पहली बार यूक्रेन जाएंगे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
२० अगस्त २०२४
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के कई हफ्तों बाद, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 अगस्त को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जलेंस्की से मिलने यूक्रेन का दौरा करेंगे.
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यूक्रेन में रूसी आक्रमण के बाद पहली बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन यात्रा पर जा रहे हैं. इसकी घोषणा सोमवार को नई दिल्ली में विदेश मंत्री ने की. इससे पहले जुलाई में मोदी रूस गए थे जहां उन्होंने यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी.
जेलेंस्की के दफ्तर ने भी इस यात्रा की पुष्टि की है, जो मोदी के दो दिवसीय पोलैंड दौरे के बाद होगी. यूक्रेन ने कहा कि मोदी और जेलेंस्की द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग पर चर्चा करेंगे और कई समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगे, लेकिन कोई विवरण नहीं दिया गया.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि मोदी की यह पहली यात्रा यूक्रेन में हाल की उच्च-स्तरीय बैठकों पर आधारित है, जिनमें इटली में जून में जी7 समिट के दौरान मोदी और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की बैठक शामिल है. भारत ने कहा है कि उसके रूस और यूक्रेन दोनों के साथ ठोस और स्वतंत्र संबंध हैं और यह यात्रा भारत और यूक्रेन के बीच लगातार संपर्कों पर आधारित है.
एक बयान में मंत्रालय ने कहा कि यह एक "ऐतिहासिक यात्रा" है जो मौजूदा संबंधों और संपर्कों को आगे बढ़ाती है. मंत्रालय ने बताया कि भारत का युद्ध के प्रति नजरिया “स्पष्ट और स्थिर है कि यह युद्ध का समय नहीं है, बल्कि संवाद और बातचीत का समय है.”
भारतीय विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) तन्मय लाल ने मीडिया से बातचीत में कहा, "यह कोई ज़ीरो-सम गेम नहीं है... ये स्वतंत्र और व्यापक संबंध हैं. यह एक महत्वपूर्ण यात्रा है जिससे हमारे संबंधों को विभिन्न क्षेत्रों में प्रोत्साहित किए जाने की उम्मीद है."
भारत की तटस्थता
भारत ने यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ रुख बनाए रखा है. हालांकि उसने रूस पर प्रतिबंध लगाने में पश्चिम का साथ नहीं दिया और बार-बार संघर्ष को हल करने के लिए दोनों पक्षों से बातचीत करने का अनुरोध किया है. भारत पश्चिमी देशों और रूस दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए है लेकिन पश्चिमी देशों की आपत्तियों के बावजूद युद्ध शुरू होने के बाद से उसने रूस से तेल का आयात बढ़ा दिया है.
भारत सैन्य उपकरणों के लिए रूस पर बहुत हद तक निर्भर है. हालांकि पिछले कुछ सालों में उसने उस निर्भरता को कम करने की कोशिश की है.
सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाले देश
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं और वह दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाला देश है. लेकिन और बहुत से देश हैं, जिन पर बड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं.
रूस पर इस वक्त 18,772 प्रतिबंध हैं. हालांकि 2022 में यूक्रेन पर उसके हमले की तुलना में यह छह गुना बढ़ चुके हैं. फरवरी 2022 के बाद से ही उस पर या उसके नागरिकों पर 16,000 से ज्यादा प्रतिबंध लगाए गए हैं. इनमें से 11,462 तो व्यक्तियों पर हैं.
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के पहले ईरान दुनिया का सबसे अधिक प्रतिबंधों वाला देश था. यूएन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत व इस्राएल जैसे देशों ने उस पर 3,616 प्रतिबंध लगाए हुए थे जो अब बढ़कर 4,953 हो चुके हैं.
तस्वीर: Rouzbeh Fouladi/ZUMA/picture alliance
सीरिया, तीसरे नंबर पर
सीरिया पर 2,811 प्रतिबंध हैं. हालांकि इनमें से अधिकतर 2011 के गृह युद्ध के बाद लगाए गए. अब वह प्रतिबंधों की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है.
तस्वीर: Louai Beshara/AFP/Getty Images
उत्तर कोरिया
प्रतिबंधों के मामले में उत्तर कोरिया दशकों से अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पश्चिमी देशों की सूची में ऊपर रहा है. फिलहाल उसके ऊपर 2,171 प्रतिबंध लगे हैं.
तस्वीर: Lee Jin-man/AP Photo/picture alliance
बेलारूस
रूस का बेहद करीबी और पड़ोसी बेलारूस प्रतिबंधों की सूची में पांचवें नंबर पर है. उस पर कुल 1,454 प्रतिबंध हैं. इनमें से एक तिहाई से ज्यादा फरवरी 2022 के बाद लगाए गए हैं.
तस्वीर: Sergei Supinsky/Getty Images/AFP
म्यांमार
2021 में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किए जाने से पहले भी म्यांमार बड़ी संख्या में प्रतिबंध झेल रहा था. लेकिन अब उसके प्रतिबंधों की संख्या 988 हो चुकी है.
नरेंद्र मोदी जब रूस गए थे तो जेलेंस्की ने उनकी यात्रा की आलोचना की थी. यह यात्रा पुतिन के राष्ट्रपति के रूप में दोबारा चुने जाने के तुरंत बाद हुई और रूस में इसे दोनों देशों के बीच संबंधों को महत्व देने के संकेत के रूप में देखा गया. उस समय मोदी और पुतिन के गले मिलने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थीं.
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भारत-यूक्रेन संबंधों का इतिहास
भारत ने सोवियत संघ के विघटन के बाद दिसंबर 1991 में यूक्रेन की स्वतंत्रता को मान्यता दी. इसके बाद 17 जनवरी 1992 को दोनों देशों के बीच औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित हुए. भारत ने 1992 में कीव में अपना दूतावास खोला, जबकि यूक्रेन ने 1993 में नई दिल्ली में अपना दूतावास खोला.
बीते वर्षों में दोनों देशों के बीच कई उच्च स्तरीय दौरे हुए हैं. 2002 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यूक्रेन का दौरा किया, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षण था. यूक्रेन के नेता भी भारत आए हैं, जहां व्यापार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर चर्चा हुई. अप्रैल में यूक्रेन के विदेश मंत्री ने भारत का दौरा कियाथा.
भारत और यूक्रेन ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों में आमतौर पर एक-दूसरे का समर्थन किया है. हालांकि, यूक्रेन से जुड़े संघर्षों, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन तनाव के मामले में, भारत ने अपने रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण तटस्थ रुख बनाए रखा है.
द्विपक्षीय व्यापार दोनों देशों के संबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, विशेष रूप से कृषि, दवाइयों, मशीनरी और रसायनों के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच काफी व्यापार होता है. भारतीय कंपनियों ने यूक्रेन में, विशेष रूप से दवाइयों और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में निवेश किया है.
भारत और यूक्रेन ने रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग किया है. यूक्रेन ने भारत को सैन्य उपकरणों की सप्लाई की है, जिसमें भारतीय सैन्य विमानों और टैंकों का आधुनिकीकरण शामिल है.
नाटो के 75 साल: कोल्ड वॉर से यूक्रेन वॉर तक
नाटो 75 साल का हुआ. तनाव और असुरक्षा से भरे शीत युद्ध के लंबे दशकों से लेकर यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में सुरक्षा की बदलती तस्वीर तक, देखिए नाटो का सफर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
12 संस्थापक देश
4 अप्रैल 1949 को 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) का गठन किया. ये संस्थापक देश थे: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल.
तस्वीर: Keystone/Hulton Archive/Getty Images
वॉशिंगटन में दस्तखत हुए
इन 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने वॉशिंगटन के डिपार्टमेंटल ऑडिटोरियम में समझौते पर दस्तखत किए. इसे वॉशिंगटन ट्रीटी के नाम से भी जाना जाता है. हस्ताक्षर समारोह के पांच महीनों के भीतर सदस्य देशों की संसद ने समझौते पर कानूनी मुहर लगा दी. इस तरह ये देश संधि में कानूनी और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ दाखिल हुए.
तस्वीर: epa/AFP/dpa/picture alliance
आर्टिकल पांच और साझा सुरक्षा
समवेत सुरक्षा और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना, नाटो के मूलभूत सिद्दांतों में है. ट्रीटी का आर्टिकल पांच साझा सुरक्षा की गारंटी देता है. इसके मुताबिक, सदस्य देश सहमति देते हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों पर हथियारबंद हमले की स्थिति में इसे पूरे ब्लॉक पर हमला माना जाएगा.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
एक पर हमला, सब पर हमला
हमले की स्थिति में हर सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में दर्ज निजी या सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस सदस्य देश की मदद करेगा, जिसपर हमला हुआ है. सभी सदस्य नॉर्थ अटलांटिक इलाके की सुरक्षा बरकरार रखने और हनन की स्थिति में इसे वापस कायम करने के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र सेना और हथियारों का भी इस्तेमाल करेंगे.
तस्वीर: MDR/BR/DW
9/11 के बाद आर्टिकल पांच का इस्तेमाल
आर्टिकल पांच यह भी कहता है कि जो जवाबी कदम उठाए जाएंगे, उनकी सूचना तुरंत सुरक्षा परिषद को दी जाएगी. जब परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा वापस कायम करने की दिशा में जरूरी कदम उठा लेगा, उसके बाद नाटो की ओर से की जा रही कार्रवाई रोक दी जाएगी. अब तक नाटो ने आर्टिकल पांच का इस्तेमाल केवल 9/11 के आतंकी हमले के बाद किया है.
तस्वीर: Spencer Platt/Getty Images via AFP
नाटो में विस्तार
नाटो में समय-समय पर विस्तार होता रहा है. अब तक विस्तार के 10 चरण रहे हैं. पहली बार 1952 में समूह का विस्तार हुआ, जब ग्रीस और तुर्की ब्लॉक में शामिल हुए. फिर 6 मई 1955 को जर्मनी (तत्कालीन फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी, या वेस्ट जर्मनी) नाटो का 15वां सदस्य बना. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में आए. ये दो चरणों में हुआ.
तस्वीर: Mike Nelson/dpa/picture alliance
शीतयुद्ध के बाद का विस्तार
साल 1999 में हुए पोस्ट-कोल्ड वॉर के पहले विस्तार में चेकिया, हंगरी और पोलैंड सदस्य बने. फिर मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया को नाटो की सदस्यता मिली. नाटो के सबसे नए सदस्य हैं फिनलैंड (अप्रैल 2023) और स्वीडन (मार्च 2024). इस तरह नाटो में अब 32 सदस्य हैं.
तस्वीर: Tom Samuelsson/Regeringskansliet/TT/IMAGO
बालकन्स पर रूस के साथ तनाव
2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मॉन्टेनीग्रो और 2020 में नॉर्थ मैसिडोनिया नाटो के सदस्य बने. ये बालकन देश हैं. बाल्कन्स का इलाका लंबे समय से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की वजह रहा है. पश्चिम की ओर से यूरोपीय संघ और नाटो यहां विस्तार करना चाहते हैं, वहीं रूस भी अपने इस पूर्व प्रभावक्षेत्र में सहयोगी तलाश रहा है.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
रूस का नाटो पर विस्तारवाद का आरोप
ऐसे में रूस लंबे समय से बालकन्स में नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है. वह इसे नाटो की विस्तारवादी नीति बताता है और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद मॉस्को का नाटो से विरोध और गहराता गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
यूक्रेन में जारी युद्ध का गहरा असर
यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में सुरक्षा की भावना को गहराई तक हिला दिया है. यूक्रेन को मदद चाहिए, ना केवल फंड बल्कि सैन्य साजो-सामान भी. ऐसे में अभी नाटो के आगे सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युद्ध के बीच कीव को किस तरह मदद मुहैया कराई जाए.
नाटो सीधे तौर पर युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता, लेकिन यूक्रेन में रूस को बढ़त पूरी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अकल्पनीय चुनौती होगी. ऐसे में नाटो देशों के बीच यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के प्रारूप, स्वभाव और आकार पर बातचीत जारी है. रूस के साथ समीकरण नाटो की सबसे बड़ी चुनौतियों में है.
तस्वीर: Christopher Ruano/picture alliance/Planetpi/Planet Pix/ZUMA Press Wire
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भारत के छात्र बड़ी संख्या में पढ़ाई करने यूक्रेन जाते हैं. खासकर चिकित्सा के क्षेत्र में पढ़ाई के लिए यूक्रेन एक लोकप्रिय जगह रही है और हजारों भारतीय छात्र यूक्रेन के विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं.
हालिया घटनाक्रम
फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद दोनों देशों के बीच कुछ तनाव रहा है. रूस-यूक्रेन संघर्ष ने भारत को एक नाजुक स्थिति में डाल दिया है, जहां उसे रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों और यूक्रेन के साथ संबंधों के बीच संतुलन बनाना है. भारत ने शांति समाधान और बातचीत का अनुरोध किया है, लेकिन संघर्ष में किसी का पक्ष लेने से बचा है.
2022 में संघर्ष के शुरुआती चरणों में, भारत ने यूक्रेन से अपने हजारों नागरिकों, मुख्य रूप से छात्रों, को सफलतापूर्वक निकाला था. इसमें यूक्रेनी अधिकारियों का सहयोग भी मिला था. भारत ने संघर्ष के दौरान यूक्रेन को मानवीय सहायता जारी रखी है, जिसमें चिकित्सा उपकरण और अन्य आवश्यक वस्तुएं शामिल हैं.