बच्चों के कल्याण के लिए समर्पित संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ के मुताबिक यूक्रेन में युद्ध, कुछ देशों में जलवायु परिवर्तन से जुड़े सूखे और कोविड-19 महामारी के कारण इस साल खाद्य कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है.
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यूनिसेफ की नई रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के लगभग 80 लाख बच्चों के गंभीर कुपोषण से मरने का खतरा है. इनमें से अधिकतर बच्चे उन 15 देशों में हैं जो भोजन और चिकित्सा सहायता की कमी से पीड़ित हैं. इन संकटग्रस्त देशों में अफगानिस्तान, इथियोपिया, हैती और यमन शामिल हैं.
पिछले साल तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से ही देश की हालत खराब हुई है. एक अनुमान के मुताबिक इस साल अफगानिस्तान में 11 लाख बच्चे भीषण भूख से पीड़ित होंगे. बहुत अधिक दुबलापन कुपोषण का सबसे खराब रूप है. इस रोग में बच्चे को भोजन की इतनी कमी हो जाती है कि उसका प्रतिरक्षा तंत्र काम करना बंद कर देता है. उन्हें अन्य बीमारियों के होने का भी खतरा होता है.
अल्पपोषण कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली का कारण बनता है, जो अच्छी तरह से पोषित बच्चों की तुलना में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु के जोखिम को 11 गुना तक बढ़ा देता है.
सर्वे: भारत में 80 प्रतिशत परिवारों में भोजन तक की समस्या
महामारी के आर्थिक असर पर किए गए एक सर्वे ने पाया है कि 2021 में करीब 80 प्रतिशत परिवार "खाद्य असुरक्षा" से जूझ रहे थे. सर्वे से संकेत मिल रहे हैं कि महामारी के आर्थिक असर दीर्घकालिक हो सकते हैं.
इस सर्वे के लिए 14 राज्यों में जितने लोगों से बात की गई उनमें से 79 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि 2021 में उन्हें किसी न किसी तरह की "खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. 25 प्रतिशत परिवारों को "भीषण खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. सर्वेक्षण भोजन का अधिकार अभियान समेत कई संगठनों ने मिल कर कराया था.
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भोजन तक नहीं मिला
सर्वे में पाया गया कि 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को या तो पर्याप्त खाना न हासिल होने की चिंता थी या वो पौष्टिक खाना नहीं खा पाए या वो सिर्फ गिनी चुनी चीजें खा पाए. 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके घर में सर्वे के पहले के महीने में भोजन खत्म हो गया था. करीब 33 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें या उनके परिवार में किसी न किसी को एक वक्त का भोजन त्यागना पड़ा.
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भोजन मिला, लेकिन पोषण नहीं
सर्वेक्षण दिसंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच कराया गया और इसमें 6,697 लोगों को शामिल किया गया. इनमें से 41 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनके भोजन की पौष्टिक गुणवत्ता महामारी के पहले के समय की तुलना में गिर गई. 67 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि वो रसोई गैस का खर्च नहीं उठा सकते थे.
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आय भी गिरी
65 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनकी आय महामारी के पहले की स्थिति के मुकाबले गिर गई. इनमें से 60 प्रतिशत परिवारों की मौजूदा आय उस समय के मुकाबले आधे से भी कम है. ये नतीजे दिखाते हैं कि महामारी के शुरू होने के दो साल बाद भी भारत में बड़ी संख्या में परिवारों की कमाई और सामान्य आर्थिक स्थिति संभल नहीं पाई है.
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नौकरी चली गई
32 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनके कम से कम एक सदस्य की या तो नौकरी चली गई या उन्हें वेतन का नुकसान हुआ.
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इलाज पर खर्च
23 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन्हें इलाज पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ी. इन परिवारों में 13 प्रतिशत परिवारों के 50,000 से ज्यादा रुपए खर्च हो गए और 35 प्रतिशत परिवारों के 10,000 से ज्यादा रुपए खर्च हुए.
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कर्ज में डूबे
लगभग 45 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन पर कर्ज बकाया है. इनमें से 21 प्रतिशत परिवारों के ऊपर 50,000 रुपयों से ज्यादा का कर्ज है.
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खोया बचपन
हर छह परिवारों पर कम से कम एक बच्चे का स्कूल जाना बंद हो गया. हर 16 परिवारों में से एक बच्चे को काम पर भी लगना पड़ा.
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महिलाओं पर ज्यादा असर
सर्वे में शामिल होने वालों में से 4,881 ग्रामीण इलाकों से थे और 1,816 शहरी इलाकों से. 31 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जनजातियों से थे, 25 प्रतिशत अनुसूचित जातियों से, 19% सामान्य श्रेणी से, 15% ओबीसी और छह प्रतिशत विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों से थे. भाग लेने वाले लोगों में कम से कम 71% महिलाएं थीं.
यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 की शुरुआत से कुपोषण ने अतिरिक्त 2,60,000 बच्चों को प्रभावित किया है. यूक्रेन में युद्ध और दुनिया के कुछ हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार सूखे के कारण खाद्य कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोरोना महामारी के कारण आर्थिक प्रभाव ने भी बच्चों में कुपोषण के मामलों में वृद्धि में योगदान दिया है.
यूनिसेफ ने कहा कि अनाज संकट को दूर करने के लिए 1.2 अरब डॉलर के सहायता पैकेज की तत्काल जरूरत है.
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा, "जी 7 मंत्रिस्तरीय के लिए जर्मनी में एकत्रित होने वाले विश्व नेताओं के पास इन बच्चों के जीवन को बचाने के लिए काम करने के अवसर के तौर पर एक छोटा सा मौका है. बर्बाद करने का कोई समय नहीं है. अकाल घोषित होने का इंतजार बच्चों के मरने का इंतजार करने जैसा है."
इससे पहले मई में भी यूनिसेफ ने बच्चों की स्थिति को लेकर चेताया था. उस वक्त एजेंसी ने कहा था कि कुपोषित बच्चों के जीवन को बचाने के लिए इलाज की लागत में 16 फीसदी की वृद्धि हो सकती है. यूनिसेफ के मुताबिक रेडी-टू-यूज थेराप्यूटिक फूड (आरयूटीएफ) के लिए जरूरी कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी का भी इन बच्चों की जान बचाने पर असर पड़ सकता है.
एए/सीके (डीपीए, एएफपी)
तेजी से बिगड़ रहे हैं अफगानिस्तान में हालात
तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद से अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग थलग हो गया है और हालत और खराब होते जा रहे हैं. देश की लगभग आधी आबादी भूख से तड़प रही है और तालिबान महिलाओं के अधिकारों को और सीमित करता जा रहा है.
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व्यापक भुखमरी
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) के मुताबिक अफगानिस्तान की लगभग आधी आबादी तीव्र भूख का सामना कर रही है और मदद पर निर्भर है. जैसे इस तस्वीर में काबुल में लोगों में चीन से आई रसद बांटी जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की एक प्रवक्ता ने बताया, "पूरे देश में लोग अभूतपूर्व स्तर पर भूख का सामना कर रहे हैं." उन्होंने बताया कि 1.97 करोड़ लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा है.
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सूखा और आर्थिक संकट
इसके अलावा पूरे देश में सूखा पड़ा हुआ है और गंभीर आर्थिक संकट भी जारी है. संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ एंथिया वेब ने कहा कि डब्ल्यूएफपी ने सिर्फ इसी साल 2.2 करोड़ लोगों की मदद कर भी दी है. हालांकि उन्होंने बताया कि अब अफगानिस्तान में अपने कार्यक्रम जारी रखने के लिए संस्था को 1.4 अरब डॉलर चाहिए.
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सख्त होते नियम
तालिबान ने शुरू में कहा था कि इस बार उनके पहले शासनकाल के मुकाबले ज्यादा संयम बरतेंगे, लेकिन महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर अंकुश बढ़ते जा रहे हैं. उन्हें माध्यमिक शिक्षा से दूर कर दिया गया है, अकेले सफर करने नहीं दिया जाता और घर के बाहर खुद को पूरी तरह से ढक कर रखने के लिए कह दिया गया है. काबुल में इस तरह के नाकों की मदद से नियंत्रण रखा जाता है.
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नए नियमों का विरोध
देश के आजाद ख्याल इलाकों में इन नए नियमों का विरोध बढ़ रहा है. विरोध प्रदर्शन में शामिल एक महिला ने कहा, "हम जिंदा जीवों की तरह जाने जाना चाहते हैं; इंसानों की तरह जाने जाना चाहते हैं, घर के कोने में बंद गुलामों की तरह नहीं." प्रदर्शनकारियों ने पूरे चेहरे को नकाब से ढकने के नए नियम के खिलाफ नारा भी लगाया, "बुर्का मेरा हिजाब नहीं है."
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15 डॉलर का एक बुर्का
काबुल में बुर्के बेचने वाले एक व्यापारी ने बताया कि नए नियमों की घोषणा के बाद बुर्कों के दाम 30 प्रतिशत बढ़ गए थे. हालांकि अब दाम सामान्य हो गए हैं क्योंकि डीलरों को पता चल गया है कि बुर्कों की मांग बढ़ी ही नहीं है. इस व्यापारी ने कहा, "तालिबान के मुताबिक बुर्का अच्छी चीज है, लेकिन ये महिलाओं के लिए आखिरी विकल्प है."
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
साथ में रेस्तरां नहीं जा सकते
अफगान मानकों के हिसाब से आजाद ख्याल माने जाने वाले हेरात में भी पुरुषों और महिलाओं के साथ खाना खाने पर पाबंदी लगा दी गई है. एक रेस्तरां के मैनेजर सैफुल्ला ने माना कि वो ये दिशा निर्देश लागू करने पर मजबूर हैं, बावजूद इसके कि "इसका व्यापार पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ रहा है." उन्होंने बताया कि अगर यह प्रतिबंध चलता रहा तो उन्हें मजबूरन कर्मचारियों को नौकरी से निकलना पड़ेगा.
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
तालिबान के नए नियमों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है. जीसात देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा, "हम और ज्यादा प्रतिबंधात्मक हो रहे नियमों की निंदा करते हैं" और "महिलाओं और लड़कियों पर लगे प्रतिबंधों को हटाने" के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए. इस तस्वीर में तालिबान के कुछ लड़ाके संगठन के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद ओमर की मौत की वर्षगाांठ के एक समारोह में बैठे हैं. (फिलिप बोल)