उत्तरी गोलार्ध में इस साल जितनी गर्मी पड़ी है, इतिहास में अब तक कभी नहीं पड़ी. अगस्त अब तक का सबसे गर्म महीना रहा है.
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संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम संगठन (WMO) ने कहा है कि बीता अगस्त इतिहास का सबसे गर्म महीना रहा है. उत्तरी गोलार्ध में इस साल पड़ी गर्मी ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं और जून व जुलाई के बाद अगस्त में लगातार सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया है.
जब से वैज्ञानिकों ने आधुनिक उपकरणों की मदद से तापमान का रिकॉर्ड रखना शुरू किया है, अगस्त में इतनी गर्मी कभी नहीं पड़ी. जुलाई 2023 के बाद यह इतिहास का सबसे गर्म महीना भी दर्ज किया गया. यूरोपीयन यूनियन के मौसम संगठन कॉपरनिकस और डब्ल्यूएमओ ने बुधवार को जारी एक साझा बयान में ये ऐलान किये.
इन संस्थाओं के मुताबिक ओद्यौगिक क्रांति के पहले के मुकाबले अगस्त का महीना 1.5 डिग्री ज्यादा गर्म रहा. 2015 में पेरिस समझौते के तहत 1.5 डिग्री सेल्सियस की इस सीमा को ही सदी के आखिर तक की अधिकतम सीमा माना गया था.
इतनी गर्मी कि फोटोसिंथेसिस बिना मर सकते हैं पेड़
फोटोसिंथेसिस, पृथ्वी पर मौजूदा ज्यादातर जीवन के लिए बेहद अहम है. क्या हो अगर पत्तियां ये कर ही ना पाएं? धरती के एक बड़े हिस्से में इतनी गर्मी पड़ रही है कि कुछ पौधों की पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस कर ही नहीं सकेंगी.
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क्या है फोटोसिंथेसिस
सूरज की रोशनी में पौधे, हवा और मिट्टी से सीओटू और पानी लेते हैं. पौधों की कोशिकाओं में जाकर पानी ऑक्सीडाइज होता है और सीओटू कम हो जाता है. इस क्रिया में पानी, ऑक्सीजन में बदल जाता है और सीओटू बदलता है ग्लूकोज में. फिर पौधा ऑक्सीजन वातावरण में छोड़ देता है और ऊर्जा को ग्लूकोज मॉलिक्यूल्स में जमा कर लेता है.
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पौधों को कहां से मिलता है हरा रंग
पौधों की कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है, जो सूरज की रोशनी से मिलने वाली ऊर्जा जमा करता है. इसके थाइलाक्लॉइड मेंमब्रेन्स में रोशनी को सोखने वाला क्लोरोफिल नाम का एक पिगमेंट होता है. इसी की वजह से पौधों को मिलता है हरा रंग.
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पेड़ों की भी गर्मी सहने की सीमा है
फोटोसिंथेसिस करने की पत्तियों की क्षमता, तापमान के एक सीमा से पार होने पर नाकाम होने लगती है. यानी जब पेड़ बहुत गरम हो जाते हैं, तो पत्तियों में ऊर्जा उत्पादन की मशीनरी तपकर खत्म होने लगती है. ऊष्णकटिबंधीय इलाकों के पेड़ों में तापमान की यह सहनशक्ति तकरीबन 46.7 डिग्री सेल्सियस है.
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क्या कहता है नया शोध
नेचर पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण अमेरिका से लेकर दक्षिणपूर्व एशिया के ऊष्णकटिबंधीय जंगलों में इतनी गर्मी हो रही है कि वहां कई पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस करने की हालत में ना रहें.
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40 डिग्री सेल्सियस के भी पार
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर स्थित अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लगे थर्मल सैटेलाइट सेंसरों से लिए गए तापमान के आंकड़े इस्तेमाल किए. उन्होंने इसे लीफ-वॉर्मिंग प्रयोगों से जमा किए आंकड़ों से मिलाया. वैज्ञानिकों ने एक्सट्रीम तापमान पर गौर किया. पाया गया कि फॉरेस्ट कैनपी का औसत तापमान, 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा. लेकिन कुछ मामलों में यह 40 डिग्री सेल्सियस के पार भी चला गया.
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मर सकते हैं पेड़
रिपोर्ट के मुताबिक, अभी 0.01 फीसदी पत्ते तापमान की सीमा रेखा पार कर रहे हैं. इस सीमा के बाहर फोटोसिंथेसिस करने की उनकी क्षमता दम तोड़ देती है. यानी, पत्ते और पेड़ की मौत हो सकती है.
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ग्लोबल वॉर्मिंग
0.01 फीसदी पत्तों का आंकड़ा अभी कम मालूम होगा. लेकिन तापमान तो लगातार बढ़ रहा है. सबसे गर्म जुलाई! अब तक का सबसे गर्म जून! ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के ऊष्णकटिबंधीय खतरों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
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ऊष्णकटिबंधीय जंगलों की अहमियत
पृथ्वी के करीब 12 फीसदी इलाके में ऊष्णकटिबंधीय जंगल हैं. इतने से इलाके में पौधों और जानवरों की तीन करोड़ से ज्यादा प्रजातियां हैं. यानी, पृथ्वी पर मौजूद वन्यजीवन का आधा हिस्सा और पेड़-पौधों की कम-से-कम दो तिहाई विविधता. माना जाता है कि वर्षावनों में तो अब भी सैकड़ों प्रजातियां हैं, जिनका हमें पता नहीं.
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जल चक्र: पानी-भाप-बादल-बारिश
ये जंगल पृथ्वी के पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए अहम हैं. ये हमें ऑक्सीजन देते हैं. सीओटू सोखते हैं. ये पानी का चक्र भी बनाए रखते हैं. ये वाष्पन क्रिया से वातावरण को पानी और नमी मुहैया करते हैं, जिससे बादल बनते हैं, बारिश होती है और इस तरह पानी का एक चक्र घूमता रहता है. ऐसा नहीं कि एक जगह के जंगल से उसी जगह बारिश होती हो. इस बारिश से नदियों, झीलों और सिंचाई व्यवस्थाओं को खुराक मिलती है.
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लेकिन वैज्ञानिकों की चिंता इससे कहीं ज्यादा बड़ी है. उन्हें आने वाले एक दशक का डर सता रहा है जबकि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो हालात कहीं ज्यादा खराब हो सकते हैं.
महाविनाश के संकेत
मौसम विज्ञानियों ने कहा कि इस साल महासागरों ने भी गर्मी के नये रिकॉर्ड स्थापित किये हैं. धरती के 70 फीसदी हिस्से को ढकने वाले महासागरों का तापमान अब तक का सबसे अधिक रहा है. यह औसतन 21 डिग्री सेल्सियस रहा और लगातार तीन महीने तक नया रिकॉर्ड बना.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "यह बढ़ती गर्मी सिर्फ भौंकने वाला कुत्ता नहीं रह गया है. यह कुत्ता अब काटने लगा है. जलवायु महाविनाश शुरू हो गया है.”
2023 अब तक का दूसरा सबसे गर्म साल रहा है. कॉपरनिकस के मुताबिक अभी तक 2016 इतिहास के सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बढ़ते तापमान के लिए मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं. कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को अब अल नीनो प्रभाव का साथ भी मिल गया है और तापमान लगातार ऊपर जा रहा है.
मौसम विज्ञानी एंड्रयू वीवर कहते हैं कि डब्ल्यूएमओ और कॉपरनिकस द्वारा जारी तापमान के नये आंकड़े उन्हें हैरान नहीं करते. वह कहते हैं कि दुनियाभर में सरकारें जलवायु परिवर्तन के मुद्देको ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही हैं. वह चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि जब सर्दी में तापमान कम होगा तो आम जनता इस गर्मी को भूल जाएगी.
जलवायु को बचाने का एक अनूठा तरीका
जर्मनी के कील शहर में जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के एक अनूठे तरीके पर शोध हो रहा है. बाल्टिक सागर में समुद्री घास का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, इस उम्मीद में की इससे जलवायु संरक्षण में मदद मिलेगी.
तस्वीर: LISI NIESNER/REUTERS
समुद्री घास के अंकुर
जर्मनी के उत्तरी शहर कील के पास ही समुद्री डाइवर खुर्पियों का इस्तेमाल कर समुद्री घास के एमेराल्ड ग्रीन रंग के अंकुर जड़ों के साथ निकाल रहे हैं और सावधानी से उसे झाड़ रहे हैं. जमीन पर इन अंकुरों को बड़े बड़े कूलरों में रखा जाता है. एक दिन बाद उन्हें और उत्तर की तरफ एक बंजर इलाके में ले जा कर फिर से रोप दिया जाता है.
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सामुदायिक भागीदारी पर भरोसा
डाइवर खिलती हुई समुद्री घास को इकठ्ठा कर उसमें से बीज निकालते हैं. जिओमार हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर ओशन रिसर्च के नेतृत्व में कील में सीस्टोर नाम के शोध प्रोजेक्ट में पहली बार स्थानीय निवासियों को बाल्टिक सागर में समुद्री घास का जीर्णोद्धार करने के लिए ट्रेन किया जा रहा है.
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महत्वपूर्ण कार्बन कुंड
समुद्री घास एक विशालकाय प्राकृतिक कुंड की तरह काम करती है जिसमें लाखों टन कार्बन का भंडारण किया जा सकता है. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि बीते 100 सालों में पानी की गिरती गुणवत्ता की वजह से समुद्री घास बहुत कम हो गई है.
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बाल्टिक सागर को फिर से हरा बनाना
जिओमार में पोस्टडॉक्टोरल शोधकर्ता एंगेला स्टीवेंसन इस पहल का नेतृत्व कर रही हैं. उन्होंने हाल के सालों में तीन टेस्ट फील्डों की स्थापना की और यह पाया कि शाखें बीजों से ज्यादा मजबूत है. स्टीवेंसन ने कहा, "हमारा लक्ष्य है इस पायलट पीरियड के बाद इसका स्केल बढ़ाना. अंतिम लक्ष्य है बाल्टिक सागर को फिर से हरा करना."
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जमीन के नीचे बागवानी की ट्रेनिंग
21 साल की वेटरनरी असिस्टेंट ली वरफौनडर्न जुलाई के शुरुआत में हुई ट्रेनिंग लेने वाले स्थानीय निवासियों के पहले बैच में थीं. वो कहती हैं, "यह पानी के नीचे बागवानी के जैसा है. पर्यावरण को बचाने के लिए सबको मिल कर योगदान देना चाहिए क्योंकि इसका हम सब पर असर पड़ता है." वीकेंड के कोर्स में छह दूसरे डाइवरों और जमीन पर कुछ वालंटियरों के साथ मिल कर उन्होंने करीब 2,500 पौधे लगाए हैं.
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समुद्री घास की अहमियत
एक कर्मी बीज के साथ समुद्री घास की एक डंठल और एक मादा फूल की पुष्प-योनि दिखा रहा है. 2019 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, अकेले यूरोप में 1860 के दशक और 2016 के बीच में समुद्री घास के एक-तिहाई इलाके खत्म हो गए. इन इलाकों के खोने की वजह से पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गई और जलवायु परिवर्तन और तेज हुआ.
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बड़ा काम
समुद्री घास लगाना कितना बड़ा काम है यह एक चौंकाने वाले आंकड़े से पता चलता है. स्टीवेंसन का अनुमान है कि जर्मनी के तट के करीब बाल्टिक सागर में जितनी समुद्री घास खो गई उसे फिर से जीवित करने के लिए पांच लाख डाइवरों को एक साल तक रोजाना 12 घंटों तक घास रोपनी पड़ेगी.
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लैब में शोध
थॉर्स्टन रौश जिओमार सेंटर में मरीन वैज्ञानिक हैं. अपनी प्रयोगशाला में वो समुद्री घास की तापमान में बढ़ोतरी का सामना करने की क्षमता पर शोध कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि हीट-रेसिस्टेंट नस्लों को उगाया जा सके, क्योंकि महासागरों के गर्म होने पर मछलियों की तरह समुद्री घास ठंडी जगहों पर माइग्रेट नहीं कर सकती है.
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नई तकनीक
बीजों के लिए इकठ्ठा की गई खिलती हुई घास एक कैच बेसिन में तैर रही है. स्टीवेंसन कहते हैं, "हमें नई तकनीकों के बारे में सोचना होगा जो कार्बन को हटाने में भी हमारी मदद कर सकें. लेकिन अगर हमारे पास कार्बन के भंडारण के लिए प्राकृतिक समाधान मौजूद हैं, तो हमें उनका इस्तेमाल करना चाहिए." (यूली हुएनकेन)
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कनाडा में विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ अर्थ एंड ओशन साइंस में प्रोफेसर वीवर कहते हैं, "अब जरूरत ये है कि नेता अपनी जनता को सच बताएं कि हम तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर नहीं रोक पाएंगे. हम 2 डिग्री पर भी नहीं रुकेंगे. अब सारा मामला 3 डिग्री तक जाने से रोकने का हो गया है. वह ऐसी सीमा है जो पूरी दुनिया में महाविनाश लेकर आएगी.”
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सिर्फ रिकॉर्ड नहीं टूट रहे
यूरोपीय संघ के अंतरिक्ष कार्यक्रम के एक विभाग के तौर पर काम करने वाली संस्था कॉपरनिकस के पास 1940 से अब तक के रिकॉर्ड दर्ज हैं. लेकिन युनाइटेड किंग्डम और अमेरिका के पास 19वीं सदी के मध्य से रिकॉर्ड उपलब्ध हैं. अनुमान है कि वे एजेंसियां जल्द ही ऐलान कर सकती हैं कि अगस्त इतना गर्म उनके रिकॉर्ड में कभी नहीं रहा.
कॉपरनिकस के जलवायु परिवर्तन प्रभाग के निदेशक कार्लोस बुओनटेंपो कहते हैं, "जो हम देख रहे हैं, यानी ना सिर्फ तापमान के नये रिकॉर्ड बल्कि इन रिकॉर्ड-तोड़ हालात का लगातार बने रहना और हमारे ग्रह व लोगों पर उसके प्रभाव, वे जलवायु व्यवस्था के गर्म होते जाने के नतीजे हैं.”
माएन यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट रीएनालाइजर के मुताबिक अब तक सितंबर में जो तापमान देखा गया है वह भी पिछले साल से ज्यादा बना हुआ है.