बुधवार को विपक्षी दलों के हंगामे की वजह से लोकसभा में प्रश्नकाल सुचारू रूप से नहीं चल पाया. विपक्ष ने केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा को हटाने की मांग की. मिश्रा के बेटे पर किसानों की हत्या का आरोप है.
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संसद के दोनों सदनों में बुधवार को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में जमकर हंगामा हुआ. दरसअल कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट को लेकर केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा की बर्खास्तगी की मांग की. लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही विपक्ष ने आक्रामक रुख अपनााया. बुधवार को जब सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो विपक्षी सांसदों ने नारेबाजी शुरू कर दी. उन्होंने "न्याय दो", "मंत्री का इस्तीफा लो" और "प्रधानमंत्री जवाब दो" के नारे लगाए.
एसआईटी की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने संसद में स्थगन प्रस्ताव दिया था. कांग्रेस की मांग है कि मंत्री अजय मिश्रा को तुरंत पद छोड़ना चाहिए ताकि हिंसा मामले की निष्पक्ष जांच की जा सके और किसानों को न्याय मिल सके.
विपक्षी दलों के हंगामे और लगातार नारेबाजी के बीच लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने लगातार प्रश्नकाल को चलाने की कोशिश की, लेकिन विरोधी दलों का हंगामा लगातार जारी रहा. हंगामे और नारेबाजी की वजह से सदन की कार्यवाही बाधित हुई.
इस बीच राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि एसआईटी द्वारा किए गए नए खुलासे के आलोक में लखीमपुर खीरी कांड के मुद्दे पर उन्हें लोकसभा में बोलने नहीं दिया जा रहा है. कांग्रेस सांसद ने अपने नोटिस में लिखा, "यूपी पुलिस की एसआईटी रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि लखीमपुर में किसानों का नरसंहार एक पूर्व नियोजित साजिश थी, न कि कोई लापरवाही. उन्होंने कहा, "सरकार को गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा को तुरंत बर्खास्त करना चाहिए और पीड़ितों के परिवारों को न्याय सुनिश्चित करना चाहिए."
इस बीच लोकसभा में नहीं बोलने देने के राहुल के आरोप पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा में नेता सदन पीयूष गोयल ने कहा कि लखीमपुर मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है.
अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 13 लोगों पर लखीमपुर में तीन अक्टूबर को प्रदर्शन कर रहे किसानों को जीप से कुचलने का आरोप है. इस घटना में और इसके बाद भड़की हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी.
हिंसा की जांच कर रही एसआईटी ने अपनी जांच में पाया है कि एक सोची समझी साजिश के तहत किसानों को गाड़ी से कुचला गया जिसके बाद सभी आरोपियों पर गैर-इरादतन हत्या के बजाय हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है. अब आशीष समेत सभी 13 आरोपियों पर साजिश रचकर हत्या करने और शस्त्र अधिनियम की धाराओं के तहत मुकदमा चलेगा. एसआईटी की अर्जी पर सीजेएम कोर्ट ने मंगलवार को नई धाराएं बढ़ाने को मंजूरी दी है. इस मामले में आशीष समेत सभी 13 आरोपी जेल में बंद हैं.
जलवायु परिवर्तन: पहाड़ों के लिए भी है खतरा
ग्लोबल वार्मिंग ने पहाड़ों की प्राकृतिक व्यवस्था को खत्म करना शुरू कर दिया है. इन परिवर्तनों का जल प्रवाह से लेकर कृषि, वन्य जीवन और पर्यटन तक हर चीज पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.
दुनिया के पहाड़ जहां बहुत सख्त हैं, वहीं बहुत नाजुक भी हैं. दूर के तराई क्षेत्रों पर भी उनका बहुत बड़ा प्रभाव है, लेकिन वे जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं. पहाड़ों में भी तापमान बढ़ रहा है और प्राकृतिक वातावरण बदल रहा है. नतीजतन जल प्रणालियों, जैव विविधता, प्राकृतिक आपदाओं, कृषि और पर्यटन के परिणामों के साथ बर्फ और ग्लेशियर गायब हो रहे हैं.
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पिघलती बर्फ
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज का कहना है कि अगर उत्सर्जन बेरोकटोक जारी रहा तो कम ऊंचाई वाले बर्फ के आवरण में 80 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. ग्लेशियर भी सिकुड़ रहे हैं. यूरोपीय आल्प्स में कार्बन डाइऑक्साइड के मौजूदा स्तर पर समान पिघलने की आशंका है. विश्व के पर्माफ्रॉस्ट का कम से कम एक चौथाई भाग ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में है.
बदलती आबोहवा का जल प्रणालियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन प्रभाव समय के साथ बदलते हैं. ग्लेशियरों से नदियों में पानी बहता था, लेकिन अब उनके पिघलने की गति तेज हो गई है. इससे नदी में पानी का बहाव भी बढ़ गया है. कई पर्वत श्रृंखलाओं में बर्फ पिघलने के कारण ग्लेशियरों का आकार छोटा हो गया है, जैसा कि पेरू के पहाड़ों के मामले में हुआ है.
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जैव विविधता: विकास का बदलता परिवेश
पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन ने पर्वतीय वन्यजीवों, पक्षियों और जड़ी-बूटियों के विकास के लिए प्राकृतिक वातावरण को भी बहुत बदल दिया है. वनों की कटाई ने तलहटी में वन आवरण को कम कर दिया है. नतीजतन, इन क्षेत्रों में वन्य जीवन बढ़ तो रहा है लेकिन वह इसकी कीमत चुका रहा है.
ग्लेशियरों के पिघलने और पहाड़ों के स्थायी रूप से जमे हुए क्षेत्रों से बर्फ के घटने से पहाड़ी दर्रे और रास्ते अस्थिर हो गए हैं. इससे हिमस्खलन, भूस्खलन और बाढ़ में वृद्धि हुई है. पश्चिमी अमेरिकी पहाड़ों में बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही है. इसके अलावा, ग्लेशियरों के पिघलने से भारी धातुएं निकल रही हैं. यह पृथ्वी पर जीवन के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है.
दुनिया की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करती है. लेकिन बिगड़ते आर्थिक अवसरों और प्राकृतिक आपदाओं के उच्च जोखिम के साथ वहां जीवन और अधिक सीमांत होता जा रहा है. पहाड़ के परिदृश्य के सौंदर्य, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलू भी प्रभावित होते हैं. उदाहरण के लिए नेपाल में स्वदेशी मनांगी समुदाय ग्लेशियरों के नुकसान को उनकी जातीय पहचान के लिए एक खतरे के रूप में देखता है.
पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ते तापमान ने अर्थव्यवस्था को बहुत ही नकारात्मक स्थिति में डाल दिया है. जलवायु परिवर्तन ने पर्वतीय पर्यटन और जल आपूर्ति को भी प्रभावित किया है. इसके अलावा कृषि को भी नुकसान हुआ है. पहाड़ के बुनियादी ढांचे जैसे रेलवे ट्रैक, बिजली के खंभे, पानी की पाइपलाइन और इमारतों पर भूस्खलन का खतरा है.
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शीतकालीन पर्यटन: बर्फ रहित स्की रिजॉर्ट
कम बर्फबारी के कारण पहाड़ों में हिमपात का आनंद जलवायु परिवर्तन ने भी प्रभावित किया है. स्कीइंग के लिए बर्फ कम होती जा रही है. पर्वतीय मनोरंजन क्षेत्रों में स्कीइंग के लिए कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है. बोलिविया को ही ले लीजिए, जहां पिछले 50 सालों में आधे ग्लेशियर पानी बन गए हैं.
जैसे-जैसे ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं आखिरकार नदियों और घाटियों में बहने वाले पानी की मात्रा कम होती जा रही है. स्थानीय किसानों को कम कृषि उपज का सामना करना पड़ रहा है. नेपाल में किसान सूखे खेतों की चुनौती से जूझ रहे हैं. उनके लिए आलू उगाना मुश्किल हो गया है. इसी तरह के कई अन्य हिल स्टेशन के किसानों ने गर्मियों की फसलों की खेती शुरू कर दी है. (रिपोर्ट: एलिस्टर वॉल्श)