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मतदानः यूपी के पहले चरण में कौन सा मुद्दा चलेगा

समीरात्मज मिश्र
१० फ़रवरी २०२२

उत्तर प्रदेश में आज पहले चरण की वोटिंग हो रही है. 11 जिलों की 58 ऐसी सीटों पर मतदान है, जिन पर पिछली बार बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था.

Indien Wahlen in Bihar
तस्वीर: Prakash Singh/Getty Images/AFP

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में आज राज्य के पश्चिमी हिस्से में 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर मतदान हो रहा है. पिछले चुनाव में इनमें से 53 सीटें बीजेपी ने जीती थीं लेकिन इस बार सपा-रालोद गठबंधन से उसका सीधा मुकाबला है और कुछ जगहों पर बीएसपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों ने भी मुकाबलों को रोचक बना दिया है.

इस चरण में जिन जिलों में मतदान होना है उनमें यूपी की गन्ना बेल्ट कहे जाने वाले जिलों शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर के अलावा ब्रज क्षेत्र के आगरा, मथुरा और अलीगढ़ जिले और राजधानी से लगे गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद जिलों की सीटें शामिल हैं. पहले चरण के चुनाव में प्रदेश सरकार के मंत्री श्रीकांत शर्मा, सुरेश राणा, संदीप सिंह, कपिल देव अग्रवाल, अतुल गर्ग और चौधरी लक्ष्मी नारायण के सियासी भाग्य का फैसला होना है.

बीजेपी ने किया था क्लीन स्वीप

यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अजय कुमार शुक्ला ने बुधवार को मीडिया को बताया कि निष्पक्ष और शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराने के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं. कोविड-19 को देखते हुए मतदान स्थलों पर थर्मल स्कैनर, हैंड सेनेटाइजर जैसी चीजों की भी व्यवस्था की गई है. कोविड-19 को देखते हुए चुनाव आयोग ने रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध लगा रखा था जिसकी वजह से इस चरण में ज्यादातर प्रचार वर्चुअल माध्यम से हुआ है.

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साल 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बीजेपी को 58 में से 53 सीटों पर इकतरफा जीत मिली थी, जबकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को दो-दो सीटें मिली थीं और एक सीट राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से में गई थी. बाद में राष्ट्रीय लोकदल के विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे. दिलचस्प बात यह है कि साल 2017 में बहुजन समाज पार्टी 30 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी जबकि 15 सीटों पर सपा दूसरे नंबर पर थी लेकिन इस बार बीजेपी का मुकाबला मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन से ही दिख रहा है.

बीजेपी ने उठाया हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा

चुनाव प्रचार ज्यादातर भले ही वर्चुअल माध्यम से हुआ और आयोग ने रैलियों पर रोक लगाकर भीड़-भाड़ को रोकने की कोशिश की थी लेकिन छोटी सभाओं और घर-घर जाकर प्रचार के दौरान भी इतनी भीड़ हुई कि सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गईं. चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों के बीच जबानी तीर भी चले और कई संवेदनशील मुद्दों को भी हवा देने की कोशिश की गई.

क्या कैराना में कथित पलायन चुनावी मुद्दा है?

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2017 से पहले कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा बार-बार उठाया जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान किसान आंदोलन और किसानों से जुड़े अन्य मुद्दों की चर्चा की.

कैराना से हुए पलायन का मुद्दा बीजेपी ने कई बार उठायातस्वीर: Samiratmaj Mishra/DW

चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत देर से करने वाली बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने लोगों को अपने कार्यकाल के दौरान राज्य की कानून-व्यवस्था की याद दिलाई तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पार्टी उम्मीदवारों के लिए घर-घर जाकर वोट मांगे.

इस चरण के चुनाव में मतदाताओं और नेताओं को पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और रालोद नेता चौधरी अजित सिंह की कमी भी खल रही है जिनका पिछले दिनों निधन हो गया. कल्याण सिंह अलीगढ़ के रहने वाले थे और बुलंदशहर तक उनका काफी प्रभाव था और अजित सिंह का प्रभाव मेरठ-सहारनपुर से लेकर मथुरा तक था. इस चरण के चुनाव में राजनीतिक दलों के कई नेताओं के अलावा भारतीय किसान यूनियन और उसके नेता राकेश टिकैत की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.

मतदाताओं के लिए क्या जरूरी?

जहां तक मतदाताओं का सवाल है तो ऐसा लगता है कि वो स्थानीय मुद्दों के अलावा उम्मीदवारों के चेहरे को भी ध्यान में रखकर वोट दे रहे हैं. बागपत में गन्ना किसान मोहित कहते हैं, "यहां किसान आंदोलन का काफी असर है. लोग महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर भी वोट देंगे.”

हालांकि पास ही खड़े एक अन्य किसान प्रह्लाद कुमार ने चुनाव में किसान आंदोलन के असर को नकार दिया. वह बोले, "किसान आंदोलन में इस इलाके के कुछ ही लोग शामिल थे. ज्यादातर लोग अपने कामों में लगे रहे. महंगाई बढ़ी है और बेरोजगारी कम हुई है लेकिन मौजूदा सरकार ने कोरोना काल में परेशान लोगों को राशन और जरूरी चीजें उपलब्ध भी कराई हैं.”

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चुनाव में कैराना से पलायन का मुद्दा एक बार फिर ताजा हो गया जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों यहां उसका जिक्र किया. कैराना कस्बे में स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले गुलफाम मदनी कहते हैं, "लोगों ने वोट के लालच में इस कस्बे को बदनाम कर दिया जबकि यहां हिन्दू-मुसलमान हमेशा भाईचारे के साथ रहे हैं. पलायन लोगों ने रोजी-रोजगार के कारण किया और अभी भी कर रहे हैं, पर कुछ लोगों ने यह अफवाह फैलाई कि मुसलमानों के डर से हिन्दू पलायन कर रहे हैं जबकि पलायन करने वालों में मुसलमान भी हैं और हिन्दू भी और उनके पलायन की वजहें कुछ और हैं.”


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