जहां एक तरह 300 से ज्यादा लोगों के एक जगह जमा होने की अनुमति नहीं है, वहीं दूसरे ओर लगभग दो हजार लोगों को इकट्ठा कर एक कॉन्सर्ट कराया गया.
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जर्मनी में 24 घंटों में कोरोना के 2,000 से ज्यादा मामले सामने आए हैं. आखिरी बार इस तरह की संख्या अप्रैल के महीने में देखी गई थी. लिहाजा अब माना जा रहा है कि देश में सेकंड वेव आ ही चुकी है. बावजूद इसके जर्मनी में एक कॉन्सर्ट आयोजित किया गया जिसमें लगभग दो हजार लोगों ने हिस्सा लिया. यूं तो कम से कम नवंबर तक किसी भी तरह के बड़े इवेंट पर रोक है लेकिन यह एक खास इवेंट था जिसे वैज्ञानिकों ने एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर आयोजित किया.
यहां हिस्सा लेने वाले सभी लोग जवान थे, हृष्ट पुष्ट थे और किसी तरह की बीमारी का शिकार नहीं थे. इन सब के लिए कॉन्सर्ट में आने से पहले कोरोना टेस्ट कराना भी अनिवार्य था. अंदर आने से पहले इन सबका तापमान जांचा गया, सभी को पूरा वक्त एफएफपी2 मास्क पहन कर रखना था और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप का इस्तेमाल भी करना था. इसके अलावा कॉन्सर्ट हॉल की छत पर ऐसे सेंसर भी लगे थे जो इन लोगों की मूवमेंट पर नजर रख रहे थे.
इस शोध के मुख्य रिसर्चर श्टेफान मोरित्स का कहना है, "हम यह पता करना चाहते हैं कि इस तरह के कॉन्सर्ट में लोग एक दूसरे से कितने संपर्क में आते हैं. यह बात अब तक साफ नहीं है." ऐसा करने के लिए लोगों के हाथों पर एक विशेष प्रकार का फ्लोरसेंट डिसइन्फेक्टेंट स्प्रे किया गया. कॉन्सर्ट के अंधेरे कमरे में यह स्प्रे अल्ट्रा वायलेट रोशनी में चमकता है. मोरित्स ने बताया, "इवेंट खत्म होने के बाद हम अल्ट्रा वायलेट रोशनी के जरिए पता कर पाए कि किन सतहों को सबसे ज्यादा बार छुआ गया था."
यह शोध जर्मनी की हाले यूनिवर्सिटी कर रही है और इस इवेंट को हाले के ही पास मौजूद शहर लाइपजिग में आयोजित किया गया था. जर्मनी के जाने माने पॉप सिंगर टिम बेंडस्को ने एक ही दिन में तीन कॉन्सर्ट किए ताकि अलग अलग लोगों के साथ यह टेस्ट किया जा सके. इस शोध की सबसे अहम बात यह रही कि वैज्ञानिकों ने हवा में मौजूद एरोजेल की मूवमेंट को समझने की कोशिश की. एरोजेल हवा में मौजूद पानी के सबसे छोटे कण होते हैं. किसी के खांसने या छींकने पर जो बूंदें मुंह और नाक से निकलती हैं, उसका सबसे छोटा हिस्सा लंबे वक्त तक हवा में बना रहता है. यह काफी लंबी दूरी तय कर लेता है. यही वजह है कि कोरोना दौर में लोगों को एक दूसरे से दो मीटर की दूरी बनाने को कहा जा रहा है.
दिन भर में कुल तीन कॉन्सर्ट किए गए ताकि तीन अलग अलग मानदंडों की तुलना की जा सके. पहले मामले में कॉन्सर्ट को उसी तरह आयोजित किया गया जैसे महामारी से पहले किया जाता था यानी बिना सोशल डिस्टेंसिंग, बिना डिसइन्फेक्टेंट के. दूसरे मामले में लोगों को स्वास्थ्य से जुड़े सभी दिशा निर्देशों को मानने को कहा गया और तीसरे मामले में उन्हें एक दूसरे से 1.5 मीटर दूर रहने को कहा गया.
फिलहाल इस शोध के नतीजों पर काम चल रहा है. पूरा आकलन होने में अभी एक महीने का वक्त लग सकता है. मकसद यह समझना है कि कोरोना के खतरे के बावजूद किस तरह से सामान्य जीवन में लौटा जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन कह चुका है कि महामारी दो साल तक चलेगी. ऐसा भी कहा जा चुका है कि कोरोना संक्रमण भले ही महामारी के रूप में ना रहे लेकिन खांसी जुकाम और फ्लू की तरह अब यह हमेशा हमेशा के लिए हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगा. ऐसे में पूरी जिंदगी लॉकडाउन में तो नहीं बिताई जा सकती. कोरोना वायरस की मौजूदगी में भी बड़े इवेंट कैसे आयोजित किए जा सकते हैं, उनके लिए किन सावधानियों और तैयारियों की जरूरत पड़ेगी, यह शोध इसे ठोस रूप से पेश करना चाहता है.
कोरोना महामारी की शुरुआत हुए आधा साल बीत चुका है. पिछले छह महीनों से वैज्ञानिक इस नए वायरस को समझने में लगे हुए हैं. जानिए कहां तक पहुंची है रिसर्च.
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कहां से हुई शुरुआत?
सोशल मीडिया पर वायरस के फैलाव को ले कर कई किस्से कहानी फैले लेकिन आज तक ठीक तरह से इस बात का पता नहीं चल सका है कि शुरुआत कहां से हुई. चीन के एक मीट बाजार की बात हुई. लेकिन जानवर से इंसान में संक्रमण का पहला मामला कौन सा था, यह आज भी रहस्य ही बना हुआ है.
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कैसा दिखता है वायरस?
चीनी वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड समय में इस नए कोरोना वायरस के जेनेटिक ढांचे का पता लगा लिया था. 21 जनवरी को उन्होंने इसे प्रकाशित किया और तीन दिन बाद विस्तृत जानकारी भी दी. इसी के आधार पर दुनिया भर में वायरस को मारने के लिए टीके बनाने की मुहिम शुरू हुई.
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क्या होगा वैक्सीन में?
सार्स कोव-2 वायरस की सतह पर एस-2 नाम के प्रोटीन होते हैं. यही इंसानी कोशिकाओं से जुड़ जाते हैं और संक्रमित व्यक्ति को बीमार करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. वैक्सीन का काम इस प्रोटीन को निष्क्रिय करना या किसी तरह ब्लॉक करना होगा.
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एयर कंडीशनर से संक्रमण
शुरुआत में कहा गया था कि संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से या फिर संक्रमित सतह को छूने से ही यह वायरस फैलता है. लेकिन अब पता चला है कि फ्लू के वायरस की तरह यह भी हवा से फैल सकता है, खास कर वहां, जहां एसी का इस्तेमाल हो रहा हो.
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भीड़ का खतरा
किसी बंद जगह में बड़ी संख्या में लोगों की उपस्तिथि खतरे की घंटी है. इसीलिए दुनिया के लगभग हर देश ने लॉकडाउन का सहारा लिया. अभी भी ज्यादातर देशों में सिनेमा हॉल, ट्रेड फेयर और बड़े इवेंट बंद हैं.
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मास्क का इस्तेमाल
विश्व स्वास्थ्य संगठन शुरू में संक्रमण पर काबू पाने के लिए मास्क के इस्तेमाल से इनकार करता रहा. लेकिन देशों ने उसके खिलाफ जा कर सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना अनिवार्य किया. हालांकि अधिकतर मामलों में देखा जा रहा है कि लोग मास्क का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.
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बचने का यही तरीका
दो अहम बातें जो शुरू से कही जा रही हैं और जिन पर अब भी कोई दो राय नहीं हैं, वे हैं - साबुन से अच्छी तरह हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग. हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद से सोशल डिस्टेंसिंग को ले कर संजीदगी भी कम हुई है.
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जानवरों से खतरा नहीं
हो सकता है कि आपका पालतू जानवर किसी तरह संक्रमित हो गया हो लेकिन अब तक हुए शोध दिखाते हैं कि इंसानों को उनसे कोई खतरा नहीं है. हालांकि इस दिशा में अभी और शोध चल रहे हैं.
महिलाओं की तुलना में पुरुषों को खतरा ज्यादा है. ए ब्लड ग्रुप के लोगों पर इसका ज्यादा असर होता है. पहले से बीमार लोगों का शरीर वायरस का ठीक से सामना नहीं कर पाता. मधुमेह, कैंसर और हृदय रोगियों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.
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इम्यूनिटी बढ़ाएं
अब तक हुए सभी शोध इसी ओर इशारा करते हैं कि अगर आपका इम्यून सिस्टम मजबूत है, तो आप वायरस के असर से बच सकते हैं. यही वजह है कि बाजार में तरह तरह के इम्यूनिटी बूस्टर बिकने लगे हैं.
संक्रमण के बाद फिट हो जाने वाले व्यक्ति के खून में वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी बनी रहती हैं. कुछ देशों में डॉक्टर इन एंटीबॉडी का इस्तेमाल मरीजों को ठीक करने के लिए कर रहे हैं. लेकिन कोरोना काल में लोग खून डोनेट करने से भी डर रहे हैं.
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आईसीयू में क्या होता है?
यूरोप में जब यह वायरस फैला तो डॉक्टर जल्द से जल्द मरीजों पर वेंटिलेटर इस्तेमाल करने लगे. लेकिन अब बताया जा रहा है कि वेंटिलेटर का इस्तेमाल फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे में अब आईसीयू केवल ऑक्सीजन लगाने पर जोर दे रहे हैं.
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आईसीयू से निकलने के बाद
जहां पहले सिर्फ फेफड़ों पर ध्यान दिया जा रहा था, वहां अब मरीज के आईसीयू से निकलने के बाद बाकी के अंगों की भी जांच की जा रही है क्योंकि कई मामलों में इस वायरस को अंगों के नाकाम होने के लिए जिम्मेदार पाया गया है.
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डायलिसिस की जरूरत
यदि किडनी पर असर हुआ हो, तो डायलिसिस की जरूरत बन जाती है. कोलकाता में एक डॉक्टर मात्र 50 रुपये में लोगों का डायलिसिस कर रहा है. आम तौर पर इसके लिए बड़ा खर्च आता है.
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कौनसी दवा करती है असर?
अब तक इस वायरस से निपटने का कोई रामबाण इलाज नहीं मिला है. डॉक्टर कुछ दवाओं का इस्तेमाल जरूर कर रहे हैं लेकिन ये सभी दवाएं लक्षणों पर असर करती हैं, बीमारी पर नहीं. रेमदेसिविर इस मामले में काफी चर्चित दवा है.
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कब आएगी वैक्सीन?
कुछ लोगों का कहना है कि इस साल के अंत तक टीका बाजार में आ जाएगा, तो कुछ अगले साल की शुरुआत की बात कर रहे हैं. लेकिन टीके आम तौर पर इतनी जल्दी तैयार नहीं होते. और अगर बन भी जाए, तो पूरी आबादी तक उन्हें पहुंचाने में भी वक्त लग जाएगा.
तस्वीर: Eijkman Institute
कैसी है तैयारी?
फिलहाल अलग अलग देशों में 160 वैक्सीन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. टीबी की वैक्सीन को बेहतर बना कर इस्तेमाल लायक बनाने की कोशिश भी चल रही है. भारत के सीरम इंस्टीइट्यूट ने प्रोडक्शन की तैयारी कर ली है. इंतजार है तो सही फॉर्मूला मिल जाने का.
तस्वीर: Eijkman Institute
इंसानों पर टेस्ट का मतलब?
जून 2020 के अंत तक पांच टीकों का ह्यूमन ट्रायल हो चुका है. इंसानों पर टेस्ट का मकसद होता है यह पता करना कि इस तरह के टीके का इंसानों पर कोई बुरा असर तो नहीं होगा. हालांकि यह असर दिखने में भी काफी लंबा समय लग सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/University of Oxford
हर्ड इम्यूनिटी कब मिलेगी?
जब आबादी के एक बड़े हिस्से को किसी बीमारी से इम्यूनिटी मिल जाती है, तो उसके फैलने का खतरा बहुत कम हो जाता है. जून के अंत तक दुनिया के एक करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके थे. लेकिन 7.8 अरब की आबादी में एक करोड़ हर्ड इम्यूनिटी बनाने के लिए काफी नहीं है. रिपोर्ट: फाबियान श्मिट/आईबी