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कानून और न्यायभारत

छात्र की पिटाई: सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को फटकार

२६ सितम्बर २०२३

यूपी के एक स्कूल में एक बच्चे की सहपाठियों द्वारा पिटाई के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच पर सवाल उठाते हुए कहा है कि एफआईआर "बहुत देरी" से दर्ज की गई. कोर्ट ने कहा वरिष्ठ आईपीएस अफसर की निगरानी में जांच कराई जाए.

तस्वीर: fikmik/YAY Images/IMAGO

मुजफ्फरनगर के एक निजी स्कूल में सात साल के छात्र की दूसरे छात्रों से पिटवाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस के रवैये पर नाखुशी जाहिर की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामला "बहुत गंभीर" है और इसकी जांच के लिए यूपी सरकार वरिष्ठ आईपीएस की नियुक्ति एक हफ्ते के भीतर करे और स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करे. इसके अलावा कोर्ट ने निर्देश दिया कि घटना में शामिल बच्चों की काउंसिलिंग कराए.

इस मामले की सुनवाई सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मिथल की बेंच ने की. बेंच ने अपराध होने के बावजूद पीड़ित के पिता की शिकायत पर शुरू में एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) दर्ज करने के लिए यूपी पुलिस की खिंचाई की.

बेंच ने कहा टीचर द्वारा छात्रों को एक विशेष समुदाय के सहपाठी को थप्पड़ मारने का निर्देश देने का वायरल वीडियो "राज्य की अंतरात्मा को झकझोर देने वाला" है.

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सवालों में पुलिस की एएफआईआर

इस घटना को "गंभीर" बताते हुए बेंच ने आदेश दिया कि दो सप्ताह की देरी के बाद दर्ज की गई एफआईआर की जांच एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर में सांप्रदायिक आरोपों के नहीं होने पर हैरानी जताई.

पीड़ित बच्चे के पिता ने शिकायत की थी कि टीचर ने धर्म के आधार पर टिप्पणी की थी. लेकिन एफआईआर में इस आरोप का जिक्र नहीं है. बेंच ने एफआईआर में इन आरोपों के नहीं होने पर कहा, "जिस तरह से एफआईआर दर्ज की गई है उस पर हमें गंभीर आपत्ति है."

कोर्ट: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में विफल

इस मामले की सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा, "जब तक छात्रों में संवैधानिक मूल्यों के महत्व को बढ़ाने का प्रयास नहीं किया जाता है, तब तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती है."

बेंच ने आगे कहा, "अगर किसी छात्र को केवल उसके धर्म के आधार पर दंडित किया जाता है, तो वह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती है. इसी तरह, यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) और उसके तहत बने नियमों के अनिवार्य अनुपालन में प्रथमदृष्टया राज्य की विफलता है."

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि वह चार हफ्ते के भीतर शिक्षा के अधिकार अधिनियम पूरे राज्य में लागू करने की रिपोर्ट पेश करे.

बेंच ने यह भी कहा कि अगर आरोप सही है तो यह एक शिक्षक द्वारा दी गई सबसे बुरी तरह की शारीरिक सजा हो सकती है, क्योंकि शिक्षक ने अन्य छात्रों को पीड़ित को पीटने का निर्देश दिया.

यूपी सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि राज्य किसी को भी नहीं बचा रहा है, लेकिन साथ ही कहा कि "सांप्रदायिक कोण को अनुपात से अधिक उछाला जा रहा है."

मुजफ्फरनगर के नेहा पब्लिक स्कूल से जुड़ा वीडियो 24 अगस्त को सोशल मीडिया में वायरल हुआ था जिसमें टीचर तृप्ता त्यागी ने बच्चों से कथित तौर पर दूसरे समुदाय के बच्चे को मारने का निर्देश दिया था.

इस मामले पर महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने घटना को लेकर राज्य पर निष्क्रियता का आरोप लगाया था. इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी.

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