पुलिस छापेमारी के दौरान कारोबारी की मौत पर उठ रहे सवाल
आमिर अंसारी
२९ सितम्बर २०२१
गोरखपुर के एक होटल में पुलिस की छापेमारी में एक कारोबारी के मृत पाए जाने के बाद छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है. परिवार ने मौत पर सवाल उठाए हैं.
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मंगलवार देर रात गोरखपुर पुलिस ने एक होटल के कमरे पर छापा मारा और इस दौरान एक कारोबारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि पुलिस ने दावा किया कि वह अपराधियों की तलाश में होटल पहुंची थी. लेकिन परिवार ने पुलिस पर पिटाई का आरोप लगाया है. मृतक की पहचान 38 साल के कानपुर निवासी मनीष कुमार गुप्ता के रूप में हुई है. गुप्ता की पत्नी मीनाक्षी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "मेरे पति किसी काम से गोरखपुर गए थे. उन्होंने दो अन्य लोगों के साथ एक होटल में एक कमरा बुक किया, जो मेरे पति से व्यापार के सिलसिले में मिलने आए थे. बाद में उन्होंने मुझे बताया कि मेरे पति को पुलिसकर्मियों ने बहुत बुरी तरह पीटा था."
गुप्ता के दो अन्य दोस्त अलग-अलग शहरों के रहने वाले हैं. एक दोस्त जिसका नाम हरवीर सिंह है उसने मीडिया को बताया कि रात करीब साढ़े बारह बजे पांच से सात पुलिसकर्मी उनके कमरे में पहुंचे और पहचान पत्र मांगा. उनका कहना है कि गुप्ता ने जब सवाल किया कि इतनी रात को उन्हें क्यों परेशान किया जा रहा है तो पुलिस वालों ने धमकी दी.
हरवीर का कहना है कि उसे पुलिस वालों ने बाहर कर दिया और कुछ देर बाद गुप्ता को पुलिस वाले घसीटते हुए बाहर लाए और वह खून से लथपथ था. उसके बाद पुलिस उसे अस्पताल ले गई जहां उसकी मौत हो गई.
गोरखपुर पुलिस इसे हादसा बता रही है. एसएसपी विपिन ताडा ने मीडिया को बताया, "अपराधियों की तलाशी के दौरान रामगढ़ताल थाने की पुलिस एक होटल में गई. एक कमरे में अलग-अलग शहरों के तीन संदिग्ध युवक ठहरे हुए थे. पुलिस टीम जब होटल मैनेजर के साथ वहां गई तो हड़बड़ी में कमरे में मौजूद एक व्यक्ति गिरकर घायल हो गया. इसके बाद हमारे लोगों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया, जहां उसका इलाज किया गया. बीआरडी अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. डॉक्टरों का एक पैनल पोस्टमार्टम करेगा. तीनों लोग यहां क्यों थे, इसका पता लगाने के लिए जांच की जाएगी.''
मामले की गंभीरता को देखते हुए रामगढ़ताल पुलिस के छह कर्मियों को निलंबित कर दिया गया है. मृतक की पत्नी मीनाक्षी ने बताया कि तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कर ली गई है और जिन्होंने भी उनके पति को मारा है उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए.
प्रदेश में व्यापारी की मौत के बाद नेताओं की बयानबाजी भी शुरू हो गई है. समाजवादी पार्टी के नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाया है.
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले की निष्पक्ष जांच कराने के साथ दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिलाते हुए परिवार को मुआवजे का ऐलान किया है.
मीनाक्षी ने सवाल किया है कि वह पिता की मौत पर अपने चार साल के बेटे को क्या जवाब देगी. उन्होंने दोषियों के खिलाफ सख्त सजा की मांग की है.
बढ़ती जा रही है जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि देश की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई अभी चल ही रही है. जानिए और क्या बताते हैं ताजा आंकड़े.
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कितनी जेलें
2019 में देश में कुल 1,350 जेलें थीं, जिनमें सबसे ज्यादा (144) राजस्थान में थीं. दिल्ली में सबसे ज्यादा (14) केंद्रीय जेलें हैं. कम से कम छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी केंद्रीय जेल नहीं है.
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जेलों में भीड़
इतनी जेलें भी बंदियों की बढ़ती संख्या के लिए काफी नहीं हैं. ऑक्यूपेंसी दर 2018 में 117.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 118.5 प्रतिशत हो गई. सबसे ज्यादा ऊंची दर जिला जेलों (129.7 प्रतिशत) है. राज्यों में सबसे ऊंची दर दिल्ली में है (174.9 प्रतिशत).
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महिला जेलों का अभाव
'पूरे देश में सिर्फ 31 महिला जेलें हैं और वो भी सिर्फ 15 राज्यों/केंद्रीय शासित प्रदेशों में हैं. देश की सभी जेलों में कुल 4,78,600 कैदी हैं, जिनमें 19,913 महिलाएं हैं.
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कर्मचारियों का भी अभाव
2019 में जेल स्टाफ की स्वीकृत संख्या थी 87,599 लेकिन वास्तविक संख्या थी सिर्फ 60,787. सबसे बड़ा अभाव प्रोबेशन अधिकारी, कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि जैसे सुधार कर्मियों का था.
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कैदियों पर खर्च
2019 में देश में कैदियों पर कुल 2060.96 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कि जेलों के कुल खर्च का 34.59 प्रतिशत था. इसमें से 47.9 प्रतिशत (986.18 करोड़ रुपए) भोजन पर खर्च किए गए, 4.3 प्रतिशत (89.48 करोड़ रुपए) चिकित्सा संबंधी खर्च पर, 1.0 प्रतिशत (20.27 करोड़ रुपए) कल्याणकारी गतिविधियों पर, 1.1 प्रतिशत (22.56 करोड़ रुपए) कपड़ों पर और 1.2 प्रतिशत (24.20 करोड़ रुपए) शिक्षा और ट्रेनिंग पर किया गया.
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70 प्रतिशत कैदियों के मामले विचाराधीन
2019 में देश की सभी जेलों में अपराधी साबित हो चुके कैदियों की संख्या (1,44,125) ऐसे कैदियों की संख्या से ज्यादा थी जिनके खिलाफ मामले अभी अदालतों में विचाराधीन ही हैं (3,30,487). एक साल में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से लगभग आधे कैदी जिला जेलों में हैं और 36.7 प्रतिशत केंद्रीय जेलों में.
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न्याय के इंतजार में
विचाराधीन कैदियों में 74.08 प्रतिशत कैदी (2,44,841) एक साल तक की अवधि तक, 13.35 प्रतिशत कैदी (44,135) एक से दो साल की अवधि तक, 6.79 प्रतिशत (22,451) दो से तीन सालों तक, 4.25 प्रतिशत (14,049) तीन से पांच सालों तक और 1.52 प्रतिशत कैदी (5,011) पांच साल से भी ज्यादा अवधि से जेल में बंद थे.
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शिक्षा का स्तर
सभी कैदियों में 27.7 प्रतिशत (1,32,729) अशिक्षित थे, 41.6 प्रतिशत (1,98,872) दसवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे, 21.5 प्रतिशत (1,03,036) स्नातक के नीचे तक पढ़े थे, 6.3 प्रतिशत (30,201) स्नातक थे, 1.7 प्रतिशत 8,085 स्नातकोत्तर थे और 1.2% प्रतिशत (5,677) कैदियों के पास टेक्निकल डिप्लोमा/डिग्री थी.
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मृत्युदंड वाले कैदी
सभी कैदियों में कुल 400 कैदी ऐसे थे जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई थी. इनमें से 121 कैदियों को 2019 में मृत्युदंड सुनाया गया था. 77,158 कैदियों (53.54 प्रतिशत) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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जेल में मृत्यु
2018 में 1,845 कैदियों के मुकाबले 2019 में 1,775 कैदियों की जेल में मृत्यु हुई. इनमें से 1,544 कैदियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई. अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों की संख्या 10.74 प्रतिशत बढ़ कर 165 हो गई. इनमें से 116 कैदियों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई, 20 की मौत हादसों की वजह से हुई और 10 की दूसरे कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई. कुल 66 मामलों में मृत्यु का कारण पता नहीं चल पाया.
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पुनर्वास
2019 में कुल 1,827 कैदियों का पुनर्वास कराया गया और 2,008 कैदियों को रिहाई के बाद वित्तीय सहायता दी गई. कैदियों द्वारा कुल 846.04 करोड़ रुपए मूल्य के उत्पाद भी बनाए गए.