल, पोलैंड का आधुनिक शहर ग्डिन्या और कंबोडिया में खमेर रूज के पीड़ितों का स्मृति स्थल.
इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने पाषाण युग के एक रेगिस्तानी भू-क्षेत्र फाया पैलियोलैंडस्केप को नामांकित किया है. दक्षिण कोरिया ने पहले के मानवों द्वारा चट्टानों पर बनाए गए रहस्यमय चित्र, दाएगोकचॉन स्ट्रीम पेट्रोग्लिफ्स को नामांकित किया है. जिनकी कहानी आज भी एक पहेली है. रूस ने इस सूची के लिए शुलगन-ताश गुफा को चुना है. जो कि दक्षिण यूराल पर्वत में स्थित है और यहां की चट्टानों पर बने चित्र 20,000 साल से भी अधिक पुराने हैं. चीन ने वेस्टर्न शिया सम्राटों की कब्रें को नामांकित किया है. यह तांगुत सभ्यता की झलक देते हैं और दुनिया के सबसे बड़े कब्रिस्तानों में से एक माने जाते हैं.
यूनेस्को की रैंकिंग पर उठते सवाल
इस समय यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में दुनिया के 168 देशों से कुल 1,223 सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरें शामिल हैं. जिसमें से 952 सांस्कृतिक धरोहरें हैं और 231 प्राकृतिक धरोहरें हैं. इसमें से 56 स्थल ऐसे हैं, जो खतरे में हैं यानी उनके नष्ट होने का जोखिम बना हुआ है.
यह अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग कई बार आलोचना का केंद्र भी बन जाती है. खासतौर पर वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के बीच. जैसे माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंथ्रोपोलॉजी के क्रिस्टोफ ब्रुमन कहते हैं, "आखिर इस तरह की रैंकिंग कितनी ही निष्पक्ष हो सकती है?”
ब्रुमन ने अपने शोध के आधार पर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि किसी क्षेत्र को विश्व धरोहर स्थल घोषित किए जाने का सबसे आम असर होता है, बड़ी संख्या में पर्यटकों का आना. उन्होंने माक्स प्लांक रिसर्च साइंस मैगजीन में कहा, "स्थानीय लोग इससे कुछ लाभ तो उठा सकते हैं. लेकिन अक्सर फायदे से कहीं ज्यादा इसके नुकसान होते हैं.” साल 2021 में प्रकाशित हुई अपनी किताब "द बेस्ट वी शेयर: नेशन, कल्चर एंड वर्ल्ड-मेकिंग इन द यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज एरीना” में उन्होंने इस विषय को विस्तार से समझाया है.
21 सदस्य देशों के प्रतिनिधि वाली वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी पेरिस में मौजूदा विश्व धरोहर स्थलों पर बढ़ते खतरों पर भी चर्चा करेगी. जैसे कि यूक्रेन और मिडिल ईस्ट में चल रहे सशस्त्र संघर्ष, प्राकृतिक आपदाएं, पर्यावरण प्रदूषण, शिकार और बिना नियंत्रण वाले पर्यटन से बढ़ रहे खतरे भी इसका केंद्र होंगे. यूनेस्को और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की हालिया रिपोर्ट के अनुसार आज के समय में लगभग तीन-चौथाई विश्व धरोहर स्थल पानी की कमी और बाढ़ जैसे खतरों का सामना कर रहे हैं.
हर पांच में से एक विश्व धरोहर स्थल पानी की कमी और बार-बार आने वाली बाढ़ की चपेट में फंसा हुआ है. भारत का ताजमहल भी इस सूची में शामिल है. भूजल स्तर गिरने के कारण जिस पर धंसने का खतरा मंडरा रहा है. इसके अलावा अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क को भी 2022 में आई भारी बाढ़ के बाद बंद करना पड़ा था. रिपोर्टों के मुताबिक, वहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर को दोबारा बनाने में 2 करोड़ डॉलर से भी अधिक का खर्च आ सकता है. हालांकि, इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले इलाके मिडिल ईस्ट, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण एशिया के कुछ हिस्से और उत्तरी चीन हैं.
वहीं दूसरी ओर, बवेरिया जैसे देश पेरिस में होने वाले फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि अगर इस महल को विश्व धरोहर स्थल होने का दर्जा मिल जाता है, तो वहां और भी ज्यादा पर्यटक आएंगे. लेकिन बवेरिया पैलेस प्रशासन को पर्यटन की चिंता नहीं हैं क्योंकि उनके लिए पर्यटन से कहीं ज्यादा मायने रखता है, वह सम्मान जो इस सूची में शामिल होने से मिलेगा.