पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने अपनी रणनीति तैयार कर ली है. सबकी नजरें उत्तर प्रदेश पर है. कांग्रेस ने सत्ता की चाभी पाने के लिए महिलाओं पर दांव खेला है.
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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पिछले साल अक्टूबर में ऐलान किया था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देगी. इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की पहली सूची में 50 महिलाओं को टिकट देने का ऐलान किया. गुरुवार को कांग्रेस महासचिव ने 125 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की जिसमें 40 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया गया है.
खास बात यह है कि इस सूची में एक ऐसी महिला का नाम है जिसकी बेटी के साथ बलात्कार हुआ था. कांग्रेस ने उन्नाव रेप पीड़िता की मां आशा देवी को अपना उम्मीदवार बनाया है. प्रियंका ने सूची जारी करते हुए कहा, "उन्नाव की उस लड़की की मां हमारी प्रत्याशी है जिसने सत्ताधारी दल के बलात्कारी विधायक के खिलाफ न्याय के लिए संघर्ष किया."
उन्होंने आगे कहा, "125 उम्मीदवारों की सूची में से 50 महिलाएं हैं. हमने प्रयास किया है कि संघर्षशील और पूरे प्रदेश में नई राजनीति की पहल करने वाले प्रत्याशी हों."
आशा सिंह की 19 वर्षीय बेटी के साथ 2017 में बलात्कार हुआ था और इसका आरोप विधायक कुलदीप सेंगर पर लगा था. कोर्ट ने सेंगर को दोषी पाया था और उम्रकैद की सजा हुई थी. अब आशा देवी उन्नाव की उसी बंगरमऊ सीट से चुनाव लड़ेंगी जहां से कभी सेंगर विधायक हुआ करते थे.
प्रियंका का कहना है कि कांग्रेस की सूची में ऐसी भी महिलाएं हैं जिन्होंने बहुत अत्याचार झेला है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आशा देवी को टिकट दिए जाने पर ट्वीट कर लिखा, "उन्नाव में जिनकी बेटी के साथ भाजपा ने अन्याय किया, अब वे न्याय का चेहरा बनेंगी- लड़ेंगी, जीतेंगी!"
उत्तर प्रदेश की सियासत पर करीबी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी कहते हैं, "प्रियंका गांधी ने महिला सशक्तिकरण का मुद्दा उठाकर राजनीति को महिला केंद्रित बनाने की कोशिश जरूर की है लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह फार्मूला कांग्रेस के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होता नहीं दिख रहा. यह बात माननी पड़ेगी कि विषम परिस्थितियों में प्रियंका ने महिला केंद्रित राजनीति की नींव जरूर रख दी है. भविष्य में कांग्रेस को इसका फायदा हो सकता है. ऐसा करके प्रियंका गांधी ने आधी आबादी यानी पूरे 50 फीसदी वोट बैंक को साधने की कोशिश की है."
प्रियंका गांधी कांग्रेस में महिलाओं को 40 फीसदी टिकट दे रही हैं लेकिन इसे लेकर पार्टी में ही सवाल उठ रहे हैं. इस पर अंसारी कहते हैं, "जहां पुरुष उम्मीदवार मजबूत है वह अपनी ही पार्टी की महिला मित्रों को हराने की साजिश कर सकते हैं ऐसी आशंका कांग्रेस नेताओं को है लेकिन प्रियंका का नारा महिलाओं को काफी प्रभावित कर रहा है."
इसके अलावा कांग्रेस ने लखनऊ सेंट्रल से सदफ जाफर को अपना उम्मीदवार बनाया है. सदफ सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के दौरान जेल गई थीं. कांग्रेस ने एक आंदोलनकारी महिला को टिकट भी दिया है, उनका नाम पूनम पांडे है. पूनम ने आशा कार्यकर्ताओं के मानदेय बढ़ाने के लिए आंदोलन किया था.
सीधा चुनाव लड़े बिना कौन कौन बना मुख्यमंत्री
भारत के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में पिछले 15 सालों से मुख्यमंत्री विधान सभा की जगह विधान परिषद के सदस्य रहे हैं. एक नजर बिना सीधा चुनाव लड़े सत्ता पाने वाले नेताओं पर.
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योगी आदित्यनाथ
बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. 2017 में राज्य के चुनावों में जीत हासिल करने के बाद जब बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुना था उस समय वो गोरखपुर से लोक सभा के सदस्य थे. मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें लोक सभा से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन उसके बाद वो विधान सभा की किसी सीट से उपचुनाव लड़ने की जगह विधान परिषद के सदस्य बन गए.
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अखिलेश यादव
उनसे पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी मार्च 2012 से मार्च 2017 के बीच जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब वे भी विधान परिषद के ही सदस्य थे. आदित्यनाथ की तरह अखिलेश भी मुख्यमंत्री बनने से पहले लोक सभा के सदस्य थे.
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मायावती
अखिलेश से पहले मई 2007 से मार्च 2012 तक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती भी उस कार्यकाल में विधान परिषद की ही सदस्य थीं. बतौर मुख्यमंत्री यह उनका चौथा कार्यकाल था. इससे पहले के कार्यकालों में वो 2002 और 1997 में विधान सभा की सदस्य रहीं.
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नीतीश कुमार
नीतीश कुमार पिछले 17 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. बस बीच में मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच नौ महीनों के लिए वो पद पर नहीं थे. अपने पूरे कार्यकाल में वो बिहार विधान परिषद के ही सदस्य रहे हैं.
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राबड़ी देवी
नीतीश कुमार के पहले राबड़ी देवी तीन बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. तीन कार्यकालों में से दो बार वो विधान परिषद की सदस्य रहीं और एक बार विधान सभा की.
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लालू प्रसाद यादव
राबड़ी देवी से पहले उनके पति लालू प्रसाद यादव दो बार मुख्यमंत्री रहे. वो एक कार्यकाल में विधान परिषद के सदस्य रहे और एक में विधान सभा के.
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उद्धव ठाकरे
शिव सेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे नवंबर 2019 से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं और विधान परिषद के सदस्य हैं. उनसे पहले मुख्यमंत्री रहे बीजेपी देवेंद्र फडणवीस तो विधान सभा के सदस्य थे, लेकिन फडणवीस से पहले मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण विधान परिषद के सदस्य थे.
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कुछ ही राज्यों में होता है
इस सूची में इतने सारे दिग्गज नेताओं के नाम देख कर आप शायद सोच रहे हों कि यह चलन भारतीय राजनीति में आम हो गया है. हालांकि यह परिपाटी कुछ ही राज्यों तक सीमित है. भारत के 28 राज्यों में से सिर्फ छह में ही विधान सभा के अलावा विधान परिषद भी हैं. इनमें बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक शामिल हैं.
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राष्ट्रीय स्तर पर
प्रधानमंत्री का राज्य सभा का सदस्य होना भी कुछ हद तक मुख्यमंत्री का विधान परिषद का सदस्य होने जैसा है. भारत में चार प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान राज्य सभा के सदस्य रहे हैं. तीन बार प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी अपने पहले कार्यकाल के दौरान राज्य सभा की सदस्य थीं.
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एच डी देवगौड़ा
एच डी देवगौड़ा जब जून 1996 में प्रधानमंत्री चुने गए थे उस समय वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. सितंबर में उन्होंने राज्य सभा की सदस्यता ले ली थी. बाद में वो कई बार चुन कर लोक सभा के सदस्य भी बने, लेकिन प्रधानमंत्री के अपने छोटे कार्यकाल के दौरान वो राज्य सभा के ही सदस्य थे.
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आइके गुजराल
1990 के राजनीतिक उथल पुथल वाले दशक में देवगौड़ा की तरह आईके गुजराल भी एक छोटे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री चुने गए थे और उस दौरान वो राज्य सभा के सदस्य रहे. वो दो बार लोक सभा के भी सदस्य रहे.
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मनमोहन सिंह
राज्य सभा से प्रधानमंत्रियों के बीच सबसे लंबा कार्यकाल मनमोहन सिंह का है. वो मई 2004 से मई 2014 तक प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान वो राज्य सभा के ही सदस्य रहे. वो कभी लोक सभा के सदस्य नहीं रहे. 1999 में उन्होंने सिर्फ एक बार लोक सभा का चुनाव जरूर लड़ा था लेकिन हार गए थे.
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नजर आधी आबादी पर
पिछले कई महीनों से उत्तर प्रदेश कांग्रेस और खासकर प्रियंका गांधी प्रदेश की महिलाओं को पार्टी की ओर आकर्षित करने की कोशिश में लगी हुई हैं. प्रियंका ने महिलाओं से जुड़े कई कार्यक्रम किए और चुनाव में जाने के लिए नारा दिया "लड़की हूं लड़ सकती हूं."
अंसारी कहते हैं कि चुनाव में महिलाओं की अलग से कोई भूमिका नहीं होगी क्योंकि वे वर्गों में बंटी हुई हैं. अंसारी के मुताबिक, "महिलाएं सिर्फ महिलाएं नहीं हैं, वे दलित हैं, पिछड़ी हैं, अगड़ी हैं, मुस्लिम भी हैं. दरअसल महिला कोई अलग से वोटबैंक नहीं है. हां, विधानसभा और लोकसभा में अपनी मौजूदगी बढ़ाने को लेकर महिलाओं में चेतना जरूर जागी है. जो चुनाव जीतने में सक्षम महिलाएं होंगी उनको महिलाओं का समर्थन और वोट जरूर मिल सकता है."
महिला की जीत सुनिश्चित होने पर ही पार्टियां उन्हें टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारती है. हालांकि किसी और पार्टी ने महिलाओं के टिकटें आरक्षित करने की बात नहीं की है, भारतीय राजनीति में ऐसे कई कारक हैं जो टिकट के लिए तय होते हैं, जैसे धर्म, जाति, माली हालत और क्षेत्र में समर्थन आदि. अंसारी के मुताबिक, "मुझे कतई ऐसा नहीं लगता कि वोटर जात-पात से उठकर महिलाओं के हक में वोट करेंगे. क्योंकि भारतीय समाज एक धर्म भीरु समाज है. इस समाज में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कमतर समझा जाता है. ज्यादातर पुरुष नहीं चाहते कि महिलाएं सशक्त होकर किसी भी क्षेत्र में उनसे आगे बढ़ें."
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जीत पक्की होने पर ही टिकट
दूसरी ओर पार्टी उसी उम्मीदवार पर पूरा दांव लगाती है जिसकी जीत पक्की होती है. अंसारी सिर्फ राजनीति ही नहीं समाज के हर स्तर पर महिला विरोधी आवाज पर कहते हैं, "करियर बनाने वाली महिलाओं को समाज का विरोध झेलना पड़ता है. यह विरोध परिवार से ही शुरू हो जाता है. भले ही समाज में महिला अधिकारों के प्रति काफी जागरूकता आ गई है लेकिन पुरुष आज भी महिलाओं को उनसे बेहतर या मजबूत होते नहीं देखना चाहते हैं."
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था और 114 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 7 सीट जीत पाई थी. 2017 में कांग्रेस पार्टी 49 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी.
एक बात यह भी है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड संख्या में महिलाओं ने जीत हासिल की थी. पिछले बार के चुनाव में कुल 445 महिलाएं चुनाव मैदान में थीं, जिनमें में से 40 ने जीत दर्ज की. 2012 में ऐसी महिलाओं की संख्या 36 थी. 403 विधायकों वाली विधानसभा में 40 महिला विधायकों के जीतने के बावजूद महिलाओं के लिए तय 33 फीसदी के कोटे से यह आंकड़ा बहुत कम था.
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए कब डाले जाएंगे वोट
भारतीय चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में चुनावों की तिथि का ऐलान कर दिया है. जानिए कैसे होंगे उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव. पांचों राज्यों के नतीजे 10 मार्च को आएंगे.
तस्वीर: DW/O. Singh Janoti
उत्तर प्रदेश
403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में मतदान होगा. बीजेपी की सरकार वाले यूपी में 10, 14, 20, 23, 27 फरवरी और 3 व 7 मार्च को वोट डाले जाएंगे. राज्य में मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच है.
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सीएपीएफ की 150 कंपनियां
चुनाव आयोग के मुताबिक उत्तर प्रदेश को पहले चरण के चुनावों के लिए केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बल (CAPF) की 150 कंपनियां दी जाएंगी. 10 जनवरी को 11,000 जवान मार्च करेंगे.
तस्वीर: Samiratmaj Mishra/DW
पंजाब
117 सीटों वाली पंजाब विधासभा के लिए 14 फरवरी को वैलेंटाइंस डे के दिन वोट डाले जाएंगे. फिलहाल पंजाब में कांग्रेस की सरकार है. नई सरकार बनाने के लिए अकाली दल, कांग्रेस, बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस जोर लगाएंगे.
तस्वीर: Hindustan Times/imago images
उत्तराखंड
70 विधानसभा सीटों वाले उत्तराखंड में एक ही दिन में मतदान पूरा हो जाएगा. बीजेपी शासित राज्य में 14 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. राज्य में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. राज्य में 5.37 लाख नए मतदाता हैं.
तस्वीर: DW/O. Singh Janoti
गोवा
40 सीटों वाली गोवा विधानसभा के लिए भी मतदान 14 फरवरी को ही होगा. गोवा में अभी बीजेपी की सरकार है. गोवा में मुख्य मुकाबला बीजेपी, कांग्रेस और आप के बीच है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Rahi
मणिपुर
पूर्वोत्तर भारत के राज्य मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. मतदान की तिथि 27 फरवरी और तीन मार्च होगी. मणिपुर में फिलहाल बीजेपी, नेशनल पीपल्स पार्टी, एलजेपी और नागा पीपल्स फ्रंट की गठबंधन सरकार है.
तस्वीर: Reuters
आदर्श आचार संहिता लागू
चुनावों के ऐलान के साथ ही पांच राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. अब नेता चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. किसी भी राज्य में सरकारी घोषणाएं या उद्धाटन नहीं होंगे. साथ ही रैली करने से पहले स्थानीय प्रशासन की इजाजत लेनी होगी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath
चुनाव क्यों जरूरी
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के मुताबिक भारतीय संविधान का अनुच्छेद 172 (1) किसी की प्रांतीय विधानसभा को अधिकतम पांच साल का समय देता है. चुनाव आयोग के मुताबिक इसी अनुच्छेद के चलते समय पर चुनाव कराने जरूरी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/V. Bhatnagar
चुनाव ड्यूटी के लिए वैक्सीनेशन
चुनाव आयोग का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को फ्रंटलाइन वर्कर माना जाएगा और एहतियात के तौर पर उन्हें वैक्सीन की एक और डोज दी जाएगी.